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Exclusive : दो करोड़ की घूस प्रकरण में निलंबित SOG की ASP दिव्या मित्तल का खुलासा, मेरे खिलाफ साजिश है - राजस्थान पुलिस निलंबित एएसपी दिव्या मित्तल के आरोप

दो करोड रुपए की घूस मांगने के आरोप में एसओजी की निलंबित एडिशनल एसपी दिव्या मित्तल ने कैमरे के सामने पहली बार अपना पक्ष रखा है. दिव्या का आरोप है कि इस प्रकरण में 52 बार परिवादी ने उन्हें प्रलोभन दिया था, मेरी ओर से 2 करोड़ छोड़ एक पैसे की डिमांड तक नहीं की गई.

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Published : Jun 29, 2023, 7:40 AM IST

निलंबित एडिशनल एसपी दिव्या मित्तल ने कैमरे के सामने पहली बार अपना पक्ष रखा

अजमेर. दो करोड रुपए की घूस मांगने के मामले में एसओजी की निलंबित एडिशनल एसपी दिव्या मित्तल ने कैमरे के सामने पहली बार अपना पक्ष रखा है. मित्तल ने ईटीवी भारत से बातचीत कर अपना पक्ष जाहिर किया. दिव्या का आरोप है कि प्रकरण में 52 बार परिवादी ने उन्हें प्रलोभन दिया था, मेरी ओर से 2 करोड़ छोड़ एक पैसे की डिमांड तक नहीं की गई. मित्तल का यह भी आरोप है कि कुछ जाति विशेष के लोग, पुलिस अधिकारियों और ड्रग माफियाओ ने मिलकर साजिशन मुझे फंसाया है.

सुमित नहीं है बर्खास्त सिपाही
सुमित नहीं है बर्खास्त सिपाही

बातचीत में एसओजी की निलंबित एडिशनल एसपी दिव्या मित्तल ने कहा कि मेरे खिलाफ 2 करोड रुपए रिश्वत की डिमांड करने का आरोप लगाते हुए एसीबी ने मुझे गिरफ्तार किया था. दिव्या मित्तल ने बताया कि एसीबी के जांच अधिकारी मांगीलाल ने मेरी रिकॉर्डिंग की पहली ट्रांस स्क्रिप्ट बनाई. फिर उसी ट्रांसक्रिप्ट के आधार पर ही मुझे गिरफ्तार किया गया. उसके बाद जांच अधिकारी मांगीलाल ने एक और ट्रांसक्रिप्ट बनाई जो मुझे चार्जशीट के साथ मिली है. मित्तल का आरोप है कि पहली और दूसरी ट्रांसक्रिप्ट में एसीबी के जांच अधिकारी मांगीलाल ने अपने हिसाब से फेरबदल किया है. दिव्या मित्तल का कहना है कि एसीबी के जांच अधिकारी मांगीलाल ने शब्दों का सही आंकलन नहीं हो पाने का हवाला दिया था और दोबारा से ट्रांसक्रिप्ट बनाई. यानी एक ही रिकॉर्डिंग की दोबारा ट्रांसक्रिप्ट बनाई गई. जो जांच अधिकारी मांगीलाल की कार्यशैली को संदिग्ध बनाती है.

सुमित नहीं है बर्खास्त सिपाही
सुमित नहीं है बर्खास्त सिपाही

दरअसल मेरे लिए उसी ट्रांसक्रिप्ट को सबूत के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है. मित्तल ने अपनी सफाई में कहा कि 2 करोड रुपए की डिमांड का मुझ पर आरोप लगा और इसे प्रचारित करवाया गया. मसलन मैंने डिमांड की है या ऊपर अधिकारियों को देना पड़ता है. इसके अलावा एक घंटे में 25 लाख रुपए की व्यवस्था कर ले या पहले जो तय हुआ था वही देना पड़ेगा. यह प्रचारित आरोप मेरी ट्रांसक्रिप्ट में कहीं भी नहीं है. ये शब्द परिवादी के थे. परिवादी ने मुझे 52 बार ऑफर किया. मित्तल का दावा है कि रिकॉर्डिंग में परिवादी खुद बोल रहा है कि मैडम आप एक बार अमाउंट तो बोल दो. मैडम सेवा का मौका तो दीजिए. 52 बार परिवादी ने मुझे प्रलोभन दिया लेकिन एक बार भी मैंने परिवादी को कुछ नहीं कहा. मैंने परिवादी को केवल इतना कहा था कि अनुसंधान में सहयोग करें और उनसे जो भी दस्तावेज मांगे गए हैं वह दस्तावेज नोटिस के जरिए मांगे गए हैं और अपने पिता के बयान दर्ज करवाएं.

