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बेमिसाल : पहले आश्रय और फिर उपचार, बीते 24 साल में 26 हजार से अधिक बिछड़ों को उनके अपनों से मिलाया

मानव सेवा की बेमिसाल कहानी. बीते 24 साल में अपना घर आश्रम ने 26 हजार से अधिक बिछड़ों को उनके अपनों से मिलाया.

Apna Ghar Ashram
24 साल में 26 हजार से अधिक बिछड़ों को अपनों से मिलाया (ETV BHARAT BHARATPUR)
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : 6 hours ago

मानव सेवा की बेमिसाल कहानी (ETV BHARAT BHARATPUR)

भरतपुर : मानव सेवा में देश-दुनिया में अनूठी पहचान बना चुका अपना घर आश्रम लावारिस लोगों को अपनों तक पहुंचाने में भी अहम भूमिका निभा रहा है. मानसिक विमंदित हालत में घरों से निकलने वाले बेसहारा लोगों (प्रभुजन) को अपना घर आश्रम पहले आश्रय देता है, फिर उपचार और देखभाल करता है और आखिर में प्रभुजनों के स्वस्थ होने के बाद उनके अपनों को ढूंढने व उन तक पहुंचाने का काम करता है. बीते 24 साल में करीब 26 हजार बेसहारा, लावारिस प्रभुजनों को अपनों तक पहुंचाया जा चुका है. इनमें से करीब 15 हजार मां-बहनें शामिल हैं. आइए जानते हैं कि अपना घर आश्रम की टीम मानव सेवा से लेकर अपनों से मिलाने तक का यह काम किस तरह करती है.

केस 1 : 18 साल बाद जीवित मिली पत्नी : कर्नाटक निवासी शिवलिगप्पा की पत्नी ललिता 18 साल पहले घर से निकल गई थी. काफी तलाशने पर भी ललिता नहीं मिली. ऐसे में शिवलिगप्पा ने पत्नी को मृत समझ लिया. ऐसे में छोटे दो बेटे और एक छोटी बेटी की परवरिश के लिए शिवलिगप्पा ने महानंदा के साथ दूसरी शादी कर ली. दूसरी पत्नी महानंदा ने इन तीनों बच्चों की परिवरिश की और पढ़ा लिखाकर उन्हें बड़ा किया, लेकिन शिवलिगप्पा को अपनी पहली पत्नी ललिता के अपना घर आश्रम में जीवित और स्वस्थ होने की सूचना मिली. अपनी दूसरी पत्नी की सहमति पर न केवल शिवलिगप्पा अपनी पहली पत्नी ललिता को लेने आश्रम पहुंचे, बल्कि उससे फिर से शादी भी की.

Apna Ghar Ashram
18 साल बाद जीवित मिली पहली पत्नी (ETV BHARAT BHARATPUR)

इसे भी पढ़ें - 18 साल बाद जीवित मिली पहली पत्नी, 16 शृंगार कराकर पति ले गया घर

केस 2 : दो दशक बाद जीवित मिला बेटा : उत्तर प्रदेश के जिला ललितपुर के निवासी प्रभुजी पप्पूराम (50) मानसिक रूप से कमजोर होने के कारण 22 साल पहले बिना बताए घर से निकल गए थे. 1 मार्च, 2024 को पप्पूराम को जोधपुर से अपना घर आश्रम भरतपुर में सेवा व उपचार के लिए भर्ती कराया गया. सेवा और उपचार के बाद पप्पूराम के स्वास्थ्य में सुधार हुआ तो उन्होंने अपना पता बताया और अपना घर आश्रम की पुनर्वास टीम ने उनके घर के पते की सूचना संबंधित पुलिस थाना ललितपुर में भिजवाई. उसके बाद पप्पूराम के परिजनों को उनके जीवित और स्वस्थ होने की सूचना मिली. परिजनों ने बताया कि हम तो पप्पूराम को मृत समझ बैठे थे. सूचना पर मां और परिजन अपना घर आश्रम पहुंचे और 22 साल बाद मिले अपने बेटे को लेकर खुशी खुशी घर लौट गए.

