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गूगल ने खोली 'पोल' : वन विभाग की भूमि पर कब्जे के 7 हजार से ज्यादा दावे निकले फर्जी

बांसवाड़ा वन भूमि पर कब्जे के दावों की पोल खुल गई है. जिसके बाद वन विभाग की ओर से वन हक पत्रों के लिए किए गए 9 हजार दावों के रिव्यू में सामने आया. हालांकि, वन विभाग ने गूगल तकनीक की मदद से 7 हजार से ज्यादा फर्जी दावों की पोल खुली है.

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Published : Oct 27, 2019, 7:37 PM IST

forest land in Banswara,False claim of forest land

बांसवाड़ा. वन भूमि पर कब्जे के दावों का एक बड़ा फर्जीवाड़ा सामने आया है. वन विभाग द्वारा दावा पत्रों के बाद सत्यापन के लिए गूगल तकनीक का इस्तेमाल किया गया. वर्तमान मौका रिपोर्ट को गूगल अर्थ से 2005 से पहले की इमेज से कंपेयर किया गया तो अधिकारी भी अवाक रह गए. करीब 9000 दावों में से 7000 से अधिक फर्जी पाए गए. कुल मिलाकर इस तकनीक की मदद से वन विभाग की हजारों बीघा जमीन बचाने में कामयाब रहा.

वन भूमि पर कब्जे के दावों की खोली पोल, 7 हजार से ज्यादा निकले फर्जी

जानकारी के अनुसार वन अधिकार अधिनियम के अस्तित्व में आने के बाद वन विभाग के पास वर्ष 2009 और 2010 के भीतर अधिकार पत्रों के लिए करीब 21000 दावे प्राप्त हुए थे. इनमें से केवल 12000 दावे सही पाए गए और 9000 साक्ष्य के अभाव में खारिज कर दिए गए. ऐसे लोगों को हटाने के लिए वाइल्ड लाइफ और पर्यावरण क्षेत्र में काम करने वाले लोगों द्वारा कोर्ट की शरण दी गई. इसे देखते हुए सरकार द्वारा निरस्त दावों की फिर से समीक्षा करवाई गई. इसके लिए जनजाति विभाग के अलावा वन विभाग की कमेटी गठित की गई. कब्जे के दावों को लेकर हर विभाग को अपनी अपनी रिपोर्ट फाइल करनी थी.

इसके अंतर्गत वन विभाग पर मौका स्थिति की रिपोर्ट की जिम्मेदारी आई. हालांकि अब तक विभाग के फील्ड स्टाफ की रिपोर्ट को ही मान्य किया जाता रहा है. इसमें मिलीभगत की आशंका को देखते हुए विभाग द्वारा तकनीक का सहारा लिया गया.

पढ़ें- बूंदी में देश का पहला सिस्टिक हायग्रोमा का सफल ऑपरेशन, दुनियाभर में आठवां केस

वनपाल को ट्रेनिंग, थमाए जीपीएस
क्योंकि वन विभाग की जमीन का मामला था. ऐसे में वास्तविक कब्जे धारियों को ही अधिकार मिले. इसके लिए वन विभाग द्वारा बांसवाड़ा जिले में करीब तीन दर्जन फोरेस्टर को जीपीएस उपकरण दिए गए. वहीं इसके लिए उन्हें ट्रेनिंग तक दी गई.

केएमएल से इमेज का कंपैरिजन
इसके अंतर्गत दावे के अनुसार कर्मचारी मौके पर पहुंचे और दावे का सत्यापन किया गया. कई स्थानों पर बड़े स्तर पर लोगों ने निर्माण कर रखे थे दो कईयों ने पेड़ काटकर खेती शुरू कर दी थी. ऐसे में विभागीय कर्मचारियों ने वहां से मौके पर जीपीएस को एक्टिवेट कर उसकी दिशा देशांतर के हिसाब से केएमएल से मौके की तस्वीर तैयार की. उसके बाद गूगल एप से 2005 से पहले संबंधित केएमएल के अनुसार इमेज ली गई. वर्तमान स्थिति और 2005 के पहले की इमेज से कंपैरिजन किया गया तो दावे की हकीकत सामने आ गई. अधिनियम के तहत 13 दिसंबर 2005 से पहले कब्जा होना आवश्यक है जबकि 2005 की इमेज में वहां पर किसी भी प्रकार के कब्जे नहीं पाए गए.

