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15 साल बाद टिड्डियों का आतंक, 5 हजार हेक्टेयर से ज्यादा इलाके प्रभावित

नागौर, पिछले 20 दिन से लगातार टिड्डी दल का हमला झेल रहा है. जिले में 15 साल बाद टिड्डी दल हमला हुआ है. इससे पहले साल 1993 और 2005 में भी टिड्डियों ने हमला किया था. लेकिन इस बार टिड्डी दल का हमला सबसे बड़ा और चौंकाने वाला है. अब तक 5 हजार 213 हेक्टेयर क्षेत्र में टिड्डी दल को नियंत्रित किया जा चुका है. लेकिन इनका हमला लगातार जारी है. टिड्डी दल का यह हमला कितना खतरनाक है, पढ़िए खास रिपोर्ट...

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15 साल बाद नागौर में टिड्डी दल का हमला
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Published : May 28, 2020, 7:15 PM IST

नागौर. जिले के 50 से ज्यादा गांवों के 5 हजार 213 हेक्टेयर क्षेत्र में बीते 20 दिन में टिड्डी दल का हमला हो चुका है. कुल 63 सर्वे दल लगातार पीछाकर टिड्डी दल को नष्ट करने में जुटे हैं. लेकिन अलग-अलग जगहों पर लगातार टिड्डी दल के हमले जारी हैं. कहने को तो नागौर में करीब 15 साल बाद टिड्डी दल का हमला हुआ है. लेकिन इस बार यह हमला काफी बड़ा और चौंकाने वाला बताया जा रहा है. इससे पहले जिले के किसान साल 1993 और 2005 में टिड्डी दल का हमला झेल चुके हैं. लेकिन इस बार हुआ टिड्डी दल का हमला अब तक का सबसे बड़ा हमला बताया जा रहा है.

5 हजार हेक्टेयर से ज्यादा इलाके प्रभावित

ईटीवी भारत की पड़ताल में सामने आया है कि जायल उपखंड के रातंगा और आसपास के इलाकों में जिस टिड्डी दल ने हमला किया था. वह करीब 5 से 7 किमी चौड़ा और करीब डेढ़ से दो किमी लंबा था. जिले में पहली बार 8 मई को खींवसर उपखंड के सीमावर्ती गांवों में टिड्डी दल की धमक दिखाई दी थी. इस इलाके में पहले तो ग्रामीणों ने अपने स्तर पर बर्तन बजाकर और धुआं कर टिड्डी दल को भगाने का प्रयास किया. लेकिन सफलता नहीं मिली तो कृषि विभाग और टिड्डी नियंत्रण मंडल की संयुक्त टीम ने दवा का छिड़काव कर इसे नष्ट करने का प्रयास किया.

यह भी पढ़ेंः मजबूरी में ले रहे ऑनलाइन शिक्षा का सहारा...लेकिन यह प्रभावी नहीं: गोविंदसिंह डोटासरा

जानकारों का कहना है कि दवा का छिड़काव करने से अधिकतम 25-30 फीसदी टिड्डियों को ही मारा जा सकता है. बाकि बची हुईं टिड्डियां उड़कर दूसरी जगह जमावड़ा कर लेती हैं. जहां-जहां टिड्डी दल जमावड़ा करता है. अपने पीछे तबाही के निशान छोड़ता जाता है. जायल उपखंड के रातंगा और आसपास के गांवों में ही टिड्डी दल करीब 100 हेक्टेयर कपास की फसल चट कर गया.

15 साल बाद नागौर में टिड्डी दल का हमला

किसान बताते हैं कि उनके ट्यूबवेल पर कपास के पौधे 8 से 12 इंच लंबे हो गए थे और हर पौधे पर 7 से 10 पत्ते आ चुके थे. लेकिन टिड्डी के हमले में सारी फसल चौपट हो गई. यही नहीं खेजड़ी, नीम और पीपल जैसे बड़े पेड़ भी टिड्डी दल के हमले से ठूंठ हो गए हैं. खेजड़ी की पत्तियां बकरियों के लिए पौष्टिक खाद्य पदार्थ हैं और सांगरिया सब्जी के रूप में प्रयोग की जाती हैं. खेजड़ी की पत्तियां और सांगरियों की बिक्री से किसानों को कुछ अतिरिक्त आय भी हो जाती है. लेकिन वह भी टिड्डियों के हमले की भेंट चढ़ गए. इस इलाके के खेतों में और सड़क किनारे अभी भी मरी हुई टिड्डियां देखी जा सकती हैं.

