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जब ऑक्सीजन जनरेशन प्लांट पहुंचे प्रिंसिपल और सुपरिटेंडेंट, बोले- 'नेक टू नेक' चल रहा मामला - kota medical college

मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ. विजय सरदाना ने कोटा में जहां से ऑक्सीजन मेडिकल कॉलेज के अस्पतालों को मिल रही है, उन सभी प्लांट का निरीक्षण किया. किस तरह से ऑक्सीजन अस्पतालों में पहुंचने के समय को कम किया जा सके और ज्यादा मात्रा में ऑक्सीजन पहुंचे, इसके लिए जायजा लिया है. उनके साथ सुपर स्पेशियलिटी ब्लॉक के सुपरिटेंडेंट डॉ. निलेश जैन भी साथ थे.

oxygen generation plant in kota
ऑक्सीजन जनरेशन और सप्लाई की स्थिति...
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Published : Apr 23, 2021, 2:14 PM IST

कोटा. कोविड-19 के बढ़े हुए मरीजों को हजारों लीटर ऑक्सीजन की जरूरत संजीवनी के रूप में हो रही है, लेकिन इतनी ऑक्सीजन का प्रोडक्शन नहीं हो पा रहा है. इसी के चलते कमी अस्पतालों में बनी हुई है. मेडिकल कॉलेज के अस्पताल में भी प्रेशर कम होने की घटना 2 दिन पहले हुई थी, जिसमें 2 मरीजों की मौत होना सामने आया था. लगातार ऐसी स्थिति बनी हुई है.

ऑक्सीजन जनरेशन और सप्लाई की स्थिति...

ऐसे में खुद मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ. विजय सरदाना में कोटा में जहां से ऑक्सीजन मेडिकल कॉलेज के अस्पतालों को मिल रही है, उन सभी प्लांट का निरीक्षण किया और किस तरह से ऑक्सीजन अस्पतालों में पहुंचने के समय को कम किया जा सके और ज्यादा मात्रा में ऑक्सीजन पहुंचे, इसके लिए जायजा लिया है. ईटीवी भारत ने गुरुवार देर रात 12:00 बजे ही मेडिकल कॉलेज प्राचार्य डॉ. सरदाना से रानपुर स्थित ऑक्सीजन जनरेशन प्लांट में बातचीत की. जिसमें उन्होंने बताया कि ऑक्सीजन की स्थिति गंभीर है, हमें जितना ऑक्सीजन मिल रही है, उससे थोड़ी सी ज्यादा ही खपत हो रही है.

पढ़ें : वेंटिलेटर के लिए दर दर भटकता रहा बेटा, इधर दुनिया को अलविदा कह गई मां...मुखाग्नि भी नहीं हुई नसीब

उन्होंने आगे कहा कि ऑक्सीजन प्लांट से चलती है, अस्पताल पहुंचती है, तब तक खत्म होने की सूचना आ जाती है. बीते 2 से 3 दिन से इसी तरह की समस्या से जूझ रहे हैं. हम यहां पर देखने आए थे कि किसी तरह से टाइम को कर सकते हैं. इसमें प्रोडक्शन और ट्रांसपोर्टेशन देखा है. हमने यहां पर बातचीत भी की है. इनके जो सभी प्लांट हमने देखे हैं और उनसे बातचीत की है. उसके आधार पर प्लान करेंगे कि किस तरह से सुविधाओं में सुधार किया जा सके, ताकि मरीजों को समय से ऑक्सीजन मिलती रहे.

kota medical college
ऑक्सीजन जनरेशन और सप्लाई की नेक टू नेक स्थिति...

मेडिकल कॉलेज अस्पतालों में 2100 सिलेंडर की खपत...

डॉ. सरदाना ने कहा कि अभी काफी खपत है. नए अस्पताल में जनरेशन प्लांट को भी मिला लिया जाए तो 1800 से 1900 सिलेंडरों की जरूरत है. एमबीएस अस्पताल में 200 और रेलवे में 40 सिलेंडर रेलवे में भी खपत हो रही है. जबकि इन प्लांट की कैपेसिटी थोड़ी कम है. ऐसे में विकट स्थिति है. यहां पर "नेक टू नेक" हमारा मामला चल रहा है. अगर लेट ऑक्सीजन पहुंचती है तो खतरा बना हुआ रहता है. इसको कैसे सुधार किया सकता, इस पर ही फोकस है.

