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करणी माता के दर्शन से पूरी होती है मनोकामना, नवरात्रि पर उमड़ रहे श्रद्धालु...क्षेत्र में बाघों की मूवमेंट से पाबंदी भी - etv bharat rajasthan news

चैत्र नवरात्रि आज से शुरू हो चुका है. नवरात्रि पर अलवर के करणी माता मंदिर में मेला लगने के साथ ही दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ लग रही है. करणी माता मंदिर बाला किला क्षेत्र में जहां बाघिन और दो शावकों के मूवमेंट हैं. ऐसे में शाम साढ़े सात बजे के बाद दोनों ओर से आवाजाही पर प्रतिबंध लगा दिया गया है.

नवरात्रि में करणी माता के दर्शन
नवरात्रि में करणी माता के दर्शन
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Published : Mar 22, 2023, 11:56 AM IST

Updated : Mar 22, 2023, 12:04 PM IST

नवरात्रि में करणी माता के दर्शन

अलवर. अलवर का करणी माता मंदिर देश में अपनी खास पहचान रखता है. अरावली की वादियों में बाला किला के पास होने के कारण इसकी खूबसूरती सबको अपनी तरफ खींचती है. सालों पुराने इस मंदिर से लोगों की आस्था जुड़ी हुई है. कहा जाता है मां के दरबार से कोई खाली हाथ नहीं जाता है और वे सबकी मनोकामनाएं पूरी करती हैं. इसलिए देश भर से लोग माता के दर्शन के लिए आते हैं और नवरात्रि में तो यहां रेला लगा रहता है, लेकिन क्षेत्र में बाघिन के मूवमेंट के कारण यह मंदिर सुबह 5 से शाम 7: 30 बजे तक श्रद्धालुओं के खुल रहा है.

बुधवार से नवरात्रों की शुरुआत हुई है और इसके साथ ही करणी माता मेला भी शुरू हो चुका है. प्रशासन की तरफ से मेले में पीने के पानी, लाइट, सीसीटीवी कैमरे, प्रसाद सहित अन्य साफ-सफाई की व्यवस्था की गई है. पूजा अर्चना के बाद मेले की शुरुआत हुई है. नवरात्रि के पूरे 9 दिनों तक यह मेला चलेगा. 9 दिन तक माता के 9 रूपों की पूजा होगी. देवी के मंदिरों में धार्मिक अनुष्ठान होंगे.

पढ़ें.Karni Mata Fair in Alwar करणी माता मेला 26 सितंबर से, प्रशासन ने किए बड़े बदलाव

मनसा माता में भी उमड़ रहे श्रद्धालु
अलवर में करणी माता के अलावा सागर क्षेत्र में मनसा माता का मंदिर भी है. सुबह 5 बजे से शाम 7:30 बजे तक श्रद्धालु करणी माता मंदिर में माता के दर्शन कर सकेंगे. सुबह से ही मंदिर में भीड़ जुट रही है. वन विभाग ने रात के समय लोगों के आने जाने पर पूरी तरह से पाबंदी लगा दी है. दरअसल बाला किला बफर जोन में बाघिन एसटी19 और दो शावक की मूवमेंट रहती है. प्रतिदिन लोगों को उनकी साइटिंग होती है. इसलिए रात के समय लोगों की आवाजाही पर पूरी तरह से रोक लगा दी गई है. साथ ही क्षेत्र में पुलिसकर्मी और वन कर्मी भी तैनात किए गए हैं. बाघों की मूवमेंट को देखते हुए प्रशासन की तरफ से सावधानी बरती जा रही है. साथ ही लोगों को भी सावधानी बरतने की गाइडलाइन दी गई है.

हजारों लोगों को मिलता है रोजगार
मेले से करीब दस हजार लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप में रोजगार मिलता है. इसमें प्रसाद बेचने, खिलौने बेचने वाले, आइसक्रीम और श्रृंगार सामग्री के लिए स्टॉल लगाई जाती है. इसके साथ ही यहां फोटोग्राफर और वाहन पार्किंग स्टैंड की अलग व्यवस्था रहती है. मंदिर में करणी माता के दर्शन के लिए सुबह से शाम तक श्रद्धालुओं की कतार लगती है. इस दौरान दूर-दूर से श्रद्धालु माता के दर्शन के लिए आते हैं.

पढ़ें. अलवर की करणी माता मंदिर में नहीं लगेगा नवरात्र पर मेला, घरों में करनी होगी पूजा

खास है मंदिर का इतिहास
करणी माता मंदिर का इतिहास भी काफी रोचक है. मंदिर के पुजारी घनश्याम दास शर्मा बताते हैं कि पूर्व शासक बख्तावर सिंह अपनी पत्नी रूपकंवर के साथ बाला किला में रहते थे. एक दिन बख्तावर सिंह के पेट में अचानक असहनीय दर्द हुआ. नीम हकीमों के काफी इलाज के बाद भी जब पेट दर्द ठीक नहीं हुआ तो उनके दरबार के रक्षक बारैठ ने पूर्व शासक को मां करणी का ध्यान करने की सलाह दी.

