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Special : मूसी महारानी की छतरी, जिसका पानी नजर उतारने व चर्म रोग में आता है काम

अलवर जिले में पर्यटन स्थलों की भरमार है, लेकिन इनमें सबसे खास है सिटी पैलेस के पास बनी मूसी महारानी की छतरी. इस छतरी का पानी चमत्कारी है. कहते हैं कि बच्चों की नजर उतारने के लिए पानी काम में लेते हैं, साथ ही चरम रोग में भी पानी का इस्तेमाल किया जाता है. साल भर यहां देशी व विदेशी पर्यटक आते हैं. देखिए ये रिपोर्ट...

Moosi Maharani Ki Chhatri
मूसी महारानी की छतरी की कहानी
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Published : Nov 22, 2022, 7:24 PM IST

अलवर. राजस्थान के अलवर में सिटी पैलेस के बाहर की तरफ सागर जलाशय के पास मूसी महारानी की छतरी बनी हुई है. अलवर के शासक महाराजा बख्तावर सिंह और उनकी रानी मूसी की याद में विनय सिंह द्वारा इसका निर्माण करवाया गया. कहते हैं कि मूसी महारानी सती (अपने पति के प्रेम में चिता पर आत्म बलिदान किया) हो गई थीं. इस खूबसूरत स्मारक में राजा और रानी की कब्र स्थित है. पूरी छतरी लाल पत्थर के स्तम्भों पर टिकी हुई है. उसके ऊपर सफेद मार्बल की गुंबद व छतरी बनी हुई है. दो मंजिला यह स्मारक सूर्योदय व सूर्यास्त के दौरान अलग-अलग रूप में नजर आती है.

इतिहासकार नरेंद्र सिंह ने बताया कि मूसी महारानी की छतरी में ऊपरी मंजिल नक्काशीदार है. यह पूरी तरह संगमरमर से निर्मित है. जबकि इसका आंतरिक भाग की छत को कुछ सुंदर पौराणिक चित्रों से सजाया गया है. वहीं, नीचे का हिस्सा लाल पत्थर से बना हुआ है. इस छतरी का निर्माण (Story of Moosi Maharani Ki Chhatri) महाराजा विनय सिंह ने 1815 ई. में महाराजा बख्तावर सिंह और उनकी रानी मूसी की याद में करवाया था. साल भर देशी व विदेशी पर्यटक यहां घूमने के लिए आते हैं. कई फिल्मों की शूटिंग भी यहां हो चुकी है. मत्स्य उत्सव के दौरान सांस्कृतिक कार्यक्रम व प्रदर्शनी का आयोजन भी किया जाता है.

मूसी महारानी की छतरी

कहां रहता है पानी ? : इतिहासकार व स्थानीय लोगों ने बताया कि मूसी महारानी की छतरी के ऊपरी हिस्से में महाराज बख्तावर सिंह व मूसी महारानी के पैरों के निशान बने हुए हैं. लोग उन पर पानी चढ़ाते हैं. वो पानी एक जगह पर जमा होता है, फिर जमा होने वाले पानी को लोग (Treatment of Eczema with Water) अपने हिसाब से बर्तन में लेकर जाते हैं.

पढ़ें : SPECIAL : बीकानेर की उस्ता कला पर उदासीनता की गर्द..रियासतकालीन आर्ट को संरक्षण की दरकार

पानी में क्या है खास ? : स्थानीय लोग बताते हैं कि आमतौर पर पानी को किसी बर्तन व प्लास्टिक की बोतल में बंद करके रखते हैं तो उसमें कीड़े पड़ जाते हैं, लेकिन इस पानी को सालों तक रख सकते हैं. पानी खराब नहीं होता है. बच्चों की नजर उतारने में यह पानी काम आता है. बच्चों को पानी पिलाया जाता है, साथ ही उनके शरीर पर यह पानी लगाया जाता है. लोगों ने बताया कि शरीर में नाभि से ऊपरी हिस्से पर इस पानी को लगाया जाता है. चर्म रोग होने पर भी यह पानी खासा फायदेमंद रहता है, साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों के लोग जानवरों को होने वाली बीमारी के दौरान भी इस पानी को काम में लेते हैं.

Moosi Maharani Ki Chhatri
चमत्कारी है यह पानी....

इतिहासकारों की मानें तो नौगांवा के पास स्थित रघुनाथगढ़ में रियासतकाल के दौरान ग्रामीणों में एक विवाद हु​आ था. विवाद की वजह मूसी महारानी व उनकी मां थीं. इसके बाद राजा के सैनिक मूसी व उनकी मां को (Story of Moosi Maharani) अलवर राज दरबार में लेकर आए. उस समय मूसी महारानी की उम्र काफी कम थी, लेकिन वो बहुत सुंदर थीं. अलवर के महाराज ने मूसी व उनकी मां को गाने-बजाने का कार्य दिया, जो विभिन्न अवसरों पर राजदरबार में नृत्य व गायन की प्रस्तुतियां देती थीं. जब मूसी बड़ी हुईं तो महाराज बख्तावर सिंह ने उनसे विवाह कर लिया. हालांकि, दोनों की उम्र में काफी अंतर था. कहते हैं कि महाराजा बख्तावर सिंह की मौत होने पर मूसी महारानी उनकी चिता पर लेटकर सती हो गईं थीं.

