अजमेर. दीपावली के अगले दिन केकड़ी में घास भैरव की सवारी निकाली जाती है. वर्षों से यह परंपरा कायम है. हालांकि बीते कुछ सालों में इस सवारी के दौरान पटाखे चलाने की परंपरा (People threw crackers on each other in Ajmer) जुड़ी. ये इतनी विकृत हुई कि लोग इन पटाखों को एक-दूसरे पर फेंकने लगे. कारण महज मनोरंजन. इस खतरनाक खेल में हर बार लोग घायल होते हैं. प्रशासन ने पाबंदी लगा रखी है, पर उल्लंघन बदस्तूर जारी है.
दीपावली के अगले दिन जहां गोवर्धन पूजा की जाती है, वहीं केकड़ी में देर शाम केकड़ी कस्बे में घास भैरव की सवारी निकालने की वर्षों पुरानी परंपरा है. बड़ी संख्या में लोग घास भैरव की सवारी में जुटते हैं. पहले घास भैरव के आगे आतिशबाजी की जाती थी. धीरे-धीरे लोग एक-दूसरे पर मजे के लिए पटाखे फेंकने लगे. अब हालात यह हैं कि घास भैरव की सवारी के दौरान लोग एक-दूसरे पर जलते हुए खतरनाक पटाखे फेंकते हैं और आनंद लेते हैं. इस खतरनाक खेल में लोगों को यह कतई परवाह नहीं है कि उनके द्वारा फेंके गए जलते हुए पटाखे से जनहानि भी हो सकती है.
पढ़ें: राजस्थान: गुर्जर समाज की अनूठी परंपरा, दीपावली पर करते हैं पितरों का श्राद्ध
एक दशक से है पाबंदी: स्थानीय प्रशासन ने इस खतरनाक खेल पर प्रतिबंध भी लगा रखा है. गत वर्ष तो पुलिस ने लाठियां फटकार एक-दूसरे पर पटाखे फेंक रहे लोगों को खदेड़ा भी था. इस बार दीपावली के अगले दिन सूर्य ग्रहण होने की वजह से गोवर्धन पूजा का सूतक खत्म होने के बाद होगी. यानी 25 अक्टूबर को ग्रहण है, तो अगले दिन 26 को घास भैरव की सवारी निकाली जाएगी.
पढ़ें: Shadi Dev Mandir: जहां दीपावली पर कुंवारे जलाते हैं दीया
ऐसे शुरू हुआ खतरनाक अंगारों का खेल: बताया जाता है कि घास भैरव की सवारी निकालने की परंपरा 100 वर्ष से अधिक पुरानी है. केकड़ी के पुराने कस्बे में गणेश प्याऊ के समीप से घास भैरव की सवारी निकाली जाती है, जो पुराने कस्बे में घूमती हुई वापस देर रात तक गणेश प्याऊ के समीप पहुंचती है. घास सवारी के साथ पहले बैल भी शामिल होते थे. बैलों को हरकत में लाने के लिए उनके पैरों में छोटे पटाखे फोड़े जाते थे.
पढ़ें: इस बार दीपावली के अगले दिन नहीं होगी गोवर्धन पूजा, टूटेगी सालों की परंपरा
पिछले ढाई दशक से इस परंपरा का रूप बदरंग होता चला गया. अब घास भैरव की सवारी में बैल नहीं होते. लेकिन लोगों ने रोमांच बढ़ाने के लिए अब एक-दूसरे पर पटाखे फेंकना शुरू कर दिया है. घास भैरव की सवारी के दौरान कस्बे की लाइट बंद कर दी जाती है, क्योंकि असामाजिक तत्व पत्थर मार स्ट्रीट लाइट फोड़ देते हैं. अंगारों का यह खेल रात के अंधेरे में होता है. घास भैरव की सवारी में अब कस्बे की लोग ही नहीं बल्कि आसपास क्षेत्र के ग्रामीण भी बड़ी संख्या में भाग लेने लगे हैं. इस कारण लोगों की संख्या भी काफी रहती हैं.