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स्पेशल रिपोर्ट: यूरिया की कमी से जूझ रहे बांसवाड़ा के अन्नदाता - यूरिया की कमी से किसान परेशान

बांसवाड़ा में यूरिया की मार किसानों पर पड़ रही है. ऐसे में जिन्हें सब्सिडी युक्त यूरिया नहीं मिल रही है उन्हें मजबूरन मार्केट से खरीदना पड़ रहा है. किसानों का कहना है कि मार्केट में व्यापारी मनमाने दामों पर यूरिया की बिक्री करते हैं. व्यापारी किसान से हर पैकेट पर 350 से लेकर 400 रुपए लेते हैं, जबकी सोसाइटी पर किसानों को 268 रुपए में ही यूरिया मिल जाती है.

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बांसवाड़ा में यूरिया की मार झेल रहा किसान
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Published : Jan 4, 2020, 5:15 PM IST

बांसवाड़ा. जिले सहित उदयपुर संभाग के काश्तकार इन दिनों यूरिया की किल्लत का सामना कर रहा है. रबी की फसल यौवन अवस्था में पहुंच गई है और अभी सबसे ज्यादा उसे यूरिया की जरूरत है, लेकिन सरकारी मुलाजिमों की लापरवाही के चलेत कोऑपरेटिव सोसाइटीज के गोदाम खाली पड़े हैं. अन्नदाता व्यापारियों पर निर्भर होकर रह गया है, जो मनमाने दामों पर यूरिया सप्लाई कर रहे हैं. हालत यह है कि व्यापारी निर्धारित कीमत से 25% तक अधिक दाम वसूल रहे हैं और कृषि विभाग कंपनियों के खिलाफ कोई कदम नहीं उठा पा रहा है.

बांसवाड़ा में यूरिया की मार झेल रहा किसान

बताया जा रहा है कि जिले में यूरिया की मांग और आपूर्ति में 3 हजार मैट्रिक टन का अंतर है. सबसे अधिक संकट का सामना लार्ज एग्रीकल्चर मल्टी परपज सोसाइटीज अर्थात लैंप्स कर रही है. जहां पिछले 1 सप्ताह से यूरिया का एक दाना तक नहीं पहुंचा है. किसान प्रतिदिन लैंप्स के चक्कर काट रहे हैं, लेकिन उन्हें आजकल-आजकल की बात कहकर लौटाया जा रहा है, जबकि रबी की फसलें पूरे यौवन पर है और इस दौरान पौधे को यूरिया के सबसे ज्यादा आवश्यकता रहती है.

कृभको नहीं कर पाया सप्लाई

उदयपुर संभाग में कृभको यूरिया की सप्लाई करता है. बताया जा रहा है कि इफको अपना निर्धारित माल सप्लाई कर चुका है, लेकिन कृभको समझौता के अनुरूप सप्लाई नहीं भेज पाया है. उसी का खामियाजा काश्तकार भुगत रहे हैं. जानकारी के अनुसार कंपनी की ओर से रोड ट्रांसपोर्टेशन किया जाता है, लेकिन इस बार किसी कंपनी के साथ उसका समझौता नहीं हो पाया है. नतीजतन कंपनी शर्त के अनुरूप एक भी दाना सप्लाई नहीं कर पाई है. कंपनी की ओर से अब मालगाड़ी से यूरिया भेजी रही है, जो चित्तौड़ के चंदेरिया और उदयपुर के देबारी स्टेशन पर उतरेगी. उसके बाद वहां से माल संबंधित लैंप्स पर पहुंचेगा. ऐसे में अगले चार-पांच दिन तक यूरिया सप्लाई होना मुश्किल माना जा रहा है.

किसानों पर मार

वहीं यूरिया की सबसे अधिक मार किसानों पर पड़ रही है, जिन्हें लैंप्स पर यूरिया नहीं मिल रहा है और मजबूरन मार्केट से खरीदना पड़ रहा है. वहीं व्यापारियों के पास भारी मात्रा में यूरिया उपलब्ध है, लेकिन मनमाने दामों पर इसकी बिक्री की जा रही है. यहां तक कि 350 से लेकर 400 रुपए तक प्रति बैग वसूले जा रहे हैं. ईटीवी भारत की टीम की ओर से जब किसानों से बातचीत की गई, तो ब्लैक मार्केट की तस्वीर उभरकर सामने आई. किसान प्रकाश ने बताया कि खाद नहीं मिल रही है और आजकल-आजकल की बात कहकर उन्हें घर भेजा जा रहा है.

