बांसवाड़ा. अपनी क्षमता से कहीं अधिक लोगों तक सुखी खाद्य सामग्री से लेकर भोजन पहुंचाने का इस युवा पर एक प्रकार से नशा छा गया है. लॉकडाउन से लेकर अब तक रोजाना करीब 100 लोगों के खाने-पीने का अपनी जेब से प्रबंध कर रहा है. इसके लिए उसने अपनी प्रिय वस्तुओं को भी बेचने से गुरेज नहीं किया.
महाभारत का एक चरित्र कर्ण के रूप में हमारे सामने रखा जाता रहा है. कहा जाता है कि सुबह की शुरुआत करण गरीब वर्ग के लोगों को दान के साथ करता था. यहां तक कि अपनी जान की परवाह नहीं करते हुए उसने अपना रक्षा कवच तक दान में दे दिया था. सौभाग्य से शहर के निकट पड़ने वाली सागवाड़िया ग्राम पंचायत की कमान दूसरी बार करण डिंडोर संभाल रहे हैं. इस युवक पर जरूरतमंदों की मदद करने का नशा चढ़ा दिखाई देता है. लॉकडाउन के बाद अपनी पंचायत के कुछ परिवारों की तस्वीर सामने आई तो करण भावुक हो उठे. ग्राम पंचायत के गरीब लोगों की सूची तैयार की और उन्हें भोजन उपलब्ध कराने की ठानी.
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सरकारी स्तर पर आने वाली मदद न जाने कब आएगी, यह सोचकर इस युवा सरपंच ने खेत में खड़ी गेहूं की फसल की थ्रेशिंग करवा डाली और 11 क्विंटल 20 किलो ग्राम पैदावार को मार्केट में बेच जरूरतमंद परिवारों के लिए सुखी खाद्य सामग्री के पैकेट पहुंचा दिए. यही नहीं अपनी ग्राम पंचायत के अलावा आसपास की ग्राम पंचायतों भाबोर, नवागांव, सांमरिया, लीमथान आदि आधा दर्जन ग्राम पंचायतों के गरीब तबके के लोगों तक भी खाद्य सामग्री पहुंचाने का मिशन हाथ में लिया.
जब आर्थिक तंगी सामने आई...
करण के सामने जब आर्थिक तंगी आई तो ग्राम पंचायत की दूसरी बार कमान संभालने वाले करण ने अपनी सोने की चेन गिरवी रखने से भी परहेज नहीं किया. 50 हजार रुपए में चेन गिरवी रखकर लोगों के लिए खानपान की व्यवस्था के मिशन को आगे बढ़ाया. यही नहीं इन पंचायतों के अलावा पुलिस लाइन सहित बांसवाड़ा शहर के कई इलाकों को अपने ट्रैक्टर से मशीन लगाकर सेनेटाइज तक किया.
करण ने बेच डाली बाइक...
लॉकडाउन को सरकार द्वारा आगे बढ़ा दिया गया तो फिर पंचायत सहित आसपास की ग्राम पंचायतों के लोगों के समक्ष खाने-पीने का संकट आने की आशंका उत्पन्न हो गई. ऐसे में करण ने अपनी बाइक को 75 हजार रुपए में बेच दी और आसपास के गांव में करीब 100 लोगों को खाना पहुंचाने के मिशन को बनाए रखा.
सरपंच करण का कहना है कि जब तक लॉकडाउन खत्म नहीं होगा. तब तक वह जरूरतमंदों तक खाना और खाद्य सामग्री पहुंचाने का अभियान जारी रखेंगे. जरूरत पड़ने पर खेत में खड़ी मक्का की फसल को बेचने से भी पीछे नहीं हटेंगे, ऐसे उनका कहना है. ईटीवी भारत और उसकी टीम ऐसे जाबांज युवाओं को सलाम करता है.