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Special : कोरोना काल में मनरेगा ने दिया सहारा, बेरोजगार श्रमिकों को मिला रोजगार

कोरोना काल में बड़े शहरों में काम धंधे ठप होने के बाद गांव लौटे प्रवासी श्रमिकों के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया था. ऐसे में महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) ने मजदूरों की डूबती नैया को फिर से पार लगा दिया है. करीब 86 हजार श्रमिक मनरेगा के अंतर्गत काम कर रहे हैं. पेश है खास रिपोर्ट...

MNREGA became a boon during the Corona era
कोरोना काल में मनरेगा बना वरदान
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Published : Sep 27, 2020, 3:17 PM IST

नागौर. कोरोना काल में जहां देश के औद्योगिक क्षेत्रों में सन्नाटा पसरा है, वहीं कई छोटे-बड़े उद्योग बंद होने की कगार पर पहुंच गए हैं. ऐसे में ग्रामीण इलाकों के लोगों के लिए दो जून की रोटी का इंतजाम करना भी मुश्किल होता जा रहा है. ऐसे में कोरोना काल में महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) ग्रामीण इलाके के बेरोजगारों और मजदूरों के लिए रोजगार देने में अहम भूमिका अदा कर रहा है.

मनरेगा ने दिया मजदूरों को सहारा

कई प्रवासी मजदूर जब कोरोना काल में अपने गांवों की ओर लौटे तब उनके पास जीविकोपार्जन का कोई साधन नहीं था. मजदूरों के लिए घर चलाना भी मुश्किल हो गया था, लेकिन मनरेगा ने उनके जीवन की मुश्किलें कम कर दीं. योजना के अंतर्गत कार्य कर प्रवासी मजदूर अपना और परिजनों का पेट पाल रहे हैं. वर्तमान में नागौर जिले की 500 में से 468 ग्राम पंचायतों में मनरेगा के तहत काम चल रहे हैं. जिनमें अभी 86 हजार से ज्यादा मजदूर जुड़े हुए हैं.

मनरेगा के तहत लोगों को काम मुहैया करवाने के लिहाज से अभी नागौर प्रदेश में श्रीगंगानगर और बाड़मेर के बाद तीसरे पायदान पर है. हांलाकि जुलाई के पहले पखवाड़े तक नागौर में मनरेगा से करीब दो लाख लोग जुड़े हुए थे. मानसून में बारिश के बाद मनरेगा में मजदूरी करने वाले अधिकांश लोगों ने खेतों की ओर रुख कर लिया, फिर भी 86 हजार से ज्यादा लोग मनरेगा में मजदूरी कर रहे हैं.

MNREGA provided employment
मनरेगा ने दिया रोजगार

यह भी पढ़ें: Special: सरकार के 260 कर्मचारी ही डकार गए गरीबों का निवाला, अब होगी वसूली

बेंगलुरू में केटरिंग व्यवसाय से जुड़े श्रमिक का कहना है कि कोरोना काल में केटरिंग उद्योग नाममात्र का रह गया है. इसलिए लॉकडाउन की शुरुआत में ही वह अपने गांव आ गए थे. यहां जीविकोपार्जन का कोई साधन नहीं था. इसलिए मनरेगा में मजदूरी करने लग गए, जो भी मजदूरी मिलती है उससे गुजारा कर रहे हैं. वहीं इंदौर में मिठाई की दुकान करने वाले दुकानदार बताते हैं कि वहां मिठाई की दुकान पर अच्छी कमाई हो जाती थी, लॉकडाउन में दुकान बंद रखनी पड़ी. आय का कोई दूसरा जरिया नहीं था. इसलिए गांव आ गए. यहां भी रोजगार का कोई साधन नहीं था तो मनरेगा से जुड़ गए ताकि काम चलता रहे.

Women also got work
महिलाओं को भी मिला काम

यह भी पढ़ें: मनरेगा पर भाजपा ने उठाए सवाल, कहा- नए कार्यों की स्वीकृति जारी नहीं होने पर मजदूर परेशान

सरकारी आंकड़े बताते हैं कि लॉकडाउन में ढील के साथ ही अप्रैल में जिले में मनरेगा के तहत काम शुरू किए गए थे. तब 50 हजार मजदूर मनरेगा में काम कर रहे थे, लेकिन बाद में जिले में लौटने वाले प्रवासी मजदूरों की संख्या बढ़ने के साथ ही मनरेगा के जॉब कार्ड बनने प्रक्रिया में भी तेजी आई और मजदूरों की संख्या भी बढ़ने लगी. जुलाई तक मनरेगा में काम करने वाले श्रमिकों की संख्या करीब दो लाख तक पहुंच गई थी. खरीफ की बुवाई का सीजन आया तो मनरेगा से जुड़े कई श्रमिक खेतों में काम करने लगे. फिर भी जिले में 86 हजार से ज्यादा लोग मनरेगा में मजदूरी कर परिवार चला रहे हैं.