यह भी पढ़ें- बांसवाड़ा: पुराने सदस्यों में बंट रही 'मलाई', नए काश्तकारों को फसली ऋण की जानकारी तक नहीं

चिड़िया वासा गांव के रकमा ने बताया कि उसे 10 बोरी की जरूरत है और हर रोज वह लैंप्स गोदाम पर पहुंच रहा हूं, लेकिन यहां खाद ही नहीं है. उन्होंने बताया कि मार्केट में 350 से लेकर 400 रुपए में बैग दिया जा रहा है. ऐसे में मुझे 1000 से लेकर 1300 रुपए अधिक देने होंगे, जबकि लैंप्स पर 268 रुपए में उपलब्ध है. कलिंजरा गांव के खातू राम डोडियार के अनुसार 12 बीघा फसल के लिए मुझे 6 बैग यूरिया की जरूरत है, परंतु लैंप्स पर माल उपलब्ध नहीं है और मार्केट में प्रति बैग 350 रुपए से वसूले जा रहे हैं.

कमलेश के अनुसार हर रोज खाद लेने के लिए लैंप्स के गोदाम पहुंच रहा हूं, जहां खाद ही नहीं है. वही इस संबंध में ईटीवी भारत ने जब कृषि विभाग के उपनिदेशक बीएल पाटीदार से संपर्क किया तो उन्होंने कहा कि यूरिया की संकज जैसी कोई बात नहीं है और अगले तीन-चार दिन में मांग के अनुरूप उर्वरक पहुंच जाएगा. कृभको कंपनी की रैक चित्तौड़गढ़ और उदयपुर उतरने वाली है. वहां से खाद सीधा लैंप्स गोदामों पर पहुंच जाएगा. ब्लैक मार्केट पर उनका कहना था कि हमारे पास ऐसी कोई शिकायत नहीं आई है.

बांसवाड़ा. जिले सहित उदयपुर संभाग के काश्तकार इन दिनों यूरिया की किल्लत का सामना कर रहा है. रबी की फसल यौवन अवस्था में पहुंच गई है और अभी सबसे ज्यादा उसे यूरिया की जरूरत है, लेकिन सरकारी मुलाजिमों की लापरवाही के चलेत कोऑपरेटिव सोसाइटीज के गोदाम खाली पड़े हैं. अन्नदाता व्यापारियों पर निर्भर होकर रह गया है, जो मनमाने दामों पर यूरिया सप्लाई कर रहे हैं. हालत यह है कि व्यापारी निर्धारित कीमत से 25% तक अधिक दाम वसूल रहे हैं और कृषि विभाग कंपनियों के खिलाफ कोई कदम नहीं उठा पा रहा है.

बांसवाड़ा में यूरिया की मार झेल रहा किसान

बताया जा रहा है कि जिले में यूरिया की मांग और आपूर्ति में 3 हजार मैट्रिक टन का अंतर है. सबसे अधिक संकट का सामना लार्ज एग्रीकल्चर मल्टी परपज सोसाइटीज अर्थात लैंप्स कर रही है. जहां पिछले 1 सप्ताह से यूरिया का एक दाना तक नहीं पहुंचा है. किसान प्रतिदिन लैंप्स के चक्कर काट रहे हैं, लेकिन उन्हें आजकल-आजकल की बात कहकर लौटाया जा रहा है, जबकि रबी की फसलें पूरे यौवन पर है और इस दौरान पौधे को यूरिया के सबसे ज्यादा आवश्यकता रहती है.

कृभको नहीं कर पाया सप्लाई

उदयपुर संभाग में कृभको यूरिया की सप्लाई करता है. बताया जा रहा है कि इफको अपना निर्धारित माल सप्लाई कर चुका है, लेकिन कृभको समझौता के अनुरूप सप्लाई नहीं भेज पाया है. उसी का खामियाजा काश्तकार भुगत रहे हैं. जानकारी के अनुसार कंपनी की ओर से रोड ट्रांसपोर्टेशन किया जाता है, लेकिन इस बार किसी कंपनी के साथ उसका समझौता नहीं हो पाया है. नतीजतन कंपनी शर्त के अनुरूप एक भी दाना सप्लाई नहीं कर पाई है. कंपनी की ओर से अब मालगाड़ी से यूरिया भेजी रही है, जो चित्तौड़ के चंदेरिया और उदयपुर के देबारी स्टेशन पर उतरेगी. उसके बाद वहां से माल संबंधित लैंप्स पर पहुंचेगा. ऐसे में अगले चार-पांच दिन तक यूरिया सप्लाई होना मुश्किल माना जा रहा है.

