कोटा. शहर के नयागांव रोझड़ी में रह रहे बंगाली समाज के लोग मकर संक्रांति पर्व पर करीब 21 फीट लम्बा मिट्टी का मगरमच्छ बनाकर उसका पूजन करने की परंपरा काफी समय से प्रचलन में है.
मकर संक्रांति के पर्व पर देश में कई अलग-अलग तरीके से मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है. जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है, तब बंगाली समाज के लोग नदी के किनारे मिट्टी का मगरमच्छ बनाते हैं और उसका विधिवत रूप से सार श्रृंगार करते हैं. इस दौरान पंडितों से विधि विधान से पूजा कर अपना मकर संक्रांति का पर्व मनाते हैं.
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क्या है मिट्टी के मगरमच्छ के पूजा की परंपरा
जब इससे जुड़ी धारणा के बारे में पूछा गया तो बंगाली समाज के लोगों ने बताया कि ये सालों से चली आ रही परम्परा है. उन्होंने बताया कि तांत्रिक द्वारा मकर संक्रांति पर मिट्टी का मगरमच्छ बनाकर एक व्यक्ति तांत्रिक के विद्या सीखने गया था.
जब मकर संक्रांति पर अपने घर लौटा तो उसकी पत्नी ने उससे पूछा कि तुमने क्या सीखा. तब वह अपनी पत्नी को नदी के तट पर ले गया और उसने मिट्टी का मगरमच्छ बनाया और उसमें तांत्रिक विद्या से मंत्र बोलकर उसे जीवित कर डाला. उसके बाद नगर जीवित होकर नदी में चला गया.
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समाज और परिवार की खुशहाली के लिए करते हैं पूजा
इस घटना के बाद से ही इस तरह की धारणा को लेकर बंगाली समाज के लोग परंपरा का निर्वाह करते आ रहे हैं. वहीं समाज की महिलाओं ने बताया कि मकर संक्रांति पर पुराणों से चली आ रही इस परंपरा का निर्वाह करते हुए पूजन कर समाज और परिवार की खुशहाली की कामना करते है. पूजन के बाद समाज के सभी लोग एक साथ भोजन करते है.
बता दें कि रोझड़ी स्थित बंगाली समाज के परिवारों ने बुधवार को मकर संक्रांति पर्व मगरमच्छ की पूजा करके मनाया. इस दौरान मिट्टी के 21 फीट लंबे मगरमच्छ को बनाने के लिए सभी लोग जुटे हुए थे. वहीं साढ़े तीन फीट का मगरमच्छ का मुंह बनाया गया. इस दौरान मिट्टी के मगरमच्छ को ईश्वर और जीवनदाता का प्रतीक मानते हुए समाज के लोगों ने पूजा अर्चना की.