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हर साल आज के दिन अजयसर में परिवार सहित बिराजते हैं भोलेनाथ, शिवलिंग से आती है ये खास गंध

पुष्कर के जंगलों में स्थित अजयसर की पहाड़ियों में एक शिव मंदिर (Shiv Temple in Pushkar) है. इससे जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार, हर वर्ष कार्तिक चतुर्दशी को भगवान शिव यहां परिवार सहित विराजते हैं. शिवलिंग से खास गंध आती है. आइए जानते हैं क्या है ये पूरी कथा...

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Published : Nov 18, 2021, 8:19 PM IST

Ancient Shiv Temple in Pushkar
Ancient Shiv Temple in Pushkar

अजमेर. पुष्कर के जंगलों में स्थित अजयसर की पहाड़ियों के बीच एक प्राचीन शिवालय है. पुराणों के अनुसार भगवान शिव ने बकरे का रूप धरकर इसी स्थान पर वश्कली नाम के एक दैत्य का वध किया था. वश्कली का वध करने के बाद जगतपिता ब्रह्मा के निवेदन पर भगवान शिव वहीं पर अजगंधेश्वर नाम से शिवलिंग के रूप में स्थापित हो गए. ऐसा माना जाता है कि प्रातः स्नान करने के बाद शिवलिंग पर जल चढ़ाने के बाद श्रद्धा से कोई भी व्यक्ति शिवलिंग को दोनों हाथों से रगड़ता है, तो उसके हाथों से अजहा यानी बकरे की गंध आने लगती है. ब्रह्मा को दिए वचन के अनुसार कार्तिक चतुर्दशी ही वह दिन है जब भगवान शिव शंकर परिवार सहित यहां विराजते हैं. इस मौके पर आइए जानते हैं ये पौराणिक कथा...

स्थानीय पंडित रवि शर्मा बताते हैं कि पदम पुराण में अजगंधेश्वर महादेव का उल्लेख है. पुष्कर की आध्यात्मिक शक्ति से प्रभावित होकर वश्कली नाम के दैत्य ने यहां के जंगलों में 10 हजार वर्षों तक ब्रह्म देव को प्रसन्न करने के लिए घोर तप किया था. तप के शुरुआती 2 हजार साल में वश्कली 6 दिन में भोजन करता था. अगले 2 हजार साल उसने इसी तरह 6 दिन में एक बार पत्ते खाकर तप किया. इसके बाद अगले 2 हजार साल उसने छह दिन में एक बार केवल सूखे फल खाए और अगले दो हजार साल केवल जल पिया. आखरी दो हजार साल में उसने अपने शरीर को इतना साध लिया कि वह केवल हवा पर निर्भर रहकर तप करता रहा.

पढ़ें: पुष्कर सरोवर में संतों ने लगाई डुबकी

जगत पिता ब्रम्हा ने वश्कली की तपस्या से प्रसन्न होकर उसे दर्शन दिए. वश्कली ने ब्रह्मदेव से स्वर्ग पर आधिपत्य और दिव्य अस्त्र-शस्त्र एवं देव-दानव किसी से भी उसकी मृत्यु नहीं होने का वरदान हासिल कर लिया. ब्रह्मदेव के वरदान के कारण इंद्र को स्वर्ग से हाथ धोना पड़ा. वहीं समस्त देवताओं को स्वर्ग त्यागना पड़ा. शर्मा ने बताया कि स्वर्ग पर आधिपत्य रखने के बावजूद वश्कली प्रतिदिन पुष्कर आता और पवित्र सरोवर में स्नान करने के बाद ब्रह्मा की पूजा-अर्चना करता था.

पढ़ें: अन्नकूट पर अनूठी परंपरा : सांपला गांव में भगवान की सवारी के नीचे से नहीं निकली गाय...अकाल की आशंका, पुजारियों को हस्तबंधन का दंड

स्वर्ग त्यागने के बाद इंद्र ने भी पुष्कर में आकर 10 वर्षों तक भगवान शिव की घोर तपस्या की. शिव ने इंद्र की तपस्या से प्रसन्न होकर दर्शन दिए. इंद्र ने शिव से स्वर्ग लोक और देवताओं पर आए संकट को दूर करने के लिए सहायता मांगी. भगवान शंकर ने इंद्र की सहायता करने का वचन दिया था. उन्होंने ब्रह्मदेव के वरदान का सम्मान रखते हुए दैत्य वश्कली का वध करने के लिए विशाल अजहा (बकरे) का रूप धारण किया. विशाल बकरे को देख दैत्य के मन में उसका मांस भक्षण करने का विचार आया और उसने बकरे पर हमला बोल दिया.

