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स्पेशल रिपोर्ट: मिलिए खेती के 'जादूगर' पद्मश्री जगदीश पारीक से, जिसने धोरों में नामुमकिन को किया मुमकिन

किसान जगदीश प्रसाद पारीक को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित किया है. 72 साल के जगदीश पारीक को खेती में नए प्रयोग करने को लेकर इस अवॉर्ड से नवाजा गया था. किसान जगदीश पारीक 1970 से ही ऑर्गेनिक खेती कर रहे हैं. दिलचस्प बात यह है कि पारीक ने इन सब में जैविक खाद का इस्तेमाल किया था. ऐसे जैविक किसान के खेतों में ईटीवी भारत पहुंचा. देखिए सीकर के अजीतगढ़ से स्पेशल रिपोर्ट...

Padma Shri farmer Jagdish Pareek, Special report on organic farming,
पद्मश्री जगदीश पारीक की जैविक खेती
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Published : Dec 7, 2019, 7:54 PM IST

जयपुर/सीकर. जयपुर जिले से 65 किलोमीटर की दूरी पर अजीतगढ़ कस्बे के किसान जगदीश पारीक के चर्चे दिल्ली के रायसीना हिल्स से लेकर खेती की प्रयोगधर्मिता में भरोसा रखने वाले देश के हर किसान तक है. पद्मश्री से सम्मानित जगदीश पारीक के नाम खेती से जुड़ी कई उपलब्धियां हैं. उन्हें प्रदेश में जैविक और शून्य लागत की खेती के प्रणेता के रूप में पहचान मिली है. इसी वजह से साल 2018 में राष्ट्रपति रामनाथ कोविद ने उन्हें पद्मश्री से भी सम्मानित किया था.

पढ़ें- स्पेशल रिपोर्ट: उदयपुर में दुनिया की सबसे बड़ी भिंडी देखने वाले भी हो गए चकित

1970 से लेकर अब तक के कृषि जीवन में सिर्फ जैविक खेती
जगदीश पारीक ने फूल गोभी की खेती के लिये विषम परिस्थिति वाले क्षेत्र में ना सिर्फ अपने शहर की पहचान के नाम से गोभी का बीज विकसित किया, बल्कि अब वह इसका पेटेंट भी करवाने की अर्जी दाखिल कर चुके हैं. 1970 से लेकर अब तक के कृषि जीवन में उन्होंने आज तक अपने खेत पर रासायनिक खाद का इस्तेमाल नहीं किया है.

खेती के 'जादूगर' पद्मश्री जगदीश पारीक

19 बीघा की खेती, सालाना 18 से 20 लाख रुपए आय
सीकर जिले के अजीतगढ़ कस्बे में जगदीश पारीक से भलि भांति लोग वाकिफ है, बल्कि जगदीश पारीक के चर्चे आस-पास के सैंकड़ों गांवों तक है.लोग रोजाना उनसे खेती में आ रही समस्याओं के समाधान की राह तलाशने के लिये मिलते भी हैं. जैविक खेती में परंपरागत तरीके से रोजमर्रा की समस्याओं से निपटारे की राह को जगदीश पारीक ने आसानी से तलाश किया है. करीब दो हैक्टेयर यानि लगभग 19 बीघा की खेती से जगदीश और उनका परिवार सीजन में 3 लाख रूपए महीना और सालाना 18 से 20 लाख रुपए की आय अर्जित कर रहा है. जब ईटीवी भारत जगदीश पारीक के खेत पर पहुंचा, तो वहां फल-सब्जी और अनाज की फसल को एक साथ देखा गया है.

ड्राई जोन होने के बावजूद करते है शानदार खेती
जबकि जगदीश पारीक का खेत ड्राई जोन का हिस्सा है और आस-पास के लोग पानी की कमी के कारण खेती को छोड़कर वहां कॉलोनियों को विकसित करने में जुटे हैं. जब हमने जगदीश पारीक से इस सवाल पर बात की, तो उन्होंने बताया कि बरसात के पानी से आने वाले बहाव को वह अपने खेत में डायवर्ट करते हैं, जिससे उनका कुआं रिचार्ज हो जाता है और सालभर वह उसी पानी का इस्तेमाल खेती के लिये करते हैं. एक बरसात के सीजन में वह तीन बार पानी की राह रोककर अपने खेत में मोड़ देते हैं. जिसे जमीन सोंख लेती है और उसी पानी से उनके खेत पर बना कुआं जीवंत हो जाता है.

