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द्वारिकाधीश मंदिर में फागोत्सव की धूम...एक वर्ष बाद श्रद्धालुओं ने किए राल दर्शन, जमकर उड़े रंग-गुलाल - Rajasthan news

द्वारिकाधीश मंदिर में इन दिनों फागोत्सव (Dwarkadhish temple on phag festival) की धूम है. मंदिर में एक वर्ष बाद श्रद्धालु राल दर्शन किए जा रहे हैं. मंदिर में श्रद्धालुओं ने जमकर रंग और गुलाल उड़ाए.

Devotees did ral darshan in Dwarkadhish temple
द्वारिकाधीश मंदिर में फागोत्सव की धूम
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Published : Mar 5, 2022, 6:35 PM IST

Updated : Mar 5, 2022, 10:50 PM IST

उदयपुर. होली का पर्व नजदीक आने के साथ ही मंदिरों में फाग (Dwarkadhish temple on phag festival) का रंग चढ़ने लगा है. ऐसे में पुष्टिमार्गीय मंदिर में होली का अपना विशेष महत्व है. राजसमंद के पुष्टिमार्गीय वल्लभ संप्रदाय की तृतीय पीठ कांकरोली स्थित प्रभु श्री द्वारकाधीश मंदिर में होली का पर्व अपने आप में अनूठे अंदाज में मनाया जाता है. होली के 1 महीने पहले से मंदिरों में फाग की धूम दिखने लग जाती है. होली के रंग यहां देखते ही बनते हैं.

वैसे तो समस्त पुष्टिमार्गीय मंदिरों में होली का पर्व विशेष महत्व रखता है, लेकिन वल्लभ संप्रदाय की तृतीय पीठ श्री द्वारकाधीश मंदिर में फाग की रंगत दोगुनी रहती है. कोरोना संक्रमण की वजह से एक साल बाद श्रद्धालु प्रभु श्री द्वारकाधीश मंदिर में राल के दर्शन (Devotees did ral darshan in Dwarkadhish temple) का आनंद ले रहे हैं. मंदिर में नाच गाकर श्रद्धालु प्रभु की भक्ति में रंगे नजर आ रहे हैं.

द्वारिकाधीश मंदिर में फागोत्सव की धूम

पढ़ें. Holi Special: यहां होली पर धधकते अंगारों पर से ​नंगे पैर गुजरे लोग, खुशहाली और निरोगी रहने की कामना की

बसंत पंचमी से शुरू होती है गुलाल की सेवा
श्री द्वारकाधीश मंदिर के कार्यकारी अधिकारी विनीत सनाढ्य ने बताया कि कोरोना के कारण एक वर्ष बाद श्रद्धालु श्री द्वारकाधीश मंदिर में राल के दर्शन कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि बसंत पंचमी से ही प्रभु श्री द्वारिकाधीश को गुलाल की सेवा आरंभ होती है. यहां राजभोग के दर्शन में प्रतिदिन प्रभु द्वारकाधीश को गुलाल की सेवा अंगीकार कराई जाती है. यहां पर गोस्वामी परिवार की ओर से प्रभु को गुलाल से खेल खिलाया जाता है. यह दर्शन एक घंटे तक ही चलता है. जैसे-जैसे होली नजदीक आती है, गुलाल की सेवा में बढ़ोतरी होती जाती है.

Devotees did ral darshan in Dwarkadhish temple
द्वारिकाधीश मंदिर में फागोत्सव

इसी क्रम में होली डंडा रोपण के साथ एक विशेष तरह के दर्शन होते हैं. इसे राल का दर्शन कहा जाता है. दर्शन में प्रभु द्वारिकाधीश के सम्मुख लकड़ी के बड़े-बड़े बांसों पर कपड़ा बांधा जाता है. उन कपड़ों को तेल में भिगोकर बांधा जाता है जिससे अग्नि प्रज्वलित की जाती है. फिर गोस्वामी परिवार की ओर से उस अग्नि में राल और सिंघाड़े का आटा डाला जाता है. इससे वह अग्नि प्रज्वलित होती है और उससे जबरदस्त लपटें उठती हैं. इसके दर्शन के लिए दूरदराज से लोग द्वारकाधीश मंदिर पहुंचते हैं.

