उदयपुर. दक्षिणी राजस्थान के आदिवासी क्षेत्र के एक शिक्षक ने कुछ ऐसा अनूठा कर दिखाया है कि अब उन्हें देश के सर्वश्रेष्ठ शिक्षकों की सूची में शामिल किया गया है. राष्ट्रपति शिक्षक अवॉर्ड के लिए आदिवासी बहुल इलाके में कार्यरत दुर्गाराम को चुना गया है (Udaipur Robin Hood teacher). उदयपुर के झाडोल उपखंड के राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय पारगियापाडा को लंबे समय से दुर्गाराम अपनी सेवाएं दे रहे हैं. शिक्षक हैं पर ख्याति रॉबिनहुड के तौर पर है (Robin Hood teacher Durgaram)! जानते हैं क्यों? क्योंकि ये जालिमों के हाथ से नौनिहालों को बचाते हैं और फिर उन्हें नेकी की राह पर चलने का सबक सिखाते हैं.
दरअसल उदयपुर के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र झाडोल व फलासिया में लगातार बाल तस्करी और छोटी-छोटी बच्चियों के दलालों के चंगुल में फंसने के मामले सामने आ रहे थे. अभी तक दुर्गाराम ने झाड़ोल-फलासिया ब्लॉक के करीब 400 से ज्यादा लड़के-लड़कियों को बाल तस्करी एवं बाल श्रम से मुक्त कराया है. मसीहा बन इनकी जान बचाई. कोरोना काल में इनके साथ डटे रहे जागरूकता का पाठ पढ़ाते रहे. फिर कोरोना वैक्सीनेशन को लेकर भ्रांतियां दूर करने में बच्चों से जु़ड़े और बड़ों को राह दिखाई. दुर्गाराम ने अपने प्रयासों एवं टीम के सहयोग से कई तरह की घटनाओं से जूझते हुए मात्र 15 दिन में मादड़ी पंचायत को भारत की सबसे पहली सर्वाधिक टीकाकरण वाली आदिवासी पंचायत बना दिया था.
कैसे किया सफर का आगाज: दुर्गाराम ने सफर का आगाज 2008 में किया. पहली पोस्टिंग पलासिया इलाके के स्कूल में हुई. नियुक्ति के बाद इस ग्रामीण आदिवासी इलाके के हालात देखें. अपने तौर पर बच्चों की गैरहाजिरी का मर्म समझना चाहा तो पाया स्कूलों से बड़ी संख्या में बच्चे पढ़ाई छोड़ कर बाल तस्करी और बालश्रम में झोंके जा रहे हैं. दुर्गाराम ने इन परिस्थितियों को चैलेंज के तौर पर स्वीकारा. अपने स्तर पर आदिवासी बाहुल्य गांव की तस्वीर बदलने का फैसला लिया. अपना मुखबिर तंत्र विकसित किया जिसने बाल तस्करी और बालश्रम को लेकर सूचना देना शुरू किया. बस फिर क्या था दुर्गाराम ने अंग्रेजी किताबों में जंगल के मसीहा के तौर पर पहचाने जाने वाले रॉबिन हुड का अवतार लिया. यानी बच्चों को बचा कर उनके संरक्षण में जुट गए. बताते हैं अब तक 400 से ज्यादा बच्चों को स्कूल से जोड़ चुके हैं.
MP, महाराष्ट्र भी पहुंचे मास्टर साहब: दुर्गाराम ने बताया कि इन इलाकों में बाल तस्करी और बाल श्रम रोकने में चुनौतियां भी कम नहीं आई. बताते हैं कि बच्चों को देश के अलग-अलग राज्यों में पहुंचाया गया था. ये भी एक चुनौती थी. मैं इन्हें ढूंढते हुए गुजरात, आंध्रप्रदेश, महाराष्ट्र व अन्य राज्यों तक गया और इन्हें बचाया. कई बार जानलेवा हमले भी हुए. बावजूद इसके न रुका न डिगा, नेकी की डगर पर चलता रहा. धीरे-धीरे पहचाना जाने लगा. फिर आम लोगों के साथ खास का भी समर्थन मिलने लगा. शासन-प्रशासन से भी लगातार सहयोग मिलने लगा.
बच्चों के साथ ज्यादती देख पसीजा दिल: मासूमों के मसीहा बताते हैं- चूंकि गुजरात की सीमा से सटा इलाका है, इसलिए इन बच्चों को बाल श्रम के लिए डरा धमका कर गुजरात ले जाना आसान होता है. यहीं पर बच्चों से 15-18 घंटे काम करवाया जाता है. बच्चे विरोध करते हैं तो उन्हें मारा पीटा जाता है. हाड़ तोड़ मेहनत कर बच्चे बीमार होते हैं तो इनके इलाज की जिम्मेदारी भी नहीं उठाई जाती. बच्चों को घर भेज दिया जाता है. दुर्गाराम को कष्ट इस बात का है कि कई अभिभावक भी दलालों से एडवांस पैसा लेकर अपने बच्चों को बाल श्रम के लिए भेज देते हैं.
चाइल्ड हेल्पलाइन का भरपूर सहयोग मिला. दुर्गाराम के कार्यों को देखते हुए शिक्षा निदेशालय बीकानेर ने इनको रॉबिनहुड का खिताब दिया था. राजस्थान पुलिस के स्थापना दिवस पर आईजी व एसपी ने संभाग स्तर पर सम्मानित भी किया था. इन्होंने लगभग 200 से ज्यादा बालिकाओं को कई तरह के अभाव से बाहर निकालकर शिक्षा से जोड़ने का काम किया. जिन बच्चियों को माता-पिता ने पैसों के अभाव में पढ़ाई छुड़वा दी थी. उनको ये आगे पढ़ाई जारी रखने के लिए आर्थिक मदद भी देते हैं. आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में दुर्गाराम ने अनगिनत हजारों पेड़ लगाए. पर्यावरण संरक्षण को लेकर लोगों को जागरूक भी किया.