आमतौर पर दिन में टिड्डी दल लगातार जगह बदलता रहता है, रात को किसी एक जगह पड़ाव डालता है. इसलिए इन्हें दिन में काबू करना मुश्किल है. सर्वे दल रात में ट्रैकिंग कर रहे हैं और अलसुबह दवा का छिड़काव कर टिड्डियों को नष्ट कर रहे हैं. कृषि विभाग और टिड्डी नियंत्रण मंडल के पास छोटी गाड़ियां हैं. इनसे दवा का छिड़काव करने के लिए टिड्डियों के जमावड़े के पास जाना पड़ता है और टिड्डियां उड़ जाती हैं. इसलिए किसानों के ट्रैक्टर और दवा छिड़कने की मशीन का ज्यादा उपयोग किया जा रहा है. ट्रैक्टर पर लगी मशीन के पाइप से करीब 500 मीटर दूर से ही छिड़काव किया जा सकता है. आमतौर पर टिड्डी दल एक दिन में 80 से 100 किमी की दूरी तक उड़ सकता है. लेकिन हवा की रफ्तार तेज होने पर उनकी गति 110 से 150 किमी प्रतिदिन तक पहुंच जाती है.

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पिछले 20 दिन से लगातार टिड्डी दल का हमला

नागौर में इन दिनों तेज हवा चल रही है, इसलिए टिड्डी दल सामान्य से ज्यादा दूरी तय कर एक से दूसरे स्थान पर पहुंच रहा है. ऐसे में इसे काबू करने में काफी मुश्किल आ रही है. टिड्डी दल बिना रुके 24 घंटे तक फसल या वनस्पति खा सकता है. इसकी खाने की स्पीड इतनी तेज होती है कि काफी बड़े इलाके में खड़ी फसल को देखते ही देखते चट कर सकता है. एक टिड्डी की औसत आयु 90 दिन होती है. बारिश के समय इनका प्रजननकाल होता है. इसलिए बारिश से पहले इन्हें नष्ट करना भी एक बड़ी चुनौती है. आमतौर पर टिड्डी दल के हमले का समय अगस्त से अक्टूबर के बीच माना जाता है. लेकिन इस बार पाकिस्तान की सीमा से सटे इलाकों में अप्रैल में और नागौर में मई में हमला हुआ है, जो काफी चौंकाने वाला है.

यह भी पढ़ेंः अलर्टः जून में फिर आ सकते हैं टिड्डी दल, कृषि विभाग के उपनिदेशक ने कहा- किए जा रहे पर्याप्त बंदोबस्त

कुल मिलाकर नागौर जिले सहित प्रदेश के कई इलाकों में इस बार टिड्डी दल का हमला काफी बड़ा और अप्रत्याशित है. इसलिए प्रशासन भी अपने स्तर पर प्रयास करने के साथ ही लगातार ग्रामीणों की भी मदद ले रहा है. ताकि बड़े नुकसान से बचा जा सके. इसके अलावा ग्रामीणों को इसके लिए भी तैयार किया जा रहा है कि टिड्डी दल के आकस्मिक हमले के समय क्या उपाय कर इनसे होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता है.

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एक टिड्डी की औसत आयु 90 दिन होती है

कृषि पर्यवेक्षक रामप्रकाश बिडियासर बताते हैं कि इसके लिए बाकायदा ग्रामीणों को प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है. साथ ही जरूरत पड़ने पर कीटनाशक और अन्य संसाधन भी मुहैया करवाए जा रहे हैं. सरकार ने टिड्डी दल से हुए नुकसान का आकलन करवाने के लिए विशेष गिरदावरी करवाने के आदेश जारी कर दिए हैं. इसकी रिपोर्ट तैयार होने पर पता चलेगा कि कितने किसानों की कितनी फसल टिड्डियां चट कर गई हैं. फिलहाल, टिड्डी दल के लगातार होते हमलों को रोकना और बारिश से पहले इन्हें शत प्रतिशत नष्ट करना प्रशासन के लिए बड़ी चुनौती है.

