उदयपुर. इन दिनों राजस्थान का सियासी पारा चढ़ा हुआ है. सियासत के लिहाज से कहें तो मेवाड़ क्षेत्र पॉलिटिक्स का हॉटकेक (Political game of Mewar) बना हुआ है. मिशन 2023 को ध्यान में रखते हुए दोनों प्रमुख दल अपनी जमीन को मजबूत करने की जोर-आजमाइश कर रहे हैं. बीते साल यानी 2021 में भाजपा का दो दिवसीय चिंतन शिविर कुम्भलगगढ़ में लगा तो अब कांग्रेस उदयपुर के लिए तैयार है.
रीत से प्रीत या गुजरात की चाह: मेवाड़ की जंग बहुत अहम है. एक तो है रीत का सवाल, दूसरा गुजरात पर नजर. जानकार मानते हैं कि वीरों की इस भूमि पर जिसका भी सिक्का जमता है, वो सत्ता की कुर्सी पर काबिज हो जाता है. 2018 ने सिलसिले को तोड़ा और उदयपुर संभाग में 28 में से 15 विधानसभा सीटों पर जीतने वाली भाजपा पिछड़ गई और 10 सीटें अपने नाम करने वाली कांग्रेस कयासों और रिवायतों को पीछे छोड़ सत्ता में आ गई. दूसरी अहम वजह इसकी भौगोलिक परिस्थिति भी है. ये इलाका पड़ोसी राज्य गुजरात से सटा है तो तय माना जाता है कि इसका असर पड़ोसी राज्य पर भी पड़ेगा. वहां भी चुनाव होने हैं.
आदिवासी सीटें अहम: मेवाड़ आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र भी माना जाता है. आदिवासी बाहुल्य मेवाड़ में 5 लोकसभा सीटें और 7 जिले हैं. विधानसभा के लिहाज से मेवाड़ में 28 विधानसभा सीटें हैं. जिनमें 19 सीटें अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं. इनमें उदयपुर, चित्तौड़गढ़, राजसमंद, प्रतापगढ़, बांसवाड़ा, डूंगरपुर शामिल हैं. राजस्थान की राजनीति में मेवाड़ का अपना एक दबदबा रहा है. इस दबदबे को देखते हुए राजनीतिक पार्टियां अब लगातार कई कार्यक्रमों का आयोजन कर रही हैं.
पढ़ें- महाराणा प्रताप के चक्रव्यूह में फंसी थी अकबर की सेना, एक युद्ध में 3 पीढ़ियों की शहादत
फतह के लिए उदयपुर अहम: मेवाड़ में उदयपुर क्यों चुना जाता है? क्या नैसर्गिक खूबसूरती के लिए (Political Tourism in Rajasthan), लग्जरी के लिए या फिर कुछ और! तो वो कुछ और है बहुमत का गुणा-भाग. दरअसल, मेवाड़ में अगर 18-20 सीटें भी एक पार्टी जीत लेती है तो बहुमत के आंकड़े यानी 101 पर पहुंचना आसान होगा. यही वजह है कि भाजपा किला बचाने की जुगत में है तो कांग्रेस अपने पैर मजबूती से जमाने की कोशिश में. इन परिस्थितियों में मेवाड़ और खासकर उदयपुर अहम हो जाता है. चहलकदमी पिछले साल से ही बढ़ गई है. महाराणा प्रताप की जन्मभूमि कुंभलगढ़ में (BJP Kumbhalgarh Chintan Shivir) भाजपा का चिंतन शिविर आयोजित किया गया. जिसमें भाजपा के प्रदेश और मोदी मंत्रिमंडल में स्थापित राजस्थान के सदस्य और पदाधिकारियों ने आगामी चुनाव को लेकर गहन चिंतन मनन किया था. इस चिंतन शिविर में भाजपा की राष्ट्रीय संगठन महामंत्री बीएल संतोष ने प्रदेश भाजपा को एक सूत्र में काम करने का संदेश दिया था. कुम्भलगढ़ में भाजपा ने दो दिनों तक चिंतन मनन किया तो अब बारी कांग्रेस की है. आगामी 13 मई से 15 मई तक कांग्रेस चुनाव की रणनीति गढ़ेगी.
