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स्पेशल: यहां है हाट बाजार का कल्चर, कुछ घंटों के लिए लगती है दुकानें

राजस्थान का दक्षिणी भाग वागड़ अंचल सामाजिक परंपराओं के लिहाज से काफी समृद्ध है. यहां आज भी हाट बाजार का चलन है, जहां व्यापारी सिर्फ कुछ ही घंटों के लिए दुकानें लगाते हैं. ये बाजार बांसवाड़ा सहित आसपास के इलाकों में प्रत्येक सप्ताह अलग-अलग दिनों में लगते हैं.

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Published : Jan 20, 2020, 2:00 PM IST

बांसवाड़ा में हाट बाजार, Haat market in Banswara
बांसवाड़ा में हाट बाजार

बांसवाड़ा. राजस्थान का दक्षिणी भाग वागड़ अंचल भले सामाजिक परंपराओं के लिहाज से काफी समृद्ध है. यहां आज भी हाट बाजार का चलन है. बांसवाड़ा के कई गांवों में अलग-अलग हाट बाजार लगते हैं.

यहां है हाट बाजार का कल्चर

जहां हर रोज इस्तेमाल होने वाला सामान आसानी से मिल जाता है. यहां के बाजारों की खास बात ये है, कि निश्चित स्थान पर व्यापारी सिर्फ कुछ घंटे के लिए ही दुकान लगाते हैं. इन हाट बाजारों में मसाले, कपड़े, प्लास्टिक आइटम, सौंदर्य के साथ ही अन्य उत्पाद आसानी से मिल जाता है. यहां किसान और पशुपालक अनाज और पशुओं को बेचने के लिए भी आते हैं. हाट बाजार में सुबह से ही लोगों की चहलकदमी शुरू हो जाती है, जो दोपहर बाद तक जारी रहती है.

अधिकांश लोग यहां अपने सामान बेचने के बाद अपनी जरूरत का सामान खरीद कर ले जाते हैं. हाट बाजार में महिलाएं आर्टिफिशियल ज्वैलरी के साथ ही चूड़ी, बिंदी की खरीददारी करती नजर आती हैं.

पढ़ें- स्पेशल : घूंघट से खुद को किया आजाद, ट्रैक्टर पर बैठकर चुनाव प्रचार कर रहीं महिलाएं

यहां लगते हैं हाट बाजार

इस प्रकार के मार्केट बांसवाड़ा के अलावा डूंगरपुर और प्रतापगढ़ जिले में भी हर सप्ताह लगाए जाते हैं. बांसवाड़ा शहर के साथ छोटी सरवन, दानपुर, घोड़ी तेजपुर, आबापुरा, कसारवादी, छोटा डूंगरा, उकाला सहित कई गांवों में सप्ताह के अलग-अलग दिनों में लगते है.

संबंधित ग्राम पंचायतें इसके लिए स्थान उपलब्ध कराती हैं. जिसके बदले में हर दुकानदार से 10-20 रुपए लिए जाते हैं. छोटी सरवण हाट में कपास का व्यापार करने वाले दौलत राम ने बताया, कि लोग कपास सहित अनाज ले आते हैं, जिन्हें बेचने के बाद वो अपनी जरूरत का सामान ले जाते हैं. वहीं मसाले की दुकान लगाने वाले राकेश ने बताया, कि यहां प्रत्येक सप्ताह दुकान लगती है. शांतिलाल बताते हैं, कि हाट बाजार में लोग हरी सब्जियां भी लेकर आते हैं, जिसके उन्हें अच्छे दाम मिल जाते हैं.

बांसवाड़ा. राजस्थान का दक्षिणी भाग वागड़ अंचल भले सामाजिक परंपराओं के लिहाज से काफी समृद्ध है. यहां आज भी हाट बाजार का चलन है. बांसवाड़ा के कई गांवों में अलग-अलग हाट बाजार लगते हैं.

यहां है हाट बाजार का कल्चर

जहां हर रोज इस्तेमाल होने वाला सामान आसानी से मिल जाता है. यहां के बाजारों की खास बात ये है, कि निश्चित स्थान पर व्यापारी सिर्फ कुछ घंटे के लिए ही दुकान लगाते हैं. इन हाट बाजारों में मसाले, कपड़े, प्लास्टिक आइटम, सौंदर्य के साथ ही अन्य उत्पाद आसानी से मिल जाता है. यहां किसान और पशुपालक अनाज और पशुओं को बेचने के लिए भी आते हैं. हाट बाजार में सुबह से ही लोगों की चहलकदमी शुरू हो जाती है, जो दोपहर बाद तक जारी रहती है.

अधिकांश लोग यहां अपने सामान बेचने के बाद अपनी जरूरत का सामान खरीद कर ले जाते हैं. हाट बाजार में महिलाएं आर्टिफिशियल ज्वैलरी के साथ ही चूड़ी, बिंदी की खरीददारी करती नजर आती हैं.

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यहां लगते हैं हाट बाजार

इस प्रकार के मार्केट बांसवाड़ा के अलावा डूंगरपुर और प्रतापगढ़ जिले में भी हर सप्ताह लगाए जाते हैं. बांसवाड़ा शहर के साथ छोटी सरवन, दानपुर, घोड़ी तेजपुर, आबापुरा, कसारवादी, छोटा डूंगरा, उकाला सहित कई गांवों में सप्ताह के अलग-अलग दिनों में लगते है.

