अजमेर. मोहर्रम के अवसर पर ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह में निभाए जाने वाली धार्मिक रस्मों और परंपराओं को निभाने के लिए खादिम समुदाय के प्रतिनिधियों और अंदर कोठियान पंचायत के प्रतिनिधियों ने प्रशासन से राज्य सरकार को प्रस्ताव भिजवाने का आग्रह किया है. प्रतिनिधि चाहते हैं कि लोगों की भावनाओं के अनुरूप मोहर्रम के धार्मिक परंपराओं का निर्वहन एक बार किया जा सके.
मुस्लिम समुदाय के लिए मोहर्रम विशेष है. करबला की जंग में शहीद हुए इमाम हुसैन और उनके सहयोगियों की याद में गमजदा होकर मुस्लिम समुदाय मोहर्रम मनाता है. अजमेर में भी दरगाह परिसर में मोहर्रम पर विशेष रस्में अदा की जाती है. वहीं अंदरकोट क्षेत्र में सदियों से तलवारों से हाईदौस खेला जाता रहा है.
कोरोना महामारी की वजह से पिछले साल धार्मिक परंपराएं सामूहिक तौर पर नहीं हो पाई लेकिन इस बार मोहर्रम के अवसर पर धार्मिक परंपराओं और रस्मों की अदा करने के लिए दरगाह के खादिमो और मुस्लिम समुदाय ने मांग उठाई है.
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जानकारी के अनुसार 9 अगस्त से मोहर्रम शुरू होगा. अजमेर में सूफी संत ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह में मोहर्रम के अवसर पर विशेष रस्में अदा की जाती रही है. खादिमों की संस्था अंजुमन कमेटी के सदर सैयद मोहिन हुसैन चिश्ती ने कहा कि दरगाह से जुड़े प्रतिनिधि और मुस्लिम समुदाय के लोग सदियों से मोहर्रम के अवसर पर धार्मिक परंपराएं और रस्में निभाते आए हैं. इस दौरान डोले शरीफ की सवारी भी निकाली जाती है. पिछले साल कोरोना गाइडलाइन की पालना करते हुए संक्षेप रूप में धार्मिक और पारंपरिक रस्में निभाई गई थी. इस बार भी केंद्र और राज्य सरकार की गाइडलाइन में धार्मिक कार्यक्रम करने की अनुमति नहीं है.
प्रशासन के साथ मोहर्रम व्यवस्था को लेकर बैठक हुई. जिसमें खादिम समुदाय और अंदर कोटियान पंचायत की ओर से मांग की गई है कि मोहर्रम के अवसर पर धार्मिक आयोजन की स्वीकृति दी जाए. ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह के दीवान के साहबजादे सैयद नसीरुद्दीन चिश्ती ने कहा कि प्रशासन ने अपनी मजबूरी बता दी है लेकिन लोगों की भावनाओं को देखते हुए प्रशासन को मोहर्रम के अवसर पर धार्मिक आयोजनों की स्वीकृति के लिए प्रस्ताव राज्य सरकार को भेजने का आग्रह किया गया है.
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मोहर्रम कमेटी के कन्वीनर एसएन अकबर ने बताया कि अंदरकोट इलाके में 800 वर्ष पुरानी हाइदौस खेलने की परंपरा रही है लेकिन हाईदौस नहीं खेला गया. उन्होंने कहा कि मोहर्रम खुशी का त्योहार नहीं है. यह गम का तरीका है. कर्बला की जंग में शहीद लोगों की याद में मनाया जाता है. उन्होंने बताया कि प्रशासन से मांग की गई है कि बड़े आयोजन की बजाए छोटे सर पर धार्मिक परंपरा और रस्मों को निभाने की अनुमति दी जाए.
देश में केवल अजमेर में खेला जाता है हाईदौस
अजमेर में ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह के समीप अंदरकोट क्षेत्र में अंदर कोटियान पंचायत की ओर से 800 साल से हाईदौस खेलने की परंपरा का निर्वाह किया जा रहा है. बकायदा इसके लिए 100 से अधिक तलवारें प्रशासन की ओर से दी जाती है. हाईदौस कोई खेल नहीं है. इसमें नंगी तलवारों के साथ सैकड़ों लोग कर्बला की जंग का मंजर पेश करते है. चीख पुकार के साथ लहराती तलवारों के साथ हाईदौस दो दिन खेला जाता है.
हाईदौस के अंतिम दिन डोले शरीफ की सवारी भी निकाली जाती है. हजारों लोग हाईदौस को देखने के लिए जुटते है. खासकर देश और दुनिया से अजमेर में सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती आने वाले जायरीन के लिए हाईदौस विशेष आकर्षण रहता है. बताया जाता है कि हाईदौस पाकिस्तान के हैदराबाद में भी खेला जाता है.