पढ़ें- यूट्यूब देख छत पर बना डाला खेत, लागत से चौगुनी हो रही आय

जीवों को बिना नुकसान पहुंचाये करते हैं खेती
जगदीश पारीक और उनकी तीन पीढ़ियां पारंपरिक रूप से खेती की आजिविका पर निर्भर है. जब हमने जैविक खेती के प्रचलन को लेकर पारीक से बात की तो उन्होंने बताया कि जैविक खेती का आशय खेत में मौजूद जीवों को बिना नुकसान पहुंचाये उपज प्राप्त करने से होता है, ना कि कृमि, कीट और कीटाणुओं को खत्म करके खेती की जा सकती है. इसलिये इको फ्रेंडली माहौल में वह खेती करते हैं. जिसके लिये आमतौर पर वह वर्मि कम्पोस्ट, बायो कम्पोस्ट जैसी खाद का इस्तेमाल करते हैं. उन्होंने बताया कि एक केचुंआ अपने शरीर पर आम तौर पर करीब 100 तरह के सूक्ष्म जीवों का प्रवाह करता है. अगर उसे खत्म कर दिया जाएगाा, तो ये जीव भी नहीं बचेंगे, तो भला खेती के लिये प्राकृतिक रूप से कैसे उर्वरक भूमि तैयार होगी. उन्होंने बताया कि आजकल खेतों में खरपतवार की समस्या का कारण भी इन्हीं जीवों के खत्म होने से है.

विश्व में दूसरा सबसे बड़ा गोभी का फूल विकसित करने वाले पद्मश्री किसान जगदीश पारीक

देशभर से कृषि से जुड़े सेमीनार, वर्कशॉप में जाते हैं जगदीश पारीक
जगदीश पारीक की खेती में प्रयोगधर्मिता से ना सिर्फ किसान बल्कि कृषि अधिकारी तक प्रभावित हैं. यहीं वजह है कि कृषि से जुड़ी सेमीनार हो या वर्कशॉप देशभर से जगदीश पारीक को बुलाया जाता है और उनके अनुभवों से सीखा जाता है. उनके खेत पर फिलहाल पत्ता गोभी, फूल गोभी, ब्रोकली, गांठ गोभी, मूली, चुकंदर , पालक , धनिया ,लहसुन , मिर्च और टमाटर जैसी सब्जियां उगाई गई है. तो उद्यानिकी में नींबू , अनार, बील और पपीते की पौध से वह आय अर्जित करते हैं.

गेहूं की कैंसर रोग से ग्रस्त मरीजों में भारी डिमांड
इसी तरह से अनाज में उन्होंने फिलहाल अपने खेत पर गेहूं लगा रखा है. उनकी उपज की खास बात यह है कि उनके खेत के गेहूं की कैंसर रोग से ग्रस्त मरीजों में भारी डिमांड है, क्योंकि यह बिना रसायन इस्तेमाल के तैयार किया जाता है. इसलिए उपज से पहले ही इनका गेहूं बुक हो जाता है और यह इसकी अतिरिक्त कीमत नहीं वसूलते हैं, बल्कि बाजार भाव पर ही इसे बेचा करते हैं.

पढ़ें- बूंदी: अध्यापक ने की ताइवान प्रजाती के अमरूद की खेती, हो रही अच्छी कमाई

अपने गोभी के बीज का अजीतगढ़ सलेक्शन फर्स्ट नाम दिया
किसान जगदीश की पहचान गोभी उत्पादक और विकसित करने वाले किसान के रूप में भी है. उनके खेत में तैयार गोभी के बीज को अजीतगढ़ सलेक्शन फर्स्ट के रूप में जोबनेर स्थिति महाराज नरेन कर्ण कृषि विश्वविद्यालय से अप्रूवल मिला हुआ है. जिसका जल्द पेटेंट भी हो जाएगा. जगदीश पारीक का दावा है कि राजस्थान के मौसम में गोभी के बीज का उत्पादन नहीं किया जा सकता है, वह राज्य के एक मात्र किसान हैं जिन्होंने इस बीज को तैयार किया है. उनके तैयार बीज 15 से लेकर 20 हजार रूपए प्रति किलो के भाव से बाजार में उपलब्ध हैं. उनके इस बीज का बड़ा वितरक NIF यानि नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन है.