अलवर. राजस्थान के अलवर में सिटी पैलेस के बाहर की तरफ सागर जलाशय के पास मूसी महारानी की छतरी बनी हुई है. अलवर के शासक महाराजा बख्तावर सिंह और उनकी रानी मूसी की याद में विनय सिंह द्वारा इसका निर्माण करवाया गया. कहते हैं कि मूसी महारानी सती (अपने पति के प्रेम में चिता पर आत्म बलिदान किया) हो गई थीं. इस खूबसूरत स्मारक में राजा और रानी की कब्र स्थित है. पूरी छतरी लाल पत्थर के स्तम्भों पर टिकी हुई है. उसके ऊपर सफेद मार्बल की गुंबद व छतरी बनी हुई है. दो मंजिला यह स्मारक सूर्योदय व सूर्यास्त के दौरान अलग-अलग रूप में नजर आती है.

इतिहासकार नरेंद्र सिंह ने बताया कि मूसी महारानी की छतरी में ऊपरी मंजिल नक्काशीदार है. यह पूरी तरह संगमरमर से निर्मित है. जबकि इसका आंतरिक भाग की छत को कुछ सुंदर पौराणिक चित्रों से सजाया गया है. वहीं, नीचे का हिस्सा लाल पत्थर से बना हुआ है. इस छतरी का निर्माण (Story of Moosi Maharani Ki Chhatri) महाराजा विनय सिंह ने 1815 ई. में महाराजा बख्तावर सिंह और उनकी रानी मूसी की याद में करवाया था. साल भर देशी व विदेशी पर्यटक यहां घूमने के लिए आते हैं. कई फिल्मों की शूटिंग भी यहां हो चुकी है. मत्स्य उत्सव के दौरान सांस्कृतिक कार्यक्रम व प्रदर्शनी का आयोजन भी किया जाता है.

मूसी महारानी की छतरी

कहां रहता है पानी ? : इतिहासकार व स्थानीय लोगों ने बताया कि मूसी महारानी की छतरी के ऊपरी हिस्से में महाराज बख्तावर सिंह व मूसी महारानी के पैरों के निशान बने हुए हैं. लोग उन पर पानी चढ़ाते हैं. वो पानी एक जगह पर जमा होता है, फिर जमा होने वाले पानी को लोग (Treatment of Eczema with Water) अपने हिसाब से बर्तन में लेकर जाते हैं.

पढ़ें : SPECIAL : बीकानेर की उस्ता कला पर उदासीनता की गर्द..रियासतकालीन आर्ट को संरक्षण की दरकार

पानी में क्या है खास ? : स्थानीय लोग बताते हैं कि आमतौर पर पानी को किसी बर्तन व प्लास्टिक की बोतल में बंद करके रखते हैं तो उसमें कीड़े पड़ जाते हैं, लेकिन इस पानी को सालों तक रख सकते हैं. पानी खराब नहीं होता है. बच्चों की नजर उतारने में यह पानी काम आता है. बच्चों को पानी पिलाया जाता है, साथ ही उनके शरीर पर यह पानी लगाया जाता है. लोगों ने बताया कि शरीर में नाभि से ऊपरी हिस्से पर इस पानी को लगाया जाता है. चर्म रोग होने पर भी यह पानी खासा फायदेमंद रहता है, साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों के लोग जानवरों को होने वाली बीमारी के दौरान भी इस पानी को काम में लेते हैं.

Moosi Maharani Ki Chhatri
चमत्कारी है यह पानी....

इतिहासकारों की मानें तो नौगांवा के पास स्थित रघुनाथगढ़ में रियासतकाल के दौरान ग्रामीणों में एक विवाद हु​आ था. विवाद की वजह मूसी महारानी व उनकी मां थीं. इसके बाद राजा के सैनिक मूसी व उनकी मां को (Story of Moosi Maharani) अलवर राज दरबार में लेकर आए. उस समय मूसी महारानी की उम्र काफी कम थी, लेकिन वो बहुत सुंदर थीं. अलवर के महाराज ने मूसी व उनकी मां को गाने-बजाने का कार्य दिया, जो विभिन्न अवसरों पर राजदरबार में नृत्य व गायन की प्रस्तुतियां देती थीं. जब मूसी बड़ी हुईं तो महाराज बख्तावर सिंह ने उनसे विवाह कर लिया. हालांकि, दोनों की उम्र में काफी अंतर था. कहते हैं कि महाराजा बख्तावर सिंह की मौत होने पर मूसी महारानी उनकी चिता पर लेटकर सती हो गईं थीं.

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