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होली के रंग: 300 साल पुरानी है शिव-पार्वती के मिलन की प्रतीक नागौर की 'फक्कड़ गैर' परंपरा - Fakkad ger Nagaur News

रंग-रंगीली राजस्थान की धरती पर होली के भी अलग-अलग रंग और ढंग हैं. नागौर में होली से पहले रंगभरी एकादशी पर शुक्रवार को निकली फक्कड़ गैर यहां की ऐतिहासिक परंपरा है. जो करीब 300 साल पुरानी बताई जाती है.

Fakkad ger Nagaur News
नागौर में निकली फक्कड़ गैर
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Published : Mar 7, 2020, 1:16 PM IST

नागौर. जिले में लोगों पर होली का रंग सिर चढ़कर बोल रहा है, हालांकि होली 9 मार्च को और धुलंडी 10 मार्च को मनाई जाएगी, लेकिन होली से पहले ही यहां के लोग पूरी तरह इस रंगीले त्यौहार के रंग में रंगे हुए नजर आ रहे हैं. रंगभरी एकादशी के मौके पर शुक्रवार रात को निकली फक्कड़ गैर नागौर की ऐतिहासिक परंपरा है. जो करीब 300 साल पुरानी बताई जाती है.

नागौर में निकली फक्कड़ गैर

बताया जा रहा है कि वीर अमर सिंह राठौड़ के बहादुर सेनापति गिरधर व्यास के समय नागौर में फक्कड़ गैर की परंपरा शुरू हुई थी. जो आज भी अनवरत जारी है. नागौर में होली से पहले 2 बार फक्कड़ गैर निकाली जाती है. पहली गैर शिवरात्रि की रात को पुष्करणा समाज की ओर से निकाली जाती है. इसके बाद रंगभरी एकादशी पर पुष्करणा समाज और श्रीमाली समाज की ओर से अलग-अलग फक्कड़ गैर निकाली जाती है. पुष्करणा समाज की गैर जहां लोढ़ो के चौक से शुरू होकर शहर के प्रमुख स्थानों तक जाती है और वापस इसकी जगह आकर अल सुबह इसका समापन होता है.

वहीं, श्रीमाली समाज की गैर ब्रम्हपुरी से शुरू होती है और यहीं आकर इसका समापन होता है. दोनों ही गैर में भगवान शिव के प्रतीक के रूप में एक व्यक्ति को फक्कड़ का रूप धराया जाता है. जो चंग, ढोलक और मंजीरे की धुन पर मदमस्त होकर नाचता है. न केवल युवा बल्कि बुजुर्ग भी इस धुन पर थिरकते हुए दिखाई देते हैं. रंगभरी एकादशी के मौके पर रात को शुरू हुई यह गैर अलसुबह तक चलती है.

पढ़ें- राजसमंद: कुंज में बिराजे प्रभु द्वारिकाधीश, भक्तों ने खेली होली

इस दौरान पुष्करणा समाज के लोग शहर में अलग-अलग स्थानों पर घूमते हुए अपने सगे संबंधियों के घरों और उनके मोहल्लों तक जाते हैं और प्रेम के प्रतीक फाग गीत गाते हैं. पुष्करणा और श्रीमाली समाज के अलावा शहर के अन्य समाज के लोग भी उत्साह के साथ इस पारंपरिक आयोजन का हिस्सा बनते हैं.

होली के मौके पर जहां नागौर शहर में डांडिया रास की ऐतिहासिक परंपरा है. वहीं, धूलंडी के मौके पर पुष्करणा समाज की ओर से झगड़ा गैर का आयोजन भी होता है. जिसमें पूरे शहर के लोग उत्साह के साथ शामिल होते हैं.

नागौर. जिले में लोगों पर होली का रंग सिर चढ़कर बोल रहा है, हालांकि होली 9 मार्च को और धुलंडी 10 मार्च को मनाई जाएगी, लेकिन होली से पहले ही यहां के लोग पूरी तरह इस रंगीले त्यौहार के रंग में रंगे हुए नजर आ रहे हैं. रंगभरी एकादशी के मौके पर शुक्रवार रात को निकली फक्कड़ गैर नागौर की ऐतिहासिक परंपरा है. जो करीब 300 साल पुरानी बताई जाती है.

नागौर में निकली फक्कड़ गैर

बताया जा रहा है कि वीर अमर सिंह राठौड़ के बहादुर सेनापति गिरधर व्यास के समय नागौर में फक्कड़ गैर की परंपरा शुरू हुई थी. जो आज भी अनवरत जारी है. नागौर में होली से पहले 2 बार फक्कड़ गैर निकाली जाती है. पहली गैर शिवरात्रि की रात को पुष्करणा समाज की ओर से निकाली जाती है. इसके बाद रंगभरी एकादशी पर पुष्करणा समाज और श्रीमाली समाज की ओर से अलग-अलग फक्कड़ गैर निकाली जाती है. पुष्करणा समाज की गैर जहां लोढ़ो के चौक से शुरू होकर शहर के प्रमुख स्थानों तक जाती है और वापस इसकी जगह आकर अल सुबह इसका समापन होता है.

वहीं, श्रीमाली समाज की गैर ब्रम्हपुरी से शुरू होती है और यहीं आकर इसका समापन होता है. दोनों ही गैर में भगवान शिव के प्रतीक के रूप में एक व्यक्ति को फक्कड़ का रूप धराया जाता है. जो चंग, ढोलक और मंजीरे की धुन पर मदमस्त होकर नाचता है. न केवल युवा बल्कि बुजुर्ग भी इस धुन पर थिरकते हुए दिखाई देते हैं. रंगभरी एकादशी के मौके पर रात को शुरू हुई यह गैर अलसुबह तक चलती है.

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इस दौरान पुष्करणा समाज के लोग शहर में अलग-अलग स्थानों पर घूमते हुए अपने सगे संबंधियों के घरों और उनके मोहल्लों तक जाते हैं और प्रेम के प्रतीक फाग गीत गाते हैं. पुष्करणा और श्रीमाली समाज के अलावा शहर के अन्य समाज के लोग भी उत्साह के साथ इस पारंपरिक आयोजन का हिस्सा बनते हैं.

होली के मौके पर जहां नागौर शहर में डांडिया रास की ऐतिहासिक परंपरा है. वहीं, धूलंडी के मौके पर पुष्करणा समाज की ओर से झगड़ा गैर का आयोजन भी होता है. जिसमें पूरे शहर के लोग उत्साह के साथ शामिल होते हैं.

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