भिवाड़ी (अलवर). जिले के भिवाड़ी से श्रमिकों का पलायन बदस्तूर जारी है. प्रतिदिन सैकड़ों की संख्या में श्रमिक अलग-अलग रास्तों से भिवाड़ी छोड़कर अपने घरों को लौट रहे हैं. लॉकडाउन का खौफ श्रमिक, मजदूर और रेहड़ी पटरी पर काम कर अपना घर चलाने वालों के दिमाग में ऐसा घर कर गया है कि वर्तमान में चाहे सरकारों की नई-नई घोषणाएं हों या लेबर तबके की मदद हो या फिर कोई अन्य सहयोग, कोई भी काम नहीं आ रही है. क्योंकि जमीनी सच्चाई कुछ और ही है.
कुछ श्रमिक प्राइवेट ट्रांसपोर्ट की बस या अन्य साधनों से रोजाना अपने घरों को लौट रहे हैं. श्रमिकों से हमने घर लौटने का कारण जाना तो सामने आया कि कुछ उद्योग तो बंद हैं. ऐसे में श्रमिकों को उनकी तनख्वाह नहीं मिल पा रही है तो खाएंगे क्या और रहेंगे कहां जैसे सवाल खड़े हो गए हैं. कुछ लोग सिर्फ और सिर्फ उद्योग धंधों या बाजारों की रौनक पर ही अपना पेट पालते थे. अब बेशक अनलॉक की प्रक्रिया शुरू हो गई है लेकिन श्रमिकों का पलायन नहीं रूक रहा है.
औद्योगिक इकाइयां लॉकडाउन में भी सुचारू रहीं लेकिन कुछ इकाइयां ऑक्सीजन की सप्लाई नहीं होने के चलते बन्द रहीं. ऐसे प्लांट जिनमें स्टील या स्टील से संबंधित काम होता था, वो ऑक्सीजन की सप्लाई नहीं होने के चलते बंद रहीं. इन उद्योगों में बड़ी संख्या में श्रमिक काम करते हैं.
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कुछ निजी बस संचालकों ने शहर में अलग-अलग स्टैंड बनाए हुए हैं. हर रोज टिकट बुकिंग कर लोग बिहार-उत्तर प्रदेश और दूसरे राज्यों को लौट रहे हैं. अब अनलॉक की प्रक्रिया के साथ-साथ उद्योगों में ऑक्सीजन की सप्लाई सुचारू होने लगी है तो स्टील समेत दूसरे उद्योगों को श्रमिकों की किल्लत का सामना भी करना पड़ेगा. बंद पड़े उद्योगों को चलाने में एक नई समस्या का सामना करना पड़ेगा. ऐसे में श्रमिकों से गुलजार रहने वाला शहर अब एक नई चुनौती झेलने को तैयार है.
हमने एक बस संचालक से बात की तो उन्होंने बताया कि हर रोज वो भिवाड़ी मोड़ से सवारियों को लेकर जाते हैं और उनके राज्यों तक छोड़ते हैं. जहां जाने वालों की संख्या ज्यादा है तो लौटने वालों की संख्या कम है. राहत की बात यह भी है कि कुछ श्रमिकों ने लौटने के कारण अलग-अलग बताए और कुछ ने लौटने का भी वादा किया.