विश्व में दूसरा सबसे बड़ा गोभी का फूल
किसान जगदीश पारीक को साढ़े 11 किलो की गोभी का फूल तैयार करने पर लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में स्थान मिला था और इसके बाद उन्होंने विश्व में दूसरा सबसे बड़ा गोभी का फूल, जो की लगभग 25 किलो 150 ग्राम का था वो भी विकसित किया था. जिसे उन्होंने राष्ट्रपति रामनाथ कोविद को सौंपा था. जगदीश पारीक मैम्बर ऑफ ऑल इंडिया प्रोग्रेसिव फॉर्मर्स संगठन का भी हिस्सा है. उनके ऐसे प्रयोगों से प्रभावित होकर जैविक खेती की बारिकियां सींखने के लिये कृषि विभाग के लोग भी वक्त-वक्त पर यहां आते रहते हैं.

पढ़ें- स्पेशल रिपोर्ट: जैविक खेती किसानों और स्वास्थ्य के लिए वरदान... मिलिए झालावाड़ के प्रभु लाल साहू से

पद्मश्री पारीक के खेत में 1 लाख 83 हजार पौधें
पद्मश्री जगदीश पारीक का मानना है कि आजकल के किसान अगर रसायनिक पदार्थों पर आधारित खेती को छोड़कर पारंपरिक खेती करेंगे, तो इसका फायदा उन्हें तयशुदा होगा. फिलहाल उनके खेत में 1 लाख 83 हजार पौधें हैं. इस कामयाबी के लिये वह किसान के खेत पर पशुपालन को भी जरूरी मानते हैं, उनका कहना है कि पशुपालन और खेती एक-दूसरे के पूरक होते हैं और इसके साथ ही खेती को उन्नत करते हुए बचाया जा सकता है. खेती के लिये जरूरी खाद भी पशुपालन से प्राप्त हो जाती है, जिससे किसान की लागत भी कम होती है. साथ ही बीज उत्पादन आय के साथ-साथ गुणवत्तापूर्ण फसल के लिये जरूरी है. जिससे नकली बीज की जगह किसान भरोसे के साथ अपने तैयार किये बीज से फसल प्राप्त करता है. जहां तक जैविक खेती में दवाइयों के इस्तेमाल की बात है, तो नीम-धतूरे और चूने से तैयार दवाइयों को वह आसाम के चाय बागानों तक भेजते हैं, जिससे बिना जीव को नुकसान पहुंचाये जगदीश पारीक का फॉर्मूला खेती में कम लागत से ज्यादा से ज्यादा उत्पादन की राह को तैयार करता है.

जयपुर/सीकर. जयपुर जिले से 65 किलोमीटर की दूरी पर अजीतगढ़ कस्बे के किसान जगदीश पारीक के चर्चे दिल्ली के रायसीना हिल्स से लेकर खेती की प्रयोगधर्मिता में भरोसा रखने वाले देश के हर किसान तक है. पद्मश्री से सम्मानित जगदीश पारीक के नाम खेती से जुड़ी कई उपलब्धियां हैं. उन्हें प्रदेश में जैविक और शून्य लागत की खेती के प्रणेता के रूप में पहचान मिली है. इसी वजह से साल 2018 में राष्ट्रपति रामनाथ कोविद ने उन्हें पद्मश्री से भी सम्मानित किया था.

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1970 से लेकर अब तक के कृषि जीवन में सिर्फ जैविक खेती
जगदीश पारीक ने फूल गोभी की खेती के लिये विषम परिस्थिति वाले क्षेत्र में ना सिर्फ अपने शहर की पहचान के नाम से गोभी का बीज विकसित किया, बल्कि अब वह इसका पेटेंट भी करवाने की अर्जी दाखिल कर चुके हैं. 1970 से लेकर अब तक के कृषि जीवन में उन्होंने आज तक अपने खेत पर रासायनिक खाद का इस्तेमाल नहीं किया है.

