अजमेर. अजमेर में सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती के 810 वें उर्स (Ajmer Sharif 810th Urs) के बड़े कुल की रस्म (Bade Kul rituals ) आज अदा कर दी गई. इस अवसर बड़ी संख्या में जायरीन जुटे और जुम्मे की नमाज में शामिल हुए. नमाज के बाद विशेष दुआ हुई जिसमें अकीदतमंदों ने परिवार की खुशहाली के अलावा मुल्क में अमन और चैन की दुआ मांगी.
ख्वाजा गरीब नवाज के चाहने वालों के लिए आज का दिन विशेष है. उर्स (Ajmer Sharif 810th Urs) में हाजिरी देने आए अकीदतमंद ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह में बड़े कुल की रस्म में शामिल हुए. यहां आने वाले आज जुम्मे की विशेष नमाज में भी शामिल हुए.
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ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह में आज का दिन विशेष रहा. सुबह बड़े कुल की रस्म की गाजे-बाजे के साथ अदाएगी की गई. इस दौरान जायरीन ने दरगाह को केवड़े और गुलाब जल से धोया, जायरीनों की ओर से लाए गए तबर्रुक पर नियाज पढ़ी गई. इसके बाद अकीदतमंदों ने तबर्रुक जायरीन में तक्सीम कर दिया. इसके बाद अकीदतमंदों ने दरगाह परिसर में शाहजानी मज्जिद में नमाज के लिए जगह बनानी शुरू कर दी.
धीरे-धीरे पूरा दरगाह परिसर नमाजियों से खचाखच भर गया. नमाजियों के कतार दरगाह के बाहर धानमंडी होते हुए देहली गेट तक पहुंच गई. 1 बजकर 5 मिनट पर काजी मौलाना तौसीफ अहमद ने लाखों की संख्या में मौजूद नमाजियों को नमाज अदा करवाई.
आस्था का उमड़ा सैलाब
उर्स की अंतिम बड़े कुल की रस्म पर शरीक होने के लिए दरगाह में अकीदतमंदों का सैलाब उमड़ पड़ा. खास बात यह कि जुम्मा होने की वजह से अक़ीदतमंदों की तादाद लाखों में पहुंच गई. हालांकि प्रशासन और पुलिस ने अकीदतमन्दों की सहूलियत और सुरक्षा के लिए इंतजाम किए हैं, लेकिन ऐसा कहा जाता है कि यह इंतजाम ख्वाजा गरीब नवाज के भरोसे ही होते हैं. अकीदतमंदों की बड़ी संख्या के सामने सारी व्यवस्थाएं धरी रह जाती हैं.
साम्प्रदायिक सद्भाव की दिखी झलक
जुमे की नमाज में साम्प्रदायिक सद्भाव की झलक देखी गई. नमाजियों को दरगाह परिसर में जगह नहीं मिली तो नमाजियों की कतार सड़क पर आ गई. तल्ख धूप में जायरीन के बैठने के लिए दुकानदारों ने बिछाने के लिए अखबार और प्लास्टिक शीट और पीने के लिए पानी की हिन्दू और सिंधी दुकानदारों ने व्यवस्था की. इतना ही नहीं नमाजियों को अपनी दुकानों के बाहर भी बैठने दिया.
बड़े कुल की रस्म और जुम्मे की नमाज के बाद लौटने लगे जायरीन
ख्वाजा गरीब नवाज के उर्स में आने वाले हर जायरीन की हसरत रहती है कि वह छोटे या बड़े कुल की रस्म में शामिल रहे. वे जुम्मे की विशेष नमाज में दुआ करे. शुक्रवार को दोनों ही रस्मों में शामिल रहे जायरीन अपने आपको खुशनसीब समझ रहे थे. कहते हैं इरादे रोज बनते हैं और टूट जाते हैं...अजमेर वही आते हैं जिसे ख्वाजा बुलाते हैं. जुम्मे की नमाज के बाद ख्वाजा के दर पर अगली बार जल्द बुलाने का कहकर अकीदतमंद अपने घरों को लौटने लगे हैं.