अजमेर. जिले के सराधना ग्राम से करीब 5 किलोमीटर अंदर जंगल में मकरेडा ग्राम पंचायत क्षेत्र की पहाड़ी पर एक गुफा में मां गौरी का मंदिर है. इसे मां गौरी का सिद्ध स्थान माना जाता है. माता का ये पवित्र धाम मार्कण्डेय ऋषि की तपोभूमि भी रही है. बताया जाता है कि ऋषि मार्कण्डेय को यहीं पर देवाधिदेव महादेव की अर्धांगिनी मां आदिशक्ति गौरी ने दर्शन दिए थे. मंदिर में विराजमान मां गौरी की प्रतिमा स्वयंभू है और आज गौरीकुंड माता जन आस्था का बड़ा केंद्र हैं. चलिए आज आपको नवरात्र के पहले दिन मां गौरी के दर्शन के साथ ही यहां स्थित माता रानी के अति प्राचीन मंदिर की महिमा के बारे में बताते हैं.
पहले मुश्किल था मंदिर तक पहुंचना : शारदीय नवरात्र के 9 दिन मां आदिशक्ति की आराधना की जाती है. अजमेर जिले में गौरी कुंड के नाम से विख्यात माता का अति प्राचीन मंदिर है. ये मंदिर अजमेर से 20 किलोमीटर दूर ब्यावर रोड हाईवे पर सराधना गांव से मकरेडा मार्ग के जंगल में पहाड़ी पर स्थित है. वहीं, इस मार्ग में दो बड़े द्वार आते हैं, जो मंदिर तक पहुंचने का मार्ग प्रशस्त करते हैं. मंदिर तक दोपहिया और चार पहिया वाहन से पहुंचा जा सकता है. साथ ही यहां पहुंचने पर प्रकृति का अनुपम नजारा देखने को मिलता है. बीते पांच साल पहले तक मंदिर तक पहुंचना काफी कठिन था, लेकिन अब जन सहयोग से मंदिर तक आसानी से वाहनों के जरिए पहुंचा जा सकता है.
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छोटी सी गुफा में विराजी हैं मां गौरी : मंदिर के मुख्य द्वार पर पहुंचते ही मन में शांति का अहसास होता है. भीतर मंदिर में एक बड़ा हॉल है और ठीक सामने छोटी सी गुफा में मां गौरी की स्वयंभू प्रतिमा स्थित है. मान्यता है कि यहां माता रानी के दर्शन मात्र से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है. माता की प्रतिमा के पास ही प्राचीन पंचमुखी शिवलिंग और बगल में प्रथम पूज्य भगवान गणेश, देव सेनानायक कार्तिकेय और माता पार्वती की भी प्रतिमा है. हालांकि, यहां शिव परिवार की प्रतिमाओं को बाद में स्थापित किया गया.
ऋषि मार्कण्डेय को यहीं मां गौरी ने दिए थे दर्शन : मंदिर के सेवादार रामसुख बताते हैं कि गौरी मैया का स्थान ऋषि मार्कण्डेय की तपोभूमि है. सदियों पहले ऋषि मार्कण्डेय ने यहां रह कर शिव अर्धांगिनी मां आदिशक्ति गौरी की आराधना की थी. ऋषि मार्कण्डेय की एक प्राचीन धूनी यहां आज भी मौजूद है. सेवादार रामसुख बताते हैं कि माता ने ऋषि मार्कण्डेय को यहीं पर दर्शन दिए थे. आगे उन्होंने बताया कि मंदिर के आसपास आपको कव्वे नजर नहीं आएंगे और न ही यहां कभी ओलावृष्टि होती है. उन्होंने बताया कि मंदिर प्रांगण में स्थित कुंड के जल में कभी काई नहीं जमती है.