Apna Ghar Ashram
22 साल बाद मिला परिवार (ETV BHARAT BHARATPUR)

ऐसे पहुंचाते हैं अपनों तक : अपना घर आश्रम के संस्थापक डॉ. बीएम भारद्वाज ने बताया कि आश्रम की स्थापना 2000 में की गई. आश्रम की स्थापना का मुख्य उद्देश्य लावारिस, असहाय, बीमार लोगों की बिना किसी स्वार्थ के सेवा करना था, लेकिन धीरे-धीरे जब प्रभुजी स्वस्थ हो जाते तो वो अपनों के पास जाने की जिद करते. इसी के साथ शुरू हुआ हमारा बिछुड़े, निराश्रित प्रभुजनों को फिर से अपनों तक पहुंचाने का सफर. इसके लिए हमने एक पूरी पुनर्वास टीम बना रखी है, जिनका सिर्फ यही काम है कि किस तरह से स्वस्थ प्रभुजनों को फिर से उनके घरों व अपनों तक पहुंचाया जाए. इसके लिए यह टीम पहले प्रभुजनों के बताए पते की पड़ताल करती है. उसके बाद पुलिस, सरपंच के माध्यम से कन्फर्म होने पर उनके परिजनों से संपर्क कर उन्हें आश्रम बुलाकर प्रभुजनों को उनको सकुशल सौंप दिया जाता है.

इसे भी पढ़ें - 22 साल बाद युवक का मां और भाई से हुआ मिलन, गम में पिता चल बसे, पत्नी भी घर छोड़कर चली गई

अब तक 26 हजार को पहुंचाया घर : डॉ. भारद्वाज ने बताया कि शुरुआत में स्वस्थ हुए प्रभुजनों के परिजनों को तलाशने में बहुत दिक्कत होती थी. बहुत परिश्रम और वक्त लगता था, लेकिन बीते कुछ वर्षों से इस कार्य में सोशल मीडिया से काफी मदद मिलने लगी है. स्वस्थ हुए परिजनों के बारे में अपना घर आश्रम के फेसबुक पेज पर फोटो, वीडियो के साथ जानकारी अपलोड की जाती है. साथ ही पुनर्वास टीम भी अपने स्तर पर प्रभुजनों के बताए पते की जानकारी कर परिजनों की तलाश करती है. इस तरह से अपना घर आश्रम 2000 से अब तक 24 साल में कुल करीब 26 हजार प्रभुजनों को अपनों तक पहुंचाया जा चुका है. इनमें करीब 15 हजार मां-बहनें शामिल हैं.

गौरतलब है कि अपना घर आश्रम की नेपाल समेत भारत के विभिन्न राज्यों में कुल 62 शाखाएं संचालित हैं. इनमें हजारों असहाय, बीमार और निराश्रित प्रभुजनों आवासित हैं. आश्रम में इन प्रभुजनों की बेहतर उपचार के साथ देखभाल की जाती है.

मानव सेवा की बेमिसाल कहानी (ETV BHARAT BHARATPUR)

भरतपुर : मानव सेवा में देश-दुनिया में अनूठी पहचान बना चुका अपना घर आश्रम लावारिस लोगों को अपनों तक पहुंचाने में भी अहम भूमिका निभा रहा है. मानसिक विमंदित हालत में घरों से निकलने वाले बेसहारा लोगों (प्रभुजन) को अपना घर आश्रम पहले आश्रय देता है, फिर उपचार और देखभाल करता है और आखिर में प्रभुजनों के स्वस्थ होने के बाद उनके अपनों को ढूंढने व उन तक पहुंचाने का काम करता है. बीते 24 साल में करीब 26 हजार बेसहारा, लावारिस प्रभुजनों को अपनों तक पहुंचाया जा चुका है. इनमें से करीब 15 हजार मां-बहनें शामिल हैं. आइए जानते हैं कि अपना घर आश्रम की टीम मानव सेवा से लेकर अपनों से मिलाने तक का यह काम किस तरह करती है.

केस 1 : 18 साल बाद जीवित मिली पत्नी : कर्नाटक निवासी शिवलिगप्पा की पत्नी ललिता 18 साल पहले घर से निकल गई थी. काफी तलाशने पर भी ललिता नहीं मिली. ऐसे में शिवलिगप्पा ने पत्नी को मृत समझ लिया. ऐसे में छोटे दो बेटे और एक छोटी बेटी की परवरिश के लिए शिवलिगप्पा ने महानंदा के साथ दूसरी शादी कर ली. दूसरी पत्नी महानंदा ने इन तीनों बच्चों की परिवरिश की और पढ़ा लिखाकर उन्हें बड़ा किया, लेकिन शिवलिगप्पा को अपनी पहली पत्नी ललिता के अपना घर आश्रम में जीवित और स्वस्थ होने की सूचना मिली. अपनी दूसरी पत्नी की सहमति पर न केवल शिवलिगप्पा अपनी पहली पत्नी ललिता को लेने आश्रम पहुंचे, बल्कि उससे फिर से शादी भी की.

