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राजस्थान में 9 साल बाद भी प्रभावी तरीके से नहीं हो पाया 'क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट 2010', जानें क्या है अजमेर में स्थिति - Clinical Establishment Act 2010

देश में क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट 2010 बना, लेकिन राजस्थान में प्रभावी तरीके से लागू नहीं हुआ है. राज्य में एक्ट के तहत तमाम निजी अस्पताल प्लेनेट और जांच प्रयोगशालाओं का पंजीयन हो रहा है ताकि सरकार इन पर नजर रख सके.

'Clinical Establishment Act 2010' could not be done effectively even after 9 years, ajmer news, अजमेर न्यूज
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Published : Oct 14, 2019, 10:15 PM IST

अजमेर. चिकित्सा इंसान की मूलभूत आवश्यकताओं में से एक है. ऐसे में राजस्थान में सरकारी स्तर पर मुख्यमंत्री फ्री दवा और जांच योजना चलाई जा रही है. बावजूद इसके, निजी अस्पतालों पर कोई फर्क नहीं पड़ा है बल्कि इनकी संख्या दिनों दिन बढ़ ही रही है.

अजमेर में क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट 2010 की स्थिति

अगर हम बात करें अजमेर की, तो यहां हर वार्ड में एक या दो निजी क्लीनिक या अस्पताल खुल गए हैं. निजी अस्पतालों में जांच के लिए मरीज को काफी पैसा खर्च करना पड़ता है, लेकिन क्या वहां इलाज करने वाले चिकित्सक नर्सिंग स्टाफ और सहायक कर्मचारी प्रयोगशाला में लगा हुआ स्टाफ पूरी तरह से योग्य हैं. इसका रिकॉर्ड चिकित्सा और स्वास्थ्य विभाग के पास भी नहीं है. इतना ही नहीं मरीजों को इलाज जांच और दवा के नाम पर लिए जा रहे पैसों का निर्धारण करना भी अभी तक निजी अस्पतालों क्लीनिक और निजी प्रयोगशालाओं के संचालक ही तय करते हैं.

पढ़ेंः अजमेरः पुष्कर में जयमल जयंती पर राजपूत समाज हुआ एकजुट, उत्कृष्ट काम करने वालों को किया सम्मानित

यही वजह है कि देश की तत्कालीन सरकार ने बेलगाम निजी चिकित्सा पर लगाम लगाने के लिए क्लिनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट 2010 बनाया. जिसमें निजी अस्पतालों को एक्ट के तहत पंजीयन करवाना आवश्यक है, लेकिन एक्ट को प्रभावी बनाने के लिए राज्य सरकार की मंशा को भागते हुए निजी अस्पताल क्लीनिक और निजी जांच प्रयोगशालाओं के संचालक भी निश्चित हो गए हैं. वहीं अजमेर में जिला स्वास्थ्य और चिकित्सा विभाग के अधिकारी डॉ. केके सोनी बताते हैं कि अभी तक 35 निजी अस्पताल में निजी जांच प्रयोगशालाओं का पंजीयन के लिए आवेदन किया गया है.

पढ़ेंः अजमेर: जेएलएन अस्पताल में ठेके पर लगे सहायक कर्मचारियों ने किया 2 घंटे का कार्य बहिष्कार

दरअसल 9 वर्षों में भी राज्य में एक्ट के तहत अभी तक निजी अस्पतालों क्लीनिक और निजी जांच प्रयोगशालाओं के लिए कोई मापदंड तय नहीं है. ऐसे में इनकी मनमानी के खिलाफ यदि कोई शिकायत भी करें तो कहा करें. विभाग यह कहकर संतुष्ट है कि उन्हें 9 वर्षों में ऐसी कोई शिकायत नहीं मिली है. शिकायत मिलेगी तो राज्य सरकार के नियमानुसार कार्रवाई भी की जाएगी.

अजमेर. चिकित्सा इंसान की मूलभूत आवश्यकताओं में से एक है. ऐसे में राजस्थान में सरकारी स्तर पर मुख्यमंत्री फ्री दवा और जांच योजना चलाई जा रही है. बावजूद इसके, निजी अस्पतालों पर कोई फर्क नहीं पड़ा है बल्कि इनकी संख्या दिनों दिन बढ़ ही रही है.

अजमेर में क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट 2010 की स्थिति

अगर हम बात करें अजमेर की, तो यहां हर वार्ड में एक या दो निजी क्लीनिक या अस्पताल खुल गए हैं. निजी अस्पतालों में जांच के लिए मरीज को काफी पैसा खर्च करना पड़ता है, लेकिन क्या वहां इलाज करने वाले चिकित्सक नर्सिंग स्टाफ और सहायक कर्मचारी प्रयोगशाला में लगा हुआ स्टाफ पूरी तरह से योग्य हैं. इसका रिकॉर्ड चिकित्सा और स्वास्थ्य विभाग के पास भी नहीं है. इतना ही नहीं मरीजों को इलाज जांच और दवा के नाम पर लिए जा रहे पैसों का निर्धारण करना भी अभी तक निजी अस्पतालों क्लीनिक और निजी प्रयोगशालाओं के संचालक ही तय करते हैं.