किसानों पर मार

वहीं यूरिया की सबसे अधिक मार किसानों पर पड़ रही है, जिन्हें लैंप्स पर यूरिया नहीं मिल रहा है और मजबूरन मार्केट से खरीदना पड़ रहा है. वहीं व्यापारियों के पास भारी मात्रा में यूरिया उपलब्ध है, लेकिन मनमाने दामों पर इसकी बिक्री की जा रही है. यहां तक कि 350 से लेकर 400 रुपए तक प्रति बैग वसूले जा रहे हैं. ईटीवी भारत की टीम की ओर से जब किसानों से बातचीत की गई, तो ब्लैक मार्केट की तस्वीर उभरकर सामने आई. किसान प्रकाश ने बताया कि खाद नहीं मिल रही है और आजकल-आजकल की बात कहकर उन्हें घर भेजा जा रहा है.

यह भी पढ़ें- बांसवाड़ा: पुराने सदस्यों में बंट रही 'मलाई', नए काश्तकारों को फसली ऋण की जानकारी तक नहीं

चिड़िया वासा गांव के रकमा ने बताया कि उसे 10 बोरी की जरूरत है और हर रोज वह लैंप्स गोदाम पर पहुंच रहा हूं, लेकिन यहां खाद ही नहीं है. उन्होंने बताया कि मार्केट में 350 से लेकर 400 रुपए में बैग दिया जा रहा है. ऐसे में मुझे 1000 से लेकर 1300 रुपए अधिक देने होंगे, जबकि लैंप्स पर 268 रुपए में उपलब्ध है. कलिंजरा गांव के खातू राम डोडियार के अनुसार 12 बीघा फसल के लिए मुझे 6 बैग यूरिया की जरूरत है, परंतु लैंप्स पर माल उपलब्ध नहीं है और मार्केट में प्रति बैग 350 रुपए से वसूले जा रहे हैं.

कमलेश के अनुसार हर रोज खाद लेने के लिए लैंप्स के गोदाम पहुंच रहा हूं, जहां खाद ही नहीं है. वही इस संबंध में ईटीवी भारत ने जब कृषि विभाग के उपनिदेशक बीएल पाटीदार से संपर्क किया तो उन्होंने कहा कि यूरिया की संकज जैसी कोई बात नहीं है और अगले तीन-चार दिन में मांग के अनुरूप उर्वरक पहुंच जाएगा. कृभको कंपनी की रैक चित्तौड़गढ़ और उदयपुर उतरने वाली है. वहां से खाद सीधा लैंप्स गोदामों पर पहुंच जाएगा. ब्लैक मार्केट पर उनका कहना था कि हमारे पास ऐसी कोई शिकायत नहीं आई है.

Intro:बांसवाड़ा। बांसवाड़ा सहित उदयपुर संभाग के काश्तकार इन दिनों यूरिया की किल्लत का सामना कर रहे हैं। रबी की फसल यौवन अवस्था में पहुंच गई है और अभी सबसे ज्यादा उसे यूरिया की जरूरत है लेकिन सरकारी मुलाजिमों की लापरवाही का नतीजा यह रहा कि कोऑपरेटिव सोसाइटीज के गोदाम खाली पड़े हैं। अन्नदाता व्यापारियों पर निर्भर होकर रह गया है जो मनमाने दामों पर यूरिया सप्लाई कर रहे हैं। हालत यह है कि व्यापारी निर्धारित कीमत से 25% तक अधिक दाम वसूल रहे हैं और कृषि विभाग कंपनियों के खिलाफ कोई कदम नहीं उठा पा रहा है।


Body:पता चला है कि जिले में यूरिया की मांग और आपूर्ति में तीन हजार मैट्रिक टन का अंतराल चल रहा है। सबसे अधिक संकट का सामना लार्ज एग्रीकल्चर मल्टी परपज सोसाइटीज अर्थात लैंप्स कर रही है जहां पिछले 1 सप्ताह से यूरिया का एक दाना तक नहीं पहुंचा। किसान प्रतिदिन लैंप्स के चक्कर काट रहे हैं लेकिन उन्हें आजकल आजकल की बात कहकर लौटाया जा रहा है जबकि रबी की फसलें पूरे यौवन पर है और इस दौरान पौधे को यूरिया के सबसे ज्यादा आवश्यकता रहती है ।

