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श्रीगंगानगर में बेहतर पैदावार के लिए लंबे अनुसंधान के बाद वैज्ञानिकों ने तैयार किए उन्नत किस्म के बीज - advanced seeds after long research

फसल की बुआई के लिए किसान जीतोड़ मेहनत करता है. इसलिए उसे उम्मीद होती है कि उपज अच्छे से अच्छा हो. लेकिन, बाजार में नकली बीज उपलब्ध होने के चलते फसल की अच्छी उपज नहीं हो पाती है. इसे ध्यान में रखते हुए श्रीगंगानगर के कृषि अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिकों ने किसानों को चने का बेहतर पैदावार दिलाने के लिए उन्नत किस्म के बीज तैयार किए हैं.

श्रीगंगानगर, advanced seeds
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Published : Nov 5, 2019, 6:00 PM IST

श्रीगंगानगर. कृषि अनुसंधान केंद्र श्रीगंगानगर के वैज्ञानिकों ने किसानों को चने का बेहतर पैदावार दिलाने के लिए, लंबे अनुसंधान के बाद उन्नत किस्म के बीज तैयार किए हैं. चने का ये बीज किसानों के लिए केंद्र में तैयार किया गया है, ताकि किसान प्रमाणित बीज का इस्तेमाल करके पैदावार बढ़ा सकें.

किसानों को चने का बेहतर पैदावार दिलाने के लिए वैज्ञानिकों ने तैयार किया उन्नत किस्म का बीज

बता दें कि अनुसंधान केंद्र पर 12 साल में 11 किस्म के चने के बीज तैयार किए गए हैं. कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि एआरएस श्रीगंगानगर द्वारा विकसित चना किस्मों का लाभ प्रदेश के साथ-साथ देश के दूसरे राज्यों के किसानों को भी मिलेगा. इस केंद्र के ओर से विकसित 7 चना किस्मों को आईसीएआर द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर और 4 किस्मों को प्रदेश के किसानों के लिए अधिसूचित किया गया है.

कृषि वैज्ञानिकों ने नव विकसित चना किस्म को केशव 'जीएनजी 2261' नाम दिेया है. खास बात ये कि ये पहला चना किस्म है जिसका नामकरण स्वामी केशवानंदन के नाम पर हुआ है. इस किस्म की पहचान राजस्थान के लिए हुई है. इसकी अधिसूचना जारी होने के बाद एआरएस के ओर से प्रदेश के किसानों को बीज उपलब्ध कराया जाएगा.

चने की सात किस्म राष्ट्रीय स्तर पर अधिसूचित

किसी एक अनुसंधान केंद्र द्वारा विकसित 7 किस्में राष्ट्रीय स्तर पर अधिसूचित होना भी प्रदेश के लिए गर्व का विषय है। इस केंद्र के द्वारा विकसित चना किस्म गणगौर, मरुधर, त्रिवेणी मीरा, तीज और अवध को आईसीएआर में राष्ट्रीय स्तर पर अधिसूचित किया हुआ है. वहीं गौरी, संगम और जीएनजी-1292 राज्य स्तर पर अधिसूचित किया है. इस क्रम में अब केशव जीएनजी 2261 भी शामिल हो चुकी है.नई चना किस्मों के विकास से प्रदेश में चने के औसत उत्पादकता में भी वृद्धि देखने को मिली है.

पढ़ें: अब 'संजू' चढ़ गया बिजली ट्रांसफार्मर पर, 2 घंटे तक पुलिस मनाती रही

दो सिंचाई ही काफी

कृषि वैज्ञानिकों की मानें तो चने की केशव किस्म को ज्यादा सिंचाई की जरूरत नहीं है. यह किस्म दो सिंचाई में पककर तैयार हो जाती है साथ ही यह देर से बुवाई के लिए उपयुक्त है. कपास और ग्वार की कटाई के बाद किसान इस किस्म की बुवाई कर सकते हैं. यदि किसान समय पर केशव किस्म की बुवाई करता है तो उत्पादन ज्यादा मिलेगा. वैसे 15 नवंबर के बाद बुवाई करने पर प्रति क्विंटल 22 से 23 क्विंटल उत्पादन किसान को मिलेगा.

