नागौर. कलरव करते फ्लेमिंगो यानि राजहंसों के झुंड को देखकर किसी का भी मन आनंदित हो जाता है. हर साल मौसम में बदलाव के समय ये प्रवासी पक्षी राजस्थान आते हैं. लेकिन अब ये प्रवासी पक्षी भी बदलते मौसम के खतरे से महफूज नहीं हैं.
सुदूर ठंडे प्रदेशों से आने वाले प्रवासी पक्षी जहां पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केन्द्र बन जाते हैं. तो वहीं ग्लोबल वार्मिंग और इसके कारण बिगड़ते मौसम चक्र से अछूते नहीं है. इस बार जून की तपती गर्मी में भी प्रदेश में फ्लेमिंगो का इतनी बड़ी संख्या में जमावड़ा किसी बड़ी समस्या की तरफ इशारा कर रहा है.
जानकारों का कहना है कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण इन प्रवासी पक्षियों का प्रवासकाल भी प्रभावित हो रहा है. एक ओर जहां देश और दुनिया के तमाम वैज्ञानिक जलवायु परिवर्तन और उससे बिगड़ते मौसम चक्र को खतरा बता रहे हैं. इससे मनुष्य पर पड़ने वाले प्रभावों के आकलन में जुटे हैं. वहीं दूसरी ओर जलवायु परिवर्तन का असर पशु पक्षियों पर भी साफ असर देखा जा रहा है. इसका एक बड़ा उदाहरण है, नागौर जिले में सुदूर ठंडे प्रदेशों से आने वाले फ्लेमिंगो, जिन्हें स्थानीय लहजे में राजहंस भी कहा जाता है.
इस साल बदला प्रवासकाल
आमतौर पर अक्टूबर के बाद डीडवाना और सांभर झील में फ्लेमिंगो आते हैं, जो फरवरी-मार्च में यहां से वापस लौट जाते हैं. लेकिन बीते कुछ सालों से इनका प्रवासकाल आश्चर्यजनक रूप से बदला है. अब अक्टूबर-नवंबर में सुदूर ठंडे प्रदेशों से यहां आने के बाद ये फ्लेमिंगो मई-जून तक यहां रुके रहते हैं. इस साल भी जून के दूसरे सप्ताह तक भी फ्लेमिंगो के झुंड डीडवाना और सांभर झील में अठखेलियां करते दिख रहे हैं.
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जानकार यह भी बताते हैं कि फ्लेमिंगो के कई जोड़े तो सालभर यहां दिख जाते हैं. आमतौर पर सर्दियों में ठंडे प्रदेशों में बर्फ जम जाती है. झीलें और तालाब भी जम जाते हैं. ऐसे में वहां पर्याप्त भोजन नहीं मिलने के कारण ये प्रवासी पक्षी हजारों किलोमीटर की यात्रा कर राजस्थान के कई जगहों पर अपना बसेरा करते हैं. इनमें फ्लेमिंगो की पहली पसंद सांभर झील और डीडवाना की झील व तालाब है. सांभर झील, डीडवाना की झील व तालाब में इन्हें एक विशेष तरह की काई बहुतायत मिल जाती है. जिसे ब्लू-ग्रीन एल्गी कहते हैं. यह ब्लू ग्रीन एल्गी फ्लेमिंगो का प्रिय भोजन होता है.
अलग- अलग प्रजातियों की आती हैं फ्लेमिंगो
डीडवाना और सांभर झील में फ्लेमिंगो की दो प्रजातियां प्रवास पर आती हैं. इनमें ग्रेटर फ्लेमिंगो और लेसर फ्लेमिंगो प्रमुख हैं. लंबी घुमावदार गर्दन, बड़ी चोंच, लंबे पैर और सफेद पंखों पर गुलाबी आभा वाले ये प्रवासी परिंदे अनायास ही सबका ध्यान अपनी ओर खींच लेते हैं. सुबह और शाम के समय जब ये समूह में उड़ान भरते हैं तो नजारा वाकई खूबसूरत होता है. कई पक्षी प्रेमी और फोटोग्राफर विशेष रूप से इन प्रवासी पक्षियों की तस्वीरों को अपने कैमरे में कैद करने ही आते हैं.
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डीडवाना के बांगड़ कॉलेज में भूगर्भ शास्त्र के प्रोफेसर डॉ. अरुण व्यास लंबे समय से इन प्रवासी पक्षियों के प्रवासकाल के साक्षी हैं. वे बताते हैं कि बीते कुछ सालों में फ्लेमिंगो के प्रवासकाल में जो बदलाव आए हैं, उनके पीछे ग्लोबल वार्मिंग के कारण मौसम में बदलाव अहम भूमिका निभा रहा है. इसी कारण फरवरी-मार्च तक यहां से विदाई ले लेने वाले ये प्रवासी पक्षी अब मई-जून तक यहां रुक रहे हैं. इनके लंबे समय तक रुकने का एक बड़ा कारण यह भी माना जा रहा है कि मौसम चक्र में बदलाव के कारण होने वाली बेमौसम बारिश को भी माना जा रहा है. बारिश की वजह से यहां के तालाब और झीलों में पानी भरा रहता है और इन्हें ज्यादा भोजन लंबे समय तक मिलता रहता है. इसके चलते भी इनका प्रवासकाल यहां बढ़ा है.
डॉ. अरुण व्यास के अनुसार, पिछले साल सांभर झील में हुई पक्षी त्रासदी के कारण इस साल डीडवाना और सांभर झील में फ्लेमिंगो देरी से आए थे. इसलिए इस साल इनका प्रवासकाल यहां और बढ़ने की उम्मीद जताई जा रही है.
प्रवासी पक्षियों का होता है अपना सूचना तंत्र
जानकारों का कहना है कि लंबी दूरी की यात्रा कर यहां आने वाले इन प्रवासी पक्षियों का भी अपना सूचना तंत्र होता है. उसी के माध्यम से इन्हें पिछले साल सांभर झील में हुई पक्षी त्रासदी की जानकारी हुई थी. इसी के चलते सांभर झील और डीडवाना में आमतौर पर अक्टूबर में आने वाले फ्लेमिंगो यहां दिसंबर के बाद आए, जब यहां हालात सामान्य हो गए थे.
डीडवाना में प्रवास करने वाले पक्षियों को देखने आने वाले बीकानेर के रंगकर्मी राकेश मूथा का मानना है कि अपनी स्मृतियों को जीवंत रखने की इन प्रवासी पक्षियों की एक बड़ी खासियत होती है. इसलिए यह परदेसी परिंदे यहां हजारों किलोमीटर की यात्रा कर यहां प्रवास पर आते हैं. डीडवाना और सांभर झील में प्रवास पर आने वाले इन पक्षियों की सुरक्षा का विशेष प्रबंध नहीं होने से पर्यावरण और पक्षी प्रेमियों में चिंता रहती है. उनका कहना है कि यदि सुरक्षा के कुछ इंतजाम किए जाए तो इन पक्षियों का प्रवासकाल सुरक्षित हो सकता है और इन्हें देखने आने वाले लोगों की संख्या में भी इजाफा हो सकता है.