कोटा. शिक्षा नगरी कोटा में लाखों बच्चे अपने सपनों को पूरा करने के लिए यहां आते है. कोटा पूरे देश में शिक्षा नगरी के रूप में जाना जाता है. पूरे देश से बच्चे यहां मेडिकल और इंजीनियरिंग में प्रवेश के लिए कोचिंग करने आते है. लेकिन अकेले कोटा से ही पिछले 6 साल में करीब 130 बच्चों ने मौत को गले लगा लिया. क्योंकि वह पढ़ाई नहीं कर पा रहे थे या फिर उन पर तनाव था. इसी चिंता के विषय को दूर करने के लिए कोटा में होप सोसायटी आगे आई. विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस (World suicide prevention day ) पर सुसाइड सेंटर बने कोटा में लगातार सामने आने वाली आत्महत्याओं को रोकने के लिए होप सोसाइटी की ओर से 24 घंटे एक कॉल सेंटर चलता है. जिससे वो शहर में होने वाली आत्महत्याओं को रोकने में जुटा हुआ है.
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होप सोसायटी को कोटा के मनोरोग विशेषज्ञ और विशेष तौर पर कोचिंग के बच्चों को तनाव से दूर रखने में जुटे डॉ. एमएल अग्रवाल ने राह दिखाई है. अपनी पूरी टीम के साथ बच्चों और लोगों को आत्महत्या और तनाव से दूर रखने में जुटे है. होप सोसायटी के सचिव डॉ. अविनाश बंसल ने ईटीवी भारत को बताया कि कोटा ही नहीं विश्व में आत्महत्या मृत्यु का एक सबसे बड़ा कारण है. इसमें 15 से 29 साल के बच्चे ज्यादा आत्महत्या करते हैं. भारत में 18 लोग प्रति लाख आत्महत्या करते हैं, लेकिन कोटा में यह दर 11 है. कोटा में ज्यादा बच्चे कोचिंग करने के लिए आते हैं, ऐसे में उनमें आत्महत्या के मामले सामने आने लगे थे. इसी के चलते कोटा को सुसाइड सिटी भी कहा गया है.
होप सोसायटी का ध्येय-सुसाइड को कैसे रोका जाए
उन्होंने कहा कि होप सोसायटी केवल एक ध्येय से काम कर रही है. इसका एक ही एजेंडा सुसाइड को कैसे रोका जाए. इसके लिए 24 घंटे संचालित होने वाला कॉल सेंटर शुरू किया गया है और अब तक करीब 300 से ज्यादा बच्चों की जान बचाई गई है. कोटा जिला प्रशासन और होप संस्था की तरफ से संचालित कॉल सेंटर के अंदर तनाव ग्रसित लोगों कॉल करके अपनी समस्या समाधान ले सकते हैं. यह पूरा कॉल सेंटर का संचालन मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. एमएल अग्रवाल के निर्देशन में हो रहा है. इसमें पिछले 3 साल में 3000 उसे ज्यादा कॉल आए है. जिसमें से 300 कॉल तो ऐसे थे, जिनकी समय पर काउंसलिंग नहीं होती तो, आज भी इस दुनिया में नहीं होते.
होप सोसायटी ने कई लोगों को लौटाई जिंदगी
डॉ. अविनाश बंसल ने बताया कि कई कॉल ऐसे थे. जो बच्चा सुसाइड के पॉइंट पर खड़ा था और अगर समय रहते पुलिस या प्रशासन की मदद से उस तक नहीं पहुंचते तो वह आत्महत्या कर लेता. ऐसा एक उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि जून माह में एक लड़की का फोन आया था कि वह सुसाइड कर रही है और चंबल नदी के पास खड़ी है. उससे बात करने की कोशिश की तो उसने फोन कट कर दिया. मैं और डॉ. एमएल अग्रवाल जयपुर गए हुए थे, हमने वही से पुलिस से संपर्क किया और उन्हें चंबल नदी के पास भेजा तो वह लड़की मिल गई. ऐसे में उस लड़की से 2 दिन बाद संपर्क करने की कोशिश की गई, तो उसने हमसे बात नहीं की. हालांकि उसे हमने आत्महत्या से रोकने में कामयाब हुए.
इसी तरह से एक अन्य दंपत्ति का मामला भी है, जिसमें वह सुसाइड करने के लिए चंबल नदी के नजदीक चले गए थे. वहां से उन्होंने संस्था को फोन किया कि हम आत्महत्या कर रहे हैं. ऐसे में उनको कोई आर्थिक समस्या थी, उनके मकान को बैंक कुर्क करने वाला था, ऐसे में आत्महत्या से रोका गया है.
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ऐसे टल सकती है अनहोनी
डॉ. बंसल का कहना है कि सुसाइड करने वाले व्यक्ति त्वरित पूरी बात सुन ली जाए. उसकी समस्या को नोट किया जाए और कुछ देर उसे समझाइश की जाए या फिर संवाद किया जाए, तो वह आत्महत्या को टाल सकता है.