श्रीगंगानगर. कृषि अनुसंधान केंद्र श्रीगंगानगर के वैज्ञानिकों ने किसानों को चने का बेहतर पैदावार दिलाने के लिए, लंबे अनुसंधान के बाद उन्नत किस्म के बीज तैयार किए हैं. चने का ये बीज किसानों के लिए केंद्र में तैयार किया गया है, ताकि किसान प्रमाणित बीज का इस्तेमाल करके पैदावार बढ़ा सकें.

किसानों को चने का बेहतर पैदावार दिलाने के लिए वैज्ञानिकों ने तैयार किया उन्नत किस्म का बीज

बता दें कि अनुसंधान केंद्र पर 12 साल में 11 किस्म के चने के बीज तैयार किए गए हैं. कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि एआरएस श्रीगंगानगर द्वारा विकसित चना किस्मों का लाभ प्रदेश के साथ-साथ देश के दूसरे राज्यों के किसानों को भी मिलेगा. इस केंद्र के ओर से विकसित 7 चना किस्मों को आईसीएआर द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर और 4 किस्मों को प्रदेश के किसानों के लिए अधिसूचित किया गया है.

कृषि वैज्ञानिकों ने नव विकसित चना किस्म को केशव 'जीएनजी 2261' नाम दिेया है. खास बात ये कि ये पहला चना किस्म है जिसका नामकरण स्वामी केशवानंदन के नाम पर हुआ है. इस किस्म की पहचान राजस्थान के लिए हुई है. इसकी अधिसूचना जारी होने के बाद एआरएस के ओर से प्रदेश के किसानों को बीज उपलब्ध कराया जाएगा.

चने की सात किस्म राष्ट्रीय स्तर पर अधिसूचित

किसी एक अनुसंधान केंद्र द्वारा विकसित 7 किस्में राष्ट्रीय स्तर पर अधिसूचित होना भी प्रदेश के लिए गर्व का विषय है। इस केंद्र के द्वारा विकसित चना किस्म गणगौर, मरुधर, त्रिवेणी मीरा, तीज और अवध को आईसीएआर में राष्ट्रीय स्तर पर अधिसूचित किया हुआ है. वहीं गौरी, संगम और जीएनजी-1292 राज्य स्तर पर अधिसूचित किया है. इस क्रम में अब केशव जीएनजी 2261 भी शामिल हो चुकी है.नई चना किस्मों के विकास से प्रदेश में चने के औसत उत्पादकता में भी वृद्धि देखने को मिली है.

पढ़ें: अब 'संजू' चढ़ गया बिजली ट्रांसफार्मर पर, 2 घंटे तक पुलिस मनाती रही

दो सिंचाई ही काफी

कृषि वैज्ञानिकों की मानें तो चने की केशव किस्म को ज्यादा सिंचाई की जरूरत नहीं है. यह किस्म दो सिंचाई में पककर तैयार हो जाती है साथ ही यह देर से बुवाई के लिए उपयुक्त है. कपास और ग्वार की कटाई के बाद किसान इस किस्म की बुवाई कर सकते हैं. यदि किसान समय पर केशव किस्म की बुवाई करता है तो उत्पादन ज्यादा मिलेगा. वैसे 15 नवंबर के बाद बुवाई करने पर प्रति क्विंटल 22 से 23 क्विंटल उत्पादन किसान को मिलेगा.