पढ़ें Divya Mittal NDPS Case : निलंबित एएसपी को कोर्ट से राहत, जमानत पर रिहा करने के दिए आदेश

एसीबी का परिवादी पूर्व से एनडीपीएस प्रकरण में लिप्त : ईटीवी भारत से बातचीत में एएसपी दिव्या मित्तल ने कहा कि एसीबी का परिवादी खुद एनडीपीएस प्रकरण में लिप्त है. उत्तर प्रदेश सरकार ने उसके खिलाफ वहां नकली सिरप के प्रकरण की जांच करवाई है. एसीबी में उसके खिलाफ काफी केस लंबित है. यूएसए सरकार ने उसके खिलाफ वार्निंग जारी कर रखी है. मित्तल का आरोप है कि अपराधी प्रवृत्ति के व्यक्ति को कुछ षड्यंत्रकारी लोग एक साथ मिलकर साजिशन बचा रहे हैं. यहां तक कि एसीबी के अधिकारी भी उस परिवादी को बचा रहे हैं. उनका उद्देश्य केवल यही था कि कैसे भी करके मैं इन दवाओं के प्रकरण से दूर हो जाऊं. हरिद्वार से जेपी ड्रग्स फर्म का मालिक विकास अग्रवाल परिवादी है.

सुशील करनानी नशीली दवाओं का बड़ा माफिया : बातचीत में एएसपी दिव्या मित्तल का आरोप है कि नशीली दवाओं के प्रकरण में सुशील करनानी मास्टरमाइंड है. कई राज्यों में सुशील करनानी का अवैध और नशीली दवाओं का कारोबार है. राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, असम, नागालैंड, गाजियाबाद, दिल्ली इनके गढ़ हैं. ये सुशील करनानी नशीली दवाओं के मामले में मास्टरमाइंड है. सुशील करनानी पहले से ही नशीली दवाओं के प्रकरण में सजायाफ्ता है. उसके पक्ष में ड्रग लाइसेंस जारी नहीं हो सकता. इसलिए उसने डमी के तौर पर लोगों के नाम से अवैध और नशीली दवाओं का कारोबार करता है.

पढ़ें अब जयपुर में हो सकेगी वॉइस सैंपल की जांच, पहला परीक्षण घूस की आरोपी दिव्या मित्तल के ऑडियो का हुआ

झुंझुनू जिले के चिड़ावा क्षेत्र में बाबूलाल सैनी और सुनील सैनी के नाम से अपना अवैध कारोबार कर रहा था. सुशील करनानी की जयपुर में मॉन्टेक्स फार्मास्यूटिकल के नाम से फर्म थी. सुशील करनानी 3 साल की जेल काट कर आया था. इसलिए उसे लाइसेंस नहीं मिल सकता था. बाबूलाल सैनी और सुनील सैनी के नाम से सुशील करनानी ने से फर्म बनाई. मित्तल ने दावा किया कि उसके दस्तावेज भी मेरे पास हैं जिससे प्रमाणित होता है कि वह फर्म सुशील करनानी की है. इस फर्म का ऑफिस गुड़गांव में था. जहां से अवैध और नशीली दवाइयों की सप्लाई अन्य राज्यों में की जाती थी. मैंने बाबूलाल सैनी और सुनील सैनी की प्रकरण में लिप्तता की जांच की तो मेरी रिपोर्ट के आधार पर ही गुड़गांव एडीसी ने इनका गोदाम सीज किया था. मित्तल का आरोप है कि गोदाम खुलवाने के लिए करनानी के कुछ लोगों ने मुझे प्रलोभन दिया था कि मनचाही पोस्टिंग करवा देंगे, लेकिन मैंने मना कर दिया. इस बात से भी वो क्षुब्ध थे कि मैंने उनका पूरा व्यापार बंद करवा दिया.