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18 साल बाद जीवित मिली पहली पत्नी (ETV BHARAT BHARATPUR)

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केस 2 : दो दशक बाद जीवित मिला बेटा : उत्तर प्रदेश के जिला ललितपुर के निवासी प्रभुजी पप्पूराम (50) मानसिक रूप से कमजोर होने के कारण 22 साल पहले बिना बताए घर से निकल गए थे. 1 मार्च, 2024 को पप्पूराम को जोधपुर से अपना घर आश्रम भरतपुर में सेवा व उपचार के लिए भर्ती कराया गया. सेवा और उपचार के बाद पप्पूराम के स्वास्थ्य में सुधार हुआ तो उन्होंने अपना पता बताया और अपना घर आश्रम की पुनर्वास टीम ने उनके घर के पते की सूचना संबंधित पुलिस थाना ललितपुर में भिजवाई. उसके बाद पप्पूराम के परिजनों को उनके जीवित और स्वस्थ होने की सूचना मिली. परिजनों ने बताया कि हम तो पप्पूराम को मृत समझ बैठे थे. सूचना पर मां और परिजन अपना घर आश्रम पहुंचे और 22 साल बाद मिले अपने बेटे को लेकर खुशी खुशी घर लौट गए.

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22 साल बाद मिला परिवार (ETV BHARAT BHARATPUR)

ऐसे पहुंचाते हैं अपनों तक : अपना घर आश्रम के संस्थापक डॉ. बीएम भारद्वाज ने बताया कि आश्रम की स्थापना 2000 में की गई. आश्रम की स्थापना का मुख्य उद्देश्य लावारिस, असहाय, बीमार लोगों की बिना किसी स्वार्थ के सेवा करना था, लेकिन धीरे-धीरे जब प्रभुजी स्वस्थ हो जाते तो वो अपनों के पास जाने की जिद करते. इसी के साथ शुरू हुआ हमारा बिछुड़े, निराश्रित प्रभुजनों को फिर से अपनों तक पहुंचाने का सफर. इसके लिए हमने एक पूरी पुनर्वास टीम बना रखी है, जिनका सिर्फ यही काम है कि किस तरह से स्वस्थ प्रभुजनों को फिर से उनके घरों व अपनों तक पहुंचाया जाए. इसके लिए यह टीम पहले प्रभुजनों के बताए पते की पड़ताल करती है. उसके बाद पुलिस, सरपंच के माध्यम से कन्फर्म होने पर उनके परिजनों से संपर्क कर उन्हें आश्रम बुलाकर प्रभुजनों को उनको सकुशल सौंप दिया जाता है.

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अब तक 26 हजार को पहुंचाया घर : डॉ. भारद्वाज ने बताया कि शुरुआत में स्वस्थ हुए प्रभुजनों के परिजनों को तलाशने में बहुत दिक्कत होती थी. बहुत परिश्रम और वक्त लगता था, लेकिन बीते कुछ वर्षों से इस कार्य में सोशल मीडिया से काफी मदद मिलने लगी है. स्वस्थ हुए परिजनों के बारे में अपना घर आश्रम के फेसबुक पेज पर फोटो, वीडियो के साथ जानकारी अपलोड की जाती है. साथ ही पुनर्वास टीम भी अपने स्तर पर प्रभुजनों के बताए पते की जानकारी कर परिजनों की तलाश करती है. इस तरह से अपना घर आश्रम 2000 से अब तक 24 साल में कुल करीब 26 हजार प्रभुजनों को अपनों तक पहुंचाया जा चुका है. इनमें करीब 15 हजार मां-बहनें शामिल हैं.

गौरतलब है कि अपना घर आश्रम की नेपाल समेत भारत के विभिन्न राज्यों में कुल 62 शाखाएं संचालित हैं. इनमें हजारों असहाय, बीमार और निराश्रित प्रभुजनों आवासित हैं. आश्रम में इन प्रभुजनों की बेहतर उपचार के साथ देखभाल की जाती है.

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