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कभी नहीं सूखा कुंड का पानी : सेवादार रामसुख ने बताया कि मंदिर में मौजूद कुंड की गहराई बहुत अधिक नहीं है और इसमें पानी पहाड़ों से रिस कर आता है. यह जल इतना स्वच्छ है कि कुंड के पेंदे में सिक्का भी साफ नजर आता है. उन्होंने बताया कि जिन लोगों के काम माता की कृपा से बन जाते हैं, वो यहां प्रसाद चढ़ाते हैं. वहीं, प्रसाद बनाने के लिए कुंड के जल का इस्तेमाल किया जाता है और यहां कुंड का जल कभी खत्म नहीं होता है. सेवादार ने बताया कि पूर्व में कई बार अकाल पड़ने की स्थिति में भी कुंड का जल कभी नहीं सूखा. उन्होंने आगे बताया कि यहां शराब और मांस का सेवन करके आने वालों को माता का कोप झेलना पड़ता है. वहीं, शारदीय नवरात्र में दूर-दूर से माता के भक्त यहां दर्शन व पूजन के लिए आते हैं.
यहां संत वनखंडी महाराज को मिली थी सिद्धि : माता गौरी का यह पवित्र धाम कई ऋषि मुनियों की तपोस्थली भी रहा है. गर्भगृह के सामने एक धूनी है, जो यहां सालों तक रहे एक संत वनखंडी महाराज की है. बताया जाता है कि साधु वनखंडी महाराज रामानंदी संप्रदाय से थे. साल 1920 में वनखंडी महाराज यहां आए थे और यहां मां गौरी की भक्ति कर कई सिद्धियां प्राप्त की थी. यहां के ग्रामीण संत वनखंडी महाराज को सिद्ध पुरुष मानते हैं. ग्रामीण बताते हैं कि पूर्वजों से संत वनखंडी महाराज के बारे में कई ऐसी बातें सुनी हैं, जो आम इंसानों के बस में नहीं है.
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प्रचलित हैं कई दंत कथाएं : श्रद्धालु राजेंद्र जाट बताते हैं कि पीढ़ी दर पीढ़ी सुनते आए हैं कि यहां संत वनखंडी महाराज जब चाहे वो किसी भी प्राणी का रूप ले लेते थे. कई बार तो देखा गया कि वो पलक झपकते ही एक स्थान से दूसरे स्थान पर दिखने लगते थे. मंदिर के प्रांगण में एक कुंड है, जिसमें कांच की तरह पानी नजर आता है. जाट बताते हैं कि इस कुंड से होकर संत वनखंडी महाराज रोज पुष्कर जाया करते थे. वर्तमान में ऐसी बातों पर यकीन नहीं किया जा सकता, लेकिन आसपास ग्रामीण क्षेत्रों में संत वनखंडी महाराज को लेकर ऐसी कई दंत कथाएं प्रचलित हैं.
ग्रामीणों का उपचार करते थे वनखंडी महाराज : ग्रामीण बताते हैं कि साल 1980 में संत वनखंडी महाराज का निधन हो गया. उसके बाद बाबा बालकदास महाराज मंदिर की देखरेख का जिम्मा संभालते हैं. वर्तमान में मंदिर में एक संत परशुराम दास रहते हैं. बातचीत में उन्होंने बताया कि वनखंडी महाराज कुंभ में अखाड़ा भी लगाते थे. महाराज के प्रयासों से ही मंदिर को भव्यता मिली. साथ ही संत वो आयुर्वेद के भी जानकार थे. ऐसे में स्थानीय लोगबाग यहां उपचार के लिए भी आते थे.
मंदिर की भैरव करते हैं रक्षा : पहाड़ी पर विराजी मैया गौरी के प्रति ग्रामीणों की अटूट आस्था है. ग्रामीणों के प्रयास से धीरे-धीरे मंदिर को भव्यता मिल रही है. उसी प्रकार से मंदिर तक पहुंचाने के लिए सड़क का निर्माण भी हो रहा है. यह कार्य जन सहयोग से हो रहा है. पहाड़ी के निचले द्वार के समीप भैरव मंदिर है. श्रद्धालु यहां दर्शन करना कभी नहीं भूलते हैं. मान्यता है कि माता के मंदिर के बाहरी क्षेत्र की भैरव बाबा रक्षा करते हैं.