व्याख्याता रहते खरीदे थे प्लॉट : बातचीत में एसओजी की निलंबित एएसपी दिव्या मित्तल ने बताया कि पुलिस सेवा में आने से पहले वह व्याख्याता थी. मित्तल ने बताया कि लेक्चररशिप के दौरान हुई आय से उस वक्त भूखण्ड खरीदे थे. उस आय और संपत्ति का जिक्र एसीबी ने फर्द में नहीं किया. दिव्या का आरोप है कि उदयपुर में उनका फार्म हाउस है. जिस पर एक करोड़ का लोन है जिसकी किश्तें सैलरी स्लिप से जाती है. इस तथ्य का जिक्र भी एसीबी ने फर्द में नहीं किया. यहां तक कि न्यायिक अभिरक्षा में रहने के बावजूद मेरे फार्म हाउस पर बुलडोजर चलाया गया. इसके लिए मुझे नोटिस तक नहीं दिया गया. दिव्या मित्तल ने दावा किया कि आज तक एसीबी का एक भी प्रकरण नहीं है जिसमें रंगे हाथों गिरफ्तार हुए हैं. लेकिन उनकी संपत्तियों को बुलडोज कर दिया गया. एसीबी ने मेरा पक्ष जाने की कोशिश ही नहीं की. मित्तल का आरोप है कि इससे स्पष्ट है कि एसीबी की कार्रवाई भी मेरे खिलाफ षड्यंत्र का हिस्सा है.

पढ़ें निलंबित एएसपी दिव्या मित्तल पर आय से अधिक संपत्ति का केस, पैतृक घर को किया सील

सुमित नहीं है बर्खास्त सिपाही : बातचीत में दिव्या मित्तल ने बताया कि उनके साथ प्रकरण में फरार आरोपी सुमित को पुलिस का बर्खास्त सिपाही बताया जा रहा है. जबकि सुमित ने पारिवारिक कारणों से पुलिस की नौकरी से त्यागपत्र दिया था. मित्तल ने सुमित के त्यागपत्र की एक कॉपी ईटीवी भारत को भी दी है. मित्तल का आरोप है कि बर्खास्त सिपाही, ड्रग माफिया, शराब माफिया बताकर सुमित को झूठा प्रसारित किया जा रहा है. यदि वह ऐसी गतिविधियों में पहले लिप्त था फिर पुलिस ने कार्रवाई क्यों नहीं की. मित्तल ने बताया कि बिजनेस पार्टनर के तौर पर मैंने अपने फार्महाउस की पावर ऑफ अटॉर्नी सुमित के नाम कर रखी है.

आय से अधिक संपत्ति का आंकलन जांच अधिकारी ने खुद किया : दिव्या मित्तल के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति का प्रकरण भी दर्ज है. इस पर दिव्या ने कहा कि एसीबी के जांच अधिकारी ने एफआईआर में संपत्ति का ब्यौरा दिया है. उसमें संपत्ति का आंकलन खुद जांच अधिकारी ने किया है. मित्तल का आरोप है कि जांच अधिकारी ने मेरे लिए एक लाइन लिख दी कि दिव्या मित्तल की ओर से कोई लेखा-जोखा नहीं दिया गया. एसीबी की ओर से मुझे आज तक कोई नोटिस ही नहीं मिला है. जिसके आधार पर मैं एसीबी को बता सकूं कि मेरी आय का स्त्रोत क्या है. उन्होंने बताया कि एसीबी ने दो बार मेरे घर, मेरे पुश्तैनी घर और मेरे भाई के घर की तलाशी ली. उन्होंने कहा कि एसीबी अधिकारियों को आशंका थी कि मेरे पास साजिश कर्त्ताओं जो एक जाति विशेष से है. उनके अश्लील कारनामों की क्लिप मेरे पास पैन ड्राइव या सीडी के रूप में तो नहीं है.

