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SPECIAL : खाटू के श्याम धणी को प्रिय है सूरजगढ़ का निशान...373 साल से मंदिर शिखर पर चढ़ रहा है सूरजगढ़ का ध्वज, ये है वजह

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Published : Mar 25, 2021, 4:06 PM IST

Updated : Mar 25, 2021, 4:11 PM IST

कहा जाता है कि उस वक्त के पुजारी ने मंदिर को ताला लगा दिया और कहा कि जिसके निशान की मोर छड़ी से मंदिर का ताला खुल जाएगा वही निशान शिखर पर जाएगा. इसके बाद सूरजगढ़ से आने वाले निशान के भक्तों ने अपने सेवक को भेजा और ताले पर मोर छड़ी लगाने के लिए कहा.

Khatu Shyam Padyatra,  Khatu Shyam Flag Flag Hiking,  Flag of Khatu Shyam Surajgarh
बाबा के शिखर पर चढ़ता है सूरजगढ़ का ध्वज

सीकर. खाटूश्यामजी में बाबा श्याम का वार्षिक लक्खी मेला चल रहा है. इस मेले में लाखों श्रद्धालु बाबा श्याम को धोक लगाने के लिए आते हैं और सभी श्रद्धालु हाथ में निशान लेकर बाबा के दरबार में पहुंचते हैं. वैसे तो बाबा श्याम के दरबार में लाखों निशान पहुंचते हैं लेकिन बाबा के मंदिर के शिखर पर केवल सूरजगढ़ का निशान ही चढ़ता है. देखिये यह रिपोर्ट...

बाबा के शिखर पर चढ़ता है सूरजगढ़ का ध्वज

इस निशान के अलावा जितने भी भक्त निशान लेकर आते हैं उनके निशान नीचे ही रोक लिए जाते हैं. मंदिर के शिखर तक नहीं पहुंचने दिए जाते हैं. 373 साल से सूरजगढ़ के यह लोग निशान पदयात्रा लेकर खाटू पहुंच रहे हैं और इनका निशान हर बार मंदिर के शिखर पर जा रहा है. केवल इन्हीं का निशान यहां पर पहुंचता है. इसके पीछे भी एक कहानी बताई जाती है.

इसलिए चढ़ता है सिर्फ सूरजगढ़ का निशान

सूरजगढ़ के जिन परिवारों के लोग यह निशान लेकर आते हैं उनके पूर्वज पहले खंडेला इलाके में साठावास गांव में रहते थे. वहीं से यह निशान की परंपरा शुरू हुई और उसके बाद वे लोग सूरजगढ़ जाकर बस गए. माना जाता है कि सैकड़ों साल पहले खाटूश्यामजी में जो भी निशान आते थे वह सभी मंदिर के शिखर पर जाते थे. हालांकि उस वक्त बहुत कम निशान आते थे और मुश्किल से 20 से 30 निशान पहुंचते थे.

Khatu Shyam Padyatra,  Khatu Shyam Flag Flag Hiking,  Flag of Khatu Shyam Surajgarh
बाबा श्याम को क्यों प्रिय है सूरजगढ़ का ध्वज

पढ़ें- SPECIAL : बाबा श्याम का ऐसा भक्त...जो 19 महीने में 15 बार कर चुका है मुंबई से खाटू की पदयात्रा, 1300 किमी है दूरी

पढ़ें- SPECIAL : एक कमरे से कंट्रोल हो रहा खाटू का लक्खी मेला...240 कैमरे बता रहे इस बार आस्था पर भारी है कोरोना

एक बार मंदिर के शिखर पर पहले निशान ले जाने को लेकर आपस में विवाद हो गया. कहा जाता है कि उस वक्त के पुजारी ने मंदिर को ताला लगा दिया और कहा कि जिसके निशान की मोर छड़ी से मंदिर का ताला खुल जाएगा वही निशान शिखर पर जाएगा. इसके बाद सूरजगढ़ से आने वाले निशान के भक्तों ने अपने सेवक को भेजा और ताले पर मोर छड़ी लगाने के लिए कहा. मोर छड़ी जैसे ही ताले पर लगी तो ताला अपने आप खुल गया. उसके बाद से हर वर्ष केवल सूरजगढ़ के निशान ही बाबा श्याम के शिखर पर जाता है.

Khatu Shyam Padyatra,  Khatu Shyam Flag Flag Hiking,  Flag of Khatu Shyam Surajgarh
सूरजगढ़ के निशान से जुड़ी है पुरानी कथा

150 किलोमीटर पदयात्रा से आता है निशान

खाटूश्यामजी से सूरजगढ़ की दूरी करीब डेढ़ सौ किलोमीटर है. हर बार 4 दिन की पदयात्रा के बाद यह निशान यात्रा खाटू पहुंचती है. इस दौरान निशान के साथ साथ सिर पर जलती हुई सिगड़ी लिए महिलाएं भी आती हैं. यह लोग दशमी के दिन खाटू पहुंच जाते हैं और उसके बाद दशमी को एकादशी की रात को भजन कीर्तन के कार्यक्रम होते हैं और दिन में भी भजन कीर्तन चलते हैं. द्वादशी की सुबह 11:15 इन का निशान मंदिर के शिखर पर चढ़ाया जाता है. यह निशान चढ़ने के बाद खाटू के वार्षिक मेले का समापन मान लिया जाता है.