Intro:श्रीगंगानगर : कृषि अनुसंधान केंद्र श्रीगंगानगर के वैज्ञानिकों ने किसानों को चने में बेहतर पैदावार दिलाने के लिए लंबे अनुसंधान के बाद उन्नत किस्म के बीज कृषि अनुसंधान केंद्र पर तैयार किए हैं।चने का यह बीज किसानों के लिए केंद्र में तैयार है ताकि किसान प्रमाणित बीज का इस्तेमाल करके अपनी पैदावार बढ़ा सके व नकली बीजों से बच सके। कृषि अनुशंधान केंद्र पर ओइछजले 12 साल में 11 चना किस्मों को तैयार किया है।कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि एआरएस श्रीगंगानगर द्वारा विकसित चना किस्मों का लाभ प्रदेश के साथ साथ देश के दूसरे राज्यों के किसानों को मिल रहा है। इस केंद्र के द्वारा विकसित 7 चना किस्मों को आईसीएआर द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर और 4 किस्मों को प्रदेश के किसानों के लिए अधिसूचित किया गया है। केंद्र के वैज्ञानिकों के द्वारा चने की नई किस्म विकसित की है।कृषि वैज्ञानिकों ने नव विकसित चना किस्म को केशव जीएनजी 2261 नाम दिया है। यह पहली चना की किस्म है जिसका नामकरण स्वामी केशवानंदन के नाम पर हुआ है। इस किस्म की पहचान राजस्थान के लिए हुई है। किस्म की अधिसूचना जारी होने के बाद एआरएस के द्वारा प्रदेश के किसानों को इस किस्म का बीज उपलब्ध कराया जाएगा। चना किस्म विकास की बागडोर एआरएस पर डॉ विजय प्रकाश आर्य,डॉ दशरथ सागर और डॉक्टर रूप सिंह मीणा संभाल रहे हैं।जानकारी के अनुसार प्रदेश के साथ-साथ दूसरे राज्यों में चना फसल की उत्पादकता बढ़ाने और देश को दलहन में आत्मनिर्भर बनाने के लिए कृषि वैज्ञानिकों ने वर्ष 2008 से अपने प्रयास शुरू किए थे। इसी का परिणाम है कि 12 साल में कृषि वैज्ञानिकों ने देश के किसानों को उच्च उत्पादकता और कीट रोग प्रतिरोधी 11 किस्में दी है। इस चना किस्मों का विकास राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर किसी रिकॉर्ड से कम नहीं है।एक किस्म के विकास में कृषि वैज्ञानिकों को 7 से 8 साल का समय लगता है।




Body:चने की सात किस्म राष्ट्रीय स्तर पर अधिसूचित :

किसी एक अनुसंधान केंद्र द्वारा विकसित 7 किस्में राष्ट्रीय स्तर पर अधिसूचित होना भी प्रदेश के लिए गर्व का विषय है। बता दें कि इस केंद्र के द्वारा विकसित चना किस्म गणगौर,मरुधर,त्रिवेणी मीरा,तीज और अवध को आईसीएआर में राष्ट्रीय स्तर पर अधिसूचित किया हुआ है। वही गौरी,संगम,जीएनजी-1292 राज्य स्तर पर अधिसूचित किया है.इस क्रम में अब केशव जीएनजी 2261 भी शामिल हो चुकी है.नई चना किस्मों के विकास से प्रदेश में चने के औसत उत्पादकता में भी वृद्धि देखने को मिली है। पहले जहां प्रति हेक्टेयर चने की औसत उत्पादन 10 क्विंटल के करीब रहता था। वह उच्च उत्पादकता वाली किस्मों का विकास होने के चलते बढ़कर 12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पहुंच चुका है।इस लिहाज से कहा जा सकता है कि नई किस्मों का विकास प्रदेश के किसानों की आय को बढ़ा रहा है। साथ ही देश को दलहन में आत्मनिर्भर बना रहा है। बता दें कि प्रदेश में चने का क्षेत्रफल 15 सोलह लाख हेक्टेयर के करीब है। कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि सितंबर के अंतिम सप्ताह में बारिश हो जाती है तो प्रदेश में चने की रिकॉर्ड बुवाई की होती है।

दो सिंचाई ही काफी।

कृषि वैज्ञानिकों की मानें तो चने की केशव किस्म को ज्यादा सिंचाई की जरूरत नहीं है।यह किस्म दो सिंचाई में पककर तैयार हो जाती है। साथ ही यह किस्म देर से बुवाई के लिए उपयुक्त है। कपास और ग्वार की कटाई के बाद किसान इस किस्म की बुवाई कर सकते हैं। यदि किसान समय पर केशव किस्म की बुवाई करता है तो उत्पादन ज्यादा मिलेगा। वैसे 15 नवंबर के बाद बुवाई करने पर प्रति क्विंटल 22 से 23 क्विंटल उत्पादन किसान को मिलेगा।

बाइट : डॉक्टर दशरथ सिंह,चना वैज्ञानिक।
बाइट : डॉक्टर उम्मेद सिंह,उप निदेशक,कृषि अनुशंधान केंद्र।


Conclusion:चने की किसमे बढ़ाएगी पैदावार।
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