बांसवाड़ा. कहते हैं कि समय निकलते देर नहीं लगती. 1 घंटे से एक दिन और दिन से एक महीना और देखते ही देखते सालों निकल जाते हैं. वागड़ अंचल के लाल बाबूजी भीखाभाई के महाप्रयाण को शुक्रवार को 19 साल होने जा रहे हैं. जनजाति अंचल से निकलकर राष्ट्रीय क्षितिज पर अपनी धाक जमाने वाले भीखाभाई भील असाधारण व्यक्तित्व के धनी थे. उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी जनजाति क्षेत्र के उत्थान के लिए समर्पित कर दी थी.
वर्तमान समय में डूंगरपुर और बांसवाड़ा विकास के जिस पथ पर खड़े हैं, उसमें कहीं ना कहीं बाबूजी की जनजाति क्षेत्र के उत्थान की सोच परिलक्षित होती है. उन्होंने कई ऊंचे पदों पर रहकर वागड़ का नाम देश और दुनिया में गौरवान्वित किया.
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भीखाभाई डूंगरपुर और बांसवाड़ा सीमा पर स्थित सागवाड़ा के निकट छोटे से गांव बुचिया बड़ा में जनजाति परिवार में 28 अप्रैल 1916 को जन्म लेकर ग्रामीण संस्कारों के साथ बड़े हुए. उन्होंने प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में पढ़ाई के साथ कई प्रकार की शैक्षणिक डिग्रियां हासिल करते हुए एलएलबी तक शिक्षा प्राप्त की. आमजन के प्रति उनका अनूठा लगाव था, जिस कारण लोग उन्हें बाबूजी कहकर संबोधित करते थे.
![Bhikhabhai Bhil, death anniversary of Bhikhabhai](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/rj-bwr-04-bheekhabhai-pictures-7204387_04062020203038_0406f_1591282838_426.jpg)
वागड़ समुदाय में कानून विद, शिक्षाविद, कुशल शासक प्रशासक और राजनेता के साथ ही समाजसेवी के रूप में भीखाभाई ने जो छाप छोड़ी, उसे बेमिसाल कहा जा सकता है. वागड़ के स्वाधीनता संग्राम में अतुलनीय योगदान देने वाले भीखाभाई 1942 में डूंगरपुर रियासत में मुंसिफ मजिस्ट्रेट नियुक्त हुए. इसके बाद प्रज्ञा मंडल से जुड़े और जनता की सेवा को ही जीवन का उद्देश्य बना लिया.
![Bhikhabhai Bhil, death anniversary of Bhikhabhai](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/rj-bwr-04-bheekhabhai-pictures-7204387_04062020203038_0406f_1591282838_486.jpg)
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इस दौरान वागड़ अंचल से लेकर राष्ट्रीय राजनीति और सत्ता में वे कई पदों पर रहे और विदेशों में भी भारत का प्रतिनिधित्व किया. जनसंपर्क विभाग की सहायक निदेशक कल्पना डिंडोर के अनुसार गरीबों और आदिवासियों के मन में उनकी छवि मसीहा की थी. पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी उन्हें 'भीष्म पितामह' और नरसिम्हा राव उन्हें जनजाति वर्ग के 'पितामह' के रूप में संबोधित करते थे. उनके नाम कई राष्ट्रीय पुरस्कार और सम्मान रहे हैं.
भीखाभाई अपने जीवन काल में आदिवासियों के समर्थन और उन्हें विकास की मुख्यधारा में लाने के लिए दिन-रात जुटे रहे. 5 जून 2002 को उदयपुर में उन्होंने इस संसार को अलविदा कह दिया. भले ही भीखाभाई आज हमारे बीच नहीं हैं. लेकिन उनके कर्म योग से परिपूर्ण व्यक्तित्व की चर्चा वागड़ अंचल में आज भी होती है. नई पीढ़ी के लिए उनका जीवन प्रेरणा स्रोत बना रहेगा.