दक्षिण राजस्थान के इस अहम क्षेत्र मेवाड़ में जनता ने कभी कंफ्यूजन नहीं क्रिएट किया. हमेशा नतीजा एकतरफा दिया, स्पष्ट दिया. पार्टियां मानती हैं कि यहां से जो संदेश निकलेगा वो क्लियर होगा और पूरे मरुभूमि पर अपनी छाप छोड़ेगा. ये चिंतन शिविर उसी विचार की कहानी बयां करते हैं. पार्टियों के दिग्गज मेवाड़ को मजबूत करने के लिए जुटे रहते हैं. तय है कि कांग्रेस के शिविर के बाद ये सिलसिला कायम रहेगा. आगामी दिनों में कांग्रेस, भाजपा और अन्य पार्टियों के नेताओं के कई कार्यक्रमों के बड़े आयोजन यहां पूरे होंगे.
चिंतन शिविर क्यों?: अभी तक की जानकारी के मुताबिक चिंतन शिविर में देशभर के 400 से ज्यादा कांग्रेस के नेता शामिल (Congress to convene Chintan Shivir In Udaipur) होंगे. सूत्रों के मुताबिक पार्टी के पदाधिकारियों को लगता है कि चिंतन शिविर का संदेश मेवाड़ के पड़ोसी राज्य गुजरात तक जाएगा. हालांकि पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस मेवाड़ में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाई थी. कयास लगाए जा रहे हैं कि वर्तमान माहौल में पार्टी मजबूती के साथ एकजुट होकर चुनावी समर में उतरने का संदेश देना चाहती है. ऐसे में एक बार फिर से चुनाव से पहले ही कांग्रेस भाजपा और अन्य राजनीतिक संगठनों के नेताओं का प्रवास सियासी तपिश को बढ़ाने लगा है. हाल ही में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत मेवाड़ के तीन बार दौरे पर आ चुके हैं. उनके साथ राजस्थान प्रदेश प्रभारी अजय माकन, प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा भी मौजूद रहे. इस दौरान मुख्यमंत्री ने आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र डूंगरपुर में एक कार्यक्रम को संबोधित किया जबकि सेवादल के कार्यक्रम से लंबा चौड़ा भाषण देते हुए सियासी लकीर को अभी से खींचने का काम किया.
बड़ी हो या छोटी नजर सबकी पैनी : तू डाल डाल, मैं पात पात...की तर्ज पर भाजपा ने मौका जाने नहीं दिया. मुख्यमंत्री के दौरे के तुरंत बाद भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया, भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री विनोद तावड़े ने भी भाजपा पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं को आगामी चुनाव को लेकर गुरु मंत्र दिए. समर में बड़ी पार्टियों संग अन्य छोटी पार्टियां भी अपना दमखम दिखाने को तैयार हैं. इनमें आरएलपी के संयोजक हनुमान बेनीवाल भी शामिल हैं. जो पिछले दिनों दो दिवसीय मेवाड़ दौरे पर आए. उन्होंने मेवाड़ विधानसभा क्षेत्र का दौरा करके कार्यकर्ताओं की नब्ज टटोली. इसके साथ ही पंजाब में बेहतरीन प्रदर्शन करने के बाद आम आदमी पार्टी भी नई उमंग और उत्साह के साथ राजस्थान में अपने कदम रख रही है. वो भी मेवाड़ का महत्व जानती है तभी तो पार्टी के प्रदेश प्रभारी विनय मिश्रा अपने दौरे पर यहां पधारे. यहां कार्यकर्ताओं से संवाद किया और जमीनी हकीकत जानने की कोशिश की.
पढ़ें- Vasundhara In Mewar: वसुंधरा की मेवाड़ यात्रा से संभाग का ये दिग्गज नेता रहेगा दूर...
1998 से लेकर अब तक: 2008 में परिसीमन के बाद उदयपुर संभाग की विधानसभा सीटें घटकर 28 हो गईं. इससे पहले ये 30 थीं. बात करें 1998 से लेकर 2018 के बीच हुए चुनावों की तो तस्वीर कुछ ऐसी बनती है- सन 1998 में कुल सीटें 30 थीं, तब कांग्रेस को 23, भाजपा को 4 और अन्य के खाते में 3 गईं. सन 2003 में कुल विधानसभा सीट 30 ही थीं. उसमें से कांग्रेस को 7, भाजपा को 21 और अन्य को दो मिलीं. सन 2008 कुल सीटें सिमट कर 28 पर आ गईं. इनमें कांग्रेस को 20, भाजपा को 6 और अन्य को 2 सीटें हासिल हुईं. सन 2013 में कुल सीट 28 थीं. यहां कांग्रेस को 2, भाजपा को 25 और अन्य के खाते में 1 गई. पिछले विधानसभा यानी 2018 में कुल 28 सीटें थीं. इसमें कांग्रेस को 10, भाजपा को 15 और अन्य को 3 मिलीं.