श्रीगंगानगर. आधुनिक तकनीक के युग में जब जुगाड़ पद्धति से किसान हाड़तोड़ मेहनत के साथ समय और मजदूरी की बचत करके लाभ उठा रहे हैं. हम बात कर रहे हैं गाजर धोने के लिए जुगाड़ पद्धति से बनाई गयी उस मशीन की जिससे गाजर धुलाई करने से ना केवल किसानों के समय की बचत हो रही है बल्कि कम मजदूर, धन की बचत व कम समय और कम मेहनत में गाजर की जल्दी धुलाई हो जाती है.
यही कारण है कि किसान इसे अपनाकर अपने काम को आसान कर रहा है. इसमें खर्चा भी मैनुवली के बजाय 10 फीसदी कम लग रहा है. जबकी काम बेहतर हो रहा है. गाजर धुलाई की यह मशीन सिर्फ 20 मिनट में 6 क्विंटल गाजर को धोकर तैयार कर देती है. वहीं गाजर के ऊपर की जड़ें भी रगड़ लगने से पूरी तरह साफ हो जाती हैं. करीब एक लाख रुपये मे तैयार होने वाली ये मशीन पूरे दिन में 60 से 70 क्विंटल गाजर की धुलाई कर देती है. एक किवंटल गाजर धोने में सिर्फ 60 रुपए का खर्चा आता है. बस जरूरत है तो खुले पानी की.
किसानों ने नहर की पटरी पर मिट्टी भर्ती कर उस स्थान को ऊंचा करके मशीन को फिट किया हुआ है. इंजन के पास लगा पंप नहर के पानी को खींचता है और मशीन में गाजरों के ऊपर डालता है. मशीन के नीचे बड़ा तिरपाल लगाया गया है जिससे नहर के पटरी का कटाव न हो. नहर से लिया गया पानी गाजर धोने के बाद फिर से नहर में प्रवाहित हो जाता है. ऐसे में पानी की बर्बादी भी नहीं होती है, जिन गाजर उत्पादक किसानों के पास यह जुगाड़ पद्धति से बनाई गई मशीन है, वे किसान ना केवल खुद की गाजर धुलाई करके समय और रुपए की बचत कर रहे हैं बल्कि यहां आने वाले अन्य किसानों की गाजर भी धो रहे हैं. दूसरे किसानों से एक थैले का 10 रुपए खर्चा लेते हैं.
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3 महीने के सीजन में तीन लाख रुपए तक की आमदनी मशीन वाले किसान की हो जाती है. पहले गाजर उत्पादक किसान गाजर को खेत से उखाड़ने के बाद इसे साफ करने के लिए मजदूरों की मदद लेता था. पूरे दिन में 2 मजदूर 6 क्विंटल गाजर ही साफ कर पाते थे. उस पर सर्दी के मौसम में गाजर साफ करने के लिए मजदूर मिलते भी नहीं थे, लेकिन अब सिर्फ 20 मिनट में 6 क्विंटल गाजर साफ हो जाती है.
जिले की साधुवाली और जेड माइनर क्षेत्र में गाजर के बंपर उत्पादन के चलते किसानों ने गाजरों को धोने के लिए जुगाड़ मशीन को बनाया है. इन दिनों गंगनहर के किनारे इस जुगाड़ मशीन को देखा जा सकता है. जहां किसान इस मशन की मदद से गाजर को धोकर साफ कर रहे हैं. राज्य सरकार ने भी आरएसीपी की मदद से कुछ किसानों को जुगाड़ मशीन का वितरण किया, लेकिन इनकी संख्या मांग के मुकाबले ना के बराबर है. दरअसल जब किसानों ने गाजर की खेती शुरू की तो उनके सामने गाजर को धोकर साफ करने व पैकिंग की समस्या सामने आई. इस समस्या का समाधान भी खुद किसानों ने ही निकाला और जुगाड़ से मशीन बना डाली.
