पलसाना/सीकर. जिले के पलसाना गांव के रहने वाले कारगिल शहीद सीताराम कुमावत को बचपन से ही बास्केटबॉल से दीवानगी की हद तक प्यार था, इसी की बदौलत जब खेल कोटे से सेना में भर्ती हुए तो कारगिल युद्ध में ऑपरेशन विजय के दौरान पाकिस्तानी घुसपैठियों के खिलाफ बास्केटबॉल के खेल में सीखे हुए मल्टीपल थ्रो के द्वारा दुश्मन के छक्के छुड़ा दिए.
शहीद सीताराम कुमावत 18 ग्रेनेडियर कि अपनी टीम के साथ द्रास सेक्टर में दुश्मनों की तीन चौकियों को तबाह किया और चौथी चौकी को तबाह करने के लिए आगे बढ़ा ही रहे थे कि दुश्मन द्वारा दागी गई मिसाइल का शिकार होकर वीरगति को प्राप्त हो गए
पिता की आंखे हो जाती है नम:
शहीद सीताराम कुमावत की बात करते ही पिता बिड़दुराम की आंखें नम हो जाती है उन्हें याद आता है कि कैसे 20 वर्ष पहले उनका लाडला तिरंगे में लिपटा हुआ घर लौटा था वे बताते हैं कि बास्केटबॉल का राष्ट्रीय खिलाड़ी बनने के बाद 27 अप्रैल 1993 को सेना में भर्ती हुआ तो बरसों से आंखों में पल रहा सपना साकार हुआ नजर आया. शहीद पिता का कहना है कि सीताराम शुरू से ही विरोधी टीम को हराने के लिए कई पैंतरे आजमाता और ऐसा ही उसने कारगिल युद्ध में भी किया
ट्रेनिंग के दौरान बेटी के जन्म पर बनाया था जश्न:
शहीद सीताराम कुमावत के गांव के साथी जो आर्मी में भी साथ ही रहे उनका कहना है कि सेना में भर्ती होने के बाद ट्रेनिंग के दौरान बेटी के जन्म की सूचना मिलने पर सीताराम कुमावत ने सभी दोस्तों को जलेबी और समोसे की पार्टी दी थी.
बेटियों को ही दिया बेटों जैसा प्यार:
शहीद सीताराम कुमावत जब भी घर आते थे अपनी बेटियों का खूब ख्याल रखते थे उनको हमेशा बेटों की तरह ही लाड प्यार करते थे.
घायल हालत में अंतिम बार की थी मां से बात:
दुश्मनों द्वारा दागी गई मिसाइल का शिकार होकर घायल अवस्था में भी शहीद सीताराम कुमावत फोन के जरिए अपनी मां से बात की. और तब मां ने कहा था कि बेटे जोर से बोल लेकिन शहीद इतना ही कह पाया कि मेरी बेटियों और घर परिवार का ख्याल रखना. शहीद परिवार आज भी अपने बेटे की मूर्ति घर पर मंदिर बना कर लगा रखी है और सुबह शाम पूजा करते हैं.
पिता ने अपने हाथों से बनाया बेटे का स्मारक:
शहीद सीताराम कुमावत के पिता मार्बल मिस्त्री होने के कारण राजकीय विद्यालय में अपने बेटे का स्मारक अपने खर्चे और अपने हाथों से तैयार कर, बेटे की प्रथम पुण्यतिथि पर तत्कालीन ग्रामीण विकास राज्य मंत्री सुभाष महरिया के द्वारा उद्घाटन करवा कर अपने आपको गौरवान्वित महसूस किया.
परिवार को आज सरकारी वादों का इंतजार:
शहीद परिवार को औपचारिकता के तौर पर सरकार द्वारा एक पेट्रोल पंप तो दे दिया गया लेकिन पिछले साल शहीद सम्मान यात्रा के दौरान सैनिक कल्याण बोर्ड के अध्यक्ष प्रेम सिंह बाजोर द्वारा शहीद परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने का वादा आज भी पूरा नहीं किया गया है. साल 2018 में शहीद सम्मान यात्रा के दौरान सैनिक कल्याण बोर्ड के अध्यक्ष प्रेम सिंह बाजोर द्वारा शहीद परिवार के एक सदस्य को तहसील में नौकरी देने का वादा आज भी अधूरा है.