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स्पेशल: केर के झाड़ से प्रकट हुई देवी के वरदान से बनी नमक की झील, महिषासुरमर्दिनी के रूप में होती है पूजा

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Published : Oct 22, 2020, 9:49 PM IST

शक्ति की उपासना के पर्व नवरात्र के दौरान चारों ओर श्रद्धा और भक्ति का माहौल है. घरों और मंदिरों में देवी की पूजा और उपासना की जा रही है. इस पावन मौके पर आज हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बताते हैं जहां केर के झाड़ से देवी प्रकट हुई थीं. देवी के वरदान से ही खारे पानी की झील बनी. यहां नमक का उत्पादन होता है जिससे हजारों लोगों को रोजगार मिल रहा है.

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महिषासुरमर्दिनी रूप में होती है पूजा

नागौर. मां दुर्गा की उपासना के पर्व नवरात्र में हर तरफ श्रद्धा और भक्ति की बयार बह रही है. मंदिरों के साथ ही घरों में भी घट स्थापना कर देवी की उपासना की जा रही है. मान्यता है कि नवरात्र में मां दुर्गा की पूजा और उपासना से देवी प्रसन्न होती है. नागौर जिले में बालिया नामक एक गांव है जहां कई किलोमीटर के इलाके में फैली नमक की झील के किनारे पाढ़ाय माता का ऐतिहासिक मंदिर है.

महिषासुरमर्दिनी रूप में होती है पूजा

ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर के गर्भगृह में विराजमान देवी की प्रतिमा पास ही लगे केर के झाड़ से प्रकट हुई थी और उन्हीं के वरदान से खारे पानी की झील बनी, जिसमें नमक बनता है. इस मंदिर में देवी के महिषासुरमर्दिनी स्वरूप में पूजा होती है. ऐसा कहा जाता है कि नवरात्र में यहां आने वाले भक्तों की मनोकामना देवी जरूर पूरी करती है. यहां देवी के प्रकट होने और नमक की झील बनने की कहानी भी किसी चमत्कार से कम नहीं है.

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देवी के वरदान से बनी नमक की झील

क्या कहते हैं मंदिर के पुजारी?

मंदिर के पुजारी मोहन शर्मा बताते हैं कि बरसों पहले यह जगह बिल्कुल सूनसान थी. जहां शहर में रहने वाले लोग यहां गाय चराने के लिए आते थे. उस समय डीडवाना शहर में नगरसेठ भैरव लाल सारड़ा रहते थे. उनकी गायें भी इस जगह चरने आती थी. उन गायों में से एक गाय का दूध निकला हुआ देखकर सेठ ने चरवाहे को उलाहना दिया और कहा कि एक गाय का दूध निकालकर वह बेच देता है. चरवाहे ने इससे इनकार किया और उस गाय का खास ध्यान रखने लगा. तब एक केर के झाड़ में से एक छोटी बच्ची निकली और गाय का दूध पीकर वापस चली गई. इस घटना के बारे में चरवाहे ने सेठ को बताया तो उसे विश्वास नहीं हुआ और वह अपना घोड़ा लेकर खुद अगले दिन गायों के पीछे आ गया. तब वैसा ही हुआ जैसा चरवाहे ने बताया था.

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नागौर में पाढ़ाय माता मंदिर

यह भी पढ़ें: नवरात्र स्पेशलः माता के जयकारों से गूंज उठा अजमेर के अंबे मां का दरबार

केर के झाड़ में से निकली एक बच्ची गाय का दूध पीकर जाने लगी तो सेठ ने पीछे से रुकने को कहा और पूछा कि वह कौन है. इस पर बच्ची ने सेठ को वास्तविक स्वरूप में दर्शन दिए और कहा कि वह इसी केर के झाड़ में से प्रकट होंगी. फिर देवी ने सेठ को आदेश दिया कि वह अपना घोड़ा लेकर जितनी दूर तक दौड़ सकता है दौड़े. जहां तक उसका घोड़ा दौड़ेगा. उस जगह पर चांदी की खान हो जाएगी. लेकिन शर्त यह है कि उसे पीछे मुड़कर नहीं देखना है. इतना कहकर देवी अंतर्ध्यान हो गई. सेठ अपनी गाय और घोड़ा लेकर दौड़ने लगा.

