कोटा. प्रदेश में ईस्टर्न राजस्थान कैनाल प्रोजेक्ट (ERCP) को लेकर राजनीति चरम पर है. करीब 40 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा की इस प्रोजेक्ट के जरिए राजस्थान के 13 जिलों में पीने और सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध होगा. इसके अलावा इंडस्ट्री को भी पानी उपलब्ध करवाया जाएगा. इस प्रोजेक्ट से चुनाव में फायदा लेने के लिए राज्य सरकार भी जुटी हुई है. ऐसे में राजस्थान सरकार ने प्रोजेक्ट के लिए पैसे जुटाने के लिए कॉरपोरेशन बनाया है. फाइनेंस विभाग की स्वीकृति के बाद कॉरपोरेशन के जरिए ईआरसीपी प्रोजेक्ट के लिए पैसा एकत्रित किया जाएगा.
राज्य सरकार जल संसाधन विभाग, इंदिरा गांधी नहर परियोजना, कमांड एरिया डेवलपमेंट बीकानेर और कोटा सहित प्रदेश में (Eastern Rajasthan Canal project) संपत्तियों को बेचकर 10,000 करोड़ जमा करेगी. जल संसाधन आयोजना विभाग के मुख्य अभियंता रवि सोलंकी ने बताया कि अनुपयोगी संपत्ति की गणना की जाएगी. साथ ही वर्तमान वैल्यूएशन भी निकलवाया जाएगा. इसके बाद संपत्ति को नीलाम किया जाएगा.
चीफ इंजीनियर सोलंकी के अनुसार संपत्ति बेचने के अलावा सरकार बड़े बांधों पर सोलर प्लांट लगाने की योजना बना रही है. इसके चलते एकत्रित पानी की बचत होगी. साथ ही सोलर एनर्जी भी मिल सकेगी. बड़े बांधों के आसपास एकत्रित होने वाली बजरी और स्लिट को भी बेचा जाएगा. स्लिट किसानों को उनके खेत के लिए दिया जाएगा. ये डैम में जमा मिट्टी होती है जो खेतों के लिए काफी उपजाऊ होती है. इसके अलावा प्रोजेक्ट के जरिए इंडस्ट्रियल एरिया को भी पानी दिया जाएगा.
6 जून को भेजा पत्र, अब भेजेंगे रिमाइंडर : रवि सोलंकी के अनुसार करीब 10 हजार करोड़ की संपत्ति बेचने (Rajasthan government will raise money for ERCP) के लिए कैबिनेट की अनुशंसा के बाद जल संसाधन विभाग, इंदिरा गांधी नहर परियोजना, कमांड एरिया डेवलपमेंट बीकानेर और कोटा को पत्र लिखा गया है. इस संबंध में विभागों को दुबारा रिमाइंडर दिया जाएगा.
कोटा शहर में है करोड़ों का मैदान: कोटा शहर में सीएडी का एक बड़ा मैदान है. इसके अलावा बूंदी जिले के लबान, कोटा जिले के अयाना, डाबर, सीमलिया में भी जमीने हैं. यह सभी अनुपयोगी भूमि हैं. सीएडी कोटा के अतिरिक्त क्षेत्रीय आयुक्त नरेश कुमार मालव का कहना है कि राज्य सरकार ने अनुपयोगी भूमियों के बारे में जानकारी मांगी है. इसके लिए सभी संबंधित शाखाओं को पत्र प्रेषित कर जानकारी एकत्र की जा रही है.
जयपुर के फागी में है 300 बीघा जमीन : रवि सोलंकी ने बताया कि जयपुर के फागी में उनके विभाग की 300 बीघा जमीन है. इसके अलावा जयपुर के जगतपुरा में भी 8 से 10 बीघा जमीने हैं. अमानीशाह नाले के पास भी बड़ी मात्रा में जगह मौजूद है. बीकानेर, अजमेर और जैसलमेर जिले में भी बड़ी मात्रा में अनुपयोगी संपत्ति हैं. सोलंकी के अनुसार राज्य के गठन के समय महकमा इंजीनियरिंग प्रदेश में हुआ करता था. इस विभाग की सभी संपत्ति जल संसाधन विभाग के अधीन कर दी गई थी.
दोनों पार्टियां चुनाव में लेना चाहती है फायदा : केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत लगातार योजना को लेकर बयानबाजी करते हैं. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, राज्य के जल संसाधन मंत्री महेश जोशी, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया और कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा सहित कई राजनेताओं ने इस पर बयान दिया है. कांग्रेसी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से ईआरसीपी को राष्ट्रीय प्रोजेक्ट का दर्जा देने की मांग कर रहे हैं. इसी को लेकर एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप का क्रम जारी है.
करीब 40 हजार करोड़ का है प्रोजेक्ट : राज्य सरकार ने ईआरसीपी को स्वीकृति दे दी है लेकिन केंद्र सरकार के पास ये पेंडिंग है. इस 40 हजार करोड़ के प्रोजेक्ट में करीब 50 फीसदी पानी पेयजल स्रोत के रूप में प्रयोग किया जाएगा. इसके अलावा करीब 6 फ़ीसदी पानी से 2,80,000 हेक्टेयर में सिंचाई होगी. ईआरसीपी से ही राजस्थान के हाड़ौती के बारां, बूंदी, कोटा, झालावाड़, सवाई माधोपुर, अजमेर, टोंक, जयपुर, दौसा, करौली, अलवर, भरतपुर और धौलपुर तक पानी पहुंचाया जाना है.
इस प्रोजेक्ट के तहत कई उद्योगों और दिल्ली-मुंबई इंडस्ट्रियल कॉरिडोर डीएमआईसी तक पानी पहुंचाया जाएगा. जबकि नहर परियोजना के तहत एक बांध राज्य सरकार कोटा जिले में नोनेरा में बनवा रही है. इसके बाद 5 नए डैम चंबल नदी पर बनाए जाएंगे. सवाई माधोपुर जिले में खंडार तहसील में भी एक बांध डूंगरी बनाया जाना है. जिसमें चंबल नदी के बांधों के बाद बचने वाले पानी के अलावा बनास, मोरल, बाणगंगा, पार्वती, कालीसिंध गंभीरी नदियों के बेसिन के जल का उपयोग किया जाना है. ऐसे में अगर ये प्रोजेक्ट केंद्र सरकार लागू कर देती है, तब राज्य को भी प्रोजेक्ट में पैसे देने पड़ेंगे. जिसके लिए राज्य पैसा एकत्रित कर रही है.
सालों पुरानी है संपत्ति, कई जगह बने खण्डर- चंबल नदी पर बने बांध 1960 में पूरे हुए थे. इसके अलावा अन्य प्रदेश के बांधों को 30 से 40 और 60 साल तक हो चुके हैं. ऐसे में राज्य के जल संसाधन विभाग के पास जो संपत्ति है, वह इतने ही सालों पुरानी है. बीकानेर की गंग नहर को इंदिरा गांधी नहर परियोजना में तब्दील किया गया था, ऐसे में यह संपत्ति तो आजादी के पहले से ही है. इसके बाद बड़ी मात्रा में संपत्ति भी और जुड़ गई है. अधिकांश जगह पर संपत्ति खण्डर ही पड़ी है. कमांड एरिया डेवलपमेंट चंबल कोटा के बारां, बूंदी और कोटा में अधिकांश जगह पर खंडननुमा भवन हो चुके हैं.