लगातार मिले लिक्विड सिलेंडर, तो बने बैकअप...

डॉ. विजय सरदाना ने कहा कि लिक्विड ऑक्सीजन आज आई है. अच्छी बात है कि यहां पर जो भी खाली करवाई है, इससे बफर स्टॉक हमारा बनेगा. रिजर्व सिलेंडर हमारे बनते हैं, तो पेशेंट को एडमिट करना दोबारा शुरू कर सकते हैं. उम्मीद है एक-दो दिनों में स्थिति में सुधार होगा और अगर लिक्विड ऑक्सीजन के टैंक में लगातार मिलते रहेंगे तो स्थिति में काफी सुधार हो जाएगा. कोटा को जो ऑक्सीजन मिली है, वह 10 टन मिली है. जिससे करीब 900 सिलेंडरों की खपत होगी, लेकिन यह एक मेडिकल कॉलेज के नए अस्पताल की आधे दिन की ही खपत है. ऐसे में लगातार अगर यह लिक्विड ऑक्सीजन के टैंकर हमें मिलते रहे, तो हमें बैकअप बनाने में सुविधा होगी.

पहले 350 सिलेंडर का था बैकअप, अब कुछ नहीं...

एसएसबी ब्लॉक के अधीक्षक डॉ. नीलेश जैन का कहना है कि ऐसा कई बार होता है ऑक्सीजन ऐसा कई बार होता है. जब ट्रांसपोर्टेशन में थोड़ी सी भी देर ऑक्सीजन को पहुंचने में हो जाती है तो हमारी सांसे ऊंची-नीची हो जाती है. जब केसेज बढ़ने चालू हुए थे, तो हमारे पास 300 से 350 सिलेंडर का स्टॉक और ब्रेकअप हुआ करता था, लेकिन जब केसेज बढ़ रहे हैं. जिससे बैकअप खत्म हो गया है. अभी हमारी स्थिति है बहुत 'नेक टू नेक' की हो गई है. 1 मिनट का भी देरी हो जाती है, तो हमें घबरा जाते हैं. आगे क्या होगा ऑक्सीजन देने के लिए तो सिलेंडर ही चाहिए और दूसरा कोई विकल्प नहीं है. सिलेंडर अगर टाइम पर नहीं आएगा, तो चाह कर भी कुछ नहीं कर पाएंगे.

oxygen sypply in kota
जब ऑक्सीजन जनरेशन प्लांट पहुंचे प्रिंसिपल और सुपरिटेंडेंट...

70 लीटर पर मिनट तक के हाईफ्लो ऑक्सीजन पर है मरीज...

डॉ. नीलेश जैन ने कहा कि मेडिकल कॉलेज के पास जो ऑक्सीजन कंसंट्रेटर है वह मदद जरूर कर रहे हैं, लेकिन ज्यादा से ज्यादा 1 मिनट में 10 लीटर ऑक्सीजन कंसंट्रेटर से ली जा सकती है. जबकि मेडिकल कॉलेज कितने अस्पताल में भर्ती मरीजों की स्थिति उलट है. कई मरीज 10 लीटर प्रति मिनट से ज्यादा ऑक्सीजन की डिमांड पर हैं. यहां तक कि हाईफ्लो ऑक्सीजन पर भी लोग हैं, जिनमें 15, 20, 50 और 70 लीटर प्रति मिनट भी ऑक्सीजन मरीजों के लग रही है. वहीं, हमारे पास जो ऑक्सीजन कंसंट्रेटर है, उनमें 5 लीटर प्रति मिनट क्षमता वाले हैं. ऐसे में उससे जिन मरीजों की कम आवश्यकता है. उनको मशीन से लो फ्लो ऑक्सिजन दी जा सकती है.

लिक्विड ऑक्सीजन स्टोरेज यूनिट को भी करेंगे शुरू...

