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Special : अजमेर में हाउस सर्वेन्ट्स के सामने अब रोजी-रोटी का संकट...

कोरोना महामारी ने लोगों के मन में संक्रमण का डर बिठा दिया है. इस डर का असर उन लोगों पर पड़ रहा है जो दूसरों के घरों में घरेलू कामकाज किया करते थे. कई महीनों से बेकार बैठे इन हाउस सर्वेन्ट्स के सामने अब रोजी-रोटी का संकट है. अजमेर में घरेलू नौकरों को छुट्टी देने वाले मालिक उनकी आर्थिक मदद तो कर रहे हैं, लेकिन संक्रमण के खतरे का हवाला देकर उन्हें काम पर नहीं बुला रहे हैं. पढ़ें पूरी खबर...

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कोरोनाकाल में घरेलू सेवक बेबस
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Published : Nov 10, 2020, 7:58 PM IST

अजमेर. देश में कोरोना महामारी का संकट अभी टला नहीं है. इस महामारी ने लोगों के रोजगार पर ही नहीं, बल्कि सोच-समझ पर भी असर डाला है. हर वर्ग आर्थिक रूप से प्रभावित हुआ है. इनमें एक तबका ऐसा भी है जो दूसरों के घरों में काम करके अपनी रोजी-रोटी का जुगाड़ करता है. कोरोना महामारी की दहशत के चलते लोग घरेलू नौकरों को काम पर नहीं बुला रहे हैं, इस कारण इन लोगों के सामने रोजगार का संकट खड़ा हो गया है.

कोरोना ने छीना रोजगार...

संक्रमण की दहशत का असर...

कोरोना की शुरुआत के साथ ही लॉकडाउन लग गया था. ऐसे में मार्च से ही लोगों ने घरेलू नौकर-नौकरानियों को काम से हटा दिया गया था. पूरा साल लगभग निकल चुका है, लेकिन अभी तक लोग इन्हें काम पर वापस नहीं बुला रहे हैं. संक्रमण की दहशत अपनी जगह है, लेकिन काम नहीं मिला तो इन गरीब लोगों का घर कैसे चलेगा, यह बड़ा सवाल है. लोगों का तर्क है कि घरेलू काम करने वाली महिलाएं कई घरों में काम करती हैं. ऐसे में उनसे संक्रमण फैलने का खतरा रहता है.

आर्थिक मदद करेंगे, घर नहीं बुलाएंगे...

अजमेर की राधा विहार विकास समिति के अध्यक्ष संजय लड्ढा बताते हैं कि कोरोना संक्रमण के डर से उन्होंने घर में काम करने वाली नौकरानी को काम पर वापस नहीं बुलाया, वे कहते हैं कि कॉलोनी में अधिकतर लोगों ने घरेलू नौकरानी को काम पर नहीं बुलाया है. संजय कहते हैं कि घरेलू नौकरीं की समय समय पर वे आर्थिक मदद कर रहे हैं और राशन भी डलवा रहे हैं. लेकिन कोरोना संक्रमण के मद्देनजर काम पर नहीं बुला रहे हैं.

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घर का खुद करने की बन रही आदत...

नौकर की छुट्टी, बदली जीवनशैली...

घरेलू नौकरों की इन लम्बी छुट्टियों ने लोगों की जीवनशैली भी बदली है. लोग अब अपने कामकाज के साथ घर के कामों में भी हाथ बंटा रहे हैं. हरीभाऊ उपाध्याय नगर विकास समिति के सदस्य एवं समाजसेवी शैलेश गुप्ता का कहना है कि लोग अपनी हैसियत के मुताबिक घरेलू नौकर- नौकरानी की मदद कर रहे हैं लेकिन यह मदद काफी नहीं है. सरकार को ऐसे तबके के लिए भी सोचना चाहिए.

परिवार ने बांट लिया काम...