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केर के झाड़ से प्रकट हुई देवी

अचानक केर का झाड़ चार हिस्सों में फटा और तेज गर्जना हुई, जिसे सुनकर सेठ का घोड़ा रुक गया. उसने पीछे मुड़कर देखा तो काफी बड़े इलाके में चांदी की खान बन गई थी. सेठ वापस उस स्थान पर पहुंचा. जहां देवी ने उसे दर्शन दिए थे और प्रार्थना किया कि इस चांदी के लिए लोग एक दूसरे के खून के प्यासे हो जाएंगे और मारकाट करेंगे. इसलिए उसने इस जमीन को वापस पहले जैसी करने की गुहार लगाई. तब देवी ने वरदान दिया कि यहां चांदी की खान की बजाए खारे पानी की झील होगी. जहां नमक बनेगा, लोग मेहनत करके नमक बनाएंगे. इसलिए इस इलाके में आज भी नमक को कच्ची चांदी कहा जाता है.

मंदिर का इतिहास

इस मंदिर में मिले शिलालेखों के अनुसार, विक्रम संवत 902 में मंदिर के गर्भगृह और उसके ऊपर शिखर का निर्माण कर केर के झाड़ से निकली देवी की प्रतिमा को यहां विराजमान किया गया था. बताया जाता है कि इस मंदिर के गर्भगृह और शिखर का निर्माण भी नगरसेठ भैरव लाल सारड़ा ने ही करवाया था. मंदिर के पुजारी सीपी शर्मा का कहना है कि पाढ़ाय माता का मंदिर, गर्भगृह और शिखर स्थापत्य कला के साथ ही वास्तुकला का भी बेजोड़ नमूना है. गर्भगृह के मुख्यद्वार के ऊपर भगवान विष्णु की शयन आसान में बनी प्रतिमा स्थापित की गई है. परिक्रमा पथ में शिखर पर सबसे पहले नृत्य करते हुए भगवान गणेश की आकर्षक प्रतिमा लगी है. आगे बढ़ने पर नटराज स्वरूप में भगवान शिव की दुर्लभ प्रतिमा विराजमान है. इसके बाद देवी की महिषासुरमर्दिनी स्वरूप में आकर्षक और दुर्लभ प्रतिमा है.

यह भी पढ़ें: ऐसा मंदिर जहां मां को लगता है ढाई प्याला शराब का भोग

उनका कहना है कि इस मंदिर के गर्भगृह और शिखर के निर्माण में वास्तुकला का पूरा ध्यान रखा गया है. यही कारण है कि यहां आने वाले भक्तों को अपार शांति का अनुभव होता है और उनकी सारी तकलीफ मिट जाती है. इसके साथ ही मंदिर के शिखर पर आकर्षक बनावट के साथ ही रामायण के प्रसंग भी दर्शाए गए हैं. पुजारी सीपी शर्मा का कहना है कि इस मंदिर में देशभर के हजारों श्रद्धालु हर साल दर्शन के लिए आते हैं. चैत्र और शारदीय नवरात्र में खासी भीड़ उमड़ती है. इसके साथ ही चैत्र शुक्ल चतुर्दशी को वार्षिकोत्सव धूमधाम से मनाया जाता है और मेला भरता है. कई लोग मंदिर की स्थापत्य और वास्तुकला देखने भी दूर-दूर से आते हैं.

यह भी पढ़ें: नवरात्रि स्पेशल : देवी चंडिका के खजाने से किए जाते जनकल्याण के काम

पाढ़ाय माता मंदिर के पुजारी मोहन शर्मा बताते हैं कि साल 2008 में राजस्थान सरकार के पुरातत्व विभाग ने इसे संरक्षित की श्रेणी में शामिल किया था. विभाग की ओर से एक गार्ड भी यहां तैनात किया गया है. लेकिन संरक्षित स्मारक घोषित करने के बावजूद विभाग की ओर से कभी मंदिर में मरम्मत या विकास का कोई काम नहीं करवाया गया है. नमक की हवा के कारण सैकड़ों साल पुराने पत्थर गलने लगे हैं. पत्थर की कई मूर्तियों और कलाकृतियों को काफी नुकसान हुआ है. इस संबंध में विभाग के अधिकारियों से लेकर वर्तमान सरकार में मंत्री बीडी कल्ला को भी अवगत करवाया गया है. फिर भी अभी तक किसी ने सुध नहीं ली है.

