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जानें कैसे शिकारगाह से विश्व विरासत बना भरतपुर का केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान, इसलिए इसे कहते हैं पक्षियों का स्वर्ग - WORLD HERITAGE WEEK

आइए जानते हैं कि कैसे केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान शिकारगाह से विश्व विरासत बना...

World Heritage Week 2024
पक्षियों का स्वर्ग (ETV BHARAT BHARATPUR)
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Nov 22, 2024, 5:46 PM IST

पक्षियों का स्वर्ग है भरतपुर का केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान (ETV BHARAT BHARATPUR)

भरतपुर : आज दुनिया भर में भरतपुर की पहचान केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान की वजह से है. केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान को विश्व विरासत का दर्जा प्राप्त है. यहां देश-विदेश से हर साल सैकड़ों प्रजाति के हजारों पक्षी पहुंचते हैं और उन्हें निहारने के लिए हजारों की संख्या में पर्यटक भी आते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि आज की यह विश्वविरासत किसी जमाने में शिकारगाह हुआ करती थी. यहां हर दिन हजारों बत्तखों का शिकार हुआ करता था. रियासतकाल में यहां राजा महाराजा और अंग्रेज पक्षियों की अठखेलियों को देखने के लिए नहीं, बल्कि उनका शिकार करने के लिए जुटते थे. आज यह उद्यान दुनियाभर में अपनी नई पहचान विश्व विरासत केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान यानी पक्षियों के स्वर्ग के रूप में जाना जाता है.

ऐसे तैयार हुआ पक्षियों का पसंदीदा स्थल : केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान से सेवानिवृत रेंजर व पर्यावरणविद भोलू अबरार ने बताया कि रियासतकाल में यह क्षेत्र यमुना नदी का बाढ़ प्रभावित और गंभीरी नदी, रूप रेल और बाणगंगा नदी का जल भराव क्षेत्र हुआ करता था. भरतपुर के शासक महाराजा सूरजमल ने 1850 से 1899 के दौरान गुजरात की मोर्वी रियासत के शासक हरभामजी के सहयोग से इस क्षेत्र में नहरों और बांधों का निर्माण कराया था. इसके पीछे का उद्देश्य यहां पर आसपास के गांव के पशुओं के लिए चारागाह उपलब्ध कराना और बतखों के आखेट के लिए स्थान विकसित करना था. 19वीं सदी के अंत में यह क्षेत्र जलभराव, नहर और बांध की वजह से दलदल के रूप में परिवर्तित होने लगा. इससे यहां बड़ी संख्या में देसी-विदेशी पक्षियों के आने का सिलसिला शुरू हुआ.

World Heritage Week 2024
उद्यान में साइकिल से घूमते विदेशी पर्यटक (ETV BHARAT BHARATPUR)

इसे भी पढ़ें - आमेर भी कभी बना था 'मोमीनाबाद', जानिए विश्व विरासत आमेर महल की अनसुनी दास्तां

यहां एक दिन में हुआ था 4206 बतखों का शिकार : महाराजा सूरजमल के इस प्रयास से यह क्षेत्र पक्षियों का एक प्रमुख स्थान बन गया और यहां पर बड़ी संख्या में बतख और अन्य पक्षी आने लगे. ऐसे में रियासतकाल में जब राजघराने के अतिथि और अंग्रेज यहां पर आते तो इस स्थान पर बतखों का शिकार किया जाता था. एक तरह से यह शिकारगाह यानी आखेटस्थल बन गया और इसका वायसराय लार्ड कर्जन ने 1902 में संगठित बतख आखेटस्थल के रूप में विधिवत उद्घाटन भी किया. यहां हर दिन हजारों बतखों का शिकार किया जाने लगा. पहले पटाखे फोड़कर बतखों को उड़ाते और उसके बाद बंदूक से उनका शिकार करते थे. 1916 में लार्ड चेम्सफोर्ड ने एक ही दिन में यहां 4206 बतखों का शिकार किया था.