कामकाजी महिला पारुल गुप्ता कहती हैं कि वे संयुक्त परिवार में रहती हैं. परिवार में बुजुर्ग और बच्चे भी हैं. कोरोना महामारी के चलते उन्होंने घर में काम करने वाली नौकरानी को काम पर आने से रोक दिया था. पारुल बताती हैं कि अब किसी बाहरी व्यक्ति को भी घर में प्रवेश नहीं देते. पारुल का कहना है कि कोरोना का संकट अभी टला नहीं है इसलिए नौकरानी को काम पर बुलाना फिलहाल परिवार के स्वास्थ्य को देखते हुए ठीक नहीं है. हालांकि पारुल का कहना है कि उसने घरेलू नौकरानी को एडवांस में ही 3 माह का वेतन दे दिया था और राशन की मदद भी करती रही हैं.

घरेलू नौकरों के लिए कोई योजना नहीं...

एक अनुमान के मुताबिक अजमेर में घरेलू कामकाज करने वाले लोगों की संख्या शहर की आबादी के हिसाब से 5 से 7 प्रतिशत है. सामाजिक समन्वय स्वयंसेवी संस्था के पदाधिकारी पीके श्रीवास्तव का कहना है कि कोरोना संक्रमण का लंबा वक्त गुजर जाने के बाद भी लोगों में यह विश्वास कायम नहीं हो पा रहा है कि उनके घर में काम करने वाले नौकर नौकरानी की वजह से उन्हें संक्रमण का कोई खतरा नहीं है. बकौल श्रीवास्तव उनकी संस्था ने अजमेर शहर में एक सर्वे कराया था, जिसका सार यह था कि ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है जिसके माध्यम से घरों में काम करने वाले नौकर नौकरानी अपने मालिक को यह विश्वास दिला सकें कि वे स्वस्थ हैं और उनसे संक्रमण का कोई खतरा नहीं है. उन्होंने बताया कि सर्वे के दौरान यह भी सामने आया कि ज्यादातर लोगों को उनकी मेहनत का मेहनताना मिला है जबकि घरेलू नौकरों को सरकार की ओर से कोई आर्थिक मदद नहीं दी गई है.

कोरोना काल में प्रवासी श्रमिकों को रोजगार के लिए गरीब कल्याण योजना देहात क्षेत्र में सरकार की ओर से शुरू की गई. लेकिन इस योजना में शहरी इलाकों में रहने वाले ऐसे लोग जो दूसरों के घरों में नौकर का काम करके अपनी रोजी चलाते हैं, उन्हें किसी भी सरकारी योजना से कोई खास फायदा नहीं मिला. ऐसे में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा योजना के तहत मिले गेहूं तो पेट भरने का इंतजाम तो हो गया लेकिन दूसरी जरूरतों के लिए गरीब लोग मोहताज ही हैं.

अजमेर. देश में कोरोना महामारी का संकट अभी टला नहीं है. इस महामारी ने लोगों के रोजगार पर ही नहीं, बल्कि सोच-समझ पर भी असर डाला है. हर वर्ग आर्थिक रूप से प्रभावित हुआ है. इनमें एक तबका ऐसा भी है जो दूसरों के घरों में काम करके अपनी रोजी-रोटी का जुगाड़ करता है. कोरोना महामारी की दहशत के चलते लोग घरेलू नौकरों को काम पर नहीं बुला रहे हैं, इस कारण इन लोगों के सामने रोजगार का संकट खड़ा हो गया है.

कोरोना ने छीना रोजगार...

संक्रमण की दहशत का असर...

कोरोना की शुरुआत के साथ ही लॉकडाउन लग गया था. ऐसे में मार्च से ही लोगों ने घरेलू नौकर-नौकरानियों को काम से हटा दिया गया था. पूरा साल लगभग निकल चुका है, लेकिन अभी तक लोग इन्हें काम पर वापस नहीं बुला रहे हैं. संक्रमण की दहशत अपनी जगह है, लेकिन काम नहीं मिला तो इन गरीब लोगों का घर कैसे चलेगा, यह बड़ा सवाल है. लोगों का तर्क है कि घरेलू काम करने वाली महिलाएं कई घरों में काम करती हैं. ऐसे में उनसे संक्रमण फैलने का खतरा रहता है.

आर्थिक मदद करेंगे, घर नहीं बुलाएंगे...

