बांसवाड़ा. उदयपुर संभाग के सबसे बड़े माही बांध की बदौलत जिले में रबी सीजन के दौरान मक्का की खेती की जाती है, जो संभवत: प्रदेश में सबसे अधिक मानी गई है. इस पैदावार को ऊंचे दाम पर गुजरात के व्यापारी खरीद ले जाते हैं, लेकिन इतने अरसे में पहली बार जिले के काश्तकारों के लिए मक्का की खेती घाटे का सौदा साबित बनती दिखाई दे रही है. लगातार 2 महीने से लॉकडाउन के चलते गुजरात की प्रोसेस इकाइयों पर ताले लगे हैं.
ऐसे में वहां के व्यापारी मक्का की खरीदारी के लिए इस बार नहीं आए. नतीजा यह निकला कि किसानों के घरों में मक्का के ढेर लगे हैं, लेकिन उन्हें वाजिब दाम पर खरीदने को कोई तैयार नहीं है. हैरत की बात यह है कि प्रदेश में रबी सीजन के दौरान सर्वाधिक पैदावार के बावजूद यहां पर समर्थन मूल्य पर मक्का की खरीद का कोई केंद्र नहीं है. नतीजतन इसके मोलभाव की पूरी कमान व्यापारियों के हाथ में हैं. केंद्र सरकार की ओर से मक्का का समर्थन मूल्य 1725 रुपए प्रति क्विंटल रखा गया है. परंतु स्थानीय व्यापारी, किसानों की मजबूरी का फायदा उठाते हुए 11-12 सौ रुपए प्रति क्विंटल से आगे नहीं बढ़ रहे हैं. इस प्रकार काश्तकारों को समर्थन मूल्य का दो तिहाई दाम भी नहीं मिल पा रहा है.
प्रदेश में सबसे अधिक बुवाई
कृषि विभाग के आंकड़े बताते हैं कि राजस्थान में रबी सीजन के दौरान बांसवाड़ा जिले में सर्वाधिक मक्का की बुवाई की जाती है. इस सीजन में यहां पर करीब 20 हजार हेक्टेयर में बुवाई की गई. विभाग की मानें तो माही बांध से मिलने वाले भरपूर पानी और यहां की उपजाऊ जमीन की बदौलत प्रति हेक्टेयर 60 क्विंटल तक पैदावार होती है. इस बार बांसवाड़ा जिले में काश्तकारों ने मक्का की भरपूर पैदावार ली.
खुले में पड़ा हजारों क्विंटल मक्का
बांसवाड़ा जिले में गेहूं की बंपर पैदावार के बाद मक्का की पैदावार भी बड़े पैमाने पर हुई है. स्थिति यह है कि गेहूं के बाद किसानों के घर पर मक्का रखने की जगह तक नहीं बची और घरों के बाहर की छपरा और तिरपाल के नीचे मक्का रखी गई है. जगह के अभाव में कई लोगों ने पशु बांधने के स्थानों पर खुले में मक्का को डाल रखा है, जबकि मानसून आने में महज कुछ दिन शेष है.
पहली बार आई मुश्किल
बांसवाड़ा जिले का अधिकांश मक्का गुजरात के प्रोसेस यूनिट की ओर से खरीद लिया जाता है और इसके लिए फसल पकाई से पहले ही वहां के व्यापारी पहुंच जाते हैं. यहां तक कि कई व्यापारी खड़ी फसलों का सौदा कर लेते हैं, लेकिन इस बार किसानों की सारी उम्मीद कोरोना के बीच लगाए गए लॉकडाउन के आगे धरी रह गई. प्रोसेस इकाइयों के बंद होने से वहां के व्यापारी नहीं पहुंचे, जिससे किसानों के घरों पर मक्का के ढेर लग गए है.
समर्थन मूल्य का दो-तिहाई दाम तक नहीं मिल पा रहा
किसानों के सामने सबसे बड़ी मुसीबत यह है कि स्थानीय व्यापारी 11-12 सौ रुपए प्रति क्विंटल कीमत से आगे नहीं बढ़ रहे हैं. जबकि सरकारी समर्थन मूल्य 1750 रुपया प्रति क्विंटल है. किसानों की मानें तो इस फसल में खाद्य, बीज और मजदूरी का खर्चा गेहूं से भी कई अधिक बैठता है, ऐसे में इस भाव पर बेचने से उनकी मजदूरी तक नहीं मिलेगी. किसानों का कहना है कि बांसवाड़ा में मक्का की समर्थन मूल्य पर खरीद के लिए केंद्र खोल दिया जाए तो व्यापारियों की मनमानी पर अंकुश लगाया जा सकेगा और किसानों को उनकी फसल का वाजिब दाम भी मिल सकता हैं.
मंत्री बामनिया ने केंद्र के पाले में डाली गेंद
इस संबंध में ईटीवी भारत ने जब स्थानीय विधायक और प्रदेश के जनजाति मंत्री अर्जुन सिंह बामनिया से बातचीत की तो वे बांसवाड़ा में मक्का की समर्थन मूल्य पर खरीद के इस मामले को केंद्र सरकार के पाले में डालते दिखाई दिए.