World Heritage Week 2024
प्राकृतिक सुंदरता का मनमोहक संध्या दृश्य (ETV BHARAT BHARATPUR)

यूं मिला संरक्षण व पहचान : पर्यावरणविद भोलू अबरार खान ने बताया कि 1956 तक यहां बतखों का शिकार होता रहा, लेकिन उसके बाद इसे अभ्यारण्य घोषित कर दिया गया. साथ ही 1981 में इसे एक उच्चस्तरीय संरक्षण दर्जा प्राप्त राष्ट्रीय पार्क का दर्जा दे दिया गया. उसके बाद 1985 में उद्यान को विश्व विरासत स्थल के दर्जा मिल गया और इसकी ख्याति दुनियाभर में हो गई.

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तस्वीर खींचते फोटोग्राफर (ETV BHARAT BHARATPUR)

इसे भी पढ़ें - शूरवीर महाराणा प्रताप की गौरवमयी गाथा सुनाता है कुंभलगढ़ किला, 36 किमी दीवार है आकर्षण का केंद्र

यहां मिलते हैं सैकड़ों प्रजाति के हजारों पक्षी : पर्यावरणविद भोलू अबरार ने बताया कि अनुकूल भौगोलिक स्थिति और माहौल के चलते केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में करीब 350 प्रजाति के हजारों पक्षी हर साल प्रवास पर आते हैं. 2002 तक यहां पर साइबेरियन क्रेन भी आते थे, जिसकी वजह से घना को दुनिया भर में एक अलग पहचान मिली. हालांकि, लंबे समय से जल संकट से जूझ रहे केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में अब कई प्रजातियों के पक्षी नजर नहीं आते हैं.

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केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान से जुड़ी अहम जानकारियां (ETV BHARAT BHARATPUR)

एक ही साल में घट गए 18% पर्यटक : केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में हर साल हजारों की संख्या में पर्यटक पक्षियों की अठखेलियां देखने के लिए पहुंचते हैं. गत वर्ष केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में ई-रिक्शा की सुविधा शुरू की गई. इसके साथ ही पर्यटकों के लिए ई-रिक्शा के साथ नेचर गाइड की अनिवार्यता का नियम भी लागू कर दिया गया था. इस नियम की वजह से पर्यटकों में काफी नाराजगी और मायूसी रही. यही वजह थी कि साल 2023-24 में साल 2022-23 की तुलना में पर्यटकों की कुल संख्या में करीब 18% की गिरावट दर्ज की गई. हालांकि, इस बार केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान प्रशासन ने इसके नुकसान को देखते हुए नेचर गाइड की अनिवार्यता के नियम को संशोधित कर पहले के नियम को लागू कर दिया है.

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आंकड़ों में पर्यटकों की संख्या (ETV BHARAT BHARATPUR)

इसे भी पढ़ें - खबर का असर : केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में अब नेचर गाइड की अनिवार्यता खत्म, पर्यटकों के जेब पर नहीं पड़ेगा भार

घना से करोड़ों की आय : पर्यावरणविद भोलू अबरार ने बताया कि भरतपुर में केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान की वजह से पर्यटन व्यवसाय को अच्छी आय होती है. उद्यान की वजह से यहां के होटल व्यवसाय, रिक्शा चालक, नेचर गाइड और तमाम अन्य पर्यटन से जुड़े हजारों लोगों को आमदनी होती है. उद्यान की वजह से पूरे भरतपुर के पर्यटन व्यवसायियों को सालाना करीब 50 करोड़ से अधिक की होती है.

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उद्यान की खूबसूरती निहारते पर्यटक (ETV BHARAT BHARATPUR)

ये हैं चुनौती : पर्यावरणविद भोलू अबरार ने बताया कि लंबे समय से उद्यान जल संकट से जूझ रहा है. उद्यान के लिए पांचना बांध का पानी सबसे ज्यादा उपयोगी है, क्योंकि इसमें पक्षियों के लिए भरपूर मात्रा में मछली और अन्य भोजन साथ आते हैं. वहीं, लंबे समय से पांचना बांध का पानी उद्यान को नहीं मिल पाता है. खैर, इस साल अधिक बरसात की वजह से उद्यान को पांचना बांध का पानी मिला है, लेकिन जब तक उद्यान के लिए नियमित रूप से हर साल पांचना बांध का पानी नहीं मिलेगा, तब तक इसकी समस्या बरकरार रहेगी. हालांकि, सरकार के स्तर पर चंबल का पानी उपलब्ध कराने के लिए कई योजनाएं पाइपलाइन में हैं.