अजमेर की राधा विहार विकास समिति के अध्यक्ष संजय लड्ढा बताते हैं कि कोरोना संक्रमण के डर से उन्होंने घर में काम करने वाली नौकरानी को काम पर वापस नहीं बुलाया, वे कहते हैं कि कॉलोनी में अधिकतर लोगों ने घरेलू नौकरानी को काम पर नहीं बुलाया है. संजय कहते हैं कि घरेलू नौकरीं की समय समय पर वे आर्थिक मदद कर रहे हैं और राशन भी डलवा रहे हैं. लेकिन कोरोना संक्रमण के मद्देनजर काम पर नहीं बुला रहे हैं.

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घर का खुद करने की बन रही आदत...

नौकर की छुट्टी, बदली जीवनशैली...

घरेलू नौकरों की इन लम्बी छुट्टियों ने लोगों की जीवनशैली भी बदली है. लोग अब अपने कामकाज के साथ घर के कामों में भी हाथ बंटा रहे हैं. हरीभाऊ उपाध्याय नगर विकास समिति के सदस्य एवं समाजसेवी शैलेश गुप्ता का कहना है कि लोग अपनी हैसियत के मुताबिक घरेलू नौकर- नौकरानी की मदद कर रहे हैं लेकिन यह मदद काफी नहीं है. सरकार को ऐसे तबके के लिए भी सोचना चाहिए.

परिवार ने बांट लिया काम...

कामकाजी महिला पारुल गुप्ता कहती हैं कि वे संयुक्त परिवार में रहती हैं. परिवार में बुजुर्ग और बच्चे भी हैं. कोरोना महामारी के चलते उन्होंने घर में काम करने वाली नौकरानी को काम पर आने से रोक दिया था. पारुल बताती हैं कि अब किसी बाहरी व्यक्ति को भी घर में प्रवेश नहीं देते. पारुल का कहना है कि कोरोना का संकट अभी टला नहीं है इसलिए नौकरानी को काम पर बुलाना फिलहाल परिवार के स्वास्थ्य को देखते हुए ठीक नहीं है. हालांकि पारुल का कहना है कि उसने घरेलू नौकरानी को एडवांस में ही 3 माह का वेतन दे दिया था और राशन की मदद भी करती रही हैं.

घरेलू नौकरों के लिए कोई योजना नहीं...

एक अनुमान के मुताबिक अजमेर में घरेलू कामकाज करने वाले लोगों की संख्या शहर की आबादी के हिसाब से 5 से 7 प्रतिशत है. सामाजिक समन्वय स्वयंसेवी संस्था के पदाधिकारी पीके श्रीवास्तव का कहना है कि कोरोना संक्रमण का लंबा वक्त गुजर जाने के बाद भी लोगों में यह विश्वास कायम नहीं हो पा रहा है कि उनके घर में काम करने वाले नौकर नौकरानी की वजह से उन्हें संक्रमण का कोई खतरा नहीं है. बकौल श्रीवास्तव उनकी संस्था ने अजमेर शहर में एक सर्वे कराया था, जिसका सार यह था कि ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है जिसके माध्यम से घरों में काम करने वाले नौकर नौकरानी अपने मालिक को यह विश्वास दिला सकें कि वे स्वस्थ हैं और उनसे संक्रमण का कोई खतरा नहीं है. उन्होंने बताया कि सर्वे के दौरान यह भी सामने आया कि ज्यादातर लोगों को उनकी मेहनत का मेहनताना मिला है जबकि घरेलू नौकरों को सरकार की ओर से कोई आर्थिक मदद नहीं दी गई है.

कोरोना काल में प्रवासी श्रमिकों को रोजगार के लिए गरीब कल्याण योजना देहात क्षेत्र में सरकार की ओर से शुरू की गई. लेकिन इस योजना में शहरी इलाकों में रहने वाले ऐसे लोग जो दूसरों के घरों में नौकर का काम करके अपनी रोजी चलाते हैं, उन्हें किसी भी सरकारी योजना से कोई खास फायदा नहीं मिला. ऐसे में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा योजना के तहत मिले गेहूं तो पेट भरने का इंतजाम तो हो गया लेकिन दूसरी जरूरतों के लिए गरीब लोग मोहताज ही हैं.

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