नागौर. जिले का विश्व प्रसिद्ध श्री रामदेव पशु मेले का आगाज झंडारोहण के साथ नागौर जिला कलेक्टर दिनेश कुमार यादव ने किया. मेले में पशुओं की आवक पहले दिन कम रही. जिसके चलते मेले के अस्तित्व पर संकट के बादल नजर आ रहे हैं.
पहले नागौर का विश्व प्रसिद्ध श्री रामदेव पशु मेला फिर परबतसर का वीर तेजा जी का पशु मेला उसके बाद डीडवाना और मेड़ता का पशु मेला और कुचामन सिटी का पशु मेला यह सभी मेले कभी नागौर जिले की पहचान हुआ करते थे. लेकिन, अब विश्व प्रसिद्ध श्री रामदेव पशु मेला अपना वजूद तकरीबन खो चुका है. बाहरी राज्यों से आने वाले पशुपालक का मोहभंग हो रहा है. बाहरी प्रदेश से आने वाले नाम मात्र पशुपालक ही पशु मेले में पहुंच रहे हैं.
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यह नजारा है नागौर जिला मुख्यालय के विश्व प्रसिद्ध श्री रामदेव पशु मेला का जहां नागौर जिला कलेक्टर दिनेश कुमार यादव ने विधिवत रूप से झंडारोहण कर के मेले का आगाज किया. इस मेले में नागौरी नस्ल के पशु मेले की शान और जान हुआ करते थे. जिसे खरीदने के लिए बाहरी प्रदेश से पशुपालक मेले में आते थे. लेकिन इस साल ना तो उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र सहित अन्य राज्यों के पशुपालक मेले में आए ना ही नागौरी नस्ल के बछड़े. नाम मात्र नागौरी नस्ल के बछड़े लेकर कुछ ही पशुपालक पहुंचे.
बता दें कि पिछले कुछ सालों से 3 साल की कम उम्र के नागौरी नस्ल के बछड़ों के बाहरी प्रदेश मे ले जाने की रोक लगी हुई है. इस मेले में नागौरी नस्ल के बछड़ों और उसके खरीदार की तादाद लगातार कम होती जा रही है. जिससे मेले की रौनक कम होने लगी है. श्री रामदेव पशु मेले के आगाज के दौरान इस बार नागौरी नस्ल के गौवंश करीब 200, अश्ववंश के 6 और राजस्थान का जहाज कहे जाने वाले ऊंट को नाम मात्र 50 पशुपालक लेकर पहुंचे.
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पिछले साल नागौरी नस्ल की गौवंश 535 मध्य प्रदेश, गुजरात, उत्तर प्रदेश सहित अन्य राज्यों के पशुपालक मेले से खरीद कर लेकर गए थे. जिन्हें भारी परेशानी भी उठानी पड़ी थी. जिला प्रशासन ने पुलिस का सहयोग लेते हुए उन्हें सुरक्षित राज्य से बाहर समस्त दस्तावेजों के साथ भेजा गया था. पहले इस मेले में जहां 30 से 35 हजार तक नागौरी नस्ल सहित अन्य पशु आते थे. वहीं अब यह तादाद हजारों तक सिमट कर रह गई है.