पक्षियों का स्वर्ग है भरतपुर का केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान (ETV BHARAT BHARATPUR)

भरतपुर : आज दुनिया भर में भरतपुर की पहचान केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान की वजह से है. केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान को विश्व विरासत का दर्जा प्राप्त है. यहां देश-विदेश से हर साल सैकड़ों प्रजाति के हजारों पक्षी पहुंचते हैं और उन्हें निहारने के लिए हजारों की संख्या में पर्यटक भी आते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि आज की यह विश्वविरासत किसी जमाने में शिकारगाह हुआ करती थी. यहां हर दिन हजारों बत्तखों का शिकार हुआ करता था. रियासतकाल में यहां राजा महाराजा और अंग्रेज पक्षियों की अठखेलियों को देखने के लिए नहीं, बल्कि उनका शिकार करने के लिए जुटते थे. आज यह उद्यान दुनियाभर में अपनी नई पहचान विश्व विरासत केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान यानी पक्षियों के स्वर्ग के रूप में जाना जाता है.

ऐसे तैयार हुआ पक्षियों का पसंदीदा स्थल : केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान से सेवानिवृत रेंजर व पर्यावरणविद भोलू अबरार ने बताया कि रियासतकाल में यह क्षेत्र यमुना नदी का बाढ़ प्रभावित और गंभीरी नदी, रूप रेल और बाणगंगा नदी का जल भराव क्षेत्र हुआ करता था. भरतपुर के शासक महाराजा सूरजमल ने 1850 से 1899 के दौरान गुजरात की मोर्वी रियासत के शासक हरभामजी के सहयोग से इस क्षेत्र में नहरों और बांधों का निर्माण कराया था. इसके पीछे का उद्देश्य यहां पर आसपास के गांव के पशुओं के लिए चारागाह उपलब्ध कराना और बतखों के आखेट के लिए स्थान विकसित करना था. 19वीं सदी के अंत में यह क्षेत्र जलभराव, नहर और बांध की वजह से दलदल के रूप में परिवर्तित होने लगा. इससे यहां बड़ी संख्या में देसी-विदेशी पक्षियों के आने का सिलसिला शुरू हुआ.

World Heritage Week 2024
उद्यान में साइकिल से घूमते विदेशी पर्यटक (ETV BHARAT BHARATPUR)

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यहां एक दिन में हुआ था 4206 बतखों का शिकार : महाराजा सूरजमल के इस प्रयास से यह क्षेत्र पक्षियों का एक प्रमुख स्थान बन गया और यहां पर बड़ी संख्या में बतख और अन्य पक्षी आने लगे. ऐसे में रियासतकाल में जब राजघराने के अतिथि और अंग्रेज यहां पर आते तो इस स्थान पर बतखों का शिकार किया जाता था. एक तरह से यह शिकारगाह यानी आखेटस्थल बन गया और इसका वायसराय लार्ड कर्जन ने 1902 में संगठित बतख आखेटस्थल के रूप में विधिवत उद्घाटन भी किया. यहां हर दिन हजारों बतखों का शिकार किया जाने लगा. पहले पटाखे फोड़कर बतखों को उड़ाते और उसके बाद बंदूक से उनका शिकार करते थे. 1916 में लार्ड चेम्सफोर्ड ने एक ही दिन में यहां 4206 बतखों का शिकार किया था.

World Heritage Week 2024
प्राकृतिक सुंदरता का मनमोहक संध्या दृश्य (ETV BHARAT BHARATPUR)

यूं मिला संरक्षण व पहचान : पर्यावरणविद भोलू अबरार खान ने बताया कि 1956 तक यहां बतखों का शिकार होता रहा, लेकिन उसके बाद इसे अभ्यारण्य घोषित कर दिया गया. साथ ही 1981 में इसे एक उच्चस्तरीय संरक्षण दर्जा प्राप्त राष्ट्रीय पार्क का दर्जा दे दिया गया. उसके बाद 1985 में उद्यान को विश्व विरासत स्थल के दर्जा मिल गया और इसकी ख्याति दुनियाभर में हो गई.