संबंधित ग्राम पंचायतें इसके लिए स्थान उपलब्ध कराती हैं. जिसके बदले में हर दुकानदार से 10-20 रुपए लिए जाते हैं. छोटी सरवण हाट में कपास का व्यापार करने वाले दौलत राम ने बताया, कि लोग कपास सहित अनाज ले आते हैं, जिन्हें बेचने के बाद वो अपनी जरूरत का सामान ले जाते हैं. वहीं मसाले की दुकान लगाने वाले राकेश ने बताया, कि यहां प्रत्येक सप्ताह दुकान लगती है. शांतिलाल बताते हैं, कि हाट बाजार में लोग हरी सब्जियां भी लेकर आते हैं, जिसके उन्हें अच्छे दाम मिल जाते हैं.

Intro:बांसवाड़ा। विकास को लेकर राजस्थान का दक्षिणी भाग वागड़ अंचल भले ही पिछड़ा माना जाता है , सामाजिक परंपराओं के लिहाज से आज भी यह इलाका काफी समृद्ध माना जा सकता है। शहरों में पिछले एक दो दशक में ही मॉल संस्कृति का आविर्भाव हुआ लेकिन जनजाति संस्कृति में यह परंपराओं में शुमार रही है। हर बड़े गांव में आज भी हाट संस्कृति की परंपरा जीवित है जिसमें सुई से लेकर दैनिक जरूरत का हर सामान उपलब्ध रहता है। बांसवाड़ा जिले में लगभग एक दर्जन गांव में इस प्रकार के हाट देखे जा सकते हैं।


Body:हाट के लिए अलग-अलग गांव में अलग अलग भी निर्धारित है जहां आसपास के गांव के लोग अपने सामान लेकर पहुंच जाते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि इन हाट में छोटे-मोटे व्यापारी तो सामान लेकर पहुंचते ही है गांव के गरीब लोग अपनी खेती बाड़ी की उपज भी लेकर आते हैं। जहां व्यापारी लोग मसाला कपड़े प्लास्टिक आइटम सौंदर्य प्रसाधन आदि सामान लेकर निश्चित स्थान पर महज कुछ घंटों के लिए अपनी दुकानें लगाते हैं तो किसान और पशुपालक अनाज और पशुओं को बेचने के लिए पहुंचते हैं। हालांकि पशुओं में बकरे बकरी का कारोबार ज्यादा होता है लेकिन इसके साथ ही कई लोग मुर्गे मुर्गियों को भी लेकर आते हैं। इसका सबसे बड़ा फायदा यह होता है कि इनके बीच में दलाल नहीं होते ऐसे में लागत के अनुसार उसका बेचान भी कर देते हैं। ऐसी स्थिति में लोगों को सामान सस्ते में उपलब्ध हो जाता है। क्योंकि सप्ताह का 1 दिन निश्चित होता है ऐसे में गांव के लोग अगले सप्ताह तक घर का काम का चल जाए उतने ही सामान की खरीददारी कर जाते हैं। हाट में सुबह से ही आसपास के गांव के लोगों की चहल कदमी शुरू हो जाती है जो दोपहर बाद तक जारी रहती है।


Conclusion:खरीदारी के लिए आने वाले अधिकांश लोग अपनी खेती बाड़ी की उपज को लेकर पहुंचते हैं जो अपनी पैदावार को बेचकर गर्व की जरूरत का सामान खरीद कर ले जाते हैं। यहां हरी सब्जी से लेकर विभिन्न प्रकार की दालें मसाला आदि भी सहजता से उपलब्ध हो जाते हैं। वही बड़ी संख्या में महिलाओं द्वारा सौंदर्य प्रसाधन की दुकानें लगाई जाती है जहां पर गांव से आने वाली महिलाएं आर्टिफिशियल ज्वेलरी के साथ चूड़ी बिंदी आदि की खरीदारी कर ले जाती है।

यहां लगते हैं हाट

इस प्रकार के मार्केट बांसवाड़ा के अलावा डूंगरपुर और प्रतापगढ़ जिले में भी हर सप्ताह लगाए जाते हैं। बांसवाड़ा शहर के साथ छोटी सरवन दानपुर घोड़ी तेजपुर आबापुरा कसारवादी छोटा डूंगरा उकाला आदि गांवों में हाट के लिए सप्ताह के अलग-अलग दिन निर्धारित हैl संबंधित ग्राम पंचायतें इसके लिए स्थान उपलब्ध कराती है जिसके बदले हर दुकानदार से 10 से लेकर ₹20 तक वसूले जाते हैंl छोटी सरवण हाट में कपास खरीदारी का काम करने वाले दौलत राम ने बताया कि लोग कपास सहित अनाज आदि भी ले आते हैंl जिन्हें बेचकर गांव के लोग अपनी जरूरत की सामग्री खरीद कर ले जाते हैंl क्योंकि इसमें बिचौलियों का कोई काम नहीं होता ऐसे में उन्हें दाम भी अच्छे मिल जाते हैं और मौके पर ही जरूरत की हर चीज मिल जाती हैl मसाले की दुकान लगाने वाले राकेश के अनुसार हालांकि लोग जरूरत के हिसाब से ही खरीदारी करते हैं लेकिन 1 महीने में 4 या 5 सप्ताह इस प्रकार का बाजा लगने से उनका काम चल जाता हैl शांतिलाल के अनुसार मार्केट लगने के कारण लोग हरी सब्जियां भी देकर पहुंच जाते हैं जिन्हें अच्छे दाम मिल जाते हैं और अन्य शहरों में पहुंचाने का खर्च बच जाता हैl

बाइट........ दौलत राम
......... राकेश
.......... शांतिलाल
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