पढ़ें- खिलाड़ियों के लिए दावे बड़े-बड़े लेकिन हकीकत कोसों दूर, प्राइज मनी के लिए भटक रहा है गोल्ड मेडलिस्ट दिव्यांग खिलाड़ी

7432 दावों का निकला दम
विभाग द्वारा इस प्रकार 7432 दावों के संबंध में कोई साक्ष्य नहीं मिला और इन्हें फिर से खारिज कर दिया गया. उप वन संरक्षक सुगनाराम जाट के अनुसार कोर्ट में पिटीशन के बाद करीब 9000 लोगों के दामों की समीक्षा की गई. जिसके लिए उस जगह का जीपीएस लेकर 14 साल पहले की स्थिति की इमेज से कंपैरिजन की गई. जीपीएस तकनीक से लगभग 7000 से अधिक दावे खारिज कर दिए गए और मात्र 1379 दावे सही पाए गए.

बांसवाड़ा. वन भूमि पर कब्जे के दावों का एक बड़ा फर्जीवाड़ा सामने आया है. वन विभाग द्वारा दावा पत्रों के बाद सत्यापन के लिए गूगल तकनीक का इस्तेमाल किया गया. वर्तमान मौका रिपोर्ट को गूगल अर्थ से 2005 से पहले की इमेज से कंपेयर किया गया तो अधिकारी भी अवाक रह गए. करीब 9000 दावों में से 7000 से अधिक फर्जी पाए गए. कुल मिलाकर इस तकनीक की मदद से वन विभाग की हजारों बीघा जमीन बचाने में कामयाब रहा.

वन भूमि पर कब्जे के दावों की खोली पोल, 7 हजार से ज्यादा निकले फर्जी

जानकारी के अनुसार वन अधिकार अधिनियम के अस्तित्व में आने के बाद वन विभाग के पास वर्ष 2009 और 2010 के भीतर अधिकार पत्रों के लिए करीब 21000 दावे प्राप्त हुए थे. इनमें से केवल 12000 दावे सही पाए गए और 9000 साक्ष्य के अभाव में खारिज कर दिए गए. ऐसे लोगों को हटाने के लिए वाइल्ड लाइफ और पर्यावरण क्षेत्र में काम करने वाले लोगों द्वारा कोर्ट की शरण दी गई. इसे देखते हुए सरकार द्वारा निरस्त दावों की फिर से समीक्षा करवाई गई. इसके लिए जनजाति विभाग के अलावा वन विभाग की कमेटी गठित की गई. कब्जे के दावों को लेकर हर विभाग को अपनी अपनी रिपोर्ट फाइल करनी थी.

इसके अंतर्गत वन विभाग पर मौका स्थिति की रिपोर्ट की जिम्मेदारी आई. हालांकि अब तक विभाग के फील्ड स्टाफ की रिपोर्ट को ही मान्य किया जाता रहा है. इसमें मिलीभगत की आशंका को देखते हुए विभाग द्वारा तकनीक का सहारा लिया गया.

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वनपाल को ट्रेनिंग, थमाए जीपीएस
क्योंकि वन विभाग की जमीन का मामला था. ऐसे में वास्तविक कब्जे धारियों को ही अधिकार मिले. इसके लिए वन विभाग द्वारा बांसवाड़ा जिले में करीब तीन दर्जन फोरेस्टर को जीपीएस उपकरण दिए गए. वहीं इसके लिए उन्हें ट्रेनिंग तक दी गई.

केएमएल से इमेज का कंपैरिजन
इसके अंतर्गत दावे के अनुसार कर्मचारी मौके पर पहुंचे और दावे का सत्यापन किया गया. कई स्थानों पर बड़े स्तर पर लोगों ने निर्माण कर रखे थे दो कईयों ने पेड़ काटकर खेती शुरू कर दी थी. ऐसे में विभागीय कर्मचारियों ने वहां से मौके पर जीपीएस को एक्टिवेट कर उसकी दिशा देशांतर के हिसाब से केएमएल से मौके की तस्वीर तैयार की. उसके बाद गूगल एप से 2005 से पहले संबंधित केएमएल के अनुसार इमेज ली गई. वर्तमान स्थिति और 2005 के पहले की इमेज से कंपैरिजन किया गया तो दावे की हकीकत सामने आ गई. अधिनियम के तहत 13 दिसंबर 2005 से पहले कब्जा होना आवश्यक है जबकि 2005 की इमेज में वहां पर किसी भी प्रकार के कब्जे नहीं पाए गए.

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7432 दावों का निकला दम
विभाग द्वारा इस प्रकार 7432 दावों के संबंध में कोई साक्ष्य नहीं मिला और इन्हें फिर से खारिज कर दिया गया. उप वन संरक्षक सुगनाराम जाट के अनुसार कोर्ट में पिटीशन के बाद करीब 9000 लोगों के दामों की समीक्षा की गई. जिसके लिए उस जगह का जीपीएस लेकर 14 साल पहले की स्थिति की इमेज से कंपैरिजन की गई. जीपीएस तकनीक से लगभग 7000 से अधिक दावे खारिज कर दिए गए और मात्र 1379 दावे सही पाए गए.