एसएसबी ब्लॉक के सुपरिटेंडेंट डॉ. जैन का कहना है कि जब तक ऑक्सीजन जनरेशन का सुधार नहीं करेंगे, मरीज को टेकल करना मुश्किल रहेगा. अच्छी बात यह है कि एक लिक्विड ऑक्सीजन का टैंक ने अस्पताल में ही लगा हुआ है. उसको भरने करने की तैयारी कर चुके हैं. वह भर जाएगा और उसको कनेक्ट भी हम करवा देंगे. इसमें 4 से 5 दिन का समय लग रहा है. उसके बाद मैन लाइन से कनेक्शन कर देंगे. वह बैकअप हमसे रहेगा और इस तरह की समस्या नहीं आएगी. इसके बाद मरीजों की भर्ती को दोबारा से शुरू किया जा सकता है.

कोटा. कोविड-19 के बढ़े हुए मरीजों को हजारों लीटर ऑक्सीजन की जरूरत संजीवनी के रूप में हो रही है, लेकिन इतनी ऑक्सीजन का प्रोडक्शन नहीं हो पा रहा है. इसी के चलते कमी अस्पतालों में बनी हुई है. मेडिकल कॉलेज के अस्पताल में भी प्रेशर कम होने की घटना 2 दिन पहले हुई थी, जिसमें 2 मरीजों की मौत होना सामने आया था. लगातार ऐसी स्थिति बनी हुई है.

ऑक्सीजन जनरेशन और सप्लाई की स्थिति...

ऐसे में खुद मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ. विजय सरदाना में कोटा में जहां से ऑक्सीजन मेडिकल कॉलेज के अस्पतालों को मिल रही है, उन सभी प्लांट का निरीक्षण किया और किस तरह से ऑक्सीजन अस्पतालों में पहुंचने के समय को कम किया जा सके और ज्यादा मात्रा में ऑक्सीजन पहुंचे, इसके लिए जायजा लिया है. ईटीवी भारत ने गुरुवार देर रात 12:00 बजे ही मेडिकल कॉलेज प्राचार्य डॉ. सरदाना से रानपुर स्थित ऑक्सीजन जनरेशन प्लांट में बातचीत की. जिसमें उन्होंने बताया कि ऑक्सीजन की स्थिति गंभीर है, हमें जितना ऑक्सीजन मिल रही है, उससे थोड़ी सी ज्यादा ही खपत हो रही है.

पढ़ें : वेंटिलेटर के लिए दर दर भटकता रहा बेटा, इधर दुनिया को अलविदा कह गई मां...मुखाग्नि भी नहीं हुई नसीब

उन्होंने आगे कहा कि ऑक्सीजन प्लांट से चलती है, अस्पताल पहुंचती है, तब तक खत्म होने की सूचना आ जाती है. बीते 2 से 3 दिन से इसी तरह की समस्या से जूझ रहे हैं. हम यहां पर देखने आए थे कि किसी तरह से टाइम को कर सकते हैं. इसमें प्रोडक्शन और ट्रांसपोर्टेशन देखा है. हमने यहां पर बातचीत भी की है. इनके जो सभी प्लांट हमने देखे हैं और उनसे बातचीत की है. उसके आधार पर प्लान करेंगे कि किस तरह से सुविधाओं में सुधार किया जा सके, ताकि मरीजों को समय से ऑक्सीजन मिलती रहे.

kota medical college
ऑक्सीजन जनरेशन और सप्लाई की नेक टू नेक स्थिति...

मेडिकल कॉलेज अस्पतालों में 2100 सिलेंडर की खपत...

डॉ. सरदाना ने कहा कि अभी काफी खपत है. नए अस्पताल में जनरेशन प्लांट को भी मिला लिया जाए तो 1800 से 1900 सिलेंडरों की जरूरत है. एमबीएस अस्पताल में 200 और रेलवे में 40 सिलेंडर रेलवे में भी खपत हो रही है. जबकि इन प्लांट की कैपेसिटी थोड़ी कम है. ऐसे में विकट स्थिति है. यहां पर "नेक टू नेक" हमारा मामला चल रहा है. अगर लेट ऑक्सीजन पहुंचती है तो खतरा बना हुआ रहता है. इसको कैसे सुधार किया सकता, इस पर ही फोकस है.

लगातार मिले लिक्विड सिलेंडर, तो बने बैकअप...

