श्रीगंगानगर. कृषि कानूनों को रद्द करवाने को लेकर देश में किसान सड़कों पर है. किसान हितैशी का ढकोसला करने वाली राज्य की गहलोत सरकार ने किसानों के पक्ष में सभाए कर केंद्र सरकार के तीन कृषि कानूनों को किसान विरोधी बताते हुए उन्हे वापिस लेने की वकालत कर रही है. वहीं सूबे के किसान सरकारी दफ्तरो में बैठकर अधिकारियों की मनमानी और धमकियों से पीड़ित नजर आ रहे हैं.
ठीक एसा ही वाक्या श्रीगंगानगर जिला मुख्यालय का है, जहां जल संसाधन विभाग के अधीक्षण अभियंता कार्यालय के बाहर अपनी सिंचाई पानी की बारी को लेकर धरने पर बैठे किसान की वाजिब मांग को मानने की बजाए अधीक्षण अभियंता प्रदीप रूस्तगी दफ्तर के बाहर धरना देने पर उसे जेल भेजने की धमकी दे रहे हैं. जल संसाधन विभाग के बाहर किसान सोमदत्त द्वारा अपनी सिंचाई पानी की काटी गई बारी को फिर से लागू करवाने के लिए अनिश्चितकालीन धरना दिया जा रहा है.
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धरने पर बैठे किसान सोमदत अधीक्षण अभियंता प्रदीप रुस्तगी पर आरोप लगाते हुए कह रहे हैं कि अधीक्षण अभियंता धरने से नाराज होकर जबरन धरना स्थल से उठाने, धरना खत्म करने और झूठा मुकदमा दर्ज कराने की धमकी देखकर आपत्तिजनक गालियां निकाल रहे हैं. धरने पर बैठे किसान की मांग है कि जल उपयोगिता संगम अध्यक्ष सुरेंद्र कुमार द्वारा एमके और टीके नहर से नवंबर 2020 को चलती नहर में सिंचित एवं कमांड रकबा की पानी की बारी काटकर छेड़छाड़ की है, जिसके विरोध में किसान द्वारा धरना दिया जा रहा है.
किसानों की जायज मांग होते हुए भी विभाग द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है, बल्कि किसान को ही धरने पर बैठने से रोकने के लिए और धरना उठाने के लिए धमकाया जा रहा है. किसान सोमदत्त ने आरोप लगाया कि अधीक्षण अभियंता प्रदीप रुस्तगी शांतिपुर्वक धरने पर बैठे होने पर गालियां निकाली और जबरन धरना स्थल से पुलिस द्वारा गिरफ्तार करवाएं जाने की धमकी देकर झूठे मुकदमे में फंसाने की धमकी दी जा रही है.
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धरने पर बैठने से नाराज अधिकारी द्वारा किसान को धमकाने के बाद किसानों में भी आक्रोश नजर आ रहा है. किसान कहते हैं कि एक तरफ किस देश का अन्नदाता सड़कों पर है. वहीं दूसरी तरफ अपनी वाजिब मांग पूरी करवाने के लिए किसान को धरने पर बैठना पड़ रहा है. एसे में दफ्तरों में बैठे अधिकारियों द्वारा किसान को धमकाना दुर्भाग्यपूर्ण है. इस मामले में जब अधीक्षण अभियंता प्रदीप रुस्तगी से बात करनी चाही, तो उन्होंने कैमरे पर बोलने से तो इनकार कर दिया, लेकिन दफ्तर के बाहर धरना देना गलत बताया. बरहाल सवाल यह भी है कि जब किसान की वाजिब मांग ही पूरी नहीं होगी, तो वह सरकारी अधिकारियों की चौखट पर ही बैठेगा.