नागौर. जिले के 50 से ज्यादा गांवों के 5 हजार 213 हेक्टेयर क्षेत्र में बीते 20 दिन में टिड्डी दल का हमला हो चुका है. कुल 63 सर्वे दल लगातार पीछाकर टिड्डी दल को नष्ट करने में जुटे हैं. लेकिन अलग-अलग जगहों पर लगातार टिड्डी दल के हमले जारी हैं. कहने को तो नागौर में करीब 15 साल बाद टिड्डी दल का हमला हुआ है. लेकिन इस बार यह हमला काफी बड़ा और चौंकाने वाला बताया जा रहा है. इससे पहले जिले के किसान साल 1993 और 2005 में टिड्डी दल का हमला झेल चुके हैं. लेकिन इस बार हुआ टिड्डी दल का हमला अब तक का सबसे बड़ा हमला बताया जा रहा है.

5 हजार हेक्टेयर से ज्यादा इलाके प्रभावित

ईटीवी भारत की पड़ताल में सामने आया है कि जायल उपखंड के रातंगा और आसपास के इलाकों में जिस टिड्डी दल ने हमला किया था. वह करीब 5 से 7 किमी चौड़ा और करीब डेढ़ से दो किमी लंबा था. जिले में पहली बार 8 मई को खींवसर उपखंड के सीमावर्ती गांवों में टिड्डी दल की धमक दिखाई दी थी. इस इलाके में पहले तो ग्रामीणों ने अपने स्तर पर बर्तन बजाकर और धुआं कर टिड्डी दल को भगाने का प्रयास किया. लेकिन सफलता नहीं मिली तो कृषि विभाग और टिड्डी नियंत्रण मंडल की संयुक्त टीम ने दवा का छिड़काव कर इसे नष्ट करने का प्रयास किया.

यह भी पढ़ेंः मजबूरी में ले रहे ऑनलाइन शिक्षा का सहारा...लेकिन यह प्रभावी नहीं: गोविंदसिंह डोटासरा

जानकारों का कहना है कि दवा का छिड़काव करने से अधिकतम 25-30 फीसदी टिड्डियों को ही मारा जा सकता है. बाकि बची हुईं टिड्डियां उड़कर दूसरी जगह जमावड़ा कर लेती हैं. जहां-जहां टिड्डी दल जमावड़ा करता है. अपने पीछे तबाही के निशान छोड़ता जाता है. जायल उपखंड के रातंगा और आसपास के गांवों में ही टिड्डी दल करीब 100 हेक्टेयर कपास की फसल चट कर गया.

15 साल बाद नागौर में टिड्डी दल का हमला

किसान बताते हैं कि उनके ट्यूबवेल पर कपास के पौधे 8 से 12 इंच लंबे हो गए थे और हर पौधे पर 7 से 10 पत्ते आ चुके थे. लेकिन टिड्डी के हमले में सारी फसल चौपट हो गई. यही नहीं खेजड़ी, नीम और पीपल जैसे बड़े पेड़ भी टिड्डी दल के हमले से ठूंठ हो गए हैं. खेजड़ी की पत्तियां बकरियों के लिए पौष्टिक खाद्य पदार्थ हैं और सांगरिया सब्जी के रूप में प्रयोग की जाती हैं. खेजड़ी की पत्तियां और सांगरियों की बिक्री से किसानों को कुछ अतिरिक्त आय भी हो जाती है. लेकिन वह भी टिड्डियों के हमले की भेंट चढ़ गए. इस इलाके के खेतों में और सड़क किनारे अभी भी मरी हुई टिड्डियां देखी जा सकती हैं.