MNREGA gave relief
मनरेगा ने दी राहत

जिला परिषद के मुख्य कार्यकारी अधिकारी जवाहर चौधरी बताते हैं कि नागौर जिले की 500 में से 468 ग्राम पंचायतों में अभी मनरेगा के तहत काम चल रहा है. इन ग्राम पंचायतों में 2,325 काम प्रगति पर हैं जिनके लिए 10,121 मस्टररोल जारी किए गए हैं. फिलहाल जिले में 86,233 मजदूर मनरेगा में काम कर रहे हैं. उनका कहना है कि जुलाई के पहले पखवाड़े तक जिले में करीब 2 लाख मजदूर मनरेगा से जुड़े थे. बारिश के बाद काफी लोग खेती में लग गए. अभी मनरेगा में रोजगार मुहैया करवाने के लिहाज से प्रदेश में नागौर का तीसरा स्थान है.

उनका कहना है कि सार्वजनिक हित के काम जैसे तालाब और नाली खुदाई और पौधरोपण के साथ ही चयनित परिवारों के खेत की बाड़ बनाने, टांका बनाने और प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत बनने वाले मकानों के काम में भी मनरेगा श्रमिकों को रोजगार मुहैया करवाया जा रहा है. विभागीय आंकड़े बताते हैं कि जिले में मनरेगा के तहत सबसे ज्यादा 10202 मजदूर मकराना पंचायत समिति की 34 ग्राम पंचायतों में जुड़े हुए हैं.

जिले में कहां कितने मजदूर मनरेगा में काम कर रहे

पंचायत समिति ग्राम पंचायत मजदूर
डेगाना 41 1959
डीडवाना36 4186
जायल 38 7885
खींवसर 34 4258
कुचामन32 7988
लाडनूं 34 4654
मकराना 34 10202
मेड़ता36 3451
मौलासर24 5219
पंचायत समिति ग्राम पंचायत मजदूर
मूंडवा 28 7815
नागौर 39 5660
नावां 24 7469
परबतसर 36 6708
रियांबड़ी 32 8779

नागौर. कोरोना काल में जहां देश के औद्योगिक क्षेत्रों में सन्नाटा पसरा है, वहीं कई छोटे-बड़े उद्योग बंद होने की कगार पर पहुंच गए हैं. ऐसे में ग्रामीण इलाकों के लोगों के लिए दो जून की रोटी का इंतजाम करना भी मुश्किल होता जा रहा है. ऐसे में कोरोना काल में महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) ग्रामीण इलाके के बेरोजगारों और मजदूरों के लिए रोजगार देने में अहम भूमिका अदा कर रहा है.

मनरेगा ने दिया मजदूरों को सहारा

कई प्रवासी मजदूर जब कोरोना काल में अपने गांवों की ओर लौटे तब उनके पास जीविकोपार्जन का कोई साधन नहीं था. मजदूरों के लिए घर चलाना भी मुश्किल हो गया था, लेकिन मनरेगा ने उनके जीवन की मुश्किलें कम कर दीं. योजना के अंतर्गत कार्य कर प्रवासी मजदूर अपना और परिजनों का पेट पाल रहे हैं. वर्तमान में नागौर जिले की 500 में से 468 ग्राम पंचायतों में मनरेगा के तहत काम चल रहे हैं. जिनमें अभी 86 हजार से ज्यादा मजदूर जुड़े हुए हैं.

मनरेगा के तहत लोगों को काम मुहैया करवाने के लिहाज से अभी नागौर प्रदेश में श्रीगंगानगर और बाड़मेर के बाद तीसरे पायदान पर है. हांलाकि जुलाई के पहले पखवाड़े तक नागौर में मनरेगा से करीब दो लाख लोग जुड़े हुए थे. मानसून में बारिश के बाद मनरेगा में मजदूरी करने वाले अधिकांश लोगों ने खेतों की ओर रुख कर लिया, फिर भी 86 हजार से ज्यादा लोग मनरेगा में मजदूरी कर रहे हैं.

