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पेट भरने के लिए बदले काम-धंधे, नहीं मिली कोई सरकारी मदद

कोरोना काल के चलते पूरे देश में लॉकडाउन जारी है. जिसमें सभी तरह की दुकानें और धंधे बंद पड़े हैं. ऐसे में सभी छोटे दुकानदारों और धंधा करने वालों पर रोजी-रोटी का संकट भी मंडरा रहा है. सरकारी मदद के नाम पर भी इन्हें सिर्फ निराशा ही हाथ लग रही है. जिसके चलते इन सबने अब फल और सब्जी का ठेला लगा लिया है.

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bhivadi vegetable sellers
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Published : May 10, 2020, 10:31 AM IST

भिवाड़ी (अलवर). क्षेत्र में पिछले 45 दिन से चल रहे लॉकडाउन ने छोटे दुकानदारों के सामने संकट खड़ा कर दिया है. मजबूरी में इन्हें अपने परिवार का पेट पालने के लिए रोड किनारे सब्जी की दुकानें और गली-मोहल्लों में ठेला धकेलना पड़ रहा है.

रोजी रोटी कमाने के लिए बदला काम

दरअसल सब्जी विक्रय पर किसी तरह का कोई प्रतिबंध नहीं है. लॉकडाउन से सबसे ज्यादा छोटे दुकानदार, चाट का ठेला लगाने वाले, चाय-नाश्ते की गुमटी लगाने वाले और हाथ ठेला पर सामान बेचने वाले प्रभावित हुए हैं. रोज कमाकर खाने वाले इन छोटे दुकानदारों का धंधा पिछले एक महीने से ठप है. इस वजह से इनके परिवार आर्थिक संकट में आ गए हैं. ऐसे में इन छोटे दुकानदारों ने सब्जी बेचने का काम शुरू कर दिया है.

कुछ लोगों ने रोड किनारे सब्जी की दुकानें लगा ली हैं. कुछ ठेले पर गली-मोहल्लों में सब्जी बेच रहे हैं. वैसे ज्यादातर सब्जी का धंधा ठेले वाले दुकानदार कर रहे हैं. कारण उनके पास अपना ठेला है और लागत भी ज्यादा नहीं लगानी पड़ रही है. इस तरह सब्जी बेचने का धंधा भिवाड़ी सहित आसपास के क्षेत्रों में छोटे दुकानदार कर रहे हैं.

पढ़ें: डूंगरपुर शहर में Corona की दस्तक, मुंबई से लौटा युवक मिला पॉजिटिव

भिवाड़ी में संतोष लॉकडाउन के पहले सिलाई का काम करता था. अब ठेला लगाकर फल बेच रहे हैं. उन्होंने बताया कि जो पैसा बचाकर रखा था वह खत्म हो गया. दो बार घर से पैसे डलवा लिए लेकिन अब सब खत्म हो गया. अब परिवार का पेट भरने के लिए फल का ठेला लगाना पड़ रहा है. जिससे 150 से 200 रुपए कमा लेते हैं. इससे खाने का जुगाड़ हो जाता है.

वहीं धन सिंह पहले शीशे का काम करता था. लेकिन अब मजबूरी में सब्जी बेच रहा है. इनका शीशे का काम लॉकडाउन में दुकान न खुलने से ठप हो गया. पहले तो उन्होंने 30 अप्रैल तक लॉकडाउन खुलने का इंतजार किया. लेकिन जब लॉकडाउन बढ़ गया तो इन्होंने बाजार में बंद दुकानों के सामने ही अस्थायी रूप से सब्जी की दुकान लगा ली है.

दूसरी ओर केदारमल पहेल जूते चप्पलों का काम करते थे. लेकिन लॉकडाउन के चलते सारा काम ठप्प हो गया. अब मजबूरी में सब्जी की दुकान लगानी पड़ रही है. उसकी भी अनुमति प्रशासन ने सुबह 7 बजे से 2 बजे तक की दी है. जिससे बड़ी मुश्किल से 100-200 रुपए कमा पाता हूं. इसी से परिवार का गुजारा हो रहा है. जब तक लॉकडाउन नहीं खुलता इसी तरह गुजारा करना पड़ेगा.

पढ़ें: डूंगरपुर शहर में Corona की दस्तक, मुंबई से लौटा युवक मिला पॉजिटिव

इसी तरह राजकुमार परिवार के साथ कॉस्मेटिक का काम करता था. दुकान में जनवरी में किसी कारण से आग लग गई. उससे उभरता उससे पहले लॉकडाउन हो गया. अब परिवार को पालने के लिए सब्जी का ठेला लगा रहा है. उन्होंने बताया कि मजबूरी में सब्जी बेचने का काम शुरू किया है. जिससे परिवार को पाल सकूं. सब्जी के काम का अनुभव नहीं होने के कारण मुश्किल से दो टाइम के खाने का जुगाड़ हो पाता है. उधर इस संबंध में हमनें तिजारा उपखण्ड अधिकारी से बात की तो उन्होंने बताया कि जल्द ही इस प्रकार के व्यापारियों का ध्यान रखते हुए, सरकार जल्द ही उनके धंधे और दुकान खोलने का निर्णय ले सकती है.

