जयपुर: राजधानी के दशहरा मैदान में विजयादशमी पर हर वर्ष जिस रावण का दहन किया जाता है, उसे बनाने का काम मुस्लिम कारीगर करते हैं. जन्माष्टमी के बाद से ये कारीगर जयपुर में आकर इस रावण और तैयार करते हैं. खास बात ये है कि रावण दहन से पहले इस रावण की पूजा की जाती है. नव विवाहित और नवजात इस रावण से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं. ये जयपुर का एक मात्र ऐसा रावण है, जिसे मंदसौर की प्रतिमा की तर्ज पर 9 शीश का बनाया जाता है एक शीश गधे का होता है.
अधर्म पर धर्म, बुराई पर अच्छाई का प्रतीक दशहरा महापर्व पर शहर भर में रावण दहन के कार्यक्रम होते हैं, लेकिन जयपुर में एक रावण ऐसा भी है. जिसके 10 नहीं, बल्कि नौ शीश और एक शीश गधे का बनाया जाता है. आदर्श नगर दशहरा मैदान में होने वाले रावण दहन कार्यक्रम की आयोजन राजीव मनचंदा ने बताया कि यहां रावण के 10 की बजाय 9 शीश रहते हैं. जिस तरह मंदसौर में रावण की प्रतिमा में दसवें सिर को गधे के सिर के रूप में दर्शाया गया है. उसी तरह का रावण यहां भी तैयार किया जाता है.
राजीव मनचंदा ने इसे परंपरा बताते हुए कहा कि रावण के नौ सिर तो सामान्य ही होते हैं, लेकिन जो दसवां सिर मुकुट के पास रहता है, वो गधे का बनाया जाता है. जिसके पीछे सीता माता का हरण के कृत्य को माना जाता है. उस वक्त रावण की बुद्धि-कुबुद्धि हो गई थी. इसलिए इसे प्रतीकात्मक रूप में गधे के सिर के रूप में बनाया जाता है. वहीं, राजीव मनचंदा ने बताया कि इसमें कोई भी पुराना सामान, रद्दी, कपड़ा, बांस इस्तेमाल नहीं करते हैं. इसमें सब नया और कोरा सामान लेकर के आते हैं, क्योंकि दशहरे के दिन जब ये रावण खड़ा हो जाता है, तो नव विवाहित जोड़े रावण का आशीर्वाद लेने आते हैं और इसी तरह नवजात शिशु को भी आशीर्वाद दिलाने लाया जाता है. इसलिए धार्मिक और भावनात्मक महत्व भी रहता है.
छोटी काशी के दशहरा मैदान में होने वाला ये रावण दहन कार्यक्रम गंगा-जमुनी तहजीब का प्रतीक भी बनता है. यहां पांच पीढ़ियों से सबसे बड़े रावण को बनाने का काम मथुरा से आने वाला एक मुस्लिम परिवार कर रहा है. जन्माष्टमी के बाद ये परिवार राम मंदिर परिसर में ही गुजर बसर करता हुआ, रावण और कुम्भकर्ण के पुतले को बनाने का काम करता है. आदर्श नगर में मनाए जाने वाले दशहरा महापर्व को लेकर आयोजक राजीव मनचंदा ने बताया कि यहां जिस रावण का दहन किया जाता है, उसका निर्माण मथुरा से आया एक मुस्लिम परिवार करता है. जिसकी पांचवीं पीढ़ी ये काम कर रही है. पूरा परिवार जन्माष्टमी के अगले दिन से यहां आकर बस जाता है. ये काम वो मजदूरी के लिए नहीं, बल्कि भाव की वजह से करते हैं.
वहीं, रावण बनाने वाले मुस्लिम परिवार के मुखिया चांद बाबू ने बताया कि पांच पीढ़ियों से वो ये काम कर रहे हैं. उनके दादा-परदादा ने यहां आकर सबसे पहले 20 फीट का रावण से शुरुआत की थी, तभी से पीढ़ी दर पीढ़ी वो यहां आकर रावण बनाने का काम कर रहे हैं. पीढ़ियों से चली आ रही उनके घर की परंपरा को लेकर चांद बाबू ने बताया कि उनका मुख्य रोजगार कपड़े सिलाई का है. उनके भाई चांदी की पाजेब बनाने का काम करते हैं, लेकिन हर साल डेढ़ महीने के लिए अपना सारा काम छोड़कर वो यहां रावण बनाने के लिए पहुंचते हैं. मुस्लिम समुदाय से आने के बावजूद उनकी मंदिर के प्रति जो श्रद्धा है, उसकी वजह से वो यहां डेढ़ महीने नॉनवेज भी नहीं खाते और शाकाहारी जीवन यापन करते हैं.
वहीं, इस बार 105 फीट के रावण और 90 फीट के कुम्भकर्ण को तकनीक का सहारा लेकर रिमोट से कंट्रोल किया जाएगा. रावण दहन और आतिशबाजी दोनों रिमोट से होगी. बहरहाल, आदर्श नगर में मनाया जाने वाला दशहरा जाति-धर्म की खाई को पाटने का काम करता है. साथ ही यहां रावण दहन जुड़ी अन्य मान्यताएं भी रोचक हैं जो लोगों को एकाएक आश्चर्य चकित करती हैं.