पढ़ें एनडीपीएस एक्ट मामले में जेल से जमानत पर रिहा हुई दिव्या मित्तल

मुझसे पहले थे तीन जांच अधिकारी उन पर कार्रवाई क्यों नही : दिव्या मित्तल का बताया कि है कि अजमेर में 25 करोड़ की नशीली दवाइयों के 3 प्रकरण दर्ज हुए थे. इनमें एक प्रकरण अलवर गेट और 2 प्रकरण रामगंज थाने में दर्ज किए गए. मुझसे पहले इन प्रकरणों में तीन जांच अधिकारी बदले जा चुके हैं. इनमें सीआई दिनेश कुमावत, भूराराम खिलेरी और तत्कालीन सीओ मुकेश सोनी शामिल हैं. इन प्रकरणों में नशीली दवाओं के तीन ट्रक पकड़े गए थे. इनमें नशीली दवाओं के कैप्सूल, इंजेक्शन और टेबलेट थी. मुख्य आरोपी श्याम सुंदर मूंदड़ा को बचाने के लिए चौकीदार कालू राम जाट और चाय वाले को फंसाया गया. इस आधार पर अभियुक्त श्याम सुंदर मूंदड़ा ने जयपुर हाई कोर्ट में बेल लगाई.

जांच मेरे पास आने के बाद आरोपी श्यामसुंदर मूंदड़ा की बेल खारिज हुई. मेरी ओर से प्रकरण में जांच की गई. प्रकरण में मेरे उच्च अधिकारियों को मैंने समय-समय पर एक्चुअल रिपोर्ट के साथ जानकारी दी है. मैंने प्रकरण में उच्च अधिकारियों से दिशा निर्देश प्राप्त करने के लिए फाइल भी भेजी जो 15 दिन वहां रही जिसकी स्क्रुटनी भी हुई. मेरी जांच से उच्च अधिकारी सहमत नहीं थे तो वह मुझे दिशा निर्देश या कोई भी सुपरवाइजरी देते तो मैं उनके निर्देश के अनुसार काम करती. मेरे समक्ष कोई नया तथ्य आने पर अधिकारी से मार्गदर्शन मांगा गया यह अपराध की श्रेणी में नहीं आता है. ऐसा करके मैंने कोई अपराध किया है. मित्तल ने कहा कि प्रकरण में मेरे से पहले जांच अधिकारियों की संलिप्तता सामने आने पर हाईकोर्ट भी संज्ञान ले चुका है. उन जांच अधिकारियों की मैंने खुद इंक्वायरी रिपोर्ट बनाकर सबमिट की थी. दिव्या मित्तल ने कहा कि उन जांच अधिकारियों के विरुद्ध भी कार्रवाई होनी चाहिए.

निलंबित एडिशनल एसपी दिव्या मित्तल ने कैमरे के सामने पहली बार अपना पक्ष रखा

अजमेर. दो करोड रुपए की घूस मांगने के मामले में एसओजी की निलंबित एडिशनल एसपी दिव्या मित्तल ने कैमरे के सामने पहली बार अपना पक्ष रखा है. मित्तल ने ईटीवी भारत से बातचीत कर अपना पक्ष जाहिर किया. दिव्या का आरोप है कि प्रकरण में 52 बार परिवादी ने उन्हें प्रलोभन दिया था, मेरी ओर से 2 करोड़ छोड़ एक पैसे की डिमांड तक नहीं की गई. मित्तल का यह भी आरोप है कि कुछ जाति विशेष के लोग, पुलिस अधिकारियों और ड्रग माफियाओ ने मिलकर साजिशन मुझे फंसाया है.