नागौर. मां दुर्गा की उपासना के पर्व नवरात्र में हर तरफ श्रद्धा और भक्ति की बयार बह रही है. मंदिरों के साथ ही घरों में भी घट स्थापना कर देवी की उपासना की जा रही है. मान्यता है कि नवरात्र में मां दुर्गा की पूजा और उपासना से देवी प्रसन्न होती है. नागौर जिले में बालिया नामक एक गांव है जहां कई किलोमीटर के इलाके में फैली नमक की झील के किनारे पाढ़ाय माता का ऐतिहासिक मंदिर है.

महिषासुरमर्दिनी रूप में होती है पूजा

ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर के गर्भगृह में विराजमान देवी की प्रतिमा पास ही लगे केर के झाड़ से प्रकट हुई थी और उन्हीं के वरदान से खारे पानी की झील बनी, जिसमें नमक बनता है. इस मंदिर में देवी के महिषासुरमर्दिनी स्वरूप में पूजा होती है. ऐसा कहा जाता है कि नवरात्र में यहां आने वाले भक्तों की मनोकामना देवी जरूर पूरी करती है. यहां देवी के प्रकट होने और नमक की झील बनने की कहानी भी किसी चमत्कार से कम नहीं है.

पाढ़ाय माता मंदिर  केर के झाड़ से प्रकट हुई देवी  महिषासुरमर्दिनी  पाढ़ाय माता मंदिर नागौर  राजस्थान में मंदिर  नागौर में मंदिर  nagaur news  rajasthan news  Temple in Nagaur  Temples in Rajasthan  Padhai Mata Temple Nagaur  Mahishasuramardini  Festival of Navratri  Salt production  Padhai Mata Temple  Goddess revealed from tree of Kerr
देवी के वरदान से बनी नमक की झील

क्या कहते हैं मंदिर के पुजारी?

मंदिर के पुजारी मोहन शर्मा बताते हैं कि बरसों पहले यह जगह बिल्कुल सूनसान थी. जहां शहर में रहने वाले लोग यहां गाय चराने के लिए आते थे. उस समय डीडवाना शहर में नगरसेठ भैरव लाल सारड़ा रहते थे. उनकी गायें भी इस जगह चरने आती थी. उन गायों में से एक गाय का दूध निकला हुआ देखकर सेठ ने चरवाहे को उलाहना दिया और कहा कि एक गाय का दूध निकालकर वह बेच देता है. चरवाहे ने इससे इनकार किया और उस गाय का खास ध्यान रखने लगा. तब एक केर के झाड़ में से एक छोटी बच्ची निकली और गाय का दूध पीकर वापस चली गई. इस घटना के बारे में चरवाहे ने सेठ को बताया तो उसे विश्वास नहीं हुआ और वह अपना घोड़ा लेकर खुद अगले दिन गायों के पीछे आ गया. तब वैसा ही हुआ जैसा चरवाहे ने बताया था.

पाढ़ाय माता मंदिर  केर के झाड़ से प्रकट हुई देवी  महिषासुरमर्दिनी  पाढ़ाय माता मंदिर नागौर  राजस्थान में मंदिर  नागौर में मंदिर  nagaur news  rajasthan news  Temple in Nagaur  Temples in Rajasthan  Padhai Mata Temple Nagaur  Mahishasuramardini  Festival of Navratri  Salt production  Padhai Mata Temple  Goddess revealed from tree of Kerr
नागौर में पाढ़ाय माता मंदिर

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केर के झाड़ में से निकली एक बच्ची गाय का दूध पीकर जाने लगी तो सेठ ने पीछे से रुकने को कहा और पूछा कि वह कौन है. इस पर बच्ची ने सेठ को वास्तविक स्वरूप में दर्शन दिए और कहा कि वह इसी केर के झाड़ में से प्रकट होंगी. फिर देवी ने सेठ को आदेश दिया कि वह अपना घोड़ा लेकर जितनी दूर तक दौड़ सकता है दौड़े. जहां तक उसका घोड़ा दौड़ेगा. उस जगह पर चांदी की खान हो जाएगी. लेकिन शर्त यह है कि उसे पीछे मुड़कर नहीं देखना है. इतना कहकर देवी अंतर्ध्यान हो गई. सेठ अपनी गाय और घोड़ा लेकर दौड़ने लगा.

