अजमेर. शीतला सप्तमी का त्यौहार हिंदू कैलेंडर के अनुसार चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाया जाता है. वहीं कुछ जगहों पर यह व्रत अष्टमी तिथि पर मनाया जाता है. होली के बाद चैत्र मास की अष्टमी से लेकर बैसाख, ज्येष्ठ, आषाढ़ कृष्ण पक्ष की अष्टमी तक का समय माता शीतला की पूजा-अर्चना के लिए होता है.शास्त्रों के अनुसार माना जाता है कि इस दिन जो महिलाएं व्रत रखती है उनके घर में कभी भी कोई दुख नहीं आता इसके साथ ही इस दिन व्रत करने से सुख समृद्धि और संतान को किसी भी तरह की कोई बीमारी नहीं होती.
इस व्रत को लेकर मान्यता है कि इस दिन व्रत करने से घर परिवार में चेचक रोग, पित्त ज्वर, दुर्गधयुक्त फोड़े, समस्याएं दूर हो जाती है.लिहाजा रोगों से मुक्ति पाने और भविष्य में ऐसे रोगों से अपने परिवार के लोगों को बचाने के लिए पूजा पाठ किया जाता है. मां शीतला को मां भगवती का रूप भी माना जाता है. सप्तमी के दिन महिलाएं सुबह ठंडे जल से स्नान करके शीतला माता का पूजन करती है और एक दिन पहले रात को बनाया गया बासी भोजन ( दही राबड़ी ,चावल ,हलवा, पूड़ी और गुलगुले ) का भोग माता को लगाया जाता है.
ठंडा भोजन खाने के पीछे एक धार्मिक मान्यता यह भी है कि माता शीतला को शीतल और ठंडा व्यंजन और जल पसंद था,इसलिए माता को ठंडा ( बासी ) व्यंजन का ही भोग लगाया जाता है. परिवार के सभी सदस्य भी ठंडे पानी से स्नान करते हैं और रात में बनाया हुआ बासी भोजन ही करते हैं. इससे माता शीतला प्रसन्न होती है.रात 12 बजे के बाद ही महिलाएं माता का पूजन करना शुरू कर देती है.