खेती के 'जादूगर' पद्मश्री जगदीश पारीक

19 बीघा की खेती, सालाना 18 से 20 लाख रुपए आय
सीकर जिले के अजीतगढ़ कस्बे में जगदीश पारीक से भलि भांति लोग वाकिफ है, बल्कि जगदीश पारीक के चर्चे आस-पास के सैंकड़ों गांवों तक है.लोग रोजाना उनसे खेती में आ रही समस्याओं के समाधान की राह तलाशने के लिये मिलते भी हैं. जैविक खेती में परंपरागत तरीके से रोजमर्रा की समस्याओं से निपटारे की राह को जगदीश पारीक ने आसानी से तलाश किया है. करीब दो हैक्टेयर यानि लगभग 19 बीघा की खेती से जगदीश और उनका परिवार सीजन में 3 लाख रूपए महीना और सालाना 18 से 20 लाख रुपए की आय अर्जित कर रहा है. जब ईटीवी भारत जगदीश पारीक के खेत पर पहुंचा, तो वहां फल-सब्जी और अनाज की फसल को एक साथ देखा गया है.

ड्राई जोन होने के बावजूद करते है शानदार खेती
जबकि जगदीश पारीक का खेत ड्राई जोन का हिस्सा है और आस-पास के लोग पानी की कमी के कारण खेती को छोड़कर वहां कॉलोनियों को विकसित करने में जुटे हैं. जब हमने जगदीश पारीक से इस सवाल पर बात की, तो उन्होंने बताया कि बरसात के पानी से आने वाले बहाव को वह अपने खेत में डायवर्ट करते हैं, जिससे उनका कुआं रिचार्ज हो जाता है और सालभर वह उसी पानी का इस्तेमाल खेती के लिये करते हैं. एक बरसात के सीजन में वह तीन बार पानी की राह रोककर अपने खेत में मोड़ देते हैं. जिसे जमीन सोंख लेती है और उसी पानी से उनके खेत पर बना कुआं जीवंत हो जाता है.

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जीवों को बिना नुकसान पहुंचाये करते हैं खेती
जगदीश पारीक और उनकी तीन पीढ़ियां पारंपरिक रूप से खेती की आजिविका पर निर्भर है. जब हमने जैविक खेती के प्रचलन को लेकर पारीक से बात की तो उन्होंने बताया कि जैविक खेती का आशय खेत में मौजूद जीवों को बिना नुकसान पहुंचाये उपज प्राप्त करने से होता है, ना कि कृमि, कीट और कीटाणुओं को खत्म करके खेती की जा सकती है. इसलिये इको फ्रेंडली माहौल में वह खेती करते हैं. जिसके लिये आमतौर पर वह वर्मि कम्पोस्ट, बायो कम्पोस्ट जैसी खाद का इस्तेमाल करते हैं. उन्होंने बताया कि एक केचुंआ अपने शरीर पर आम तौर पर करीब 100 तरह के सूक्ष्म जीवों का प्रवाह करता है. अगर उसे खत्म कर दिया जाएगाा, तो ये जीव भी नहीं बचेंगे, तो भला खेती के लिये प्राकृतिक रूप से कैसे उर्वरक भूमि तैयार होगी. उन्होंने बताया कि आजकल खेतों में खरपतवार की समस्या का कारण भी इन्हीं जीवों के खत्म होने से है.

विश्व में दूसरा सबसे बड़ा गोभी का फूल विकसित करने वाले पद्मश्री किसान जगदीश पारीक

देशभर से कृषि से जुड़े सेमीनार, वर्कशॉप में जाते हैं जगदीश पारीक
जगदीश पारीक की खेती में प्रयोगधर्मिता से ना सिर्फ किसान बल्कि कृषि अधिकारी तक प्रभावित हैं. यहीं वजह है कि कृषि से जुड़ी सेमीनार हो या वर्कशॉप देशभर से जगदीश पारीक को बुलाया जाता है और उनके अनुभवों से सीखा जाता है. उनके खेत पर फिलहाल पत्ता गोभी, फूल गोभी, ब्रोकली, गांठ गोभी, मूली, चुकंदर , पालक , धनिया ,लहसुन , मिर्च और टमाटर जैसी सब्जियां उगाई गई है. तो उद्यानिकी में नींबू , अनार, बील और पपीते की पौध से वह आय अर्जित करते हैं.

