अजमेर. चिकित्सा इंसान की मूलभूत आवश्यकताओं में से एक है. ऐसे में राजस्थान में सरकारी स्तर पर मुख्यमंत्री फ्री दवा और जांच योजना चलाई जा रही है. बावजूद इसके, निजी अस्पतालों पर कोई फर्क नहीं पड़ा है बल्कि इनकी संख्या दिनों दिन बढ़ ही रही है.
अगर हम बात करें अजमेर की, तो यहां हर वार्ड में एक या दो निजी क्लीनिक या अस्पताल खुल गए हैं. निजी अस्पतालों में जांच के लिए मरीज को काफी पैसा खर्च करना पड़ता है, लेकिन क्या वहां इलाज करने वाले चिकित्सक नर्सिंग स्टाफ और सहायक कर्मचारी प्रयोगशाला में लगा हुआ स्टाफ पूरी तरह से योग्य हैं. इसका रिकॉर्ड चिकित्सा और स्वास्थ्य विभाग के पास भी नहीं है. इतना ही नहीं मरीजों को इलाज जांच और दवा के नाम पर लिए जा रहे पैसों का निर्धारण करना भी अभी तक निजी अस्पतालों क्लीनिक और निजी प्रयोगशालाओं के संचालक ही तय करते हैं.
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यही वजह है कि देश की तत्कालीन सरकार ने बेलगाम निजी चिकित्सा पर लगाम लगाने के लिए क्लिनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट 2010 बनाया. जिसमें निजी अस्पतालों को एक्ट के तहत पंजीयन करवाना आवश्यक है, लेकिन एक्ट को प्रभावी बनाने के लिए राज्य सरकार की मंशा को भागते हुए निजी अस्पताल क्लीनिक और निजी जांच प्रयोगशालाओं के संचालक भी निश्चित हो गए हैं. वहीं अजमेर में जिला स्वास्थ्य और चिकित्सा विभाग के अधिकारी डॉ. केके सोनी बताते हैं कि अभी तक 35 निजी अस्पताल में निजी जांच प्रयोगशालाओं का पंजीयन के लिए आवेदन किया गया है.
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दरअसल 9 वर्षों में भी राज्य में एक्ट के तहत अभी तक निजी अस्पतालों क्लीनिक और निजी जांच प्रयोगशालाओं के लिए कोई मापदंड तय नहीं है. ऐसे में इनकी मनमानी के खिलाफ यदि कोई शिकायत भी करें तो कहा करें. विभाग यह कहकर संतुष्ट है कि उन्हें 9 वर्षों में ऐसी कोई शिकायत नहीं मिली है. शिकायत मिलेगी तो राज्य सरकार के नियमानुसार कार्रवाई भी की जाएगी.