डॉ. विजय सरदाना ने कहा कि लिक्विड ऑक्सीजन आज आई है. अच्छी बात है कि यहां पर जो भी खाली करवाई है, इससे बफर स्टॉक हमारा बनेगा. रिजर्व सिलेंडर हमारे बनते हैं, तो पेशेंट को एडमिट करना दोबारा शुरू कर सकते हैं. उम्मीद है एक-दो दिनों में स्थिति में सुधार होगा और अगर लिक्विड ऑक्सीजन के टैंक में लगातार मिलते रहेंगे तो स्थिति में काफी सुधार हो जाएगा. कोटा को जो ऑक्सीजन मिली है, वह 10 टन मिली है. जिससे करीब 900 सिलेंडरों की खपत होगी, लेकिन यह एक मेडिकल कॉलेज के नए अस्पताल की आधे दिन की ही खपत है. ऐसे में लगातार अगर यह लिक्विड ऑक्सीजन के टैंकर हमें मिलते रहे, तो हमें बैकअप बनाने में सुविधा होगी.

पहले 350 सिलेंडर का था बैकअप, अब कुछ नहीं...

एसएसबी ब्लॉक के अधीक्षक डॉ. नीलेश जैन का कहना है कि ऐसा कई बार होता है ऑक्सीजन ऐसा कई बार होता है. जब ट्रांसपोर्टेशन में थोड़ी सी भी देर ऑक्सीजन को पहुंचने में हो जाती है तो हमारी सांसे ऊंची-नीची हो जाती है. जब केसेज बढ़ने चालू हुए थे, तो हमारे पास 300 से 350 सिलेंडर का स्टॉक और ब्रेकअप हुआ करता था, लेकिन जब केसेज बढ़ रहे हैं. जिससे बैकअप खत्म हो गया है. अभी हमारी स्थिति है बहुत 'नेक टू नेक' की हो गई है. 1 मिनट का भी देरी हो जाती है, तो हमें घबरा जाते हैं. आगे क्या होगा ऑक्सीजन देने के लिए तो सिलेंडर ही चाहिए और दूसरा कोई विकल्प नहीं है. सिलेंडर अगर टाइम पर नहीं आएगा, तो चाह कर भी कुछ नहीं कर पाएंगे.

oxygen sypply in kota
जब ऑक्सीजन जनरेशन प्लांट पहुंचे प्रिंसिपल और सुपरिटेंडेंट...

70 लीटर पर मिनट तक के हाईफ्लो ऑक्सीजन पर है मरीज...

डॉ. नीलेश जैन ने कहा कि मेडिकल कॉलेज के पास जो ऑक्सीजन कंसंट्रेटर है वह मदद जरूर कर रहे हैं, लेकिन ज्यादा से ज्यादा 1 मिनट में 10 लीटर ऑक्सीजन कंसंट्रेटर से ली जा सकती है. जबकि मेडिकल कॉलेज कितने अस्पताल में भर्ती मरीजों की स्थिति उलट है. कई मरीज 10 लीटर प्रति मिनट से ज्यादा ऑक्सीजन की डिमांड पर हैं. यहां तक कि हाईफ्लो ऑक्सीजन पर भी लोग हैं, जिनमें 15, 20, 50 और 70 लीटर प्रति मिनट भी ऑक्सीजन मरीजों के लग रही है. वहीं, हमारे पास जो ऑक्सीजन कंसंट्रेटर है, उनमें 5 लीटर प्रति मिनट क्षमता वाले हैं. ऐसे में उससे जिन मरीजों की कम आवश्यकता है. उनको मशीन से लो फ्लो ऑक्सिजन दी जा सकती है.

लिक्विड ऑक्सीजन स्टोरेज यूनिट को भी करेंगे शुरू...

एसएसबी ब्लॉक के सुपरिटेंडेंट डॉ. जैन का कहना है कि जब तक ऑक्सीजन जनरेशन का सुधार नहीं करेंगे, मरीज को टेकल करना मुश्किल रहेगा. अच्छी बात यह है कि एक लिक्विड ऑक्सीजन का टैंक ने अस्पताल में ही लगा हुआ है. उसको भरने करने की तैयारी कर चुके हैं. वह भर जाएगा और उसको कनेक्ट भी हम करवा देंगे. इसमें 4 से 5 दिन का समय लग रहा है. उसके बाद मैन लाइन से कनेक्शन कर देंगे. वह बैकअप हमसे रहेगा और इस तरह की समस्या नहीं आएगी. इसके बाद मरीजों की भर्ती को दोबारा से शुरू किया जा सकता है.

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