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Mahashivratri: राजस्थान में एक ऐसा शिवमंदिर, जहां खुद ही होता है भगवान शिव का जलाभिषेक, देखें Video

गर्मियों के दिनों में ज्यादातर तालाब सूख जाते हैं. यहां तक की पानी के किनारे रहने वाले गांव के लोगों के भी हलक सूख जाते हैं. लेकिन बांसवाड़ा में यह प्राकृतिक चमत्कार ही माना जा सकता है की शहर के प्रमुख मंदिर मदारेश्वर महादेव मंदिर में एक प्राकृतिक कुंड से स्वत: ही जलाभिषेक होता रहता है.

मदारेश्वर महादेव मंदिर, बांसवाड़ा
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Published : Mar 4, 2019, 7:27 PM IST

बांसवाड़ा. गर्मियों के दिनों में ज्यादातर तालाब सूख जाते हैं. यहां तक की पानी के किनारे रहने वाले गांव के लोगों के भी हलक सूख जाते हैं. लेकिन बांसवाड़ा में यह प्राकृतिक चमत्कार ही माना जा सकता है की शहर के प्रमुख मंदिर मदारेश्वर महादेव मंदिर में एक प्राकृतिक कुंड से स्वत: ही जलाभिषेक होता रहता है.

चाहे कितना ही भीषण सूखा पड़ जाए. इस कुंड में पानी की आवक बनी रहती है. महाशिवरात्रि पर सोमवार को इस मंदिर पर भक्तों की भारी-भीड़ देखी गई. शहर से करीब 2 किलोमीटर दूर पहाड़ों के बीच स्थित इस मंदिर तक पैर धरने की भी जगह नहीं थी.

महाशिवरात्रि पर करीब सवा लाख बिल्व पत्र शिवलिंग पर चढ़ाए गए. सुबह बड़ी संख्या में कावड़ यात्री जल लेकर मंदिर पहुंचे और जलाभिषेक कर कार्यक्रम की शुरुआत की. मदारेश्वर कावड़ यात्री संघ के अध्यक्ष कांतिलाल पटेल ने बताया कि भक्तों का सुबह से ही पहुंचना शुरू हो गया. देर रात तक दर्शनों का कर्म बना रहेगा.

मंदिर के बारे में जानकारी देते हुए पटेल ने बताया कि नैसर्गिक सौंदर्य अर्थात पहाड़ों के बीच स्थित विशाल शिवलिंग को 200 साल पहले आतताईयों द्वारा खंडित कर दिया गया था. जन भावना को देखते हुए तत्कालीन राज परिवार द्वारा शिवलिंग को रिनोवेट कराया गया.

संगठन के सुभाष अग्रवाल के अनुसार इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहां स्व: स्फूर्त शिवलिंग का जलाभिषेक होता रहता है. शिवलिंग के पिछवाड़े ही चट्टान में प्राकृतिक तौर पर 1 कुंड बना है, जिसमें चाहे कितना ही सूखा क्यों ना हो पानी की आवक बनी रहती है. जो कि एक आश्चर्य ही कहा जा सकता है. यह मंदिर समुद्र तल से काफी ऊंचा है.

उन्होंने कहा कि जब से वे होश संभाले हैं कुंड को कभी खाली नहीं देखा. इस पानी से ही शिवलिंग का चौबीसों घंटे जलाभिषेक होता रहता है. यहां पर करीब 2 लाख भक्त दर्शन के लिए पहुंचे. सवा लाख बिल्व पत्र चढ़ाए गए. वैसे तो सभी महादेव मंदिरों में भक्त पहुंचे. लेकिन शहर में सबसे अधिक लोग इसी मंदिर पर पहुंचते हैं.

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बांसवाड़ा. गर्मियों के दिनों में ज्यादातर तालाब सूख जाते हैं. यहां तक की पानी के किनारे रहने वाले गांव के लोगों के भी हलक सूख जाते हैं. लेकिन बांसवाड़ा में यह प्राकृतिक चमत्कार ही माना जा सकता है की शहर के प्रमुख मंदिर मदारेश्वर महादेव मंदिर में एक प्राकृतिक कुंड से स्वत: ही जलाभिषेक होता रहता है.

चाहे कितना ही भीषण सूखा पड़ जाए. इस कुंड में पानी की आवक बनी रहती है. महाशिवरात्रि पर सोमवार को इस मंदिर पर भक्तों की भारी-भीड़ देखी गई. शहर से करीब 2 किलोमीटर दूर पहाड़ों के बीच स्थित इस मंदिर तक पैर धरने की भी जगह नहीं थी.

