नागौर. जिले में खान और निर्माण क्षेत्र में कार्य करने वाले श्रमिकों को डस्ट से बचाव के लिए जिला प्रशासन ने गाइडलाइन तैयार की है. इसके तहत खान और निर्माण क्षेत्र में काम करवाने वाले मालिकों को डस्ट से बचाव के लिए ऐसे उपकरण लगाने होंगे, जिससे इस क्षेत्र में काम करने वाले श्रमिकों को डस्ट से बचा सके.
प्रदेश के 8 जिलों में लाइलाज बीमारी सिलिकोसिस ने गरीब तबके के अब तक हजारों लोगों अपने को चपेट में ले लिया है. इसमें नागौर जिले के ही एक हजार के करीब श्रमिक शामिल है. जिले में इस बीमारी के 807 रोगी मिले. इसके लिए नागौर जिला प्रशासन ने चिकित्सालय में क्रेशर पत्थर तोड़ने और ईट भट्ठों पर काम कर रहे श्रमिकों के लिए विशेष जांच शिविर भी लगाए गए थे. साथ ही नागौर जिला प्रशासन ने सिलकोसिस के मरिजों के लिए पेंशन देने की प्रक्रिया भी शुरू कर दी है.
नागौर के कलेक्टर दिनेश कुमार यादव ने बताया कि 1430 सिलिकोसिस के प्रकरण दर्ज की हैं. 480 सिलिकोसिस पीड़ितों को भुगतान कर दिया गया. 311 सिलिकोसिस पीड़ितों के प्रकरण ऑनलाइन हो चुके हैं, जिन्हें शीघ्र भुगतान कर दिया जाएगा. बाकी 138 प्रकरण वर्तमान में विचाराधीन है, वहीं 57 के दस्तावेजों की वजह से खारिज किए गए हैं.
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कलेक्टर दिनेश कुमार यादव ने बताया कि नागौर के खनन क्षेत्र में सिलकोसिस के रोकथाम के लिए जागरूकता अभियान भी चलाए जा रहे हैं, जिससे मजदूर को इस बीमारी से बचाया जा सके. उन्होंने कहा कि आने वाले समय में पीड़ितों और उनके आश्रितों के लिए स्किल डेवलपमेंट की ट्रेनिंग अभियान भी चलाई जाएगी.
नागौर में साल 2016 से नवंबर 2019 तक कुल 1584 सिलिकोसिस के मामले सामने आए हैं. इनमें खान श्रमिकों की संख्या 788 है और भवन निर्माण श्रमिकों की संख्या 796 है. वहीं जिले में सिलिकोसिस से मरने वालों की संख्या 135 है.
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बता दें कि सिलिकोसिस से पीड़ित मरीजों के इलाज और पुनर्वास के लिए प्रदेश सरकार ने सिलिकोसिस नीति बनाई है, जिसका अमल नागौर जिला प्रशासन ने शुरू कर दिया है. सिलिकोसिस पीड़ितों को मुख्यमंत्री विशेष योग्यजन पेंशन का भी लाभ दिया जाएगा.