नागौर. इस साल की शुरूआत से ही घातक महामारी कोविड- 19 दुनिया भर के लोगों के लिए बड़ा खतरा बनकर उभरी है. राजस्थान में मार्च के महीने में महामारी फैलाने वाले कोरोना वायरस की दस्तक के करीब एक महीने तक नागौर इसके खतरे से बचा रहा. लेकिन अप्रैल से लेकर अब तक जिले में करीब छह हजार लोग कोरोना वायरस संक्रमण का शिकार हो चुके हैं.
देश भर में कोरोना संक्रमण के आंकड़ों में जारी उतार-चढ़ाव के बीच नागौर में भी कभी कम तो कभी ज्यादा कोरोना संक्रमण के मामले लगातार सामने आ रहे हैं. इस घातक महामारी से बचने के लिए सरकार द्वारा बताए जा रहे व्यक्तिगत उपायों पर लोग अमल कर रहे हैं. व्यक्तिगत स्वच्छता को लेकर आमजन में काफी जागरूकता आई है. इसके साथ ही सामुदायिक स्वच्छता को लेकर भी जिला प्रशासन और नगर परिषद द्वारा अभियान चलाया जा रहा है. शहर की साफ-सफाई को लेकर जहां नगर परिषद काफी मशक्कत कर रही है. वहीं, पहले से जारी घर-घर से कचरा संग्रहण की प्रक्रिया को ज्यादा मजबूत बनाया गया है. साथ ही कचरा संग्रह करने वाले वाहनों में भी गीला और सूखा कचरा अलग-अलग इकट्ठा किया जा रहा है और उनका नियमानुसार अलग-अलग निस्तारण किया जा रहा है. इसके लिए लोगों को भी जागरूक किया जा रहा है.
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घर पर कचरा इकट्ठा करने के लिए लोगों को कचरा पात्र रखने और इसे सड़क पर फेंकने की बजाए कचरा संग्रह करने वाली गाड़ियों में डालने को लेकर भी लोगों में जागरूकता आई है. इसके साथ ही दुकानों पर भी कचरा पात्र रखवाए गए हैं. नतीजा यह है कि कोरोना से बचने के प्रयास में नागौर के लोगों में व्यक्तिगत और सामुदायिक स्वच्छता को लेकर काफी जागरूकता देखने को मिली है. हालांकि, नागौर जिले में कोरोना संक्रमण के आंकड़े प्रदेश के बाकी जिलों की तरह अभी भी लगातार बढ़ रहे हैं. लेकिन साफ-सफाई के प्रति जागरूकता के कारण मौसमी बीमारियों की संख्या कोरोना काल में काफी कम दर्ज की गई है.
क्या कहना है नगर परिषद आयुक्त का?
नगर परिषद के आयुक्त जोधाराम विश्नोई बताते हैं कि जैसे ही प्रदेश में कोरोना वायरस की आहट हुई. नागौर के पूरे शहर में सोडियम हाइपोक्लोराइड का छिड़काव किया गया. इसके साथ ही लॉकडाउन की पालना करवाने में भी नगर परिषद की टीम ने सहयोग दिया. इसका असर यह हुआ कि नागौर शहर में कोरोना संक्रमण की दस्तक देरी से हुई. उन्होंने बताया कि 2 अक्टूबर से विशेष जनअभियान चलाकर लोगों को कोविड संबंधी गाइडलाइन की पालना करवाई जा रही है. प्रदर्शनी और कठपुतली शो से भी लोगों को जागरूक किया जा रहा है. मास्क वितरण रथ का आगाज शुरू हो गया है, जिसमें बिना मास्क घूमने वाले लोगों को मास्क दिया जाएगा और नियमित रूप से मास्क पहनने के लिए प्रेरित किया जाएगा.
क्या बताते हैं चिकित्सा विभाग के आंकड़े
चिकित्सा विभाग के आंकड़े बताते हैं कि नागौर जिले में कोरोना संक्रमण का पहला मामला 5 अप्रैल को सामने आया था. जब बासनी गांव का एक बुजुर्ग कोरोना संक्रमित पाया गया. इसके बाद से यह आंकड़ा बढ़कर अब 6 हजार के करीब पहुंच गया है. जिले में अब तक 5,994 मरीज कोरोना वायरस से संक्रमित हो चुके हैं, जिनमें से 54 लोगों की अब तक मौत हुई है. हालांकि, जिले में 5,169 मरीज स्वस्थ भी हुए हैं. लेकिन वर्तमान में जिले में कोरोना संक्रमण के 771 सक्रिय संक्रमित मरीज हैं.
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बात अगर जिला मुख्यालय की करें तो नागौर में कोरोना संक्रमण के 1,571 मरीज अब तक मिले हैं. इनमें से 12 लोगों की मौत हुई है. जबकि 1,360 मरीज स्वस्थ हुए हैं. हालांकि, अभी भी नागौर में 199 मरीज कोरोना वायरस से सक्रिय रूप से संक्रमित हैं. दूसरी तरफ, अन्य मौसमी बीमारियों की बात करें तो उनके मरीजों की संख्या इस साल अब तक बेहद कम दर्ज की गई है. चिकित्सा विभाग के आंकड़ों के हिसाब से बीते साल डेंगू, स्क्रब टाइफस, चिकनगुनिया और स्वाइन फ्लू जैसी गंभीर मौसमी बीमारियों के जिले में 332 मरीज सामने आए थे. जबकि इस साल इन बीमारियों के 9 ही मरीज अब तक मिले हैं.
सीएमएचओ डॉ. सुकुमार कश्यप ने बताया कि पिछले साल जिले में डेंगू के 211 मरीज मिले थे. जबकि इस साल महज 4 मरीज सामने आए हैं. इसी तरह स्क्रब टाइफस के बीते साल 17 मरीज मिले थे. जबकि इस साल 3 मरीज अब तक सामने आए हैं. चिकनगुनिया के पिछले साल 29 मरीज मिले थे. जबकि इस साल चिकनगुनिया का एक मरीज मिला है. जिले में स्वाइन फ्लू के बीते साल 75 मामले सामने आए थे. जबकि इस साल अब तक एक ही मरीज स्वाइन फ्लू का मिला है. वह भी कोरोना काल से पहले फरवरी महीने का मामला है.
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सीएमएचओ डॉ. कश्यप का कहना है कि कोरोना वायरस के खिलाफ चल रही जंग के चलते लोगों में साफ-सफाई संबंधी आदतों को लेकर जागरूकता आई है. घर और आसपास साफ-सफाई रखने के साथ ही लोग व्यक्तिगत स्वच्छता का भी विशेष तौर पर ध्यान रख रहे हैं. बार-बार हाथ धोना या सेनेटाइज करना लोगों की आम दिनचर्या में शामिल हो गया है. इसी तरह मास्क पहनने को लेकर भी लोग जागरूक हुए हैं. इसी का नतीजा है कि मौसमी बीमारियों का आंकड़ा अब तक जिले में अपने न्यूनतम स्तर पर है. हालांकि, इसका दूसरा पहलू यह भी हो सकता है कि कोरोना संक्रमण के खतरे को देखते हुए लोग अस्पताल या जांच करवाने कम पहुंच रहे हों. इसलिए भी मौसमी बीमारियों के मरीजों की संख्या जिले में ज्यादा दर्ज नहीं हो पाई हो.