रक्षक की सलाह मान बख्तावर सिंह ने मां करणी का ध्यान किया. तभी एक सफेद चील बाला किला पर आकर बैठी. बख्तावर सिंह ने चील की ओर देखा इसके बाद बख्तावर सिंह का पेट दर्द ठीक हो गया. इस पर राजा ने बाला किला परिसर में करणीमाता की स्थापना की. पूर्व महारानी रूपकंवर देशनोक में स्थित करणीमाता की उपासक थी. उनका कहना था कि किसी श्राप के चलते पूर्व शासक के पेट में दर्द हुआ था. तभी से बाला किला परिसर में देवी करणीमाता के मंदिर में पूजा अर्चना की जाती रही है. सन 1982 में मंदिर परिसर के आसपास सफाई और वहां तक पहुंचने के लिए सडक़ बनने के बाद लोगों की इस मंदिर के प्रति आस्था बढ़ी और फिर नवरात्र में वहां मेला भरने लगा.

नवरात्रि में करणी माता के दर्शन

अलवर. अलवर का करणी माता मंदिर देश में अपनी खास पहचान रखता है. अरावली की वादियों में बाला किला के पास होने के कारण इसकी खूबसूरती सबको अपनी तरफ खींचती है. सालों पुराने इस मंदिर से लोगों की आस्था जुड़ी हुई है. कहा जाता है मां के दरबार से कोई खाली हाथ नहीं जाता है और वे सबकी मनोकामनाएं पूरी करती हैं. इसलिए देश भर से लोग माता के दर्शन के लिए आते हैं और नवरात्रि में तो यहां रेला लगा रहता है, लेकिन क्षेत्र में बाघिन के मूवमेंट के कारण यह मंदिर सुबह 5 से शाम 7: 30 बजे तक श्रद्धालुओं के खुल रहा है.

बुधवार से नवरात्रों की शुरुआत हुई है और इसके साथ ही करणी माता मेला भी शुरू हो चुका है. प्रशासन की तरफ से मेले में पीने के पानी, लाइट, सीसीटीवी कैमरे, प्रसाद सहित अन्य साफ-सफाई की व्यवस्था की गई है. पूजा अर्चना के बाद मेले की शुरुआत हुई है. नवरात्रि के पूरे 9 दिनों तक यह मेला चलेगा. 9 दिन तक माता के 9 रूपों की पूजा होगी. देवी के मंदिरों में धार्मिक अनुष्ठान होंगे.

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मनसा माता में भी उमड़ रहे श्रद्धालु
अलवर में करणी माता के अलावा सागर क्षेत्र में मनसा माता का मंदिर भी है. सुबह 5 बजे से शाम 7:30 बजे तक श्रद्धालु करणी माता मंदिर में माता के दर्शन कर सकेंगे. सुबह से ही मंदिर में भीड़ जुट रही है. वन विभाग ने रात के समय लोगों के आने जाने पर पूरी तरह से पाबंदी लगा दी है. दरअसल बाला किला बफर जोन में बाघिन एसटी19 और दो शावक की मूवमेंट रहती है. प्रतिदिन लोगों को उनकी साइटिंग होती है. इसलिए रात के समय लोगों की आवाजाही पर पूरी तरह से रोक लगा दी गई है. साथ ही क्षेत्र में पुलिसकर्मी और वन कर्मी भी तैनात किए गए हैं. बाघों की मूवमेंट को देखते हुए प्रशासन की तरफ से सावधानी बरती जा रही है. साथ ही लोगों को भी सावधानी बरतने की गाइडलाइन दी गई है.

हजारों लोगों को मिलता है रोजगार
मेले से करीब दस हजार लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप में रोजगार मिलता है. इसमें प्रसाद बेचने, खिलौने बेचने वाले, आइसक्रीम और श्रृंगार सामग्री के लिए स्टॉल लगाई जाती है. इसके साथ ही यहां फोटोग्राफर और वाहन पार्किंग स्टैंड की अलग व्यवस्था रहती है. मंदिर में करणी माता के दर्शन के लिए सुबह से शाम तक श्रद्धालुओं की कतार लगती है. इस दौरान दूर-दूर से श्रद्धालु माता के दर्शन के लिए आते हैं.

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खास है मंदिर का इतिहास
करणी माता मंदिर का इतिहास भी काफी रोचक है. मंदिर के पुजारी घनश्याम दास शर्मा बताते हैं कि पूर्व शासक बख्तावर सिंह अपनी पत्नी रूपकंवर के साथ बाला किला में रहते थे. एक दिन बख्तावर सिंह के पेट में अचानक असहनीय दर्द हुआ. नीम हकीमों के काफी इलाज के बाद भी जब पेट दर्द ठीक नहीं हुआ तो उनके दरबार के रक्षक बारैठ ने पूर्व शासक को मां करणी का ध्यान करने की सलाह दी.

रक्षक की सलाह मान बख्तावर सिंह ने मां करणी का ध्यान किया. तभी एक सफेद चील बाला किला पर आकर बैठी. बख्तावर सिंह ने चील की ओर देखा इसके बाद बख्तावर सिंह का पेट दर्द ठीक हो गया. इस पर राजा ने बाला किला परिसर में करणीमाता की स्थापना की. पूर्व महारानी रूपकंवर देशनोक में स्थित करणीमाता की उपासक थी. उनका कहना था कि किसी श्राप के चलते पूर्व शासक के पेट में दर्द हुआ था. तभी से बाला किला परिसर में देवी करणीमाता के मंदिर में पूजा अर्चना की जाती रही है. सन 1982 में मंदिर परिसर के आसपास सफाई और वहां तक पहुंचने के लिए सडक़ बनने के बाद लोगों की इस मंदिर के प्रति आस्था बढ़ी और फिर नवरात्र में वहां मेला भरने लगा.

Last Updated : Mar 22, 2023, 12:04 PM IST
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