MNREGA provided employment
मनरेगा ने दिया रोजगार

यह भी पढ़ें: Special: सरकार के 260 कर्मचारी ही डकार गए गरीबों का निवाला, अब होगी वसूली

बेंगलुरू में केटरिंग व्यवसाय से जुड़े श्रमिक का कहना है कि कोरोना काल में केटरिंग उद्योग नाममात्र का रह गया है. इसलिए लॉकडाउन की शुरुआत में ही वह अपने गांव आ गए थे. यहां जीविकोपार्जन का कोई साधन नहीं था. इसलिए मनरेगा में मजदूरी करने लग गए, जो भी मजदूरी मिलती है उससे गुजारा कर रहे हैं. वहीं इंदौर में मिठाई की दुकान करने वाले दुकानदार बताते हैं कि वहां मिठाई की दुकान पर अच्छी कमाई हो जाती थी, लॉकडाउन में दुकान बंद रखनी पड़ी. आय का कोई दूसरा जरिया नहीं था. इसलिए गांव आ गए. यहां भी रोजगार का कोई साधन नहीं था तो मनरेगा से जुड़ गए ताकि काम चलता रहे.

Women also got work
महिलाओं को भी मिला काम

यह भी पढ़ें: मनरेगा पर भाजपा ने उठाए सवाल, कहा- नए कार्यों की स्वीकृति जारी नहीं होने पर मजदूर परेशान

सरकारी आंकड़े बताते हैं कि लॉकडाउन में ढील के साथ ही अप्रैल में जिले में मनरेगा के तहत काम शुरू किए गए थे. तब 50 हजार मजदूर मनरेगा में काम कर रहे थे, लेकिन बाद में जिले में लौटने वाले प्रवासी मजदूरों की संख्या बढ़ने के साथ ही मनरेगा के जॉब कार्ड बनने प्रक्रिया में भी तेजी आई और मजदूरों की संख्या भी बढ़ने लगी. जुलाई तक मनरेगा में काम करने वाले श्रमिकों की संख्या करीब दो लाख तक पहुंच गई थी. खरीफ की बुवाई का सीजन आया तो मनरेगा से जुड़े कई श्रमिक खेतों में काम करने लगे. फिर भी जिले में 86 हजार से ज्यादा लोग मनरेगा में मजदूरी कर परिवार चला रहे हैं.

MNREGA gave relief
मनरेगा ने दी राहत

जिला परिषद के मुख्य कार्यकारी अधिकारी जवाहर चौधरी बताते हैं कि नागौर जिले की 500 में से 468 ग्राम पंचायतों में अभी मनरेगा के तहत काम चल रहा है. इन ग्राम पंचायतों में 2,325 काम प्रगति पर हैं जिनके लिए 10,121 मस्टररोल जारी किए गए हैं. फिलहाल जिले में 86,233 मजदूर मनरेगा में काम कर रहे हैं. उनका कहना है कि जुलाई के पहले पखवाड़े तक जिले में करीब 2 लाख मजदूर मनरेगा से जुड़े थे. बारिश के बाद काफी लोग खेती में लग गए. अभी मनरेगा में रोजगार मुहैया करवाने के लिहाज से प्रदेश में नागौर का तीसरा स्थान है.

उनका कहना है कि सार्वजनिक हित के काम जैसे तालाब और नाली खुदाई और पौधरोपण के साथ ही चयनित परिवारों के खेत की बाड़ बनाने, टांका बनाने और प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत बनने वाले मकानों के काम में भी मनरेगा श्रमिकों को रोजगार मुहैया करवाया जा रहा है. विभागीय आंकड़े बताते हैं कि जिले में मनरेगा के तहत सबसे ज्यादा 10202 मजदूर मकराना पंचायत समिति की 34 ग्राम पंचायतों में जुड़े हुए हैं.

जिले में कहां कितने मजदूर मनरेगा में काम कर रहे

पंचायत समिति ग्राम पंचायत मजदूर
डेगाना 41 1959
डीडवाना36 4186
जायल 38 7885
खींवसर 34 4258
कुचामन32 7988
लाडनूं 34 4654
मकराना 34 10202
मेड़ता36 3451
मौलासर24 5219
पंचायत समिति ग्राम पंचायत मजदूर
मूंडवा 28 7815
नागौर 39 5660
नावां 24 7469
परबतसर 36 6708
रियांबड़ी 32 8779
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