उदयपुर: विश्व इतिहास युद्धों से भरा हुआ है. कुछ ऐसे युद्ध हैं, जिनसे आज भी लोगों की भावनाएं जुड़ी हैं. इसमें सबसे पहला नाम हल्दीघाटी युद्ध का आता है. करीब 500 साल बीत जाने के बाद भी प्रताप, चेतक और हल्दीघाटी हमारे जीवन का हिस्सा और किस्सा बनी हुई है. एक बार फिर शिलालेख विवाद को लेकर हल्दीघाटी युद्ध चर्चा में है.
हल्दीघाटी का युद्ध भारत के इतिहास में ऐसा युद्ध था, जिसमें अदम्य साहस का पराक्रम दिखाते हुए महाराणा प्रताप ने जो लकीर खींची थी, उससे मानव जाति के रगों में एक नई ज्वाला का संचार हुआ था. इस पूरे युद्ध को लेकर हमने इतिहासकार डॉ. चंद्रशेखर शर्मा से बातचीत की. वे महाराणा प्रताप पर पहली पीएचडी करने के कारण करीब 16 सालों से इतिहास को तथ्यात्मक बनाने का काम कर रहे हैं.
डॉ. चंद्रशेखर शर्मा ने ईटीवी भारत से बातचीत में बताया कि 18 जून 1576 को सूर्योदय से सूर्यास्त के बीच हल्दीघाटी की भूमि पर महाराणा प्रताप और अकबर की सेना के बीच भयंकर युद्ध चला. इस युद्ध में मुगलों की सेना का नेतृत्व राजा मानसिंह कछवाहा के पास था. वहीं प्रताप ने हकीम खां सूर, रामशाह तंवर, झाला मान, भीम सिंह डोडिया जैसे सेनानायकों के साथ इस भीषण युद्ध को लड़ा था.
हरावल का नेतृत्व हकीम खां को दिया गया था. वह मुस्लिम थे. बारूद और तोप के जानकार होने के साथ उन्हें हरावल का सेनापति बनाया गया था. यह उनकी योग्यता और दक्षता का सबसे बड़ा प्रमाण है. इस युद्ध में कई शहादतें हुईं. मुगल सेना को भी भारी नुकसान उठाना पड़ा. मुगल सेना को 6 किलोमीटर तक उल्टे पैर लौटना पड़ा.
पहली बार मानसिंह का सामना प्रताप से हुआ. जिसकी पहल प्रताप ने की थी. आमने-सामने के मुकाबले में भी मान सिंह ने हाथी के होदे में छिपकर अपने प्राणों की रक्षा की और असंतुलित हाथी के कारण युद्ध क्षेत्र छोड़ना पड़ा. ग्वालियर के शासक राम शातवर मेवाड़ में सेना को प्रशिक्षण देने का कार्य कर रहे थे. इस युद्ध में उनके साथ उनके तीन बेटे शालिवाहन, भवानी सिंह, प्रताप सिंह और पोता बलभद्र सिंह शहीद हो गए. यानी 1 दिन में तीन पीढ़ियां शहीद हो गईं. ऐसा उदाहरण विश्व इतिहास में कोई दूसरा नहीं मिलता.
पढ़ें: हल्दीघाटी में बदलेगा महाराणा प्रताप का इतिहास, कांग्रेस की आपत्ति, बीजेपी ने किया स्वागत
मेवाड़ में पाई जाने वाली पर्वत श्रृंखला अरावली के नाम से जानी जाती है. यह भौगोलिक दृष्टि से हिमालय से भी पुरानी श्रृंखलाओं में आती है. इस अरावली में कई दर्रे बने हुए हैं. जिसमें सबसे प्रमुख दर्रा हल्दीघाटी का है. इसलिए प्रताप ने किले और मैदानी युद्ध को ना करते हुए पहाड़ी युद्ध की नीति को अंजाम दिया. यहां पर भौगोलिक संरचना सर्प के आकार की पाई जाती है. इसलिए सर्प व्यूह का निर्माण किया.
सर्प व्यूह का ही नतीजा था कि हल्दीघाटी से मुगलों को खाली हाथ लौटना पड़ा. प्रताप को पकड़ने और बंदी बनाने के अकबर के मंसूबे नाकाम रहे. इसकी नाराजगी की सजा राजा मानसिंह, आसफ खान को झेलनी पड़ी. जब उन्होंने अपनी हार का कारण हल्दीघाटी बताया तो ठीक हल्दीघाटी युद्ध के 3 महीने बाद अकबर हल्दीघाटी को देखने के लिए आया.
वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप का नाम सुनते ही हमारा मस्तक श्रद्धा से झुक जाता है. हमारे अंदर राष्ट्र के प्रति स्वतंत्रता और अस्मिता के प्रति एक सम्मान का भाव जागृत होता है. विदेशी पर्यटक भी जब प्रताप के शौर्य और पराक्रम के बारे में जानते हैं या उनकी प्रतिमा का दर्शन करते हैं, तब उनके अंदर भी अपने देश के प्रति राष्ट्र की भावना जागृत होती है.
अब सबकी निगाहें आने वाले समय में एएसआई (ASI) द्वारा लगाए जाने वाले नए शिलालेख पर टिकी हुई हैं. अब जो शिलालेख लगेंगे उनमें तारीख, वृतांत के साथ तथ्यात्मक बातें होंगी. यह प्रताप और राष्ट्रीय संस्कृति का गौरव बढ़ाने वाली होंगी.