Intro:बांसवाड़ाl वन भूमि पर कब्जे के दावों का एक बड़ा फर्जीवाड़ा सामने आया हैl वन विभाग द्वारा दावा पत्रों के बाद सत्यापन के लिए गूगल तकनीक का इस्तेमाल किया गया। वर्तमान मौका रिपोर्ट को गूगल अर्थ से 2005 से पहले की इमेज से कंपेयर किया गया तो अधिकारी भी अवाक रह गए । करीब 9000 दावों में से 7000 से अधिक फर्जी पाए गए । कुल मिलाकर इस तकनीक की मदद से वन विभाग की हजारों बीघा जमीन बचाने में कामयाब रहा।


Body:जानकारी के अनुसार वन अधिकार अधिनियम के अस्तित्व में आने के बाद वन विभाग के पास वर्ष 2009 से 10 के भीतर अधिकार पत्रों के लिए करीब 21000 दावे प्राप्त हुए थेl इनमें से केवल 12000 दावे सही पाए गए और 9000 साक्ष्य के अभाव में खारिज कर दिए गएl ऐसे लोगों को हटाने के लिए वाइल्ड लाइफ और पर्यावरण क्षेत्र में काम करने वाले लोगों द्वारा कोर्ट की शरण दी गईl इसे देखते हुए सरकार द्वारा निरस्त दाऊ की फिर से समीक्षा करवाई गईl इसके लिए जनजाति विभाग के अलावा राजेश और वन विभाग की कमेटी गठित की गईl कब्जे के दावों को लेकर हर विभाग को अपनी अपनी रिपोर्ट फाइल करनी थीl


Conclusion:इसके अंतर्गत वन विभाग पर मौका स्थिति की रिपोर्ट की जिम्मेदारी आईl हालांकि अब तक विभाग के फील्ड स्टाफ की रिपोर्ट को ही मान्य किया जाता रहा हैl इसमें मिलीभगत की आशंका को देखते हुए विभाग द्वारा तकनीक का सहारा लिया गयाl

वनपाल को ट्रेनिंग, थमाए जीपीएस

क्योंकि वन विभाग की जमीन का मामला था ऐसे में वास्तविक कब्जे धारियों को ही अधिकार मिले इसके लिए वन विभाग द्वारा बांसवाड़ा जिले में करीब तीन दर्जन फोरेस्टर को जीपीएस उपकरण दिए गए वहीं इसके लिए उन्हें ट्रेनिंग तक दी गई।

केएमएल से इमेज का कंपैरिजन

इसके अंतर्गत दावे के अनुसार कर्मचारी मौके पर पहुंचे और दावे का सत्यापन किया गया। कई स्थानों पर बड़े स्तर पर लोगों ने निर्माण कर रखे थे दो कईयों ने पेड़ काटकर खेती शुरू कर दी थी। ऐसे में विभागीय कर्मचारियों ने वहां से मौके पर जीपीएस को एक्टिवेट कर उसकी दिशा देशांतर के हिसाब से केएमएल से मौके की तस्वीर तैयार की। उसके बाद गूगल एप से 2005 से पहले संबंधित केएमएल के अनुसार इमेज ली गई। वर्तमान स्थिति और 2005 के पहले की इमेज से कंपैरिजन किया गया तो दावे की हकीकत सामने आ गई। अधिनियम के तहत 13 दिसंबर 2005 से पहले कब्जा होना आवश्यक है जबकि 2005 की इमेज में वहां पर किसी भी प्रकार के कब्जे नहीं पाए गए।

7432 दावों का निकला दम

विभाग द्वारा इस प्रकार प्रत्येक दावे की सच्चाई पर की गई जिसमें से 7432 दावों के संबंध में कोई साक्ष्य नहीं मिला और इन्हें फिर से खारिज कर दिया गयाl उप वन संरक्षक सुगनाराम जाट के अनुसार कोर्ट में पिटीशन के बाद करीब 9000 लोगों के दामों की समीक्षा की गई जिसके लिए दाने वाली जगह का जीपीएस लेकर 14 साल पहले की स्थिति की इमेज से कंपैरिजन की गईl जीपीएस तकनीक से लगभग 7000 से अधिक दावे खारिज कर दिए गए और मात्र 1379 दावे सही पाए गए l

बाइट..... सुगनाराम जाट उप वन संरक्षक बांसवाड़ा
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