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इस मशीन को एक इंजन के सहारे चलाया जाता है. मशीन से एक ही वक्त में कई किवंटल गाजरों की धुलाई की जा सकती है. गाजर धुलाई के बाद चमक उठती है. किसानों की माने तो यह मशीन उनके लिए काफी कारगर साबित हुई है क्योंकि इससे पहले गाजर धोने के लिए काफी मशक्कत करते थे और उसमें वक्त भी ज्यादा लगता था. मशीन लगने से यहां पर प्रवासी श्रमिक भी आए हैं और उन्हें रोजगार भी मुहैया हुआ है.
गाजर की धुलाई में मशीन के उपयोग की तकनीक 15 साल पहले साधुवाली में आई. तब एक किसान पंजाब से अरबी की धुलाई करने वाली मशीन लेकर आया और उसका उपयोग गाजर धुलाई में किया. गाजर धोने में वह मशीन ज्यादा कारगर साबित नहीं हुई. बाद में स्थानीय कारीगरों ने उसी तकनीक का उपयोग कर नई मशीन बनाई. इस मशीन में कई संशोधन किए गए. अब गाजर धुलाई की मशीन साधुवाली में ही बन रही है और उसकी कीमत एक से सवा लाख रुपए है.
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साधुवाली और कालूवाला के किसानों ने बनाई पहचान
गाजर उत्पादन के लिए विख्यात साधुवाली और कालूवाला के किसानों ने देश के कई राज्यों में श्रीगंगानगर जिले की पहचान बनाई है. इसके बावजूद सरकार के स्तर पर उन्हें न तो कोई सुविधा मिल रही है और ना ही प्रोत्साहन. गाजर की खेती कृषि से जुड़ी होने के बावजूद किसानों की इस उत्पाद की धुलाई के काम आने वाली मशीन की खरीद पर सरकार कोई अनुदान नहीं दे रही है. सरकार अनुदान दे तो किसान अपनी मशीन खरीदकर न केवल गाजर का उत्पादन बढ़ाएंगे बल्कि अपनी मशीन होने से उन्हें किराए की मशीन पर गाजर की सफाई के लिए इंतजार करने से मुक्ति मिल जाएगी. गाजर का सर्वाधिक उत्पादन करने वाले साधुवाली और कालूवाला गांव के किसानों को मांग के बावजूद अनुदान पर मशीन उपलब्ध नहीं करवाई गई है.
साधुवाली और कालूवाला में गाजर धुलाई की डेढ़ सौ मशीनें हैं. इनमें ज्यादातर किराए पर यह काम करती हैं. पंजाब के फाजिल्का जिले के किसान भी गाजर धुलाई के लिए साधुवाली या कालूवाला आते हैं, जिससे मशीनें कम पड़ रही हैं. सीजन के दौरान गाजर की सबसे ज्यादा आवक होने पर किराए की मशीन पर गाजर की धुलाई के लिए किसानों को कई घंटे तक इंतजार करना पड़ता है. किसानों का कहना है कि सरकार मशीन की खरीद पर अनुदान दे तो बहुत से किसान मशीन खरीदने के लिए तैयार हैं. मशीनों की संख्या बढ़ने पर गाजर धुलाई के लिए किसानों को बारी का इंतजार नहीं करना पड़ेगा.
साधुवाली और कालूवाला क्षेत्र में इन दिनों रोजाना 15 हजार किवंटल गाजर धुलाई के लिए आ रही है. एक मशीन घंटे भर में 20 से 25 क्विंटल गाजर की धुलाई कर पाती है. गाजर को जूट के थैलों में भरने और थैलों को वाहनों में डालने का समय भी जोड़ दिया जाए तो इसमें 20 से 25 किवंटल गाजर में 2 घंटे का समय लग जाता है. मशीन में लगा एक बड़ा ड्रम एक साथ में कई क्विंटल गाजर धोता है. ये गाजर फिनशींग से चमकदार निकल जाती है. इसके बाद फिर गाजर थैलों में भरकर मजदूर सिलाई कर बोली के लिए तैयार कर देते हैं.