अजमेर. खराब जीवन शैली और खानपान में लापरवाही से अमाशय और अन्ननलिका में छाले होने की समस्या आम हो चुकी है. मेडिकल भाषा में इसे अल्सर कहते हैं. अल्सर होने के कई कारण हो सकते हैं, लेकिन आयुर्वेद की मानें तो वात, पित्त और कफ का संतुलन बिगड़ने एवं पित्त की मात्रा अधिक बढ़ने से अम्ल की शिकायत होती है.
अजमेर संभाग के सबसे बड़े जेएलएन अस्पताल में आयुर्वेद चिकित्सा विभाग में चिकित्सा अधिकारी डॉ. बीएल मिश्रा बताते हैं कि वर्तमान जीवन शैली और खानपान में काफी बदलाव आ चुका है. अनियमित जीवन शैली और खाने-पीने में लापरवाही बरतने से स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है. शरीर में अम्ल की मात्रा बढ़ने लगती है. इस कारण कई तरह की बीमारियां लोगों को अपनी जद में ले लेती हैं. इनमें से एक रोग अल्सर भी है.
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अल्सर ऐसी बीमारी है, जिसका समय पर इलाज नहीं किया गया तो इसके दूरगामी परिणाम काफी घातक होते हैं. डॉ. बीएल मिश्रा बताते हैं कि 40 वर्ष की उम्र से ज्यादा लोगों को अल्सर की समस्या होती है, लेकिन अब 15 वर्ष की आयु से ऊपर के लोगों को अल्सर हो रहा है. उन्होंने बताया कि लंबे समय तक अल्सर रहने और इसका इलाज नहीं होने पर घातक बीमारियां भी हो सकती हैं. शरीर में ज्यादा अम्ल बढ़ने से ब्रेन ट्यूमर, तान आना, कैंसर, अनिद्रा, तेज सिर दर्द और माइग्रेन भी हो सकता है.
यह होते हैं अल्सर के लक्षण : डॉ. बीएल मिश्रा बताते हैं कि रोगी के अल्सर होने पर सिर दर्द, सीने में जलन, खट्टी डकार, उल्टी जैसा मन होना, शारीरिक कमजोरी आदि लक्षण होते हैं. उन्होंने बताया कि इनमें से रोगी को कोई भी लक्षण हो तो तुरंत चिकित्सक से परामर्श लेना चाहिए. उन्होंने बताया कि आयुर्वेद में नियमित दवाओं के सेवन करने और बताए गए परहेज का अनुसरण करने पर रोगी को 2 से 3 माह में अल्सर से लाभ मिलता है.
इसलिए होता है अल्सर : डॉ. बीएल मिश्रा बताते हैं कि तेवर और मसालेदार भोजन करने से, ज्यादा भोजन खाने, भोजन पचने से पहले भोजन करने, विरोधी भोजन करने, फास्ट फूड ज्यादा खाने, मसालेदार मीट खाने एवं भूखा रहने से भी अल्सर की शिकायत होती है. उन्होंने बताया कि वर्तमान में लोग ज्यादा तनाव के शिकार हो रहे हैं. ऐसे में तनावग्रस्त (हाइपरटेंशन) व्यक्ति के आमाशय में अम्ल की मात्रा बढ़ने से उसे अल्सर की शिकायत हो जाती है.
डॉ. मिश्रा बताते हैं कि आजकल लॉक स्क्रीन पर ज्यादा समय देने लगे हैं. इस कारण वह अपने खान-पान का ध्यान नहीं रख पाते हैं. एक ही जगह पर ज्यादा देर तक बैठे रहने की वजह से भी अल्सर की शिकायत होती है. उन्होंने बताया कि रात के भोजन के बाद सीधे बिस्तर पर चले जाना भी काफी नुकसान दायक है. इस कारण भी अग्नाशय में अम्ल बढ़ने से अल्सर होता है.
अल्सर की शिकायत होने पर यह खाएं : डॉ. मिश्रा बताते हैं कि अल्सर से बचने के लिए लोग बेड टी से परहेज करें. सुबह हल्का, लेकिन पौष्टिक आहार लें. हल्का व्यायाम या फिर मॉर्निंग वॉक को दिनचर्या का हिस्सा बनाएं. पानी बार-बार पीने की आदत डालें. रसदार फलों का उपयोग करें. दही, छाछ, दूध की लस्सी, जौ की राबड़ी, आगरा का पेठा, पेमली बोर (एप्पल बेर), पुदीना और हरे धनिया की चटनी, इलायची, किशमिश, खजूर, मुनक्का, खसखस, तरबूज काफी लाभदायक हैं.
अल्सर होने पर यह ना खाएं : आयुर्वेद वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारी डॉ. बीएल मिश्रा ने बताया कि अल्सर के रोगी को तेज मसालेदार भोजन, मांसाहार, फास्ट फूड का सेवन नहीं करना चाहिए. उन्होंने बताया कि रोगी को समय पर भोजन करना चाहिए ज्यादा भूखा रहना भी रोगी के लिए ठीक नहीं है. उन्होंने कहा कि डिब्बाबंद भोजन और बाहर के भोजन से रोगी को बचना चाहिए.
उन्होंने बताया कि मार्च-अप्रैल में गर्मी शुरू होने से पहले शीतला अष्टमी आती है. सनातन धर्म में शीतला अष्टमी का काफी धार्मिक महत्व है. शीतला अष्टमी पर ठंडा और शीतल भोजन किया जाता है. इस भोजन को एक दिन पहले बनाया जाता है. इसका उद्देश्य ठंडा और बासी खाना नहीं, बल्कि आने वाली गर्मियों में शरीर एवं वातावरण में गर्मी की तीव्रता बढ़ने से पित्त संबंधी बीमारियां होती हैं. उनसे बचने के लिए यह सांकेतिक उपचार है. लोग गर्मियों में शरीर को शीतल रखने वाला भोजन लें. उन्होंने कहा कि मौसम के अनुसार संतुलित आहार लेने पर अम्ल पित्त होने से बचा जा सकता है.