भिवाड़ी (अलवर). क्षेत्र में पिछले 45 दिन से चल रहे लॉकडाउन ने छोटे दुकानदारों के सामने संकट खड़ा कर दिया है. मजबूरी में इन्हें अपने परिवार का पेट पालने के लिए रोड किनारे सब्जी की दुकानें और गली-मोहल्लों में ठेला धकेलना पड़ रहा है.

रोजी रोटी कमाने के लिए बदला काम

दरअसल सब्जी विक्रय पर किसी तरह का कोई प्रतिबंध नहीं है. लॉकडाउन से सबसे ज्यादा छोटे दुकानदार, चाट का ठेला लगाने वाले, चाय-नाश्ते की गुमटी लगाने वाले और हाथ ठेला पर सामान बेचने वाले प्रभावित हुए हैं. रोज कमाकर खाने वाले इन छोटे दुकानदारों का धंधा पिछले एक महीने से ठप है. इस वजह से इनके परिवार आर्थिक संकट में आ गए हैं. ऐसे में इन छोटे दुकानदारों ने सब्जी बेचने का काम शुरू कर दिया है.

कुछ लोगों ने रोड किनारे सब्जी की दुकानें लगा ली हैं. कुछ ठेले पर गली-मोहल्लों में सब्जी बेच रहे हैं. वैसे ज्यादातर सब्जी का धंधा ठेले वाले दुकानदार कर रहे हैं. कारण उनके पास अपना ठेला है और लागत भी ज्यादा नहीं लगानी पड़ रही है. इस तरह सब्जी बेचने का धंधा भिवाड़ी सहित आसपास के क्षेत्रों में छोटे दुकानदार कर रहे हैं.

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भिवाड़ी में संतोष लॉकडाउन के पहले सिलाई का काम करता था. अब ठेला लगाकर फल बेच रहे हैं. उन्होंने बताया कि जो पैसा बचाकर रखा था वह खत्म हो गया. दो बार घर से पैसे डलवा लिए लेकिन अब सब खत्म हो गया. अब परिवार का पेट भरने के लिए फल का ठेला लगाना पड़ रहा है. जिससे 150 से 200 रुपए कमा लेते हैं. इससे खाने का जुगाड़ हो जाता है.

वहीं धन सिंह पहले शीशे का काम करता था. लेकिन अब मजबूरी में सब्जी बेच रहा है. इनका शीशे का काम लॉकडाउन में दुकान न खुलने से ठप हो गया. पहले तो उन्होंने 30 अप्रैल तक लॉकडाउन खुलने का इंतजार किया. लेकिन जब लॉकडाउन बढ़ गया तो इन्होंने बाजार में बंद दुकानों के सामने ही अस्थायी रूप से सब्जी की दुकान लगा ली है.

दूसरी ओर केदारमल पहेल जूते चप्पलों का काम करते थे. लेकिन लॉकडाउन के चलते सारा काम ठप्प हो गया. अब मजबूरी में सब्जी की दुकान लगानी पड़ रही है. उसकी भी अनुमति प्रशासन ने सुबह 7 बजे से 2 बजे तक की दी है. जिससे बड़ी मुश्किल से 100-200 रुपए कमा पाता हूं. इसी से परिवार का गुजारा हो रहा है. जब तक लॉकडाउन नहीं खुलता इसी तरह गुजारा करना पड़ेगा.

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इसी तरह राजकुमार परिवार के साथ कॉस्मेटिक का काम करता था. दुकान में जनवरी में किसी कारण से आग लग गई. उससे उभरता उससे पहले लॉकडाउन हो गया. अब परिवार को पालने के लिए सब्जी का ठेला लगा रहा है. उन्होंने बताया कि मजबूरी में सब्जी बेचने का काम शुरू किया है. जिससे परिवार को पाल सकूं. सब्जी के काम का अनुभव नहीं होने के कारण मुश्किल से दो टाइम के खाने का जुगाड़ हो पाता है. उधर इस संबंध में हमनें तिजारा उपखण्ड अधिकारी से बात की तो उन्होंने बताया कि जल्द ही इस प्रकार के व्यापारियों का ध्यान रखते हुए, सरकार जल्द ही उनके धंधे और दुकान खोलने का निर्णय ले सकती है.

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