कृभको नहीं कर पाया सप्लाई

सूत्रों से पता चला है कि उदयपुर संभाग में कृभको और स्कोर यूरिया की सप्लाई करते हैं । इफको अपना निर्धारित माल सप्लाई कर चुका है लेकिन कृभको समझौता के अनुरूप सप्लाई नहीं भेज पाया। उसी का खामियाजा काश्तकार भुगत रहे हैं। बताया जाता है कि कंपनी द्वारा रोड ट्रांसपोर्टेशन किया जाता है लेकिन इस बार किसी कंपनी के साथ उसका समझौता नहीं हो पाया। नतीजतन कंपनी शर्त के अनुरूप एक भी दाना सप्लाई नहीं कर पाई। बताया जाता है कि कंपनी द्वारा अब मालगाड़ी से यूरिया की रैक भेज रही है जो चित्तौड़ के चंदेरिया और उदयपुर के देबारी स्टेशन पर खाली होगी तो वहां से माल संबंधित लैंप्स पर पहुंचेगा। ऐसे में अगले चार-पांच दिन तक यूरिया सप्लाई होना मुश्किल माना जा रहा है।




Conclusion:किसानों पर मार

इसकी सबसे अधिक मार किसानों पर पड़ रही है जिन्हें लैंप्स पर यूरिया नहीं मिल रहा है और मजबूरन मार्केट से पूर्व खरीद रहे हैं। बताया जाता है कि एक निश्चित अवधि में ही फसल को यूरिया देना होता है जबकि यूरिया लैंप को दामों पर उपलब्ध नहीं है ऐसे में अन्नदाता को महंगे दामों पर मार्केट से खरीददारी करनी पड़ रही है। पता चला है कि व्यापारियों के पास भारी मात्रा में स्टाफ उपलब्ध है लेकिन मनमाने दामों पर इसकी बिक्री की जा रही है। यहां तक कि साढे तीन सौ से लेकर ₹400 तक प्रति बैग वसूले जा रहे हैं। ईटीवी भारत की टीम द्वारा जब किसानों से बातचीत की गई तो ब्लैक मार्केट की तस्वीर उभरकर सामने आई। किसान प्रकाश ने बताया कि लैंप्स और खा भी नहीं मिल रही है और आजकल आजकल की बात कहकर उन्हें घर भेजा जा रहा है। चिड़िया वासा गांव के रखमा ने बताया कि उसे 10 बोरी की जरूरत है और हर रोज वह लैंप्स गोदाम पर पहुंच रहा है लेकिन यहां खाद ही नहीं है। मार्केट में साढे तीन सौ से लेकर ₹400 में बैग दिया जा रहा है ऐसे में मुझे 1000 से लेकर 1300 रुपए अधिक देने होंगे जबकि लैंप्स पर ₹268 में उपलब्ध है। कलिंजरा गांव के खातू राम डोडियार के अनुसार 12 बीघा फसल के लिए मुझे 6 बैग यूरिया की जरूरत है परंतु लैंप्स पर माल उपलब्ध नहीं है और मार्केट में प्रति बैग साढे ₹300 से अधिक वसूले जा रहे हैं। कमलेश के अनुसार हर रोज खाद लेने के लिए लेंस के गोदाम पहुंच रहा हूं जहां खाद ही नहीं है। वही इस संबंध में ईटीवी भारत ने जब कृषि विभाग के उपनिदेशक बीएल पाटीदार से संपर्क किया तो उन्होंने कहा कि यूरिया के शंकर जी ऐसी कोई बात नहीं है और अगले तीन-चार दिन में मांग के अनुरूप उर्वरक पहुंच जाएगा। कृभको कंपनी की रेक चित्तौड़ और उदयपुर उतरने वाली है। वहां से खाद सीधा लेंस गोदामों पर पहुंच जाएगा। ब्लैक मार्केट पर उनका कहना था कि हमारे पास ऐसी कोई शिकायत नहीं आई है।

बाइट........ प्रकाश
.......... रकमा
.......... खातू राम
............ कमलेश सब किसान
............. बीएल पाटीदार उप निदेशक कृषि विस्तार
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