पढ़ें: Lunar Eclipse 2021: सदी का सबसे लंबा चंद्रग्रहण कल: राजस्थान में दिखाई नहीं देगा यह दुर्लभ नजारा, सूतक भी नहीं मान्य

पहाड़ियों से घिरा यह वही स्थान है जहां बकरे के रुप में महादेव ने दैत्य वश्कली का वध सिंग के प्रहार से किया था. इस दौरान ब्रह्मा देव ने शिव को यहीं पर स्थापित होने का आग्रह किया था. शिव ने वर्ष में एक बार पूरे परिवार के साथ रहने का आग्रह स्वीकार कर लिया. तब से मान्यता है कि कार्तिक शुक्ल की चतुर्दशी पर भगवान शिव अपने पूरे परिवार के साथ यहां विराजते हैं. यह भी माना जाता है कि शिव के यहां विराजने से इस दिन शिवलिंग से अजह की गंध आती है. गुरुवार को कार्तिक शुक्ल की चतुर्दशी पर अजयसर में स्थित अजयपाल धाम में बिराजे अजगंधेश्वर के दर्शनों के लिए रात्रि 12 बजे से लोगों का आना जाना लगा रहा.

अजमेर. पुष्कर के जंगलों में स्थित अजयसर की पहाड़ियों के बीच एक प्राचीन शिवालय है. पुराणों के अनुसार भगवान शिव ने बकरे का रूप धरकर इसी स्थान पर वश्कली नाम के एक दैत्य का वध किया था. वश्कली का वध करने के बाद जगतपिता ब्रह्मा के निवेदन पर भगवान शिव वहीं पर अजगंधेश्वर नाम से शिवलिंग के रूप में स्थापित हो गए. ऐसा माना जाता है कि प्रातः स्नान करने के बाद शिवलिंग पर जल चढ़ाने के बाद श्रद्धा से कोई भी व्यक्ति शिवलिंग को दोनों हाथों से रगड़ता है, तो उसके हाथों से अजहा यानी बकरे की गंध आने लगती है. ब्रह्मा को दिए वचन के अनुसार कार्तिक चतुर्दशी ही वह दिन है जब भगवान शिव शंकर परिवार सहित यहां विराजते हैं. इस मौके पर आइए जानते हैं ये पौराणिक कथा...

स्थानीय पंडित रवि शर्मा बताते हैं कि पदम पुराण में अजगंधेश्वर महादेव का उल्लेख है. पुष्कर की आध्यात्मिक शक्ति से प्रभावित होकर वश्कली नाम के दैत्य ने यहां के जंगलों में 10 हजार वर्षों तक ब्रह्म देव को प्रसन्न करने के लिए घोर तप किया था. तप के शुरुआती 2 हजार साल में वश्कली 6 दिन में भोजन करता था. अगले 2 हजार साल उसने इसी तरह 6 दिन में एक बार पत्ते खाकर तप किया. इसके बाद अगले 2 हजार साल उसने छह दिन में एक बार केवल सूखे फल खाए और अगले दो हजार साल केवल जल पिया. आखरी दो हजार साल में उसने अपने शरीर को इतना साध लिया कि वह केवल हवा पर निर्भर रहकर तप करता रहा.

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जगत पिता ब्रम्हा ने वश्कली की तपस्या से प्रसन्न होकर उसे दर्शन दिए. वश्कली ने ब्रह्मदेव से स्वर्ग पर आधिपत्य और दिव्य अस्त्र-शस्त्र एवं देव-दानव किसी से भी उसकी मृत्यु नहीं होने का वरदान हासिल कर लिया. ब्रह्मदेव के वरदान के कारण इंद्र को स्वर्ग से हाथ धोना पड़ा. वहीं समस्त देवताओं को स्वर्ग त्यागना पड़ा. शर्मा ने बताया कि स्वर्ग पर आधिपत्य रखने के बावजूद वश्कली प्रतिदिन पुष्कर आता और पवित्र सरोवर में स्नान करने के बाद ब्रह्मा की पूजा-अर्चना करता था.

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स्वर्ग त्यागने के बाद इंद्र ने भी पुष्कर में आकर 10 वर्षों तक भगवान शिव की घोर तपस्या की. शिव ने इंद्र की तपस्या से प्रसन्न होकर दर्शन दिए. इंद्र ने शिव से स्वर्ग लोक और देवताओं पर आए संकट को दूर करने के लिए सहायता मांगी. भगवान शंकर ने इंद्र की सहायता करने का वचन दिया था. उन्होंने ब्रह्मदेव के वरदान का सम्मान रखते हुए दैत्य वश्कली का वध करने के लिए विशाल अजहा (बकरे) का रूप धारण किया. विशाल बकरे को देख दैत्य के मन में उसका मांस भक्षण करने का विचार आया और उसने बकरे पर हमला बोल दिया.

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पहाड़ियों से घिरा यह वही स्थान है जहां बकरे के रुप में महादेव ने दैत्य वश्कली का वध सिंग के प्रहार से किया था. इस दौरान ब्रह्मा देव ने शिव को यहीं पर स्थापित होने का आग्रह किया था. शिव ने वर्ष में एक बार पूरे परिवार के साथ रहने का आग्रह स्वीकार कर लिया. तब से मान्यता है कि कार्तिक शुक्ल की चतुर्दशी पर भगवान शिव अपने पूरे परिवार के साथ यहां विराजते हैं. यह भी माना जाता है कि शिव के यहां विराजने से इस दिन शिवलिंग से अजह की गंध आती है. गुरुवार को कार्तिक शुक्ल की चतुर्दशी पर अजयसर में स्थित अजयपाल धाम में बिराजे अजगंधेश्वर के दर्शनों के लिए रात्रि 12 बजे से लोगों का आना जाना लगा रहा.

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