पढ़ें. जानें मृत आत्माओं की पूजा की 100 साल पुरानी परंपरा

राल के दर्शन का विशेष महत्व
मंदिर प्रशासन के अनुसार पुरातन काल में मौसमी बीमारियों को भगाने के लिए कई तरह के उपाय किये जाते थे. इसमें राल दर्शन भी महत्वपूर्ण है. फाल्गुन माह वास्तव में मौसम परिवर्तन का समय होता है. इस मौसम में सर्दी और गर्मी दोनों का ही माहौल रहता है जिससे हमारे शरीर में बैक्टीरिया पैदा करती है और लोग बीमार होते हैं. राल से निकलने वाली पांच जड़ी बूटियों के मिश्रण की सुगंध जब हमारी सांसों में घुलती है तो बीमारी पैदा करने वाले बैक्टीरिया को वह जड़ से खत्म कर देता है. होली डंडा रोपण के साथ ही यह दर्शन आरंभ होते हैं जो डोल तक विशेष क्रम में लगभग 4 से 5 बार आयोजित होते हैं. होली डंडा रोपण के साथ ही बृजवासी ग्वाल बाल द्वारकाधीश मंदिर में रसिया का गान कर प्रभु को रिझाते हैं.

पढ़ें. Special: अपने आप में अलग है बीकानेरी होली, 400 साल से लोक संस्कृति की छटा बिखेर रहा रम्मत मंचन

शयन के दर्शन में फागण में ग्वाल बाल खेल बंद कर प्रभु के सम्मुख नृत्य करते हैं और होली से 2 दिन पूर्व प्रभु द्वारकाधीश मंदिर में 84 स्तंभ के बगीचे को मनोरथ आयोजित होता है. इस मनोरथ में प्रभु द्वारिकाधीश को निज मंदिर स्थित रतन चौक में बनाए गए विशेष कुंज में विराजित किया जाता है. यह कुंज केले के 84 पेड़ों से बना होता है. प्रभु द्वारकाधीश उसमें विराजित होते हैं और श्रद्धालुओं के साथ जमकर होली खेलते हैं.

मंदिर में श्रद्धालु चंग की थाप पर नाचते गाते हुए नजर आ रहे हैं. गुजरात से पहुंचे श्रद्धालुओं ने बताया कि प्रभु द्वारिकाधीश मंदिर में राल के दर्शन कर बड़ा अच्छा महसूस हुआ. प्रभु संग होली खेलकर बहुंत आनंद मिला. भगवान द्वारिकाधीश के मंदिर में होली के रंग देखने के लिए देश के विभिन्न इलाकों खासकर गुजरात, महाराष्ट्र और अन्य राज्यों से भी लोग पहुंचते हैं और प्रभु के दर्शनों का आनंद लेकर अपने जीवन को सफल बनाते हैं.

उदयपुर. होली का पर्व नजदीक आने के साथ ही मंदिरों में फाग (Dwarkadhish temple on phag festival) का रंग चढ़ने लगा है. ऐसे में पुष्टिमार्गीय मंदिर में होली का अपना विशेष महत्व है. राजसमंद के पुष्टिमार्गीय वल्लभ संप्रदाय की तृतीय पीठ कांकरोली स्थित प्रभु श्री द्वारकाधीश मंदिर में होली का पर्व अपने आप में अनूठे अंदाज में मनाया जाता है. होली के 1 महीने पहले से मंदिरों में फाग की धूम दिखने लग जाती है. होली के रंग यहां देखते ही बनते हैं.

वैसे तो समस्त पुष्टिमार्गीय मंदिरों में होली का पर्व विशेष महत्व रखता है, लेकिन वल्लभ संप्रदाय की तृतीय पीठ श्री द्वारकाधीश मंदिर में फाग की रंगत दोगुनी रहती है. कोरोना संक्रमण की वजह से एक साल बाद श्रद्धालु प्रभु श्री द्वारकाधीश मंदिर में राल के दर्शन (Devotees did ral darshan in Dwarkadhish temple) का आनंद ले रहे हैं. मंदिर में नाच गाकर श्रद्धालु प्रभु की भक्ति में रंगे नजर आ रहे हैं.

