पुष्कर (अजमेर). तीर्थ गुरु पुष्कर धार्मिक पर्यटन नगरी के साथ ही तपोभूमि भी है. ऋषियों ने ही नहीं बल्कि देवी-देवताओं ने भी पुष्कर आरण्य क्षेत्र की पावन धरा पर तपस्या और साधना की है. मान्यता है कि साधक दुनिया में कहीं भी साधना कर लें, लेकिन उसकी साधना पुष्कर में आकर ही पूरी होती है. यही वजह है कि ब्रह्मा विष्णु महेश प्रमुख देवताओं ने भी हजारों सालों तक पुष्कर में तप किया है. पुष्कर के आरण्य क्षेत्र में देवी देवताओं के कई स्थान सतयुग से जुड़े हुए है.
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वहीं, बड़े ऋषि मुनियों के आश्रम आज भी मौजूद है. इन पवित्र स्थानों में भगवान शंकर के चार दिशाओं में पुष्कर आरण्य क्षेत्र में प्रमुख स्थान है जो शिव भक्तों के लिए बड़े आस्था का केंद्र है. इनमें पुष्कर से 9 किलोमीटर दूर नांद गांव के समीप ककड़ेश्वर और मकड़ेश्वर महादेव के शिव लिंग है. मान्यता है कि ये दोनों शिव लिंग स्वयं भू है. यानी इन्हें किसी ने स्थापित नहीं किया. पौराणिक धर्म शास्त्रों के मुताबिक जगत पिता ब्रह्मा ने जब सृष्ठि को रचने से पहले यज्ञ किया था. उस यज्ञ की रक्षा के लिए महादेव का आह्वान किया गया था. तब पुष्कर के आरण्य क्षेत्र में चार शिव लिंग स्वतः स्थापित हुए थे.
शास्त्रों के मुताबिक महादेव ने यहां हजारों साल ध्यान मुद्रा में बिताए थे. ये स्थान प्राचीन काल में नंदा, सरस्वती और गुप्त गंगा नदियों का संगम था. इसके बाद मकड़ेश्वर में ऋषि मकंण ने यहां अपना आश्रम बना लिया. मकड़ेश्वर मंदिर से आधा किलोमीटर की दूरी पर ही ककड़ेश्वर महादेव का मंदिर है. ये शिवलिंग भी स्वयं भू है. यहां ऋषि कण्व ने अपना आश्रम बनाया. इन दोनों शिव लिंग के आकार से ही इनका नाम मकड़ेश्वर और ककड़ेश्वर पड़ा.
पुजारी की माने तो पुष्कर आरण्य क्षेत्र में ऋषि विश्वामित्र का आश्रम है. जहां मेनका ने विश्वामित्र की तपस्या भंग की थी. उनसे उत्पन्न संतान शकुंतला ककड़ेश्वर मंदिर जो कभी कण्व ऋषि का आश्रम था वह यहां पली बड़ी हुई. राजा दुष्यंत और शंकुन्तला से उत्पन्न संतान भरत भी यहां पले बड़े. भरत यही सिंह के साथ खेला करते थे. चार प्रमुख शिवलिंग में ककड़ेश्वर और मकड़ेश्वर को एक ही माना जाता है. मान्यता है कि कार्तिक त्रियोदशी के दिन भगवान भोलेनाथ यहां स्वयं विराजते है.
जगतपिता ब्रह्मा की नगरी ही नहीं बल्कि ब्रह्मा विष्णु महेश तीनों का स्थान है. सतयुग से मौजूद यह पवित्र स्थान आज भी लोगों की श्रद्धा के बड़े केंद्र हैं, लेकिन शासन और प्रशासन की घोर अनदेखी के चलते पवित्र स्थानों तो उनकी मान्यता के अनुसार विकसित नहीं किया गया है. बल्कि इन स्थानों तक पहुंचने के लिए सड़क भी नहीं है. वहीं, आमजन को इन स्थानों के महत्व के बारे में बताए जाने को लेकर भी कभी प्रशासन ने गंभीरता नहीं दिखाई है. यही वजह है कि आज भी कानाबाय की तरह ककड़ेश्वर और मकड़ेश्वर मंदिर के बारे में कम ही लोग जानते हैं.