महाशिवरात्रि पर करीब सवा लाख बिल्व पत्र शिवलिंग पर चढ़ाए गए. सुबह बड़ी संख्या में कावड़ यात्री जल लेकर मंदिर पहुंचे और जलाभिषेक कर कार्यक्रम की शुरुआत की. मदारेश्वर कावड़ यात्री संघ के अध्यक्ष कांतिलाल पटेल ने बताया कि भक्तों का सुबह से ही पहुंचना शुरू हो गया. देर रात तक दर्शनों का कर्म बना रहेगा.

मंदिर के बारे में जानकारी देते हुए पटेल ने बताया कि नैसर्गिक सौंदर्य अर्थात पहाड़ों के बीच स्थित विशाल शिवलिंग को 200 साल पहले आतताईयों द्वारा खंडित कर दिया गया था. जन भावना को देखते हुए तत्कालीन राज परिवार द्वारा शिवलिंग को रिनोवेट कराया गया.

संगठन के सुभाष अग्रवाल के अनुसार इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहां स्व: स्फूर्त शिवलिंग का जलाभिषेक होता रहता है. शिवलिंग के पिछवाड़े ही चट्टान में प्राकृतिक तौर पर 1 कुंड बना है, जिसमें चाहे कितना ही सूखा क्यों ना हो पानी की आवक बनी रहती है. जो कि एक आश्चर्य ही कहा जा सकता है. यह मंदिर समुद्र तल से काफी ऊंचा है.

उन्होंने कहा कि जब से वे होश संभाले हैं कुंड को कभी खाली नहीं देखा. इस पानी से ही शिवलिंग का चौबीसों घंटे जलाभिषेक होता रहता है. यहां पर करीब 2 लाख भक्त दर्शन के लिए पहुंचे. सवा लाख बिल्व पत्र चढ़ाए गए. वैसे तो सभी महादेव मंदिरों में भक्त पहुंचे. लेकिन शहर में सबसे अधिक लोग इसी मंदिर पर पहुंचते हैं.

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Intro:बांसवाड़ा। गर्मी में अच्छे-अच्छे बांध तालाब सूख जाते हैं। यहां तक की पानी के किनारे रहने वाले गांव के लोगों के भी हलक सूख जाते हैं लेकिन बांसवाड़ा में यह प्राकृतिक चमत्कार ही माना जा सकता है की शहर के प्रमुख मंदिर मदारेश्वर महादेव मंदिर में एक प्राकृतिक चश्मे से स्वत ही जलाभिषेक होता रहता है। चाहे कितना ही भीषण सूखा पड़ जाए इस कुंड में पानी की आवक बनी रहती है। महाशिवरात्रि पर सोमवार को इस मंदिर पर भक्तों की भारी भीड़ देखी गई। शहर से करीब 2 किलोमीटर दूर पहाड़ों के बीच स्थित इस मंदिर तक पैर धरने की भी जगह नहीं थी।


Body:महाशिवरात्रि पर करीब सवा लाख बिल पत्र शिवलिंग पर चढ़ाए गए। सुबह बड़ी संख्या में कावड़ यात्री जल लेकर मंदिर पहुंचे और जलाभिषेक कर कार्यक्रम की शुरुआत की। मदारेश्वर कावड़ यात्री संघ के अध्यक्ष कांतिलाल पटेल ने बताया कि भक्तों का सुबह से ही पहुंचना शुरू हो गया। देर रात तक दर्शनों का कर्म बना रहेगा। मंदिर के बारे में जानकारी देते हुए पटेल ने बताया कि नैसर्गिक सौंदर्य अर्थात पहाड़ों के बीच स्थित विशाल शिवलिंग को 200 साल पहले आतताईयों द्वारा खंडित कर दिया गया था। जन भावना को देखते हुए तत्कालीन राज परिवार द्वारा शिवलिंग


Conclusion:को रिनोवेट कराया गया। संगठन के सुभाष अग्रवाल के अनुसार इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहां स्वस्फूर्त शिवलिंग का जलाभिषेक होता रहता है। शिवलिंग के पिछवाड़े ही चट्टान में प्राकृतिक तौर पर 1 कुंड बना है जिसमें चाहे कितना ही सूखा क्यों ना हो पानी की आवक बनी रहती है जोकि एक आश्चर्य ही कहा जा सकता है। यह मंदिर समुद्र तल से काफी ऊंचा है। मैंने जब से होश संभाला है कुंड को कभी खाली नहीं देखा। इस पानी से ही शिवलिंग का चौबीसों घंटे जलाभिषेक होता रहता है। आज यहां पर करीब 200000 भक्त दर्शन के लिए पहुंचे। सवा लाख बिल पत्र चढ़ाए गए। वैसे तो सभी महादेव मंदिरों में भक्त पहुंचे लेकिन शहर में सबसे अधिक लोग इसी मंदिर पर पहुंचते हैं।
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