सुमित नहीं है बर्खास्त सिपाही
सुमित नहीं है बर्खास्त सिपाही

बातचीत में एसओजी की निलंबित एडिशनल एसपी दिव्या मित्तल ने कहा कि मेरे खिलाफ 2 करोड रुपए रिश्वत की डिमांड करने का आरोप लगाते हुए एसीबी ने मुझे गिरफ्तार किया था. दिव्या मित्तल ने बताया कि एसीबी के जांच अधिकारी मांगीलाल ने मेरी रिकॉर्डिंग की पहली ट्रांस स्क्रिप्ट बनाई. फिर उसी ट्रांसक्रिप्ट के आधार पर ही मुझे गिरफ्तार किया गया. उसके बाद जांच अधिकारी मांगीलाल ने एक और ट्रांसक्रिप्ट बनाई जो मुझे चार्जशीट के साथ मिली है. मित्तल का आरोप है कि पहली और दूसरी ट्रांसक्रिप्ट में एसीबी के जांच अधिकारी मांगीलाल ने अपने हिसाब से फेरबदल किया है. दिव्या मित्तल का कहना है कि एसीबी के जांच अधिकारी मांगीलाल ने शब्दों का सही आंकलन नहीं हो पाने का हवाला दिया था और दोबारा से ट्रांसक्रिप्ट बनाई. यानी एक ही रिकॉर्डिंग की दोबारा ट्रांसक्रिप्ट बनाई गई. जो जांच अधिकारी मांगीलाल की कार्यशैली को संदिग्ध बनाती है.

सुमित नहीं है बर्खास्त सिपाही
सुमित नहीं है बर्खास्त सिपाही

दरअसल मेरे लिए उसी ट्रांसक्रिप्ट को सबूत के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है. मित्तल ने अपनी सफाई में कहा कि 2 करोड रुपए की डिमांड का मुझ पर आरोप लगा और इसे प्रचारित करवाया गया. मसलन मैंने डिमांड की है या ऊपर अधिकारियों को देना पड़ता है. इसके अलावा एक घंटे में 25 लाख रुपए की व्यवस्था कर ले या पहले जो तय हुआ था वही देना पड़ेगा. यह प्रचारित आरोप मेरी ट्रांसक्रिप्ट में कहीं भी नहीं है. ये शब्द परिवादी के थे. परिवादी ने मुझे 52 बार ऑफर किया. मित्तल का दावा है कि रिकॉर्डिंग में परिवादी खुद बोल रहा है कि मैडम आप एक बार अमाउंट तो बोल दो. मैडम सेवा का मौका तो दीजिए. 52 बार परिवादी ने मुझे प्रलोभन दिया लेकिन एक बार भी मैंने परिवादी को कुछ नहीं कहा. मैंने परिवादी को केवल इतना कहा था कि अनुसंधान में सहयोग करें और उनसे जो भी दस्तावेज मांगे गए हैं वह दस्तावेज नोटिस के जरिए मांगे गए हैं और अपने पिता के बयान दर्ज करवाएं.

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एसीबी का परिवादी पूर्व से एनडीपीएस प्रकरण में लिप्त : ईटीवी भारत से बातचीत में एएसपी दिव्या मित्तल ने कहा कि एसीबी का परिवादी खुद एनडीपीएस प्रकरण में लिप्त है. उत्तर प्रदेश सरकार ने उसके खिलाफ वहां नकली सिरप के प्रकरण की जांच करवाई है. एसीबी में उसके खिलाफ काफी केस लंबित है. यूएसए सरकार ने उसके खिलाफ वार्निंग जारी कर रखी है. मित्तल का आरोप है कि अपराधी प्रवृत्ति के व्यक्ति को कुछ षड्यंत्रकारी लोग एक साथ मिलकर साजिशन बचा रहे हैं. यहां तक कि एसीबी के अधिकारी भी उस परिवादी को बचा रहे हैं. उनका उद्देश्य केवल यही था कि कैसे भी करके मैं इन दवाओं के प्रकरण से दूर हो जाऊं. हरिद्वार से जेपी ड्रग्स फर्म का मालिक विकास अग्रवाल परिवादी है.

सुशील करनानी नशीली दवाओं का बड़ा माफिया : बातचीत में एएसपी दिव्या मित्तल का आरोप है कि नशीली दवाओं के प्रकरण में सुशील करनानी मास्टरमाइंड है. कई राज्यों में सुशील करनानी का अवैध और नशीली दवाओं का कारोबार है. राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, असम, नागालैंड, गाजियाबाद, दिल्ली इनके गढ़ हैं. ये सुशील करनानी नशीली दवाओं के मामले में मास्टरमाइंड है. सुशील करनानी पहले से ही नशीली दवाओं के प्रकरण में सजायाफ्ता है. उसके पक्ष में ड्रग लाइसेंस जारी नहीं हो सकता. इसलिए उसने डमी के तौर पर लोगों के नाम से अवैध और नशीली दवाओं का कारोबार करता है.

