मनीष गौतम, कोटा. ईरान व इजरायल युद्ध का खामियाजा धान उत्पादक हाड़ौती संभाग उठा रहा है. कोटा से लगता हुआ मध्य प्रदेश का अधिकांश इलाका भी धान उत्पादक एरिया है, जहां पर बड़ी मात्रा में खरीफ की फसल के रूप में धान का उत्पादन किया जाता है. इस बार दोनों ही राज्यों के किसानों को हजारों रुपए प्रति क्विंटल का खामियाजा उठाना पड़ रहा है. कृषि उपज मंडियों में धान के दाम काफी कम हैं. बीते साल से 30 फ़ीसदी दाम कम हैं. इसका कारण निर्यातकों की कम रुचि और निर्यात भी कम होना है. हालात ऐसे हैं कि प्रति बीघा किसानों को 15 से 20 हजार रुपए का नुकसान हो रहा है.
यह नुकसान हर किस्म की धान की फसल में हो रहा है, 1000 से 1500 रुपए तक कम दाम मिल रहे हैं. बीते साल से भी दाम काफी कम हैं. कोटा की भामाशाह कृषि उपज मंडी में धान के व्यापारी ओमप्रकाश जैन "पालीवाल" का कहना है कि बीते साल भारत सरकार की ड्यूटी के चलते दाम कम था. इस साल ड्यूटी फ्री होने के बावजूद माल निर्यात नहीं हो रहा है. खाड़ी युद्ध और खासकर ईरान पर इजरायल के हमले की वजह से चावल का निर्यात नहीं हो रहा है. भारत का 50 लाख टन सेला चावल ईरान में जाता है. इसमें से 80 फ़ीसदी चावल हाड़ौती और उससे लगाते हुए मध्य प्रदेश के एरिया में ही उत्पादित होता है. एक्सपोर्टरों का करोड़ों रुपए का भुगतान भी ईरान में अटका हुआ है. इसके चलते एक्सपोर्टर माल भेजने में की स्थिति में भी नहीं हैं.
लाखों रुपए का हो रहा है नुकसान : एमपी के अशोक नगर जिले के गुरप्रीत सिंह ने अपने और अपने परिजनों की 120 बीघा जमीन पर धान का उत्पादन किया था. उनका कहना है कि बीते साल धान उत्पादन से जितना पैसा मिला था, इस बार 14 लाख कम मिला है. एमपी के ही गुना जिले के कुंजन मीणा का कहना है कि प्रति बीघा पर 18 से 20 हजार रुपए का नुकसान है. बीते साल 4400 रुपए क्विंटल का भाव मिला था. इस बार 2600 का भाव है. ऐसे में प्रति बीघा 1800 रुपए तक कम दाम मिल रहे हैं. यह नुकसान सभी किसानों को हर किस्म में हो रहा है.
कोटा मंडी में आवक भी कम, मूल्यांकन भी घटा : भामाशाह कृषि उपज मंडी में ही आवक की बात करें तो साल 2023 में जहां पर अप्रैल से लेकर दिसंबर तक 3.53 करोड़ क्विंटल की आवक थी. जबकि इस बार साल 2024 में यह आवक 2.67 करोड़ क्विंटल रही है. बीते साल 2023 में जहां पर चावल का मूल्यांकन 1,20,848 लाख रुपए हुआ था. इस बार 2024 के मूल्यांकन महज 78,892 लाख रुपए रहा है. इसमें करीब 42,000 लाख रुपए की कमी आई है. इसके चलते मंडी का रेवेन्यू भी धान में कम रहा है. इसी तरह से बूंदी और बारां की मंडी में भी रहा है. व्यापारियों का कहना है कि कोटा मंडी में अच्छे धाम मिलते हैं इसीलिए यहां पर मध्य प्रदेश के धान उत्पादक किसान माल बेचने आते हैं, लेकिन इस बार दाम सभी जगह कम थे. इसलिए किसानों ने भी ज्यादा रुचि कोटा में माल लाने में नहीं दिखाई है.
लंबे रूट से जाने के चलते बढ़ गया शिपमेंट का किराया : व्यापारी ओमप्रकाश जैन "पालीवाल" का कहना है कि हूती विद्रोहियों ने हमास के समर्थन में लाल सागर से गुजर रहे जहाजों पर हमले किए हैं. मिसाइल से किए गए हमले के चलते यहां से गुजरने वाले कई माल वाहक जहाज को नुकसान भी हुआ है. लाल सागर में हमले की घटनाएं बढ़ने की वजह से समुद्री मार्ग में भी बदलाव किया गया है. अब अधिकांश मालवाहक जहाज लंबे रास्ते को तय कर जा रहे हैं. यह सभी मालवाहक जहाज दक्षिण अफ्रीका के केप ऑफ गुड होप रूट से जा रहे हैं. इसके चलते ट्रांसपोर्टेशन की लागत भी ज्यादा पड़ रही है. क्योंकि शिपमेंट का किराया भी लंबे रूट होने की वजह से बढ़ गया है.
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शिपमेंट का नहीं हो रहा बीमा, नहीं मिल रही एलसी : व्यापारियों का यह भी कहना है कि एक्सपोर्टर भी ईरान में माल भेजने के इच्छुक नहीं हैं. ईरान माल भेजने के पहले शिपमेंट की लेटर ऑफ क्रेडिट (LC) नहीं मिल रही है. एलसी बैंक के जरिए किया गया अनुबंध है, यह भुगतान की गारंटी देने का दस्तावेज होता है. यहां तक की शिपमेंट का बीमा भी नहीं हो रहा है. इसके चलते भी एक्सपोर्टर माल भेजने का रिस्क नहीं ले रहे हैं. यह सब कुछ होने के चलते ही निर्यात कम है और दाम भी नहीं बढ़ रहे हैं.