अजमेर. कोरोना महामारी का बाजार पर गहरा असर पड़ा है. खास तौर से विज्ञापन बाजार खत्म सा हो गया है. लोगों के उद्योग धंधे चौपट हो रहे हैं. ऐसे में विज्ञापन का अतिरिक्त बोझ कोई नहीं उठाना चाहता. अजमेर में अनलॉक के बाद से बाजार में कुछ गति आई है लेकिन विज्ञापन के दृष्टिकोण से देखें तो बाजार अभी भी मंदी के दौर से नहीं उबरा है.
कॉर्पोरेट कंपनियों के विज्ञापनों ने ही विज्ञापन एजेंसियों को अभी तक खड़ा रखा है, लेकिन ठेकेदार एजेंसियों को स्थानीय विज्ञापन नहीं मिल रहे हैं. शहर में सड़कों के किनारे खाली पड़े गैंट्री और फ्लेक्स होल्डिंग स्थल तस्वीर खुद ही बयान कर रहे हैं. विज्ञापनों के लिए शहर में बनाए गए ज्यादातर गैंट्री खाली पड़े हैं. जब इन गैंट्री और फ्लेक्स होर्डिंग्स पर विज्ञापन सजते हैं तो उनका पैसा नगर निगम की कमाई में शुमार होता है, विज्ञापन एजेंसियों की भी कमाई होती है.
विज्ञापन नहीं मिलने से एजेंसियां निराश
अजमेर नगर निगम ने नए विज्ञापन के लिए दो ठेकेदार कंपनियों को ठेका दे रखा है. हालात ये हैं कि कंपनी के स्थानीय प्रतिनिधि राजस्व नहीं मिलने से निराश हो चुके हैं. नगर निगम के राजस्व अधिकारी (प्रथम) प्रकाश डूडी का कहना है कि लॉकडाउन के दौरान ठेकेदार कंपनियों को काफी नुकसान हुआ है. साइनेज और यूनिपोल का ठेका पायनर एवं गैंट्री पर विज्ञापन लगाने का ठेका एनएस पब्लिकेशन के पास है. लॉकडाउन के दौरान दोनों ही कंपनियों को काफी नुकसान उठाना पड़ा है. लिहाजा राजस्थान सरकार ने विज्ञापन ठेकेदार कंपनियों को राहत देते हुए उनके टेंडर की समय अवधि को 6 महीने और बढ़ा दिया गया है.
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नगर निगम को भी राजस्व का नुकसान
हालांकि लॉकडाउन के समय अवधि के दौरान की राशि भी ठेकेदार कंपनियों से वसूल की जानी है. डूडी ने बताया कि कियोस्क का ठेका मार्च माह में खत्म हो गया था जो अभी तक नहीं हो पाया है. उसे वापस ठेके पर देने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है. इसके अलावा फुट ओवर ब्रिज पर विज्ञापन का ठेका भी एलिवेटेड ब्रिज निर्माण कार्य से प्रभावित हो रहा है. ऐसे में नगर निगम को मिलने वाला राजस्व काफी कम हुआ है. नगर निगम राजस्व बढ़ाने के लिए विज्ञापन के अन्य विकल्प तलाश रहा है.
विज्ञापन दाताओं ने फेरा मुंह
इधर, अजमेर में करीब नौ विज्ञापन एजेंसियां हैं. एक एजेंसी के मालिक मनीष नंदा बताते हैं कि लॉकडाउन से ही विज्ञापनदाताओं ने विज्ञापन देने से मुंह फेर लिया है. हालात ये हैं कि दिवाली पर भी विज्ञापन नहीं मिले. खासकर स्थानीय विज्ञापन मिलना बंद हो गए हैं. विज्ञापनदाता खुद कमजोर आर्थिक स्थिति से गुजर रहे हैं. व्यापार में मंदी के कारण स्थानीय विज्ञापनदाता अपनी फर्म का विज्ञापन करवाने में रुचि नहीं ले रहे हैं. बल्कि इसके लिए सस्ते विकल्प तलाश रहे हैं.
अनलॉक के बाद आर्थिक गतिविधियों के बढ़ने से विज्ञापन एजेंसियों को स्थानीय विज्ञापन मिलने की उम्मीद थी. लेकिन कोरोना महामारी के बढ़ते प्रभाव की वजह से उन उम्मीदों पर भी पानी फिर गया है. नगर निगम से संबद्ध विज्ञापन ठेकेदार कंपनियों को सरकार ने समय अवधि बढ़ाकर राहत दे दी है. लेकिन दूसरी विज्ञापन एजेंसियां आम सूचना, तीये की बैठकों के छोटे विज्ञापनों पर ही निर्भर होकर इन विषम परिस्थितियों में अपना समय काट रही हैं.