द्वारिकाधीश मंदिर में फागोत्सव की धूम

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बसंत पंचमी से शुरू होती है गुलाल की सेवा
श्री द्वारकाधीश मंदिर के कार्यकारी अधिकारी विनीत सनाढ्य ने बताया कि कोरोना के कारण एक वर्ष बाद श्रद्धालु श्री द्वारकाधीश मंदिर में राल के दर्शन कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि बसंत पंचमी से ही प्रभु श्री द्वारिकाधीश को गुलाल की सेवा आरंभ होती है. यहां राजभोग के दर्शन में प्रतिदिन प्रभु द्वारकाधीश को गुलाल की सेवा अंगीकार कराई जाती है. यहां पर गोस्वामी परिवार की ओर से प्रभु को गुलाल से खेल खिलाया जाता है. यह दर्शन एक घंटे तक ही चलता है. जैसे-जैसे होली नजदीक आती है, गुलाल की सेवा में बढ़ोतरी होती जाती है.

Devotees did ral darshan in Dwarkadhish temple
द्वारिकाधीश मंदिर में फागोत्सव

इसी क्रम में होली डंडा रोपण के साथ एक विशेष तरह के दर्शन होते हैं. इसे राल का दर्शन कहा जाता है. दर्शन में प्रभु द्वारिकाधीश के सम्मुख लकड़ी के बड़े-बड़े बांसों पर कपड़ा बांधा जाता है. उन कपड़ों को तेल में भिगोकर बांधा जाता है जिससे अग्नि प्रज्वलित की जाती है. फिर गोस्वामी परिवार की ओर से उस अग्नि में राल और सिंघाड़े का आटा डाला जाता है. इससे वह अग्नि प्रज्वलित होती है और उससे जबरदस्त लपटें उठती हैं. इसके दर्शन के लिए दूरदराज से लोग द्वारकाधीश मंदिर पहुंचते हैं.

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राल के दर्शन का विशेष महत्व
मंदिर प्रशासन के अनुसार पुरातन काल में मौसमी बीमारियों को भगाने के लिए कई तरह के उपाय किये जाते थे. इसमें राल दर्शन भी महत्वपूर्ण है. फाल्गुन माह वास्तव में मौसम परिवर्तन का समय होता है. इस मौसम में सर्दी और गर्मी दोनों का ही माहौल रहता है जिससे हमारे शरीर में बैक्टीरिया पैदा करती है और लोग बीमार होते हैं. राल से निकलने वाली पांच जड़ी बूटियों के मिश्रण की सुगंध जब हमारी सांसों में घुलती है तो बीमारी पैदा करने वाले बैक्टीरिया को वह जड़ से खत्म कर देता है. होली डंडा रोपण के साथ ही यह दर्शन आरंभ होते हैं जो डोल तक विशेष क्रम में लगभग 4 से 5 बार आयोजित होते हैं. होली डंडा रोपण के साथ ही बृजवासी ग्वाल बाल द्वारकाधीश मंदिर में रसिया का गान कर प्रभु को रिझाते हैं.

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शयन के दर्शन में फागण में ग्वाल बाल खेल बंद कर प्रभु के सम्मुख नृत्य करते हैं और होली से 2 दिन पूर्व प्रभु द्वारकाधीश मंदिर में 84 स्तंभ के बगीचे को मनोरथ आयोजित होता है. इस मनोरथ में प्रभु द्वारिकाधीश को निज मंदिर स्थित रतन चौक में बनाए गए विशेष कुंज में विराजित किया जाता है. यह कुंज केले के 84 पेड़ों से बना होता है. प्रभु द्वारकाधीश उसमें विराजित होते हैं और श्रद्धालुओं के साथ जमकर होली खेलते हैं.

मंदिर में श्रद्धालु चंग की थाप पर नाचते गाते हुए नजर आ रहे हैं. गुजरात से पहुंचे श्रद्धालुओं ने बताया कि प्रभु द्वारिकाधीश मंदिर में राल के दर्शन कर बड़ा अच्छा महसूस हुआ. प्रभु संग होली खेलकर बहुंत आनंद मिला. भगवान द्वारिकाधीश के मंदिर में होली के रंग देखने के लिए देश के विभिन्न इलाकों खासकर गुजरात, महाराष्ट्र और अन्य राज्यों से भी लोग पहुंचते हैं और प्रभु के दर्शनों का आनंद लेकर अपने जीवन को सफल बनाते हैं.

Last Updated : Mar 5, 2022, 10:50 PM IST
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