अजमेर. जिले के भिनाय तहसील में धुलंडी के दूसरे दिन से नावण तक कोड़ामार होली खेलने की सदियों पुरानी परंपरा है. यह कोडामार होली किसी युद्ध से कम नहीं है, क्योंकि इसमें दो गुट एक-दूसरे पर पूरी ताकत से कोड़े से प्रहार करते हैं. जिसे देख किसी की भी रूह कांप जाएगी. वहीं, बुधवार को भिनाय की कोड़ामार होली को देखने के लिए जिले से ही नहीं, बल्कि देश व प्रदेश के विभिन्न हिस्सों से हजारों की तादाद में लोग जुट थे.
भिनाय की कोड़ामार होली एक युद्ध का मैदान है. जहां एक गुट के लोग दूसरे गुट पर कोड़े बरसाते हैं. इस खेल में ताकत और साहस दोनों की जरूरत होती है. खैर, कोड़े की मार से बचना और कोड़े बरसाना. यही कोड़ामार होली का हिस्सा है. इससे पहले कोड़ामार होली में शामिल लोगों की अलग-अलग गुट तैयार किए जाते हैं. इसके बाद कोड़ामार होली में शामिल पुरुष सिर पर पगड़ी पहनते हैं. ताकि सिर पर कोड़े की मार ज्यादा घातक न हो.
बताया जाता है कि सालों पहले कोड़ामार होली करीब 6 घंटे तक खेली जाती थी. हालांकि बाद में इसके समय को कम कर दिया गया. कुछ साल पहले तक 20 मिनट और अब 5 से 7 मिनट की ही कोड़ामार होली खेली जाती है. लेकिन ये 5 से 7 मिनट भी कोड़ामार होली को रोमांचक बना देता है. यहां दोनों ही गुट एक-दूसरे पर किसी भी तरह की दया नहीं दिखाते हैं. वहीं, बुधवार को कोड़ामार होली का यही नजारा हजारों लोगों ने देखा.
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ये है इतिहास- भिनाई में कोड़ामार होली का इतिहास 425 वर्ष पुराना है. बताया जाता है कि 450 वर्ष पहले जोधपुर महाराज रायमल के पुत्र चंद्रसेन को मुगल शासकों ने निष्कासित कर दिया था. इधर उधर भटकने के बाद चंद्रसेन के युवा पुत्र कर्म सेन की नजर अजमेर के राजा पृथ्वीराज चौहान की पूर्व राजधानी रेंन पर पड़ी. 425 वर्ष पहले कर्मसेन ने रेंन के समीप भिनाय की स्थापना की. यहां अपने राज्य की स्थापना के लिए उन्होंने वीर सैनिकों की भर्ती के लिए नायाब तरकीब निकाली. इसके लिए होली पर कोड़ामार होली की शुरुआत की.
कोड़ामार होली के लिए दो दलों का गठन किया जाता. एक दल राजा समर्थक चौक और दूसरा दल को रानी समर्थक मानकर कांवरिया नाम दिया गया. कोड़ामार होली की परंपरा के तहत कस्बे के परकोटे पर स्थित दरवाजों में रेंन दरवाजा, भैरू दरवाजा, चौहान दरवाजा, महल और पहाड़ की चोटी पर स्थित किले में होली का डंडा रोपण कर दिया जाता है. होली के 15 दिन पहले कोड़े तैयार किए जाते हैं. कोड़े बनाने के लिए सूत का उपयोग होता है. सूत की मोटी रस्सी को कोड़े के रूप में उपयोग किया जाता है. होली के दूसरे दिन चौक और कांवरिया के बीच कोड़ा मार होली का मुकाबला होता है. इस दौरान ढोल नगाड़े बजाए जाते हैं.
नावण तक खेली जाती है कोड़ामार होली - होली के दूसरे दिन से ही परंपरागत रूप से कोड़ामार होली खेलने की परंपरा है. होली के नावण तक तीन बार कोडामार होली खेलने की परंपरा है. बाजार के मापा यानी बीच बुधवार को चौक और कांवरिया दल के बीच कोड़ा मार होली खेली गई. इसको देखने के लिए घरों की छतों और बाजार के दोनों और बड़ी संख्या में लोग एकत्रित हो गए. कोडामार होली से पहले भेरू जी की पूजा अर्चना की गई . इसके बाद ढोल की थाप के बाद दंगल शुरू हुआ. दोनों दलों ने एक दूसरे पर कोडो से प्रहार किया. सैकड़ों वर्षों से यह परंपरा आज भी कायम है. कोडामार होली में घायल व्यक्ति एक दूसरे से कोई गिला शिकवा नहीं रखते बल्कि एक दूसरे से गले लगते है.