पढ़ें- खाटू के श्याम धणी का अनोखा सिंगार : थाईलैंड और बेंगलुरु तक से आ रहे फूल.....दिन-रात जुटे हैं बंगाली कारीगर

1 साल तक लगा रहता है निशान

सूरजगढ़ का निशान बाबा श्याम मंदिर के शिखर पर पूरे साल लगा रहता है. अगर निशान खंडित हो जाए तो उसे उतार दिया जाता है. अन्यथा अगले साल तक निशान चढ़ता है. तभी पुराने निशान को उतारा जाता है.

सीकर. खाटूश्यामजी में बाबा श्याम का वार्षिक लक्खी मेला चल रहा है. इस मेले में लाखों श्रद्धालु बाबा श्याम को धोक लगाने के लिए आते हैं और सभी श्रद्धालु हाथ में निशान लेकर बाबा के दरबार में पहुंचते हैं. वैसे तो बाबा श्याम के दरबार में लाखों निशान पहुंचते हैं लेकिन बाबा के मंदिर के शिखर पर केवल सूरजगढ़ का निशान ही चढ़ता है. देखिये यह रिपोर्ट...

बाबा के शिखर पर चढ़ता है सूरजगढ़ का ध्वज

इस निशान के अलावा जितने भी भक्त निशान लेकर आते हैं उनके निशान नीचे ही रोक लिए जाते हैं. मंदिर के शिखर तक नहीं पहुंचने दिए जाते हैं. 373 साल से सूरजगढ़ के यह लोग निशान पदयात्रा लेकर खाटू पहुंच रहे हैं और इनका निशान हर बार मंदिर के शिखर पर जा रहा है. केवल इन्हीं का निशान यहां पर पहुंचता है. इसके पीछे भी एक कहानी बताई जाती है.

इसलिए चढ़ता है सिर्फ सूरजगढ़ का निशान

सूरजगढ़ के जिन परिवारों के लोग यह निशान लेकर आते हैं उनके पूर्वज पहले खंडेला इलाके में साठावास गांव में रहते थे. वहीं से यह निशान की परंपरा शुरू हुई और उसके बाद वे लोग सूरजगढ़ जाकर बस गए. माना जाता है कि सैकड़ों साल पहले खाटूश्यामजी में जो भी निशान आते थे वह सभी मंदिर के शिखर पर जाते थे. हालांकि उस वक्त बहुत कम निशान आते थे और मुश्किल से 20 से 30 निशान पहुंचते थे.

Khatu Shyam Padyatra,  Khatu Shyam Flag Flag Hiking,  Flag of Khatu Shyam Surajgarh
बाबा श्याम को क्यों प्रिय है सूरजगढ़ का ध्वज

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एक बार मंदिर के शिखर पर पहले निशान ले जाने को लेकर आपस में विवाद हो गया. कहा जाता है कि उस वक्त के पुजारी ने मंदिर को ताला लगा दिया और कहा कि जिसके निशान की मोर छड़ी से मंदिर का ताला खुल जाएगा वही निशान शिखर पर जाएगा. इसके बाद सूरजगढ़ से आने वाले निशान के भक्तों ने अपने सेवक को भेजा और ताले पर मोर छड़ी लगाने के लिए कहा. मोर छड़ी जैसे ही ताले पर लगी तो ताला अपने आप खुल गया. उसके बाद से हर वर्ष केवल सूरजगढ़ के निशान ही बाबा श्याम के शिखर पर जाता है.

Khatu Shyam Padyatra,  Khatu Shyam Flag Flag Hiking,  Flag of Khatu Shyam Surajgarh
सूरजगढ़ के निशान से जुड़ी है पुरानी कथा

150 किलोमीटर पदयात्रा से आता है निशान

खाटूश्यामजी से सूरजगढ़ की दूरी करीब डेढ़ सौ किलोमीटर है. हर बार 4 दिन की पदयात्रा के बाद यह निशान यात्रा खाटू पहुंचती है. इस दौरान निशान के साथ साथ सिर पर जलती हुई सिगड़ी लिए महिलाएं भी आती हैं. यह लोग दशमी के दिन खाटू पहुंच जाते हैं और उसके बाद दशमी को एकादशी की रात को भजन कीर्तन के कार्यक्रम होते हैं और दिन में भी भजन कीर्तन चलते हैं. द्वादशी की सुबह 11:15 इन का निशान मंदिर के शिखर पर चढ़ाया जाता है. यह निशान चढ़ने के बाद खाटू के वार्षिक मेले का समापन मान लिया जाता है.

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1 साल तक लगा रहता है निशान

सूरजगढ़ का निशान बाबा श्याम मंदिर के शिखर पर पूरे साल लगा रहता है. अगर निशान खंडित हो जाए तो उसे उतार दिया जाता है. अन्यथा अगले साल तक निशान चढ़ता है. तभी पुराने निशान को उतारा जाता है.

Last Updated : Mar 25, 2021, 4:11 PM IST
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