गेहूं की कैंसर रोग से ग्रस्त मरीजों में भारी डिमांड
इसी तरह से अनाज में उन्होंने फिलहाल अपने खेत पर गेहूं लगा रखा है. उनकी उपज की खास बात यह है कि उनके खेत के गेहूं की कैंसर रोग से ग्रस्त मरीजों में भारी डिमांड है, क्योंकि यह बिना रसायन इस्तेमाल के तैयार किया जाता है. इसलिए उपज से पहले ही इनका गेहूं बुक हो जाता है और यह इसकी अतिरिक्त कीमत नहीं वसूलते हैं, बल्कि बाजार भाव पर ही इसे बेचा करते हैं.

पढ़ें- बूंदी: अध्यापक ने की ताइवान प्रजाती के अमरूद की खेती, हो रही अच्छी कमाई

अपने गोभी के बीज का अजीतगढ़ सलेक्शन फर्स्ट नाम दिया
किसान जगदीश की पहचान गोभी उत्पादक और विकसित करने वाले किसान के रूप में भी है. उनके खेत में तैयार गोभी के बीज को अजीतगढ़ सलेक्शन फर्स्ट के रूप में जोबनेर स्थिति महाराज नरेन कर्ण कृषि विश्वविद्यालय से अप्रूवल मिला हुआ है. जिसका जल्द पेटेंट भी हो जाएगा. जगदीश पारीक का दावा है कि राजस्थान के मौसम में गोभी के बीज का उत्पादन नहीं किया जा सकता है, वह राज्य के एक मात्र किसान हैं जिन्होंने इस बीज को तैयार किया है. उनके तैयार बीज 15 से लेकर 20 हजार रूपए प्रति किलो के भाव से बाजार में उपलब्ध हैं. उनके इस बीज का बड़ा वितरक NIF यानि नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन है.

विश्व में दूसरा सबसे बड़ा गोभी का फूल
किसान जगदीश पारीक को साढ़े 11 किलो की गोभी का फूल तैयार करने पर लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में स्थान मिला था और इसके बाद उन्होंने विश्व में दूसरा सबसे बड़ा गोभी का फूल, जो की लगभग 25 किलो 150 ग्राम का था वो भी विकसित किया था. जिसे उन्होंने राष्ट्रपति रामनाथ कोविद को सौंपा था. जगदीश पारीक मैम्बर ऑफ ऑल इंडिया प्रोग्रेसिव फॉर्मर्स संगठन का भी हिस्सा है. उनके ऐसे प्रयोगों से प्रभावित होकर जैविक खेती की बारिकियां सींखने के लिये कृषि विभाग के लोग भी वक्त-वक्त पर यहां आते रहते हैं.

पढ़ें- स्पेशल रिपोर्ट: जैविक खेती किसानों और स्वास्थ्य के लिए वरदान... मिलिए झालावाड़ के प्रभु लाल साहू से

पद्मश्री पारीक के खेत में 1 लाख 83 हजार पौधें
पद्मश्री जगदीश पारीक का मानना है कि आजकल के किसान अगर रसायनिक पदार्थों पर आधारित खेती को छोड़कर पारंपरिक खेती करेंगे, तो इसका फायदा उन्हें तयशुदा होगा. फिलहाल उनके खेत में 1 लाख 83 हजार पौधें हैं. इस कामयाबी के लिये वह किसान के खेत पर पशुपालन को भी जरूरी मानते हैं, उनका कहना है कि पशुपालन और खेती एक-दूसरे के पूरक होते हैं और इसके साथ ही खेती को उन्नत करते हुए बचाया जा सकता है. खेती के लिये जरूरी खाद भी पशुपालन से प्राप्त हो जाती है, जिससे किसान की लागत भी कम होती है. साथ ही बीज उत्पादन आय के साथ-साथ गुणवत्तापूर्ण फसल के लिये जरूरी है. जिससे नकली बीज की जगह किसान भरोसे के साथ अपने तैयार किये बीज से फसल प्राप्त करता है. जहां तक जैविक खेती में दवाइयों के इस्तेमाल की बात है, तो नीम-धतूरे और चूने से तैयार दवाइयों को वह आसाम के चाय बागानों तक भेजते हैं, जिससे बिना जीव को नुकसान पहुंचाये जगदीश पारीक का फॉर्मूला खेती में कम लागत से ज्यादा से ज्यादा उत्पादन की राह को तैयार करता है.

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