पढ़ें अब जयपुर में हो सकेगी वॉइस सैंपल की जांच, पहला परीक्षण घूस की आरोपी दिव्या मित्तल के ऑडियो का हुआ

झुंझुनू जिले के चिड़ावा क्षेत्र में बाबूलाल सैनी और सुनील सैनी के नाम से अपना अवैध कारोबार कर रहा था. सुशील करनानी की जयपुर में मॉन्टेक्स फार्मास्यूटिकल के नाम से फर्म थी. सुशील करनानी 3 साल की जेल काट कर आया था. इसलिए उसे लाइसेंस नहीं मिल सकता था. बाबूलाल सैनी और सुनील सैनी के नाम से सुशील करनानी ने से फर्म बनाई. मित्तल ने दावा किया कि उसके दस्तावेज भी मेरे पास हैं जिससे प्रमाणित होता है कि वह फर्म सुशील करनानी की है. इस फर्म का ऑफिस गुड़गांव में था. जहां से अवैध और नशीली दवाइयों की सप्लाई अन्य राज्यों में की जाती थी. मैंने बाबूलाल सैनी और सुनील सैनी की प्रकरण में लिप्तता की जांच की तो मेरी रिपोर्ट के आधार पर ही गुड़गांव एडीसी ने इनका गोदाम सीज किया था. मित्तल का आरोप है कि गोदाम खुलवाने के लिए करनानी के कुछ लोगों ने मुझे प्रलोभन दिया था कि मनचाही पोस्टिंग करवा देंगे, लेकिन मैंने मना कर दिया. इस बात से भी वो क्षुब्ध थे कि मैंने उनका पूरा व्यापार बंद करवा दिया.

व्याख्याता रहते खरीदे थे प्लॉट : बातचीत में एसओजी की निलंबित एएसपी दिव्या मित्तल ने बताया कि पुलिस सेवा में आने से पहले वह व्याख्याता थी. मित्तल ने बताया कि लेक्चररशिप के दौरान हुई आय से उस वक्त भूखण्ड खरीदे थे. उस आय और संपत्ति का जिक्र एसीबी ने फर्द में नहीं किया. दिव्या का आरोप है कि उदयपुर में उनका फार्म हाउस है. जिस पर एक करोड़ का लोन है जिसकी किश्तें सैलरी स्लिप से जाती है. इस तथ्य का जिक्र भी एसीबी ने फर्द में नहीं किया. यहां तक कि न्यायिक अभिरक्षा में रहने के बावजूद मेरे फार्म हाउस पर बुलडोजर चलाया गया. इसके लिए मुझे नोटिस तक नहीं दिया गया. दिव्या मित्तल ने दावा किया कि आज तक एसीबी का एक भी प्रकरण नहीं है जिसमें रंगे हाथों गिरफ्तार हुए हैं. लेकिन उनकी संपत्तियों को बुलडोज कर दिया गया. एसीबी ने मेरा पक्ष जाने की कोशिश ही नहीं की. मित्तल का आरोप है कि इससे स्पष्ट है कि एसीबी की कार्रवाई भी मेरे खिलाफ षड्यंत्र का हिस्सा है.

पढ़ें निलंबित एएसपी दिव्या मित्तल पर आय से अधिक संपत्ति का केस, पैतृक घर को किया सील

सुमित नहीं है बर्खास्त सिपाही : बातचीत में दिव्या मित्तल ने बताया कि उनके साथ प्रकरण में फरार आरोपी सुमित को पुलिस का बर्खास्त सिपाही बताया जा रहा है. जबकि सुमित ने पारिवारिक कारणों से पुलिस की नौकरी से त्यागपत्र दिया था. मित्तल ने सुमित के त्यागपत्र की एक कॉपी ईटीवी भारत को भी दी है. मित्तल का आरोप है कि बर्खास्त सिपाही, ड्रग माफिया, शराब माफिया बताकर सुमित को झूठा प्रसारित किया जा रहा है. यदि वह ऐसी गतिविधियों में पहले लिप्त था फिर पुलिस ने कार्रवाई क्यों नहीं की. मित्तल ने बताया कि बिजनेस पार्टनर के तौर पर मैंने अपने फार्महाउस की पावर ऑफ अटॉर्नी सुमित के नाम कर रखी है.