World Heritage Week 2024
तस्वीर खींचते फोटोग्राफर (ETV BHARAT BHARATPUR)

इसे भी पढ़ें - शूरवीर महाराणा प्रताप की गौरवमयी गाथा सुनाता है कुंभलगढ़ किला, 36 किमी दीवार है आकर्षण का केंद्र

यहां मिलते हैं सैकड़ों प्रजाति के हजारों पक्षी : पर्यावरणविद भोलू अबरार ने बताया कि अनुकूल भौगोलिक स्थिति और माहौल के चलते केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में करीब 350 प्रजाति के हजारों पक्षी हर साल प्रवास पर आते हैं. 2002 तक यहां पर साइबेरियन क्रेन भी आते थे, जिसकी वजह से घना को दुनिया भर में एक अलग पहचान मिली. हालांकि, लंबे समय से जल संकट से जूझ रहे केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में अब कई प्रजातियों के पक्षी नजर नहीं आते हैं.

World Heritage Week 2024
केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान से जुड़ी अहम जानकारियां (ETV BHARAT BHARATPUR)

एक ही साल में घट गए 18% पर्यटक : केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में हर साल हजारों की संख्या में पर्यटक पक्षियों की अठखेलियां देखने के लिए पहुंचते हैं. गत वर्ष केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में ई-रिक्शा की सुविधा शुरू की गई. इसके साथ ही पर्यटकों के लिए ई-रिक्शा के साथ नेचर गाइड की अनिवार्यता का नियम भी लागू कर दिया गया था. इस नियम की वजह से पर्यटकों में काफी नाराजगी और मायूसी रही. यही वजह थी कि साल 2023-24 में साल 2022-23 की तुलना में पर्यटकों की कुल संख्या में करीब 18% की गिरावट दर्ज की गई. हालांकि, इस बार केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान प्रशासन ने इसके नुकसान को देखते हुए नेचर गाइड की अनिवार्यता के नियम को संशोधित कर पहले के नियम को लागू कर दिया है.

World Heritage Week 2024
आंकड़ों में पर्यटकों की संख्या (ETV BHARAT BHARATPUR)

इसे भी पढ़ें - खबर का असर : केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में अब नेचर गाइड की अनिवार्यता खत्म, पर्यटकों के जेब पर नहीं पड़ेगा भार

घना से करोड़ों की आय : पर्यावरणविद भोलू अबरार ने बताया कि भरतपुर में केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान की वजह से पर्यटन व्यवसाय को अच्छी आय होती है. उद्यान की वजह से यहां के होटल व्यवसाय, रिक्शा चालक, नेचर गाइड और तमाम अन्य पर्यटन से जुड़े हजारों लोगों को आमदनी होती है. उद्यान की वजह से पूरे भरतपुर के पर्यटन व्यवसायियों को सालाना करीब 50 करोड़ से अधिक की होती है.

World Heritage Week 2024
उद्यान की खूबसूरती निहारते पर्यटक (ETV BHARAT BHARATPUR)

ये हैं चुनौती : पर्यावरणविद भोलू अबरार ने बताया कि लंबे समय से उद्यान जल संकट से जूझ रहा है. उद्यान के लिए पांचना बांध का पानी सबसे ज्यादा उपयोगी है, क्योंकि इसमें पक्षियों के लिए भरपूर मात्रा में मछली और अन्य भोजन साथ आते हैं. वहीं, लंबे समय से पांचना बांध का पानी उद्यान को नहीं मिल पाता है. खैर, इस साल अधिक बरसात की वजह से उद्यान को पांचना बांध का पानी मिला है, लेकिन जब तक उद्यान के लिए नियमित रूप से हर साल पांचना बांध का पानी नहीं मिलेगा, तब तक इसकी समस्या बरकरार रहेगी. हालांकि, सरकार के स्तर पर चंबल का पानी उपलब्ध कराने के लिए कई योजनाएं पाइपलाइन में हैं.

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