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यही वजह है कि देश की तत्कालीन सरकार ने बेलगाम निजी चिकित्सा पर लगाम लगाने के लिए क्लिनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट 2010 बनाया. जिसमें निजी अस्पतालों को एक्ट के तहत पंजीयन करवाना आवश्यक है, लेकिन एक्ट को प्रभावी बनाने के लिए राज्य सरकार की मंशा को भागते हुए निजी अस्पताल क्लीनिक और निजी जांच प्रयोगशालाओं के संचालक भी निश्चित हो गए हैं. वहीं अजमेर में जिला स्वास्थ्य और चिकित्सा विभाग के अधिकारी डॉ. केके सोनी बताते हैं कि अभी तक 35 निजी अस्पताल में निजी जांच प्रयोगशालाओं का पंजीयन के लिए आवेदन किया गया है.

पढ़ेंः अजमेर: जेएलएन अस्पताल में ठेके पर लगे सहायक कर्मचारियों ने किया 2 घंटे का कार्य बहिष्कार

दरअसल 9 वर्षों में भी राज्य में एक्ट के तहत अभी तक निजी अस्पतालों क्लीनिक और निजी जांच प्रयोगशालाओं के लिए कोई मापदंड तय नहीं है. ऐसे में इनकी मनमानी के खिलाफ यदि कोई शिकायत भी करें तो कहा करें. विभाग यह कहकर संतुष्ट है कि उन्हें 9 वर्षों में ऐसी कोई शिकायत नहीं मिली है. शिकायत मिलेगी तो राज्य सरकार के नियमानुसार कार्रवाई भी की जाएगी.

Intro:अजमेर। देश में क्लिनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट 2010 बना लेकिन राजस्थान में प्रभावी तरीके से लागू नहीं हुआ। राज्य में एक्ट के तहत तमाम निजी अस्पताल प्लेनेट एवं जांच प्रयोगशालाओं का पंजीयन हो रहा है। ताकि सरकार इन पर नजर रख सकें। 15 अक्टूबर तक एक्ट के तहत पंजीयन करने की आखिरी तारीख दी गई है बावजूद इसके पंजीयन को लेकर निजी अस्पताल क्लीनिक और जांच प्रयोगशालाओं के संचालक पंजीयन को लेकर रुचि नहीं दिखा रहे हैं। खास बात यह है कि 2010 से अब तक पंजीयन को लेकर कई बार तारीख है आगे खिसक चुकी है।

चिकित्सा इंसान की मूलभूत आवश्यकताओं में से एक है। राजस्थान में सरकारी स्तर पर मुख्यमंत्री निशुल्क दवा एवं जांच योजना चलाई जा रही है बावजूद इसके निजी अस्पतालों पर कोई फर्क नहीं पड़ा है। बल्कि इनकी संख्या दिनों दिन बढ़ ही रही है। अजमेर की बात करें तो यहां हर वार्ड में एक या दो निजी क्लीनिक या अस्पताल खुल गए हैं। वहीं इनके पास मरीज की जांच के लिए निजी प्रयोगशाला में भी आबाद है निजी अस्पतालों में जांच के लिए मरीज को काफी पैसा खर्च ना पड़ता है लेकिन क्या वहां इलाज करने वाले चिकित्सक नर्सिंग स्टाफ सहायक कर्मचारी प्रयोगशाला में लगा हुआ स्टाफ पूरी तरह से योग्य भी है इसका रिकॉर्ड चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग के पास भी नहीं है। इतना ही नहीं मरीजों को इलाज जांच और दवा के नाम पर लिए जा रहे पैसों का निर्धारण करना भी अभी तक निजी अस्पतालों क्लीनिक एवं निजी प्रयोगशालाओं के संचालक ही तय करते हैं।
यही वजह है कि देश की तत्कालीन सरकार ने बेलगाम निजी चिकित्सा पर लगाम लगाने के लिए क्लिनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट 2010 बनाया जिसमें निजी अस्पतालों को एक्ट के तहत पंजीयन करवाना आवश्यक है लेकिन एक्ट को प्रभावी बनाने के लिए राज्य सरकार की मंशा को भागते हुए निजी अस्पताल क्लीनिक और निजी जांच प्रयोगशालाओं के संचालक भी निश्चित हो गए हैं।

अजमेर में जिला स्वास्थ्य एवं चिकित्सा विभाग के अधिकारी डॉ केके सोनी बताते हैं कि अभी तक 35 निजी अस्पताल और इकरार में निजी जांच प्रयोगशाला उन्हें पंजीयन के लिए आवेदन किया है। बता दें कि यह आंकड़ा 9 साल का है....
बाइट डॉ केके सोनी सीएमएचओ

दरअसल 9 वर्षों में भी राज्य में एक्ट के तहत अभी तक निजी अस्पतालों क्लीनिक एवं निजी जांच प्रयोगशालाओं के लिए कोई मापदंड तय नहीं है ऐसे में इनकी मनमानी के खिलाफ यदि कोई शिकायत भी करें तो कहा करें। विभाग यह कहकर संतुष्ट है कि उन्हें 9 वर्षों में ऐसी कोई शिकायत नहीं मिली है। शिकायत मिलेगी तो राज्य सरकार के नियमानुसार कार्रवाई भी की जाएगी...
वाइट डॉ के के सोनी सीएमएचओ

अजमेर शहर में हर वार्ड में निजी क्लीनिक अस्पताल या जांच प्रयोगशाला आए हैं वहीं अजमेर देहात की बात करें तो विभाग की ओर से दिया गया आंकड़ा ऊंट के मुंह में जीरे के समान है देश में चिकित्सा सेवा बहुत पहले से व्यवसाय बन चुका है ऐसे में एक्ट में मापदंडों को तय कर उसे प्रभावी बनाना राज्य सरकार की मंशा पर निर्भर है।


Body:प्रियांश शर्मा
अजमेर


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