आमतौर पर दिन में टिड्डी दल लगातार जगह बदलता रहता है, रात को किसी एक जगह पड़ाव डालता है. इसलिए इन्हें दिन में काबू करना मुश्किल है. सर्वे दल रात में ट्रैकिंग कर रहे हैं और अलसुबह दवा का छिड़काव कर टिड्डियों को नष्ट कर रहे हैं. कृषि विभाग और टिड्डी नियंत्रण मंडल के पास छोटी गाड़ियां हैं. इनसे दवा का छिड़काव करने के लिए टिड्डियों के जमावड़े के पास जाना पड़ता है और टिड्डियां उड़ जाती हैं. इसलिए किसानों के ट्रैक्टर और दवा छिड़कने की मशीन का ज्यादा उपयोग किया जा रहा है. ट्रैक्टर पर लगी मशीन के पाइप से करीब 500 मीटर दूर से ही छिड़काव किया जा सकता है. आमतौर पर टिड्डी दल एक दिन में 80 से 100 किमी की दूरी तक उड़ सकता है. लेकिन हवा की रफ्तार तेज होने पर उनकी गति 110 से 150 किमी प्रतिदिन तक पहुंच जाती है.

नागौर में टिड्डी  टिड्डियों का हमला  किसान परेशान  ईटीवी भारत स्पेशल खबर  कृषि पर्यवेक्षक रामप्रकाश बिडियासर  nagaur news  locust attack in nagaur  locust attack in rajasthan  farmers upset due to locust outbreak  grasshoppers in nagaur  locust attack  farmers upset  etv bharat special news
पिछले 20 दिन से लगातार टिड्डी दल का हमला

नागौर में इन दिनों तेज हवा चल रही है, इसलिए टिड्डी दल सामान्य से ज्यादा दूरी तय कर एक से दूसरे स्थान पर पहुंच रहा है. ऐसे में इसे काबू करने में काफी मुश्किल आ रही है. टिड्डी दल बिना रुके 24 घंटे तक फसल या वनस्पति खा सकता है. इसकी खाने की स्पीड इतनी तेज होती है कि काफी बड़े इलाके में खड़ी फसल को देखते ही देखते चट कर सकता है. एक टिड्डी की औसत आयु 90 दिन होती है. बारिश के समय इनका प्रजननकाल होता है. इसलिए बारिश से पहले इन्हें नष्ट करना भी एक बड़ी चुनौती है. आमतौर पर टिड्डी दल के हमले का समय अगस्त से अक्टूबर के बीच माना जाता है. लेकिन इस बार पाकिस्तान की सीमा से सटे इलाकों में अप्रैल में और नागौर में मई में हमला हुआ है, जो काफी चौंकाने वाला है.

यह भी पढ़ेंः अलर्टः जून में फिर आ सकते हैं टिड्डी दल, कृषि विभाग के उपनिदेशक ने कहा- किए जा रहे पर्याप्त बंदोबस्त

कुल मिलाकर नागौर जिले सहित प्रदेश के कई इलाकों में इस बार टिड्डी दल का हमला काफी बड़ा और अप्रत्याशित है. इसलिए प्रशासन भी अपने स्तर पर प्रयास करने के साथ ही लगातार ग्रामीणों की भी मदद ले रहा है. ताकि बड़े नुकसान से बचा जा सके. इसके अलावा ग्रामीणों को इसके लिए भी तैयार किया जा रहा है कि टिड्डी दल के आकस्मिक हमले के समय क्या उपाय कर इनसे होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता है.

नागौर में टिड्डी  टिड्डियों का हमला  किसान परेशान  ईटीवी भारत स्पेशल खबर  कृषि पर्यवेक्षक रामप्रकाश बिडियासर  nagaur news  locust attack in nagaur  locust attack in rajasthan  farmers upset due to locust outbreak  grasshoppers in nagaur  locust attack  farmers upset  etv bharat special news
एक टिड्डी की औसत आयु 90 दिन होती है

कृषि पर्यवेक्षक रामप्रकाश बिडियासर बताते हैं कि इसके लिए बाकायदा ग्रामीणों को प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है. साथ ही जरूरत पड़ने पर कीटनाशक और अन्य संसाधन भी मुहैया करवाए जा रहे हैं. सरकार ने टिड्डी दल से हुए नुकसान का आकलन करवाने के लिए विशेष गिरदावरी करवाने के आदेश जारी कर दिए हैं. इसकी रिपोर्ट तैयार होने पर पता चलेगा कि कितने किसानों की कितनी फसल टिड्डियां चट कर गई हैं. फिलहाल, टिड्डी दल के लगातार होते हमलों को रोकना और बारिश से पहले इन्हें शत प्रतिशत नष्ट करना प्रशासन के लिए बड़ी चुनौती है.

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