आय से अधिक संपत्ति का आंकलन जांच अधिकारी ने खुद किया : दिव्या मित्तल के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति का प्रकरण भी दर्ज है. इस पर दिव्या ने कहा कि एसीबी के जांच अधिकारी ने एफआईआर में संपत्ति का ब्यौरा दिया है. उसमें संपत्ति का आंकलन खुद जांच अधिकारी ने किया है. मित्तल का आरोप है कि जांच अधिकारी ने मेरे लिए एक लाइन लिख दी कि दिव्या मित्तल की ओर से कोई लेखा-जोखा नहीं दिया गया. एसीबी की ओर से मुझे आज तक कोई नोटिस ही नहीं मिला है. जिसके आधार पर मैं एसीबी को बता सकूं कि मेरी आय का स्त्रोत क्या है. उन्होंने बताया कि एसीबी ने दो बार मेरे घर, मेरे पुश्तैनी घर और मेरे भाई के घर की तलाशी ली. उन्होंने कहा कि एसीबी अधिकारियों को आशंका थी कि मेरे पास साजिश कर्त्ताओं जो एक जाति विशेष से है. उनके अश्लील कारनामों की क्लिप मेरे पास पैन ड्राइव या सीडी के रूप में तो नहीं है.

पढ़ें एनडीपीएस एक्ट मामले में जेल से जमानत पर रिहा हुई दिव्या मित्तल

मुझसे पहले थे तीन जांच अधिकारी उन पर कार्रवाई क्यों नही : दिव्या मित्तल का बताया कि है कि अजमेर में 25 करोड़ की नशीली दवाइयों के 3 प्रकरण दर्ज हुए थे. इनमें एक प्रकरण अलवर गेट और 2 प्रकरण रामगंज थाने में दर्ज किए गए. मुझसे पहले इन प्रकरणों में तीन जांच अधिकारी बदले जा चुके हैं. इनमें सीआई दिनेश कुमावत, भूराराम खिलेरी और तत्कालीन सीओ मुकेश सोनी शामिल हैं. इन प्रकरणों में नशीली दवाओं के तीन ट्रक पकड़े गए थे. इनमें नशीली दवाओं के कैप्सूल, इंजेक्शन और टेबलेट थी. मुख्य आरोपी श्याम सुंदर मूंदड़ा को बचाने के लिए चौकीदार कालू राम जाट और चाय वाले को फंसाया गया. इस आधार पर अभियुक्त श्याम सुंदर मूंदड़ा ने जयपुर हाई कोर्ट में बेल लगाई.

जांच मेरे पास आने के बाद आरोपी श्यामसुंदर मूंदड़ा की बेल खारिज हुई. मेरी ओर से प्रकरण में जांच की गई. प्रकरण में मेरे उच्च अधिकारियों को मैंने समय-समय पर एक्चुअल रिपोर्ट के साथ जानकारी दी है. मैंने प्रकरण में उच्च अधिकारियों से दिशा निर्देश प्राप्त करने के लिए फाइल भी भेजी जो 15 दिन वहां रही जिसकी स्क्रुटनी भी हुई. मेरी जांच से उच्च अधिकारी सहमत नहीं थे तो वह मुझे दिशा निर्देश या कोई भी सुपरवाइजरी देते तो मैं उनके निर्देश के अनुसार काम करती. मेरे समक्ष कोई नया तथ्य आने पर अधिकारी से मार्गदर्शन मांगा गया यह अपराध की श्रेणी में नहीं आता है. ऐसा करके मैंने कोई अपराध किया है. मित्तल ने कहा कि प्रकरण में मेरे से पहले जांच अधिकारियों की संलिप्तता सामने आने पर हाईकोर्ट भी संज्ञान ले चुका है. उन जांच अधिकारियों की मैंने खुद इंक्वायरी रिपोर्ट बनाकर सबमिट की थी. दिव्या मित्तल ने कहा कि उन जांच अधिकारियों के विरुद्ध भी कार्रवाई होनी चाहिए.

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