पाढ़ाय माता मंदिर  केर के झाड़ से प्रकट हुई देवी  महिषासुरमर्दिनी  पाढ़ाय माता मंदिर नागौर  राजस्थान में मंदिर  नागौर में मंदिर  nagaur news  rajasthan news  Temple in Nagaur  Temples in Rajasthan  Padhai Mata Temple Nagaur  Mahishasuramardini  Festival of Navratri  Salt production  Padhai Mata Temple  Goddess revealed from tree of Kerr
केर के झाड़ से प्रकट हुई देवी

अचानक केर का झाड़ चार हिस्सों में फटा और तेज गर्जना हुई, जिसे सुनकर सेठ का घोड़ा रुक गया. उसने पीछे मुड़कर देखा तो काफी बड़े इलाके में चांदी की खान बन गई थी. सेठ वापस उस स्थान पर पहुंचा. जहां देवी ने उसे दर्शन दिए थे और प्रार्थना किया कि इस चांदी के लिए लोग एक दूसरे के खून के प्यासे हो जाएंगे और मारकाट करेंगे. इसलिए उसने इस जमीन को वापस पहले जैसी करने की गुहार लगाई. तब देवी ने वरदान दिया कि यहां चांदी की खान की बजाए खारे पानी की झील होगी. जहां नमक बनेगा, लोग मेहनत करके नमक बनाएंगे. इसलिए इस इलाके में आज भी नमक को कच्ची चांदी कहा जाता है.

मंदिर का इतिहास

इस मंदिर में मिले शिलालेखों के अनुसार, विक्रम संवत 902 में मंदिर के गर्भगृह और उसके ऊपर शिखर का निर्माण कर केर के झाड़ से निकली देवी की प्रतिमा को यहां विराजमान किया गया था. बताया जाता है कि इस मंदिर के गर्भगृह और शिखर का निर्माण भी नगरसेठ भैरव लाल सारड़ा ने ही करवाया था. मंदिर के पुजारी सीपी शर्मा का कहना है कि पाढ़ाय माता का मंदिर, गर्भगृह और शिखर स्थापत्य कला के साथ ही वास्तुकला का भी बेजोड़ नमूना है. गर्भगृह के मुख्यद्वार के ऊपर भगवान विष्णु की शयन आसान में बनी प्रतिमा स्थापित की गई है. परिक्रमा पथ में शिखर पर सबसे पहले नृत्य करते हुए भगवान गणेश की आकर्षक प्रतिमा लगी है. आगे बढ़ने पर नटराज स्वरूप में भगवान शिव की दुर्लभ प्रतिमा विराजमान है. इसके बाद देवी की महिषासुरमर्दिनी स्वरूप में आकर्षक और दुर्लभ प्रतिमा है.

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उनका कहना है कि इस मंदिर के गर्भगृह और शिखर के निर्माण में वास्तुकला का पूरा ध्यान रखा गया है. यही कारण है कि यहां आने वाले भक्तों को अपार शांति का अनुभव होता है और उनकी सारी तकलीफ मिट जाती है. इसके साथ ही मंदिर के शिखर पर आकर्षक बनावट के साथ ही रामायण के प्रसंग भी दर्शाए गए हैं. पुजारी सीपी शर्मा का कहना है कि इस मंदिर में देशभर के हजारों श्रद्धालु हर साल दर्शन के लिए आते हैं. चैत्र और शारदीय नवरात्र में खासी भीड़ उमड़ती है. इसके साथ ही चैत्र शुक्ल चतुर्दशी को वार्षिकोत्सव धूमधाम से मनाया जाता है और मेला भरता है. कई लोग मंदिर की स्थापत्य और वास्तुकला देखने भी दूर-दूर से आते हैं.

यह भी पढ़ें: नवरात्रि स्पेशल : देवी चंडिका के खजाने से किए जाते जनकल्याण के काम

पाढ़ाय माता मंदिर के पुजारी मोहन शर्मा बताते हैं कि साल 2008 में राजस्थान सरकार के पुरातत्व विभाग ने इसे संरक्षित की श्रेणी में शामिल किया था. विभाग की ओर से एक गार्ड भी यहां तैनात किया गया है. लेकिन संरक्षित स्मारक घोषित करने के बावजूद विभाग की ओर से कभी मंदिर में मरम्मत या विकास का कोई काम नहीं करवाया गया है. नमक की हवा के कारण सैकड़ों साल पुराने पत्थर गलने लगे हैं. पत्थर की कई मूर्तियों और कलाकृतियों को काफी नुकसान हुआ है. इस संबंध में विभाग के अधिकारियों से लेकर वर्तमान सरकार में मंत्री बीडी कल्ला को भी अवगत करवाया गया है. फिर भी अभी तक किसी ने सुध नहीं ली है.

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